हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 20 मार्च, 2011
पूंजीवादी लोकतंत्र के इस गहरे संकट का इस्तेमाल इंकलाब और समाजवाद की ओर बढ़ने के लिए कम्युनिस्टों को करना चाहिए। इसके बजाय, माकपा और भाकपा इस व्यवस्था को बचाना चाहती हैं। हर एक चुनाव में ये पार्टियाँ कभी एक तो कभी दूसरी पूंजीवादी पार्टी की दुम बन जाती हैं। अपनी इस लाइन को वे यह तर्क देकर सही बताती हैं कि प्रान्तिक पूंजीपति मजदूर वर्ग और समाजवाद के आन्दोलन में सहयोगी हैं। पहले कई बार माकपा और भाकपा ने द्रमुक को धर्मनिरपेक्ष बताकर उसके साथ गठबंधन बनाया। आज ये पार्टियाँ अन्ना द्रमुक के साथ गठबंधन बना रही हैं, जिसे उन्होंने कभी पहले सांप्रदायिक, भ्रष्ट और गुनहगार पार्टी करार दिया था। मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था के साथ घुल-मिल जाने की लाइन के चलते, माकपा के अन्दर मौजूद भ्रष्टाचार का भी पर्दाफाश हुआ है, खास तौर से उन राज्यों में जहाँ यह सत्ता में रही है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 20 मार्च, 2011
साथियों,
तामिलनाडु राज्य के लिए विधान सभा चुनाव ऐसे वक्त पर हो रहे हैं जब हमारे देश की पूरी राजनीतिक व्यवस्था की विश्वसनीयता का संकट बहुत गहरा है। अधिकांश लोग ऐसी पार्टियों से तंग आ चुके हैं जो राज तो लोगों के नाम पर करती हैं, लेकिन काम करती हैं बड़े पूंजीपतियों और खुद की जेबें भरने का। वे संसद से भी तंग आ चुके हैं जो इस तरह की खुदगर्ज पार्टियों के नेताओं से भरी है। उन्हें पहले, दूसरे या तीसरे मोर्चे पर कोई विश्वास नहीं है जो सरकार बनाने के बाद पूंजीपतियों का वही निजीकरण और उदारीकरण का कार्यक्रम अमल में लाते हैं। लोग यह साफ़ देख रहे हैं कि समाज का कार्यक्रम बनाने और उसको अमल में लाने के लिए मंत्रियों का चयन करना, सब कुछ इजारेदार पूंजीपति घराने करते हैं। इस बात का पर्दाफाश हो चुका है कि संसदीय लोकतंत्र सिर्फ चंद मुट्ठीभर शोषकों – पूँजीपति वर्ग का राज है, जिसकी अगुवाई इजारेदार पूँजीपति करते हैं।
तामिलनाडु में जो पार्टियाँ और मोर्चे द्रमुक (डी.एम.के.) और अन्ना द्रमुक (ए.आई.ए.डी.एम.के.) के नेतृत्व में और कांग्रेस पार्टी या भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में सत्ता पर आये हैं, वे सभी तामिल राष्ट्रीय आन्दोलन के सहारे जीत कर आये हैं। उन्होंने यह दावा किया कि वे तामिल लोगों द्वारा खुद अपना भविष्य का फैसला करने के हक के लिए संघर्ष करेंगे। आज ये पार्टियाँ और मोर्चे हिन्दोस्तानी संघ और उसकी शोषण की व्यवस्था में पूरी तरह से घुलमिल गई हैं। तामिल राष्ट्रीय हकों के दावे केवल इस इलाके के पूंजीपतियों को, हिन्दोस्तान और दुनिया के बड़े पूंजीपतियों के स्तर पर पहुंचने के संकुचित हितों और मंसूबों को हासिल करने तक सीमित हो गए हैं।
तामिलनाडु के पूंजीपतियों ने तामिल राष्ट्रीय संघर्ष पर अपना नेतृत्व स्थापित करने और राज्य विधान सभा में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए द्रमुक का गठन किया। जबकि अन्ना द्रमुक का जन्म, द्रमुक के अन्दर गुटबाजी का नतीजा था, जो कि पूंजीपति वर्ग के बीच आपसी अंतर्विरोध को दिखाता है।
