19 मार्च से अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन और कुछ अन्य साम्राज्यवादी देषों ने लिबिया में राजधानी त्रिपोली समेत कुछ गिने-चुने लक्ष्यों पर टोमाहोक मिसाइल बरसाये हैं और दूसरे घातक हथियारों से हमले किये हैं। हमलावरों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लिबिया पर'उड़ान निषेध क्षेत्र' थोपने वाले प्रस्ताव से समर्थन मिल रहा है। इसका यह मतलब है कि लिबिया का कोई भी विमान अपने देश के हवाई क्षेत्र म
19 मार्च से अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन और कुछ अन्य साम्राज्यवादी देषों ने लिबिया में राजधानी त्रिपोली समेत कुछ गिने-चुने लक्ष्यों पर टोमाहोक मिसाइल बरसाये हैं और दूसरे घातक हथियारों से हमले किये हैं। हमलावरों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लिबिया पर'उड़ान निषेध क्षेत्र' थोपने वाले प्रस्ताव से समर्थन मिल रहा है। इसका यह मतलब है कि लिबिया का कोई भी विमान अपने देश के हवाई क्षेत्र में उड़ान नहीं कर सकता है परन्तु सुरक्षा परिषद की बड़ी ताकतों के युध्द विमान लिबिया के ऊपर उड़ान कर सकते हैं और उस देश पर उड़ान निषेध क्षेत्र लागू करने के बहाने, उस पर बम बरसा सकते हैं।
साम्राज्यवादी ताकतें दुनिया के लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि लिबिया पर हमला करना जरूरी था ताकि लिबिया में गद्दाफी की सरकार को अंदरूनी जन विरोध पर बल प्रयोग करने से रोका जा सके। साम्राज्यवादियों ने ऐलान कर दिया कि लिबिया में 'खून-खराबा' होने वाला है और दुनिया इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। उन्होंने दावा किया कि 'मानवीय' कारणों से उन्होंने लिबिया पर हमला किया है। उनका यह कहना है कि लिबिया पर बम और मिसाइल बरसाने के पीछे उनका इरादा लिबिया की जनता की रक्षा करना है। इससे बड़ा झूठ कोई नहीं हो सकता है!
बीते अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि साम्राज्यवादी हमले से दुनिया में कहीं भी शान्ति नहीं आती, न ही लोगों के जीवन की रक्षा होती है। चाहे इराक हो या अफगानिस्तान या बीते वर्षों में तमाम ऐसे उदाहरण, यही देखने में आता है कि साम्राज्यवादी सैनिक हस्तक्षेप से मौत और तबाही फैली है तथा हिंसक झगड़े और ज्यादा फैले हैं।
उत्तरी अफ्रीका और फारस की खाड़ी क्षेत्र के देशों में अमरीका और यूरोप के साम्राज्यवादियों ने ही भ्रष्ट और गद्दार शासक गुटों को समर्थन दिया है ताकि इस तेल समृध्द इलाके में साम्राज्यवादी दबदबे और लूट को पूरी सहूलियत मिल सके। वहां के लोग जिन भयानक हालतों के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं, उन हालतों के लिये साम्राज्यवादी ताकतें खुद ही जिम्मेदार हैं। तो यह कैसे माना जा सकता है कि अब अचानक साम्राज्यवादी ताकतों को वहां के लोगों के जीवन और अधिकारों की रक्षा करने की इतनी चिन्ता होने लगी है?
