पांच राज्यों – असम, बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी और केरल – की विधानसभाओं के चुनाव इस वर्ष अप्रैल और मई में होंगे। ये चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब खाद्य और दूसरी ज़रूरी चीजों की आसमान छूने वाली कीमतों की वजह से मेहनतकशों का जीवन और ज्यादा कठिन हो गया है तथा अधिक से अधिक बुनियादी ज़रूरत की चीजें लोगों की पहुंच से बाहर जा रही हैं। बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों और विभिन्न इजारेदार पूंजीपतियों के तरह-त
पांच राज्यों – असम, बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी और केरल – की विधानसभाओं के चुनाव इस वर्ष अप्रैल और मई में होंगे। ये चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब खाद्य और दूसरी ज़रूरी चीजों की आसमान छूने वाली कीमतों की वजह से मेहनतकशों का जीवन और ज्यादा कठिन हो गया है तथा अधिक से अधिक बुनियादी ज़रूरत की चीजें लोगों की पहुंच से बाहर जा रही हैं। बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों और विभिन्न इजारेदार पूंजीपतियों के तरह-तरह के घोटालों में शामिल होने के कांडों के पर्दाफाश से यह स्पष्ट हो रहा है कि कुछ मुट्ठीभर शोषक दसों-हजारों-करोड़ों रुपये, जो जनता का धन है, अपनी जेबों में डाल रहे हैं जबकि मेहनतकश जनसमुदाय के लिये गुजारा करना मुश्किल होता जा रहा है।
जिन राज्यों में चुनाव होने वाला है, वहां सत्ता और विपक्ष की राजनीतिक पार्टियां लोगों को सस्ते में खाना, नौकरी, मकान और लैपटाप भी देने का वादा कर रही हैं, ताकि लोगों का वोट हासिल कर सकें। परन्तु इस बात पर कोई चर्चा नहीं हो रही है कि सत्ता में जो भी पार्टियां आई हैं, उन्होंने इतने सालों में लोगों की ज़रूरतें क्यों पूरी नहीं की हैं। जनता की असली मांगों पर या इन्हें कैसे हासिल किया जायेगा उस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
हिन्दोस्तान में चुनावों की यही असलियत है। समय-समय पर चुनाव आयोजित किये जाते हैं, जिनका मकसद है पहले से ही बनी हुई सत्ता की व्यवस्था को वैधता देना और साथ ही साथ यह नाटक करना कि लोगों को सरकार का कार्यक्रम तय करने का अधिकार दिया जाता है और सत्ता में आई पार्टी या गठबंधन को ‘जनादेश’ प्राप्त है। बड़े पूंजीपति, जिनके हाथ में राज्य सत्ता है, चुनावों के ज़रिये अपने प्रबंधक दल में तब्दीली करते हैं ताकि शोषण और लूट की व्यवस्था नये चेहरों की निगरानी में चलती रहे। इसीलिये, हालांकि केन्द्र और अधिकतम राज्यों में नियमित तौर पर चुनाव कराने का बहुत बढि़या रिकार्ड है, परन्तु हिन्दोस्तान के अधिकतम मतदाता दुनिया के सबसे ग़रीब और अभावग्रस्त लोगों में गिने जाते हैं। अगर चुनाव वास्तव में लोगों के हाथों में सत्ता दिलाते, जैसा कि बताया जाता है, तो क्या यह यकीन किया जा सकता है कि इस विशाल और समृद्ध देश में अधिकतम लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी खुद को ग़रीबी और पिछडे़पन में रखने के लिये वोट देते रहते हैं?