द्रमुक और अन्ना द्रमुक दोनों ही अपने पूंजीपति आकाओं को और खुद को अमीर बनाने के लिए काम करते आये हैं और यह दिखावा करते रहे हैं कि वे मेहनतकश लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने निजीकरण और उदारीकरण के कार्यक्रम पर अमल किया। अपनी पार्टियों के लिए वोट बैंक बनाने के इरादे से, कम दाम पर चावल, साड़ियाँ, घरेलू गैस के मुफ्त कनेक्शन और टी.वी. सेट बांटने के लिए विशेष योजनाएं बनाने में होड़ लगाई। ये पार्टियाँ राज्य इजारेदार पूंजीवादी व्यवस्था का अखंड हिस्सा हैं, एक ऐसी व्यवस्था जिसकी हिफाज़त उपनिवेशवादी स्वरूप के हिन्दोस्तानी गणराज्य द्वारा की जाती है और जिसे पार्टीवादी राजनीतिक प्रक्रिया के द्वारा जायज साबित किया जाता है।
राज्य इजारेदार पूंजीवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें बड़े व्यापारी घराने सभी वस्तुओं के बाज़ारों पर हावी होते हैं, कच्चे माल के स्रोतों पर कब्ज़ा करते हैं और राज्य मशीनरी पर नियंत्रण करते हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राज्य इजारेदार पूंजीपतियों के हितों को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। उपनिवेशवादी स्वरूप का गणराज्य देश के सभी इलाकों में बड़े पूंजीपतियों के वर्चस्व को सुनिश्चित करता है और इस वर्चस्व के खिलाफ़ किसी राष्ट्र या लोगों के प्रतिरोध को कुचलने का काम करता है। पार्टीवादी संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था पूंजीपतियों के आपसी अंतर्विरोध को सुलझाने और इजारेदार पूंजीपतियों की हुकूमत को ''लोकमत'' के रूप में पेश करने के काम आती है।
पिछले कुछ दशकों में तामिलनाडु में पूंजीवादी विकास काफी तेजी से हुआ है। मुट्ठीभर पूंजीपतियों के हाथों में बड़े पैमाने पर दौलत इकठ्ठा हो गयी है, जबकि मजदूर वर्ग, किसान, और अन्य मेहनतकश लोगों की जिंदगी बद से बदतर हो गयी है और कई जरूरत की वस्तुएं उनकी पहुँच से बाहर हो गयी हैं।
ऑॅटो मजदूर, इलेक्ट्रॉनिक्स या निर्माण मजदूर, कपड़ा या बागान, ट्रांसपोर्ट, शिक्षा या स्वास्थ्य, आई.टी. या बी.पी.ओ. मजदूर, सभी मेहनतकशों के श्रम के शोषण की तीव्रता बहुत बढ़ गयी है। कई क्षेत्रों में मजदूरों को लम्बे घंटों के लिए काम करना पड़ता है। तामिलनाडु में शिक्षित, हुनर वाले नौजवान मजदूर अधिक से अधिक शोषण के लिये मौजूद हैं, इसीलिए दुनियाभर के पूंजीपति तामिलनाडु में पूँजीनिवेश करने के लिए उत्सुक हैं। अधिक से अधिक मजदूर ठेके पर लिए जाते हैं और उनके रोजगार की कोई सुरक्षा नहीं होती है। मजदूरों द्वारा यूनियन बनाने के अधिकार पर हमले हुए हैं। जो मजदूर अपने हकों के लिए लड़ते हैं उन्हें पुलिस द्वारा तंग किया जाता है और उनका जबरदस्त दमन होता है।
हिन्दोस्तान में मई दिवस पर लाल झंडा फहराने वालों में से तामिलनाडु के मजदूर सबसे पहले मजदूरों में से एक थे। इस दौरान मजदूर वर्ग की तादात काफी बढ़ गयी है और इसमें तरह-तरह के ऊँचे हुनर वाले शिक्षित महिला और पुरुष मजदूर शामिल हुए हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद, ये मजदूर यूनियन बनाने के हक समेत अपने अन्य हकों की हिफाज़त, में कई क्षेत्रों में संगठित संघर्ष चला रहे हैं। स्वास्थ, शिक्षा, पानी और अन्य ज़रूरत की सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ़ संघर्ष में तामिलनाडु के मजदूर सक्रिय रहे हैं। इन संघर्षों में उन्हें शहर के गरीबों और मध्यम वर्ग का व्यापक समर्थन हासिल हुआ है।
