लिबिया पर साम्राज्यवादी हमले के खिलाफ़ प्रदर्शन!

24 मार्च, 2011 को हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, सोसलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट), भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और पीपुल्स फ्रंट (दिल्ली) ने संसद के सामने लिबिया पर अमरीकी, ब्रिटिश, फ्रांसीसी व अन्य नाटो ताकतों के वहशी साम्राज्यवादी हमले का विरोध करने के लिये एक संयुक्त प्रदर्शन आयोजित किया।

24 मार्च, 2011 को हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, सोसलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट), भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और पीपुल्स फ्रंट (दिल्ली) ने संसद के सामने लिबिया पर अमरीकी, ब्रिटिश, फ्रांसीसी व अन्य नाटो ताकतों के वहशी साम्राज्यवादी हमले का विरोध करने के लिये एक संयुक्त प्रदर्शन आयोजित किया।

रैली के मुख्य बैनर ने उद्धोषणा की, ''बर्तानवी- अमरीकी-फ्रांसीसी साम्राज्यवाद, लिबिया से बाहर निकलो!''।सरे अन्य प्लेकार्डों पर लिखा था, ''बर्तानवी-अमरीकी-फ्रांसीसी साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!'', ''साम्राज्यवादी हमले के खिलाफ़ लिबिया के लोगों के जायज संघर्ष का समर्थन करो!'', ''लिबिया में साम्राज्यवादी दखलंदाजी मुर्दाबाद!'', ''लिबिया पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रतिबंध मुर्दाबाद!'', '''मानवीय सहायता' की आड़ में लिबिया पर साम्राज्यवादियों का हमला मुर्दाबाद!'' और ''खुद के भविष्य को तय करने का लिबिया के लोगों का संप्रभु अधिकार है!''

रैली का संबोधन हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के प्रवक्ता कॉमरेड प्रकाश राव, सोसलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (सी) के कॉमरेड प्रताप सामल, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कॉमरेड पी.के. शाही, पीपुल्स फ्रंट (दिल्ली) के कॉमरेड नरेन्दर और पी.डी.एफ.आई. के नेता कामरेड अर्जुन ने किया।

वक्ताओं ने ''मानवीय सहायता'' के बहाने लिबिया पर किये जा रहे साम्राज्यवादी हमले की कड़ी निंदा की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के ''नो फ्लाई ज़ोन'' के फैसले की भर्त्सना की, जिसकी आड़ में अमरीका-ब्रिटेन-फ्रांस और नाटो द्वारा लिबिया पर साम्राज्यवादी हमला किया जा रहा है। आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादियों और नाटो ने पिछले दो दशकों से ज्यादा के समय में दिखा दिया है कि उनके असली इरादे क्या हैं और उन्हें लोगों की कहीं कोई परवाह नहीं है। यह बॉस्निया, सर्बिया तथा इराक और अफग़ानिस्तान में खुलकर साबित कर दिया है। साम्राज्यवादी घुसपैठ ताकतों ने लाखों लोगों का कत्ल किया है और पूरे के पूरे देशों को उजाड़ा और बरबाद किया है। इन युध्दों में, अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवाद का लक्ष्य रहा है, लोगों पर आधिपत्य जमाने और उनको गुलाम बनाने के अपने साम्राज्यवादी अजेंडे को आगे करना।

कॉमरेड प्रकाश राव ने बताया कि साम्राज्यवाद पूरी कोशिश कर रहा है कि लिबिया के राष्ट्रपति को एक ''तानाशाह'' के रूप में पेश करे। उन्होंने बताया कि अमरीकी सरकार अपने देश में मज़दूरों के अधिकारों पर खुल्लम-खुल्ला हमले कर रही है। अमरीका जो अपने-आप को ''लोकतंत्र'' की मिसाल मानता है, वहां पर जो भी सरकार के गलत कारनामों से सहमत नहीं हैं, उन्हें गुनहगार ठहराया जाता है और सख्ती से दंडित किया जाता है तथा लोगों को जेलों मे ठूंस दिया जाता है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति जिसके दिल में ''लोकतंत्र'' के प्रति इतना प्यार उमड़ रहा है, उसी ने 75 प्रतिशत जनमत को नजरअंदाज करके मज़दूर-विरोधी पेंशन कानून जबरदस्ती थोपा है। सार्कोज़ी ने ही मुस्लिम महिलाओं के पर्दे और खानाबदोश लोगों के विरोध में फाशीवादी कानून पास किये हैं। ब्रिटेन की गठबंधन सरकार ने अपने चुनावी आश्वासनों से उलटकदमी की और मज़दूरों व विद्यार्थियों पर वहशी हमले किये और जोशीले प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ़ बल प्रयोग किया।

कॉमरेड प्रकाश राव ने ध्यान दिलाया कि जब साम्राज्यवादी पूंजीपति लोकतंत्र की बात करते हैं तब उनका मतलब शोषण व लूटपाट करने के उनके ''अधिकार'' से होता है जबकि उनके विचार में मेहनतकश लोगों व दबे-कुचले राष्ट्रों और लोगों के कोई अधिकार नहीं होने चाहिये। दूसरी तरफ हम कम्युनिस्ट, लोकतंत्र स्थापित करने का संघर्ष करते हैं, जिसमें मज़दूर व किसान अपने भविष्य के मालिक होंगे – एक श्रमजीवी वर्ग के लोकतंत्र में। ऐसा लोकतंत्र साम्राज्यवादियों और उनके एजेंटों के प्रति और शोषक वर्गों के प्रति तानाशाही होगा। हमें नहीं भूलना चाहिये कि लेनिन व स्टालिन के जमाने का सोवियत संघ, जिसमें मज़दूर, किसान, महिलायें तथा सभी राष्ट्र, राष्ट्रीयतायें व लोगों को मुक्ति मिली थी और जहां श्रमजीवी लोकतंत्र फला-फूला था, उसे साम्राज्यवादी हमेशा तानाशाही राज बताते थे। साम्राज्यवादियों को तनिक भी परवाह नहीं है कि लिबिया के लोगों के अधिकार हैं, कि राजनीतिक सत्ता उनके हाथों में होनी चाहिये। उनकी दिलचस्पी सिर्फ इतनी ही है कि उस देश के वर्तमान संकट को कैसे इस्तेमाल करें ताकि लोगों के अधिकारों को दबा कर उनका साम्राज्यवादी बोलबाला स्थापित हो। लोग देख चुके हैं, कि बलपूर्वक कब्जे से इराक और अफग़ानिस्तान में, साम्राज्यवादियों ने किस प्रकार का ''लोकतंत्र'' लादा है।

कॉमरेड प्रकाश राव ने ध्यान दिलाया कि उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया तथा दक्षिण एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में साम्राज्यवादियों ने एक चिंताजनक परिस्थिति खड़ी कर दी है। साम्राज्यवादी हमलावरों के खिलाफ़ लिबिया के लोगों के न्यायपूर्ण संघर्ष की हम हिमायत करते हैं। सिर्फ लिबिया के लोगों को अधिकार है कि वे तय करें कि देश की अर्थव्यवस्था की दिशा क्या होगी और किस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था होनी चाहिये। साम्राज्यवादियों का इन मामलों में कोई अधिकार नहीं है।

लिबिया पर साम्राज्यवादी हमले के खिलाफ़ और लोगों के संघर्ष की हिमायत में लगाये गये जोशीले नारों के साथ प्रदर्शन का समापन हुआ।

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