लिबिया पर हमला करने के पीछे इरादे भू-राजनीतिक हैं। उस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके मित्र जो खतरनाक साज़िश रच रहे हैं, उसमें यह हमला एक कदम है। साम्राज्यवादियों का इरादा है नयी राजनीतिक व्यवस्थाओं का निर्माण करके उस इलाके पर अपने नियंत्रण और लूट को बरकरार रखा जाये व और मजबूत बनाया जाये, तथा साथ ही साथ वहां के लोगों को बुध्दूबनाया जाये और उनके संघर्षों को गुमराह किया जाये। साम्राज्यवादी जगह-जगह पर सैनिक हस्तक्षेप करके और जन-प्रतिरोध को अपने हितों के अनुसार गुमराह करने के लिये अपने विचारधारा और अपने एजेंटों को घुसाकर अपने इरादे हासिल करना चाहते हैं। वे झूठ और गलत सूचनाओं का प्रचार करके दुनिया के लोगों की आंखों में धूल झोंकना चाहते हैं।
साम्राज्यवादी प्रचार के द्वारा यह विचार फैलाया जा रहा है कि इस इलाके के देशों में लोगों का संघर्ष पश्चिमी पूंजीवादी लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यवस्थाओं के पक्ष में है तथा इस्लाम के मूल्यों और व्यवस्थाओं के खिलाफ़ है। परन्तु असलियत में यह संघर्ष नव-उपनिवेशवादी नियंत्रण और साम्राज्यवादी लूट से मुक्ति और आजादी का संघर्ष है।
साम्राज्यवादी इन देशों की साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों को 'इस्लामी रूढ़ीवादी' करार कर उन्हें बदनाम करना चाहते हैं। वे अपने विश्वास पात्र एजेंटों को लोकतंत्र के हिमायती बता रहे हैं तथा खुद को जन आन्दोलन से हमदर्दी रखने वाले समर्थक के रूप में पेश कर रहे हैं।
लिबिया पर हमले के कुछ ही दिन पहले, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने बहरीन के शासकों के खिलाफ़ जनता की बगावत को बलपूर्वक कुचलने के लिये, बहरीन में साउदी और संयुक्त अरब अमीरात की सेनाओं द्वारा सैनिक हस्तक्षेप करवाया था। अमरीकी रक्षा सचिव रॉबर्ट गेट्स, जिन्होंने इस विदेशी सैनिक हस्तक्षेप से कुछ दिन पहले बहरीन की यात्रा की थी, उन्होंने बहरीन के राजा और उसके पुत्र को आदर्श शासक बताकर यह कहा था कि ''मुझे भरोसा है कि वे दोनों असली सुधार लाने में गंभीर रुचि रखते हैं''। साम्राज्यवादियों के अनुसार, सड़कों पर आंदोलन कर रहे लोगों पर वहशी हिंसा छेड़ना ठीक है जब तक ऐसा करने वाले शासक अमरीकी साम्राज्यवाद की रणनीति का पालन करने को तैयार हैं।
प्रगतिशील ताकतों को इतिहास से सबक लेनी चाहिये। इराक युध्द की योजना करते समय यह बहाना दिया गया था कि सद्दाम हुसैन के पास ''जन संहार के हथियार'' हैं। आज यह कहा जा रहा है कि लिबिया पर बम बरसाना, यह उस देश में सरकार विरोधी ताकतों पर गद्दाफी सरकार के बल प्रयोग की प्रतिक्रिया है। सच तो यह है कि यह साम्राज्यवादी हमला पहले से ही सुनियोजित था और संभावित खून-खराबे के बारे में किया जा रहा प्रचार एक बहाना है ताकि इस सुनियोजित हमले को छेड़ा जा सके।
मजदूर वर्ग और लोगों के मन में कोई शक नहीं होना चाहिये कि अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्रों के हित उत्तरी अफ्रीका और फारस की खाड़ी क्षेत्र के लोगों तथा सभी अरब लोगों की शान्ति और खुशहाली के हितों के बिलकुल खिलाफ़ है।
लिबिया के हवाई क्षेत्र पर किसी भी विदेशी ताकत को अपने विमानों को उड़ाने का कोई अधिकार नहीं है और न ही लिबिया पर बम बरसाने का कोई अधिकार है। किसी संप्रभु राज्य के क्षेत्र के इस घोर हनन को कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता। मजदूर वर्ग और शान्ति पसंद लोग इस प्रकार की हरकतों को कभी मान्यता नहीं दे सकते।
मजदूर एकता लहर लिबिया पर इस नाजायज़ और अमानवीय साम्राज्यवादी हमले की कड़ी निंदा करती है और देश के मजदूर वर्ग तथा सभी राजनीतिक पार्टियों से ऐसा करने का आह्वान करती है।