पूंजीवाद के विकास और कृषि के सर्व हिंद और विश्वव्यापी बाजारों के साथ सम्मिलित होने से कई पूंजीपतियों का धन काफी बढ़ गया है, लेकिन इसके चलते अधिकांश किसानों के लिए असुरक्षा और कर्जभार बढ़ गया है। राज्य द्वारा केवल धान की फसल ख़रीदे जाने की गारंटी की वजह से, अन्य फसलें पैदा करने वाले किसानों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है और उन्हें महाकाय इजारेदार कंपनियों और बड़े मुनाफाखोर बैंकों से भरे अनिश्चित बाज़ार में किसी का सहारा नहीं मिलता है। सरकार द्वारा जमीन के छीने जाने और बड़े पूंजीपतियों को बेचे जाने का डर बना रहता है। तामिलनाडु के किसान बड़े पैमाने पर काफी संगठित और शिक्षित ताक़त रहे हैं, जिसे कई सालों का राजनीतिक अनुभव है। वे महसूस करते हैं कि पूंजीवादी पार्टियों ने उन्हें यह कह कर धोखा दिया है कि उदार व्यापार और कांट्रेक्ट खेती से उनका जीवन खुशहाल होगा। वे मांग कर रहे हैं कि राज्य सभी फसलों को स्थिर और लाभदायक दामों पर खरीदने की गारंटी दे। वे कृषि को जमीन जोतने वालों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय में परिवर्तित करने के रास्ते तलाश रहे हैं। मछुवारे और अन्य मेहनतकश लोग मांग कर रहे हैं कि उन्हें रोजगार की सुरक्षा और राज्य द्वारा समर्थन की गारंटी मिलनी चाहिए।
बुध्दिजीवियों और मध्यम वर्ग के बीच, राजकीय आतंकवाद, राजनीतिक और आर्थिक मांगों से निबटने के लिए बलप्रयोग का इस्तेमाल और सत्ता में बैठे राजनेताओं द्वारा जबरदस्ती से जमीन का अधिग्रहण किये जाने के खिलाफ़ व्यापक विरोध है। इसके साथ, मानव अधिकारों का हनन और राजनीतिक उत्पीड़न और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ़ आन्दोलन तेज हो रहा है।
लोग चाहते हैं कि राजनीतिक प्रक्रिया पर से खुदगर्ज पूंजीवादी पार्टियों का वर्चस्व ख़त्म हो। उनकी यह चाहत कई रूपों में सामने आ रही है, जैसे कि चुनाव के मैदान में ''मान्यता प्राप्त'' पार्टियों को चुनौती देने के लिए बढ़ती तादात में लोगों के उम्मीदवारों का खड़े होना। हमारी पार्टी और अन्य संगठनों द्वारा मौजूदा लोकतंत्र का पर्दाफाश करने के लिए चलाये गए अभियान को लोगों का जो समर्थन मिला है, उससे साफ़ नजर आता है कि लोग किस तरह की एक वैकल्पिक व्यवस्था और राजनीतिक प्रक्रिया चाहते हैं।
साथियों,
तामिलनाडु में यह चुनाव वर्ग संघर्ष के तेज होते और पूंजीवादी व्यवस्था के गहराते संकट के बीच हो रहा है। सत्ताधारी वर्ग इस चुनाव का इस्तेमाल मौजूदा व्यवस्था को मेहनतकश लोगों के गुस्से से बचाने और एक पूंजीवादी मोर्चे की जगह दूसरे पूंजीवादी मोर्चे को सत्ता में लाने के लिए करना चाहते हैं।
हम कम्युनिस्टों को इस मौके का इस्तेमाल लोगों की ज्वलंत समस्याओं को सुलझाने के लिए और एक असली समाधान पेश करने के लिए करना चाहिए। नयी बुनियाद पर एक नयी व्यवस्था को स्थापित करने के कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाना होगा और मजदूरों व किसानों को इस कार्यक्रम को अपना कार्यक्रम बतौर स्वीकार करने के लिए लामबंध करना होगा।
आज की सभी समस्याओं की वजह है मौजूदा राजनीतिक सत्ता और आर्थिक ढांचा, जो इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा अधिकतम लूट सुनिश्चित करने के लिए बनाई गयी है। असली समाधान है – इस व्यवस्था को पूरी तरह से बदलना। इसका मतलब है राजनीतिक सत्ता और अर्थव्यवस्था की दिशा के वर्ग चरित्र को बदलना।