हिन्दोस्तान में राज्य सत्ता को वे राजनीतिक पार्टियां चलाती हैं, जिन्हें पूंजीपति वर्ग ने अपने हितों की हिफाज़त और हिमायत करने के लिये बनाया और बरकरार रखा है। इस व्यवस्था के अंदर चुनाव लोगों को सत्ता में नहीं लाते बल्कि इसके विपरीत, यानि लोगों को सत्ता से दूर रखते हैं। परन्तु यह भ्रम फैलाया जाता है कि सरकार लोगों द्वारा चुनी जाती है। यह भ्रम फैलाया जाता है कि चुनावों के ज़रिये लोग फैसला करते हैं कि वे सत्ता में किसे बिठाना चाहते हैं, हालांकि पूरी व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि सिर्फ वही पार्टी जो पूंजीपति वर्ग की वफादारी से रक्षा करती है, वह ही सत्ता में आ सकती है और सत्ता में टिके रह सकती है। चुनाव इस व्यवस्था को बचाये रखने का काम भी करते हैं। जब-जब कोई पार्टी जनता की नज़रों में ज्यादा बदनाम हो जाती है, तो शासक वर्ग चुनाव आयोजित करके उसे हटा कर उसकी जगह पर दूसरी पार्टी को ला सकता है, जो पूंजीपति वर्ग के हितों की हिफाज़त करती रहेगी।
इस पूंजीवादी लोकतंत्र में शासक पूंजीपति वर्ग के बीच के अंतरविरोधों को ‘शांतिपूर्ण’ तरीके से चुनाव द्वारा हल किया जाता है। जैसा कि बीते कुछ दशकों में हिन्दोस्तान के अनुभव से देखा जा सकता है, ऐसी व्यवस्था में पूंजीपतियों के आपस में स्पर्धा करने वाले तबकों, नये तथा उभरने वाले प्रांतीय पूंजीवादी दलों के हितों को शामिल किया जा सकता है। परन्तु मेहनतकश बहुसंख्या, मजदूरों और किसानों को पूरी तरह सत्ता से बाहर रखा जाता है।
मेहनतकश लोगों के पास वोट डालने का अधिकार होने से यह सुनिश्चित नहीं होता है कि उन पर कौन शासन करेगा, यह तय करने में लोगों की कोई असली भूमिका हो। मेहनतकश लोग किसे वोट दे सकते हैं, उम्मीदवारों का चयन कैसे किया जाता है, चुनाव क्षेत्रों को कैसे निर्धारित किया जाता है, मतदाता सूचियां कैसे बनाई जाती हैं, किन कानूनों के तहत पार्टियों को मान्यता और विशेष सुविधायें दी जाती हैं, चुनाव प्रचार अभियान पर कौन से कानून लागू होते हैं, वोटों की गिनती कैसे की जाती है, चुनाव के बाद कैसे सरकार बनती है, वह सरकार किन नीतियों का फैसला करती है और उन्हें कैसे लागू करती है – इन सभी मुद्दों को तय करने में मेहनतकश जन समुदाय की कोई भूमिका नहीं होती है। जब इन गंभीर मामलों को तय करने में मेहनतकशों की कोई भूमिका नहीं होती, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि सिर्फ वोट डालने के अधिकार से लोग संप्रभु हो जाते हैं। वर्तमान व्यवस्था में चुनाव से राज्य सत्ता को चलाने वाला वर्ग, पूंजीपति वर्ग नहीं बदलता है।
पूरे देश में मेहनतकश लोग ज्यादा से ज्यादा हद तक यह समझने लगे हैं कि वर्तमान व्यवस्था में उन्हें राज्य सत्ता से बाहर रखा जाता है। लोग तरह-तरह से खुद राज्य सत्ता चलाने की मांग कर रहे हैं। यह वोट जीतकर सत्ता में आई हुई पार्टियों की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ़ मेहनतकशों के दैनिक संघर्षों में दिखाई देता है। जब किसी खास इलाके में लोग नेताओं और अफसरों को अपने इलाके में घुसने से रोकते हैं या चुने गये प्रतिनिधियों से उनके अपराधों और कुकर्मों का जवाब मांगते हैं, तो मेहनतकशों की यह मांग देखने में आती है। चुनावों के दौरान जब कुछ जागरुक लोग बड़ी राजनीतिक पार्टियों का बोलबाला ठुकाराते हैं और अपने ही बीच में से उम्मीदवार का चयन करके उसे चुनाव में खड़ा करते हैं, तो इसमें भी खुद राज्य सत्ता चलाने की मेहनतकशों की तमन्ना झलकती है। मेहनतकश लोग यह समझ रहे हैं कि वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया शासक पूंजीपति वर्ग के हाथों को मजबूत करती है और जन समुदाय को दरकिनार करती है। कैसी वैकल्पिक राजनीतिक प्रक्रिया से मेहनतकशों को असली मायने में सत्ता मिलेगी और पूंजीवादी शोषकों को सत्ता से हटाया जायेगा, इस विषय पर अनेक लोकप्रिय मंचों में बड़ी सरगर्मी से चर्चा चल रही है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी चुनावों के अवसर का इस्तेमाल करके राज्य और शासक वर्ग की नीतियों और कार्यक्रमों का पर्दाफाश करती है तथा मजदूर मेहनतकशों की मांगों और समस्याओं पर विस्तृत पैमाने पर चर्चा और प्रचार करती है। हम मेहनतकश जनसमुदाय को यह साफ-साफ समझाते हैं कि एक मूल रूप से नई राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया की ज़रूरत है, जो मेहनतकशों को असली मायने में सत्ता दिला सकती है और उनकी खुशहाली और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी लोकतंत्र और राजनीतिक प्रक्रिया की सबसे आधुनिक परिभाषा के लिये संघर्ष करती है और उन तंत्रों को विकसित करने की कोशिश कर रही है जिनके ज़रिये मेहनतकश लोग खुद अपना शासन कर सकें। वर्तमान पूंजीवादी लोकतंत्र की जगह पर श्रमजीवी लोकतंत्र स्थापित करने के उद्देश्य के साथ, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी लोगों को सत्ता में लाने के आंदोलन की हिमायत कर रही है।