वी.आई. लेनिन की 141वीं सालगिरह के अवसर पर : श्रमजीवी क्रान्ति और श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व की जीत के लिये संघर्ष करें!

हमारे देश में कई पार्टियों ने कम्युनिज़्म को अपना लक्ष्य बताया है परन्तु वे मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को उन लक्ष्यों के लिये संगठित करते हैं जो श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करने के लक्ष्य से विपरीत हैं। हमारी पार्टी का यह मानना है कि इस निर्णायक असूल पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कम्युनिस्ट पार्टी की परिभाषा यह है कि वह श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करने का राजनीत

हमारे देश में कई पार्टियों ने कम्युनिज़्म को अपना लक्ष्य बताया है परन्तु वे मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को उन लक्ष्यों के लिये संगठित करते हैं जो श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करने के लक्ष्य से विपरीत हैं। हमारी पार्टी का यह मानना है कि इस निर्णायक असूल पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कम्युनिस्ट पार्टी की परिभाषा यह है कि वह श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करने का राजनीतिक उद्देश्य रखती है। श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व मजदूर वर्ग की अगुवाई में मेहनतकश जनसमुदाय का शासन है, जो पूंजीवाद से कम्युनिज़्म तक पहुंचने के लिये ज़रूरी शर्त है। इससे भिन्न राजनीतिक लक्ष्य रखने वाली पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी नहीं हो सकती है। अगर मेहनतकशों का शासन स्थापित करना पार्टी का उद्देश्य नहीं है, तो वह पूंजी के शासन को बरकरार रखने का काम करती है। हमारी पार्टी बिना किसी शर्त के, इस लेनिनवादी असूल की हिमायत करती है कि ”सिर्फ वही मार्क्सवादी है जो वर्ग संघर्ष की मान्यता का विस्तार करके श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व को मान्यता देता है“।

22अप्रैल, वी.आई. लेनिन की 141वीं सालगिरह है। लेनिन अपने समय की हालतों के अनुसार मार्क्सवाद के सिद्धांत की हिफाज़त तथा उसे विकसित किया। उस समय पूंजीवाद अपने उच्चतम पड़ाव, साम्राज्यवाद तक पहुंच चुका था। लेनिन ने साम्राज्यवाद के अन्तरविरोधों का विश्लेषण किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि साम्राज्यवाद श्रमजीवी क्रान्ति की पूर्वसंध्या है। लेनिन ने श्रमजीवी क्रान्ति के आम सिद्धान्त और कार्यनीतियों को तथा खासतौर पर श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व के सिद्धान्त और कार्यनीति को विकसित किया।

लेनिन की बोल्शेविक पार्टी की अगुवाई में रूस के मजदूर वर्ग ने सफलतापूर्वक ज़ार और पूंजीपति वर्ग की हुकूमत का तख्तापलट किया और एक नयी राज्य सत्ता – श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व के राज्य – की स्थापना की, जो सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ के रूप में था। लेनिनवाद श्रमजीवी क्रान्ति से उभरकर आया और मौकापरस्ती के साथ मुठभेड़ में मजबूत हुआ।

लेनिन ने एक नयी प्रकार की पार्टी बतौर बोल्शेविक पार्टी को बनाने व मजबूत करने में अगुवाई दी। यह मजदूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी थी, जो मजदूर वर्ग का हिस्सा थी, उसका हिरावल दस्ता थी, जो अपने समय के सबसे उन्नत सिद्धांत से लैस थी, जो वर्ग संघर्ष में काफी मजबूत हो चुकी थी और क्रान्ति के पेचीदे मोड़ों से गुजरने में अगुवाई दे सकती थी।