मजदूर वर्ग की अगुवाई में सभी मेहनतकश लोगों को वर्तमान व्यवस्था, जिसमें पूंजीवादी पार्टियाँ लोगोंके नाम पर राज करती हैं, को बदल कर एक नयी व्यवस्था स्थापित करने के लिए संघर्ष करना होगा, एक ऐसी व्यवस्था जिसमें जो लोग श्रम करते हैं और सारी दौलत पैदा करते हैं, उनका राज होगा। इस नयी व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियों की भूमिका होगी मेहनतकश लोगों और प्रगतिशील बुध्दिजीवियों को उन्नतशील चेतना और दूर-दृष्टि देना, न कि उनके नाम पर राज करना। मजदूर यूनियनों, किसान संगठनों, महिला और नौजवान संगठनों, हर एक निर्वाचन इलाके में लोगों की समितियों- इन जैसे सारे संगठनों को अपने उम्मीदवार का चयन करने का अधिकार होना चाहिए, और खुली जनसभाओं में उम्मीदवारों का अंतिम चयन होना चाहिये। हर एक निर्वाचन क्षेत्र में लोगों को इन समितियों के माध्यम से चुने गए उम्मीदवार के काम की नियमित जाँच करने और चुने गए उम्मीदवार को किसी भी समय वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिये।
हमें अर्थव्यवस्था की दिशा को मानवीय उत्पादक शक्ति में निवेश करने और उनकी सुख-समृध्दि सुनिश्चित करने की नई दिशा में मोड़ने के लिए लड़ना होगा, बजाय इसके कि अधिकतम पूंजीवादी मुनाफों के लिए लोगों का अत्याधिक शोषण करना। ऐसी व्यवस्था सभी परिवारों के लिए जरूरत की चीजें पर्याप्त मात्रा में अधिकार बतौर उपलब्ध करायेगी। यह व्यवस्था सभी जमीन जोतने वालों की फसलों की स्थिर और लाभकारी दामों पर सार्वजनिक खरीदी का इंतजाम करेगी और छोटी जमीन के मालिकों को मिलकर एक साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
केंद्र और राज्य स्तर के अधिकारियों के बीच गैर-बराबरी और साम्राज्यवादी संबंधों को ख़त्म करके आपसी फायदे और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के लिए लड़ना होगा। हमें एक ऐसे स्वेच्छा पर आधारित संघ राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष करना होगा जो सभी सदस्यों की संप्रभुता को मानने और उसकी गारंटी देने पर आधारित होगी।
मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सभी मेहनतकश लोग राजनीतिक सत्ता को अपने हाथों में लेंगे और सामाजिक उत्पादन के सभी साधनों को निजी हाथों से छीनकर लोगों की सार्वजनिक संपत्ति में बदल देंगे और जमीन को किसानों और छोटे उत्पादकों की सामूहिक संपत्ति बना देंगे। सबसे पहले हम खाने पीने और लोगों की जरूरत की चीजों का समाजीकरण करेंगे और इसके साथ इस महत्वपूर्ण क्षेत्र से पूंजीवादी मुनाफाखोरी के आयाम ख़त्म कर देंगे।
साथियों
पूंजीवादी प्रचार इस वक्त यह आभास तैयार करने पर जोर दे रहा है कि भ्रष्टाचार ही सबसे महत्वपूर्ण मसला है और इसका हल है ऐसी राजनीतिक पार्टी या गठबंधन को बदलना जिसका सबसे ज्यादा पर्दाफाश हुआ है और उसकी जगह दूसरे पूंजीवादी गठबंधन को सत्ता पर लाना। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व में संसदीय वामपंथ भी इस पूंजीवादी प्रचार को समर्थन दे रहा है और तथाकथित तौर से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ने के लिए अन्ना द्रमुक के साथ मिलकर द्रमुक के खिलाफ़ गठबंधन बना रहा है।
असलियत तो यह है कि भ्रष्टाचार मौजूदा राज्य इजारेदार पूंजीवाद और पार्टीवादी राजनीतिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। कुछ विशेषाधिकार पाने के लिए घूस देना, हर रोज हजारों बार इस व्यवस्था में किया जाता है। इजारेदारी की तीव्रता और पूँजी के केन्द्रीकरण के साथ-साथ भ्रष्टाचार का पैमाना भी बड़ा होता गया है। इसके साथ ही गहराते राजनीतिक संकट और पूंजीवादी वर्ग के आपसी झगड़ों के चलते भ्रष्टाचार की आम घटनाओं की हकीकत भी तेजी से सामने आ रही है।
