बीमा और बैंक कर्मचारियों द्वारा सरकार के निजीकरण के कदमों का जबरदस्त विरोध

जीवन बीमा निगम और चार अन्य जनरल इंश्योरेंस की कंपनियों आल इंडिया इंश्योरेंस कंपनी, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के 1 लाख 75 हजार कर्मचारियों ने 23 दिसंबर, 2008 को एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का आयोजन किया। सरकार द्वारा राज्य सभा में 22 दिसंबर को दो विधेयक, बीमा कानून (संशोधन) बिल 2008 और जीवन बीमा निगम (संशोधन) बिल रखे जाने के विरोध में य

जीवन बीमा निगम और चार अन्य जनरल इंश्योरेंस की कंपनियों आल इंडिया इंश्योरेंस कंपनी, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के 1 लाख 75 हजार कर्मचारियों ने 23 दिसंबर, 2008 को एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का आयोजन किया। सरकार द्वारा राज्य सभा में 22 दिसंबर को दो विधेयक, बीमा कानून (संशोधन) बिल 2008 और जीवन बीमा निगम (संशोधन) बिल रखे जाने के विरोध में यह हड़ताल बुलाई गई थी। इस हड़ताल को आल इंडिया इंश्योरेंस एम्प्लाईज़ एसोसियेशन और अन्य यूनियनों ने मिलकर अगुवाई दी। यह हड़ताल पूरी तरह से देश भर में सफल रही। सरकार के इन मजदूर वर्ग विरोधी कदमों के खिलाफ़ सभी कर्मचारियों ने जोर-शोर और बहादुरी के साथ हिस्सा लिया।

राज्य सभा में सरकार द्वारा पेश किये गये इन दो बिलों का संबंध निजी बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की सीमा को 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत तक करने और जीवन बीमा निगम और जनरल इंश्योरेंस से संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश करने से है।

आज हिन्दोस्तान में जीवन बीमा क्षेत्र में सरकार द्वारा संचालित जीवन बीमा निगम के अलावा 13 बीमा कंपनियां निजी क्षेत्र में हैं। इन 13 कंपनियों में टाटा-ए.आई.जी., बिरला-सनलाईफ, एच.डी.एफ.सी.-स्टेंडर्ड लाईफ, आई.सी.आई.सी.-प्रुडेंशियल, रिलायंस, इत्यादि शामिल हैं। जैसे कि देखा जा सकता है इनमें से अधिकतर कंपनियों में एक हिन्दोस्तानी कंपनी के साथ एक विश्व स्तर की इजारेदार बहुराष्ट्रीय बीमा कंपनी मिली हुई है। इन हिन्दोस्तानी सरमायदारों ने ए.आई.जी., स्टेंडर्ड बारक्ले, जैसी इजारेदार बहुराष्ट्रीय वित्तीय कंपनियों के साथ मिलकर बीमा क्षेत्र में कदम रखा है और ये विदेशी कंपनियों को हिन्दोस्तान के विशाल जीवन बीमा क्षेत्र में अपने पैर जमाने का मौका दिया है। लेकिन अभी तक ये कंपनियां जीवन बीमा निगम की पकड़ को ढीला नहीं कर पाई हैं। और इन निजी बीमा कंपनियां इतना मुनाफा नहीं जुटा पाई हैं जितना कि उन्हें उम्मीद थी। अपने क्षेत्र को बढ़ाने और अधिक मुनाफे कमाने के लिये ये कंपनियां सरकार से मांग कर रही हैं कि इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के रास्ते से रुकावटें हटाई जायें। साथ ही सरकार ने जीवन बीमा निगम में सरकार का हिस्सा घटाने के लिये, विनिवेश करने के लिये बिल पेश किया है। आज की तारीख में जीवन बीमा निगम के पास 6.5 लाख करोड़ रुपये की धनराशि है और इसके अलावा 10 लाख करोड़ की अचल संपत्ति है। इससे जीवन बीमा के पास कुल 16.5 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। इन बड़े पूंजीपतियों की नज़र इस विशाल भंडार पर है और सरकार पर जीवन बीमा निगम में विनिवेश कराने के लिये दबाव डाल रहे हैं।