लेनिन ने बताया कि ”क्रान्तिकारी सिद्धांत के बिना क्रान्तिकारी आंदोलन नहीं हो सकता है।“ उन्होंने यह भी बताया कि यह सिद्धांत एक वास्तविक जन सामूहिक क्रान्तिकारी आंदोलन के दौरान अपना पूर्ण रूप धारण करता है। लेनिन ने सिद्धांत को क्रान्तिकारी काम का मार्गदर्शक माना। कुछ लोग सिद्धांत को अपने संपूर्ण और अन्तिम रूप में हठवादी तरीके से पेश करते हैं और यह मानते हैं कि उसे प्रत्येक देश की खास हालतों में लागू किया जा सकता है। लेनिन ने सिद्धांत की इस हठवादी समझ का विरोध किया। उन्होंने रूस के तत्कालीन फलसफे की निहित समस्याओं को उठाया और उस सिद्धांत को विकसित किया जो समाज को अगले ऊंचे स्तर तक ले जाने का मार्ग दर्शन करेगा। उन्होंने मार्क्सवाद के निष्कर्षों को सिर्फ दोहराया नहीं बल्कि पूंजीवाद के अगले ऊंचे स्तर, साम्राज्यवाद तक विकास की समस्याओं को हल करने के दौरान, उसे और विकसित किया।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की स्थापना 30वर्ष और तीन महीने पहले, मार्क्सवाद-लेनिनवाद की फौलादी नींव पर हुई थी। प्रथम 10वर्षों के दौरान हमने सोवियत और चीनी संशोधनवादी धाराओं और अपने देश में उनके प्रभाव से मार्क्सवाद-लेनिनवाद की शुद्धता की हिफ़ाज़त की। लेनिनवादी पार्टी संगठन का निर्माण करने तथा मजदूर वर्ग और दूसरे दबे-कुचले तबकों के बीच अपनी जड़ें जमाने के दौरान हमने ऐसा किया।

‘रूढ़ीवाद’, ‘आतंकवाद’ और ‘राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता’ के नाम पर शासक वर्ग के हमलों का माकपा ने जब-जब समर्थन किया, तब-तब हमने उसका विरोध किया और हमारी पार्टी ने बहादुरी के साथ राजकीय आतंकवाद के खिलाफ़ एकता का नारा बुलंद किया। हमने केन्द्रीय सशस्त्र बलों द्वारा स्वर्ण मंदिर पर हमले और नवम्बर 1984में राज्य व शासक पार्टी द्वारा आयोजित सिखों के जनसंहार की निंदा की। हमने यह ऐलान किया कि ज़मीर का अधिकार सर्वव्यापक है और उसका हनन किसी भी हालत में नहीं हो सकता।

हमारी पार्टी ने इस बात का पर्दाफाश किया कि राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा समेत राजकीय आतंकवाद शासक वर्ग का पसंदीदा हथियार है, जिसके द्वारा वह अपना दमनकारी शासन और लूट की व्यवस्था को बरकरार रखता है। हमने लगातार माकपा व दूसरों द्वारा फैलाये गये खतरनाक भ्रम का विरोध किया है, कि कांग्रेस पार्टी भाजपा की तुलना में ‘कम बुरी’ है क्योंकि वह धर्मनिरपेक्षता का प्रचार करती है। हमने माकपा की लाईन को लेनिनवाद विरोधी साबित किया है क्योंकि यह मजदूरों और किसानों को पूंजीवादी पार्टियों और गठबंधनों के पीछे लामबंध करके श्रमजीवी क्रान्ति की तैयारी को रोकती है।

लेनिन की शिक्षाओं का सख्ती से पालन करते हुये, हमारी पार्टी ने हिन्दोस्तानी संघ के अन्दर सभी राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के आत्मनिर्धारण तथा संघ से अलग होने के अधिकार की हिफाज़त की है। हमने पूरे जोर-शोर से यह प्रचार किया है कि कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में राजकीय आतंकवाद को किसी भी हालत में जायज नहीं माना जा सकता है और हमने वहां सैनिक शासन को खत्म करने और नागरिकों से जीने का अधिकार छीनने वाले फासीवादी और उपनिवेशवादी कानूनों को रद्द करने की मांग की है।