भाकपा और माकपा को यह पता होना चाहिए कि द्रमुक और अन्ना द्रमुक दोनों ही पूंजीवादी वर्ग के अलग-अलग गुटों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से एक पार्टी को हटाकर दूसरी पार्टी को सत्ता में लाने से केवल पूंजीपति गुटों के बीच लूट का बंटवारा कुछ बदल जायेगा। इससे राजनीतिक सत्ता का चरित्र नहीं बदलेगा। इससे अर्थव्यवस्था या उसकी दिशा का परजीवी और भ्रष्ट चरित्र नहीं बदलेगा। ऐसा करने से केवल पूंजीवादी व्यवस्था की मैनेजमेंट टीम ही बदलेगी और मौजूदा व्यवस्था को बरकरार रखने में ही मदद मिलेगी।
पूंजीवादी लोकतंत्र के इस गहरे संकट का इस्तेमाल इंकलाब और समाजवाद की ओर बढ़ने के लिए कम्युनिस्टों को करना चाहिए। इसके बजाय, माकपा और भाकपा इस व्यवस्था को बचाना चाहती हैं। हर एक चुनाव में ये पार्टियाँ कभी एक तो कभी दूसरी पूंजीवादी पार्टी की दुम बन जाती हैं। अपनी इस लाइन को वे यह तर्क देकर सही बताती हैं कि प्रान्तिक पूंजीपति मजदूर वर्ग और समाजवाद के आन्दोलन में सहयोगी हैं। पहले कई बार माकपा और भाकपा ने द्रमुक को धर्मनिरपेक्ष बताकर उसके साथ गठबंधन बनाया। आज ये पार्टियाँ अन्ना द्रमुक के साथ गठबंधन बना रही हैं, जिसे उन्होंने कभी पहले सांप्रदायिक, भ्रष्ट और गुनहगार पार्टी करार दिया था। मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था के साथ घुल-मिल जाने की लाइन के चलते, माकपा के अन्दर मौजूद भ्रष्टाचार का भी पर्दाफाश हुआ है, खास तौर से उन राज्यों में जहाँ यह सत्ता में रही है।
तथाकथित रूप से कुछ 'कम बुरे' पूंजीवादी मोर्चे को समर्थन देने और मौजूदा राज्य इजारेदार पूंजीवाद के अन्दर ही सरकारी कार्यक्रमों के जरिये लोगों को कुछ राहत देने की माकपा की लाईन मजदूर वर्ग के लिए बहुत हानिकारक है। माकपा और उसकी सहयोगी पार्टियों द्वारा पहली संप्रग सरकार को और उसके 'मानवीय चेहरे वाले' पूंजीवादी सुधार के कार्यक्रम को समर्थन देने से पूंजीपति वर्ग द्वारा मजदूर वर्ग को बेवकूफ बनाने और उसके प्रतिरोध को कमजोर करने में मदद मिली। तामिलनाडु में द्रमुक और अन्ना द्रमुक गठबंधन को समर्थन देने से पूंजीपति वर्ग को सत्ता बरकरार रखने और मजदूरों का शोषण करने में मदद मिली है।
साथियों!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति अपने सभी सदस्यों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों को तामिलनाडु में चुनावी लड़ाई में सक्रियता से हिस्सा लेने का बुलावा देती है। हमें इस मौके का इस्तेमाल नवनिर्माण के कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाने के लिए करना चाहिए, जिसके जरिये हम एक नयी राजनीतिक व्यवस्था की नींव रखेंगे और अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देंगे।
आईये, हम मेहनतकश लोगों को ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों में ऐसे उम्मीदवारों का चयन करने में सक्षम बनायें जो नवनिर्माण के कार्यक्रम के प्रति कटिबध्द हों! आइये हम नए कम्युनिस्ट दावपेंच बनायें और समाजवाद और कम्युनिज्म स्थापित करने के प्रति गंभीर लोगोंको हमारे साथ हाथ मिलाने के लिए बुलावा दें!