फासीवादी यू.ए.पी.ए. कानून के विरोध में एकजुट हों! राष्ट्रीय जांच संस्था बनाने के कदम का विरोध करें!

17 दिसंबर को लोक सभा में दो बिल पास किये गये – अवैध गतिविधि (अवरोधक) अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) संशोधन बिल 2008 और राष्ट्रीय जांच संस्था (नैशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी – एन.आई.ए.) बिल 2008। पूंजीपतियों के सबसे प्रतिक्रियावादी तबकों और उनकी मुख्य राजनीतिक पार्टियों,कांग्रेस पार्टी व भाजपा ने ''आंतकवादियों का मुकाबला करने के लिये ज्यादा कड़े कानून'' और आतंकवादी अपराधों की जांच के लिये एक

17 दिसंबर को लोक सभा में दो बिल पास किये गये – अवैध गतिविधि (अवरोधक) अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) संशोधन बिल 2008 और राष्ट्रीय जांच संस्था (नैशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी – एन.आई.ए.) बिल 2008। पूंजीपतियों के सबसे प्रतिक्रियावादी तबकों और उनकी मुख्य राजनीतिक पार्टियों,कांग्रेस पार्टी व भाजपा ने ''आंतकवादियों का मुकाबला करने के लिये ज्यादा कड़े कानून'' और आतंकवादी अपराधों की जांच के लिये एक केन्द्रीय संस्था स्थापित करने की मांग को बड़े जोर-शोर से उठाया था, जिसके बाद ये बिल पास किये गये।

यू.ए.पी.ए. को संशोधित करने वाले बिल के अनुसार, किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा जेल में बंद रखने की अवधि को 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन कर दिया गया है। आतंक की परिभाषा में ''उग्रवाद, बग़ावत और नक्सलवाद'' को शामिल किया गया है। 30 दिन के लिये बिना जमानत पुलिस हिरासत, पुलिस द्वारा कोई भी मामला दर्ज किये जाने पर जमानत की नामंजूरी, विदेशियों को जमानत पर रिहा न किया जाना, ये संशोधित कानून की कुछ विशेषतायें हैं। इस कानून के तहत पुलिस अफसर को किसी को गिरफ्तार करने, बिना वारंट और सिर्फ शक के आधार पर किसी की तलाशी लेने तथा किसी की संपत्ति जब्त करने की खुली इजाज़त दी गई है। यहां तक कि पुलिस को ''सूचना न देने'' के लिये भी किसी को गिरफ्तार किया जा सकता है!

यू.ए.पी.ए. को संशोधित करने वाले बिल में कहा गया है कि ''अदालत यह मानेगी कि गिरफ्तार किये गये व्यक्ति ने वह जुर्म किया है जिसके लिये उसे गिरफ्तार किया गया है, जब तक इसके विपरीत कोई सबूत नहीं पेश किया जाता है''। दूसरे शब्दों में, किसी भी व्यक्ति को गुनहगार माना जायेगा, जब तक वह अपने आप को बेगुनाह नहीं साबित कर पायेगा। साथ ही साथ, पुलिस गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के परिजनों को सूचित करने को भी बाध्य नहीं है, अत: वह व्यक्ति शायद ही खुद को बेगुनाह साबित कर पायेगा।

संप्रग सरकार के पिछले साढ़े चार वर्षों के शासन काल के दौरान पूंजीपतियों के विभिन्न तबकों ने बार-बार जनता के अधिकारों और आज़ादियों पर हमलों को बढ़ाने की आवाज़ बुलंद की है। परंतु जनता ने बार-बार इसका विरोध किया है। अब मुम्बई के आतंकवादी हमलों और उससे पहले कई बड़े-बड़े शहरों में हुये आतंकवादी हमलों का बहाना देकर, पूंजीपतियों ने अपने इरादों को अंजाम दिया है।

यह साफ है कि यू.ए.पी.ए. एक फासीवादी कानून है, जिसका उद्देश्य है जन विरोध की आवाज़ को दबाना तथा समाज के कुछ खास तबकों को प्रताड़ित करना। सरकार चाहे कितना भी इंकार करे, परंतु यह स्पष्ट है कि इस कानून के तहत मुसलमान समुदाय, बांग्लादेशी आप्रवाशियों, क्रांतिकारी कम्युनिस्टों, बड़े पूंजीपतियों के 'विकास' कार्यक्रम के विरोधियों तथा जनता के हक़ों की हिफ़ाजत में आवाज़ उठाने वालों को निशाना बनाया जायेगा। इस बिल का उद्देश्य है लोगों के बीच खौफ़ का माहौल खड़ा करना, ताकि लोग अपने ज़मीर के अधिकार को जाहिर करने की हिम्मत न करें, अपने विचारों को प्रकट करने की जुर्रत न करें, वरना उन्हें 'संभावित आतंकवादी' करार कर बंद कर दिया जायेगा। आज नहीं तो कल, शासक पार्टी इस फासीवादी कानून के ज़रिये अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों पर भी निशाना साधेगी, जैसा कि टाडा व पोटा कानूनों के तहत भी किया गया था।

टाडा, पोटा और तमाम ऐसे दूसरे काले कानूनों के साथ हमारी जनता का अनुभव साफ-साफ दिखाता है कि इनसे आतंकवादी हमलों के हादसे कम नहीं हुये, हालांकि उन कानूनों को भी आतंकवाद से लड़ने के नाम पर लाया गया था। बल्कि उन कानूनों के द्वारा मज़दूर-मेहनतकश के विभिन्न तबकों पर क्रूर हमले किये गये, उन्हें बिना मुकदमा लंबे समय तक बंद रखा गया, छोटे-से-छोटे बहाने पर उन्हें प्रताड़ित व आतंकित किया गया, जबकि अधिकतर मामलों में पकड़े गये व्यक्ति बाद में बेकसूर साबित हुये।

जब हिन्दोस्तानी राज्य कहता है कि वह आतंकवाद को मिटाना चाहता है, तो यह मज़दूर-मेहनतकश के साथ बहुत बड़ा धोखा है। इससे बड़ा झूठ कोई नहीं हो सकता है।

यह जानी-मानी बात है कि सभी साम्राज्यवादी और पूंजीवादी राज्य नियमित तौर पर आतंकवाद के हथकंडे का इस्तेमाल करके, मजदूर-मेहनतकश के राजनीतिक विरोध को गुमराह करते हैं और मेहनतकशों पर अत्याचार को खूब बढ़ा देते हैं। आतंकवादी दूसरे देशों पर हमला करने तथा उनके अंदर अराजकता फैलाने का भी एक हथकंडा है। हिन्दोस्तानी राज्य इस मामले में कोई अपवाद नहीं है। खुद अलग से तथा अमरीकी साम्राज्यवादियों की सांठ-गांठ में, हिन्दोस्तानी राज्य दक्षिण एशिया में आतंकवाद का मुख्य आयोजक है।

देश के विभिन्न इलाकों में हुये आतंकवादी हादसों को अगर ध्यान से देखा जाये, तो यह साफ नज़र आयेगा कि राज्य की विभिन्न संस्थायें, नौकरशाही, बुध्दिजीवी और सशस्त्र बल तथा साम्राज्यवादी संस्थायें इन तमाम आतंकवादी हादसों के साथ नज़दीकी से जुड़ी हुई हैं।

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