हमारी पार्टी ने सभी प्रकार के आतंकवाद, राज्य द्वारा छेड़े गये आतंकवाद, साम्राज्यवादी ताकतों के गुप्त संस्थानों द्वारा आतंकवाद और क्रान्ति व कम्युनिज़्म के नाम पर किये गये आतंकवाद का विरोध किया है। हमने यह साबित किया है कि आतंकवाद साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के शासन तंत्र का निहित अंग है और व्यक्तिगत आतंकवाद की हरकतों का क्रान्ति से कोई सम्बंध नहीं है।

1990में, पूंजीवाद के पक्ष में तथा क्रान्ति और समाजवाद के खिलाफ़, दुनिया भर में सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में हो रहे प्रमुख परिवर्तनों के चलते, हमारी पार्टी के प्रथम महाअधिवेशन ने अब तक किये गये वर्ग संघर्ष से प्राप्त अनुभव का संकलन करके अपने सिद्धांत को विकसित करने की जरूरत को स्वीकार किया। हमने वैज्ञानिक समाजवाद को ताजा रूप दिलाने, मार्क्सवाद-लेनिनवाद को समकालीन बनाने का फैसला किया, ताकि पूरी दुनिया में हमारे दुश्मन जिस अप्रत्याशित कम्युनिस्ट विरोधी हमले को छेड़ रहे थे, उसका हम मुकाबला कर सकें और उस पर काबू पा सकें। हमने यह भी समझा कि हिन्दोस्तानी क्रान्ति को अपने मार्गदर्शन के लिये अपने खास सोच-विचारों की जरूरत है – हिन्दोस्तानी मुक्ति के सिद्धान्त की जरूरत है, जो हमारी दार्शनिक और वैज्ञानिक विरासत के सबसे उत्तम विचारों पर आधारित होगा और मार्क्सवाद-लेनिनवाद की मूल शिक्षाओं और तरीकों के अनुसार होगा।

हमारी पार्टी ने यह विश्लेषण किया कि सोवियत संघ के विघटन और शीत युद्ध के समापन के साथ दुनिया साम्राज्यवाद और श्रमजीवी क्रान्ति के युग के अन्दर, एक नयी अवधि में आ गयी है। यह क्रान्ति के पीछे हटने की अवधि है, क्रान्तिकारी लहर में भाटे की अवधि है। इस हालत को पैदा करने में वस्तुगत और आत्मगत हालतों, दोनों की ही भूमिका थी। परन्तु इसका यह मतलब नहीं था कि क्रांति खत्म हो गयी है, बल्कि इस हालत में नये प्रकार के संगठनों और संघर्ष के नये तौर-तरीकों तथा कम्युनिस्टों की एकता पुनः स्थापित करने के लिये नये प्रकार का विचारधारात्मक संघर्ष करने की जरूरत थी। हमने यह पहचाना कि कम्युनिज़्म के आगे बढ़ने के रास्ते में मुख्य खतरा आंदोलन के अन्दर वे लोग पेश करते हैं, जो इस धारणा से समझौता करते हैं कि हमारा तत्कालीन उद्देश्य एक ‘कम बुरे’ पूंजीवादी गठबंधन या एक ‘प्रगतिशील’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ या ‘राष्ट्रवादी’ पूंजीपतियों के दल को सत्ता में लाना है।

हमारी पार्टी ने श्रमजीवी क्रान्ति और श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व के मूल लक्ष्य पर डटे रहने के साथ-साथ, वर्तमान अवधि के लिये उपयुक्त कार्यनीतियों को विकसित किया है। हमने हिन्दोस्तानी राज्य और समाज के नवनिर्माण के कार्यक्रम को आगे रखा है, जो हमारे मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की तमन्ना के अनुसार है और जो हिन्दोस्तानी मुक्ति के सिद्धांत तथा पूंजीवाद को खत्म करके समाजवाद लाने के कम्युनिस्ट उद्देश्य के अनुसार है। हम इस कार्यक्रम के इर्द-गिर्द शहर और गांव के मेहनतकशों को संगठित करते आये हैं। इस तरह हम पूंजीवाद और संपूर्ण उपनिवेशवादी विरासत को खत्म करने तथा समाजवाद का रास्ता खोलने वाली क्रान्ति को कामयाब करने के लिये, मजदूर वर्ग और दूसरे उत्पीडि़त तबकों की सामूहिक चेतना को तैयार कर रहे हैं।

