संपादक महोदय,
माडर्न फूड्स संघर्ष की 10वीं सालगिरह के अवसर पर मजदूर एकता लहर की फरवरी 16-28, 2010 के अंक में लेख छापने पर मैं आपका आभारी हूं। माडर्न फूड्स का संघर्ष हमारे देश में चल रहे वर्ग संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील पत्थर है जिसे याद करना जरूरी है।
संपादक महोदय,
माडर्न फूड्स संघर्ष की 10वीं सालगिरह के अवसर पर मजदूर एकता लहर की फरवरी 16-28, 2010 के अंक में लेख छापने पर मैं आपका आभारी हूं। माडर्न फूड्स का संघर्ष हमारे देश में चल रहे वर्ग संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील पत्थर है जिसे याद करना जरूरी है।
इस लेख में यह साफ तौर से बताया गया है कि निजीकरण के कार्यक्रम से मजदूर-मेहनतकशों को केवल आंसू मिले हैं जबकि इससे शोषक और लुटेरे अधिक अमीर बने हैं। लेख में इस बात पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है कि निजीकरण का कार्यक्रम लगातार चलता रहा है, चाहे जो भी पार्टी सत्ता में थी और खास तौर से यह बताया गया है कि कुछ वाम पार्टियों ने 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को सरकार बनाने में मदद की। इस सरकार ने जो सांझा न्यूनतम कार्यक्रम चलाया उससे मजदूर वर्ग में यह भ्रम फैलाया गया कि निजीकरण के माहौल में मजदूर वर्ग और सरमायदार वर्ग, इन दोनों की आकांक्षाओं को साथ-साथ पूरा किया जा सकता है।
इस तरह की बातों की केवल कल्पना की जा सकती है जैसे कि गुजरात में एक जानी-पहचानी चाय के ब्रांड ”बाघ-बकरी चाय“ में देखने को मिलता है जहां शेर और बकरी दोनों एक ही घाट से पानी पी सकते हैं। यह एक भ्रम है जो क्रांतिकारी दस्तों में बैठे सरमायदारों से समझौता करने वाले फैला रहे हैं। लेकिन इस लेख में यह साफ तौर से दिखाया गया है कि निजीकरण और उदारीकरण के नारों का मजदूर वर्ग के सामने पूरा पर्दाफाश हो चुका है और मजदूर वर्ग इस भ्रम से बाहर निकलने का रास्ता खोज रहा है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के कार्य से मजदूर वर्ग को सही रास्ता दिखाई देगा। केवल मजदूर वर्ग की अगुवाई में इंकलाब के रास्ते से ही हिन्दोस्तान के लोगों को इन हालातों से मुक्ति हासिल हो सकती है। माडर्न फूड्स के संघर्ष की 10वीं सालगिरह और इसका अनुभव हमें यह दिखलाता है कि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये मजदूर वर्ग को क्या करना होगा।
आपका
ए नारायण, बैंगलूरू