इस हड़ताल से कुछ ही दिन पहले मुंबई में इंश्योरेंस क्षेत्र के कर्मचारियों का राष्ट्रीय अधिवेशन 12 दिसंबर, 2008 को संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। आल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाईज़ एसोसियेशन (ए.आई.आई.ई.ए.), बैंक इम्पलाईज़ फेडरेशन ऑफ इंडिया (बी.ई.एफ.आई.) कंफिडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्मेंट इम्पलाईज़ एंड वर्कर्स (सी.सी.जी.ई.डब्ल्यू.) और ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट इम्पलाईज़ फेडरेशन (ए.आई.एस.जी.ई.एफ.) ने मिलकर ''विश्व वित्तीयसंकट और बैंकिंग, इंश्योरेंस क्षेत्र और पेंशन फंड की हिफाज़त करने की ज़रूरत'' इस विषय पर राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया। इंश्योरेंस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ाने का विरोध करने के साथ-साथ, इस अधिवेशन ने बैंक नियंत्रण संशोधन बिल और पेंशन फंड नियंत्रण और विकास प्राधिकरण बिल (पी.एफ.आर.डी.ए.) का भी विरोध किया।

बैंकिंग नियंत्रण संशोधन बिल के तहत सरकार स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार का हिस्सा घटाकर निजी निवेशकों का हिस्सा बढ़ाकर उन्हें अधिक वोट का अधिकार देने की कोशिश कर रही है। पी.एफ.आर.डी.ए. के जरिये सरकार इंप्लाईज़ प्राविडेंट फण्ड का निजीकरण करने, फंड के पैसे को निजी या किसी भी तरह के अन्य वित्तीयसंस्थानों द्वारा सट्टाबाजार में लगाने की छूट देने का प्रयास कर रही है। इस पेंशन फंड में मजदूरों को अपने वेतन का 10 प्रतिशत प्रति माह जमा करना पड़ेगा। इस अधिवेशन ने सरकार के उस फैसले की आलोचना और विरोध किया, जिसके तहत सरकार ने इंप्लाईज़ प्राविडेंट फंड के एक निर्धारित हिस्से को स्टॉक बाजार में लगाने की इजाजत दी है।

इंश्योरेंस क्षेत्र के मज़दूरों का इंश्योरेंस क्षेत्र के निजीकरण किये जाने और इसमें इजारेदार निजी कंपनियों को अधिक आयाम दिये जाने का विरोध करना, यह एक जायज़ संघर्ष है। मेहनतकश लोगों के जीवन बीमा का सवाल निजी इजारेदार पूंजीपतियों के हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता है, जिनका केवल मुनाफा ही एक मात्र लक्ष्य होता है। अमरीका और यूरोप में चल रहे विश्व पूंजीवादी संकट का अनुभव यह साफ दिखाता है कि यदि बीमा क्षेत्र में अधिकतम मुनाफों को चालक शक्ति बनाया गया तो संकट से बचाव का असूल, जो कि बीमा का आधार है, खतरे में पड़ जायेगा। बीमा करने से सुरक्षा हासिल करने के बजाय बीमा किये गये व्यक्ति की जिंदगी में और अधिक खतरे और अनिश्चितता आ जायेगी। अमरीका में ए.आई.जी. जैसी विशाल वित्तीयकंपनियों के डूब जाने से (जिसे सरकार द्वारा ढेर सारा धन डालकर बचाया गया) यह साफ होता है कि इनका डूबना दरअसल इन कंपनियों में भ्रष्ट कार्यनीतियों और बेधड़क सट्टेबाजी का नतीजा है।

समाज की सबसे अधिक उत्पादक शक्ति, मानव श्रम शक्ति के मालिक, मानव की सुरक्षा और उसका बीमा करना समाज का कर्तव्य है। इस असूल और दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुये मजदूर वर्ग को सरकार द्वारा बीमा क्षेत्र के निजीकरण का मुंहतोड़ ज़वाब देना होगा।

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