हमारे जीवन और संघर्ष के 30वर्षों के दौरान हमारी पार्टी ने बहुपार्टीवादी प्रतिनिधित्वादी लोकतंत्र के नाम से चलने वाले पूंजीवादी लोकतंत्र और उसकी राजनीतिक प्रक्रिया के साथ कभी समझौता नहीं किया है। समकालीन मार्क्सवादी-लेनिनवादी सोच से लैस होकर हमने इस राजनीतिक प्रक्रिया की समस्याओं को पहचाना है और इसके विकल्प बतौर एक आधुनिक लोकतंत्र की धारणा को पेश किया है, जिसमें मतदाता ही संप्रभु होगा और जिसकी राजनीतिक प्रक्रिया प्रत्यक्ष लोकतंत्र होगा। हमने प्रत्यक्ष लोकतंत्र बतौर एक ऐसी राजनीतिक प्रक्रिया को पेश किया है जिसमें राजनीतिक पार्टी की भूमिका लोगों को खुद अपना शासन करने के काबिल बनाना होगा, न कि जनता से यह अधिकार छीन कर, जनता के नाम पर पार्टी का शासन चलाना।

समाजवाद के संसदीय रास्ते को ठुकराने वाले नक्सलबाड़ी आंदोलन के प्रथम ऐतिहासिक कदम से आगे बढ़कर, हमारी पार्टी ने नवनिर्माण के कार्यक्रम बतौर क्रांतिकारी विकल्प को विकसित किया है। इस दौरान कम्युनिस्टों पर यह दबाव डाला गया है कि या तो पूंजीवादी लोकतंत्र से समझौता किया जाये या फिर भूमिगत आतंकवादी हरकतें की जायें। वर्तमान अवधि के अनुसार संगठन और संघर्ष के नये तौर तरीकों को विकसित करके हमने सफलतापूर्वक कम्युनिस्टों पर डाले जा रहे इस दबाव पर जीत हासिल की है। हमने मूलभूत परिवर्तन लाने और लोकतंत्र तथा हिन्दोस्तानी संघ को नयी परिभाषा दिलाने के अपने कार्यक्रम के इर्द-गिर्द राजनीतिक एकता को बनाया है तथा उसे और मजबूत कर रहे हैं।

हमारे देश के मजदूर वर्ग आन्दोलन के इतिहास से यह साबित होता है कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद की मूल शिक्षाओं और निष्कर्षों के संशोधन तथा हठवादी पालन से क्रांति और कम्युनिज़्म के लक्ष्य को नुकसान पहुंचा है। हिन्दोस्तानी क्रान्तिकारी सिद्धांत को विकसित करने से इंकार करना, अपने पश्चात की हर चीज को सामंती और प्रतिक्रियावादी मानने वाले यूरोकेन्द्रीयवादी सोच का शिकार बनना, यह हमारे देश के कम्युनिस्ट आंदोलन की भारी बीमारी रही है, जिसकी हमारी पार्टी ने जांच की है और जिसे दूर करने की कोशिश कर रही है।

अंत में हम आत्मविश्वास के साथ यह कह सकते हैं कि आज हिन्दोस्तान की धरती पर लेनिनवादी होने का यह मतलब है कि हमें मजदूर वर्ग को एक उच्चतर लोकतंत्र व आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करने के अपने कार्यक्रम से लैस करना होगा, जो व्यवस्था उच्चतम हिन्दोस्तानी सोच के अनुसार होगी। हमें इस कार्यक्रम के इर्द-गिर्द सभी मेहनतकश और उत्पीडि़त लोगों को लामबंध करना होगा। श्रमजीवी क्रान्ति और श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व की आत्मगत हालतों को तैयार करने का यही रास्ता है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी यही काम कर रही है। लेनिन की मिसाल पर चलने की इच्छा रखने वाले सभी लोगों से हम इस ऐतिहासिक काम में जुड़ने का आह्वान करते हैं।

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