अलग-अलग पार्टियों के ट्रेड यूनियनों ने एकजुट होकर, खाद्य की आसमान छूती महंगाई और मेहनतकशों पर अन्य हमलों का विरोध किया। उन्होंने खाद्य की बढ़ती महंगाई को फौरन रोकने के कदम मांगे, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण का विरोध किया, श्रम कानूनों के उल्लंघन की कड़ी सज़ा मांगी, कृषि मजदूरों तथा मौजूदे श्रम कानूनों के तहत सुरक्षा से वंचित अन्य क्षेत्रों के मजदूरों के लिए सुरक्षा मांगी और एक रा
अलग-अलग पार्टियों के ट्रेड यूनियनों ने एकजुट होकर, खाद्य की आसमान छूती महंगाई और मेहनतकशों पर अन्य हमलों का विरोध किया। उन्होंने खाद्य की बढ़ती महंगाई को फौरन रोकने के कदम मांगे, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण का विरोध किया, श्रम कानूनों के उल्लंघन की कड़ी सज़ा मांगी, कृषि मजदूरों तथा मौजूदे श्रम कानूनों के तहत सुरक्षा से वंचित अन्य क्षेत्रों के मजदूरों के लिए सुरक्षा मांगी और एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष के गठन के द्वारा सभी मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा की मांग की।
राजधानी दिल्ली में हजारों मजदूरों ने संसद पर रैली की। उन्होंने हाथों में लाल झंडे और महंगाई व निजीकरण के खिलाफ़ प्लाकार्ड लिए हुए थे। मजदूरों के नारों ”पूंजीवाद हो बर्बाद!“, ”निजीकरण मुर्दाबाद!“, ”इंकलाब जिंदाबाद!“, इत्यादि से वातावरण गूंज उठा। मजदूर एकता कमेटी, ए.आईटी.यू.सी., ए.आई.सी.सी.टी.यू., इंटक, बी.एम.एस., एच.एम.एस., सीटू, यू.टी.यू.सी., टी.यू.सी.सी. और ए.आई.यू.टी.यू.सी. के नेताओं ने मजदूरों को संबोधित किया।
हमारे देश के मजदूरों का यह जन विरोध ऐसे समय पर हो रहा है जब मजदूरों, किसानों और सभी मेहनतकशों की रोजी-रोटी और अधिकारों पर चैतरफा हमले हो रहे हैं। खाद्य पदार्थों की भीषण महंगाई मेहनतकशों पर एक भारी बोझ है। निजीकरण की वजह से मजदूर वर्ग के सबसे संगठित तबकों पर हमले हो रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र, दोनों में श्रम कानूनों का खुलेआम हनन किया जा रहा है। अधिक से अधिक मजदूर ठेके पर काम करने को मजबूर हैं, और उनके कोई अधिकार नहीं हैं। मजदूरों के काम करने व जीने की हालतों पर भारी हमला किया जा रहा है।
गांवों में किसानों का बुरा हाल है क्योंकि उत्पादन की कीमत बढ़ती जा रही है, जबकि सरकार नियंत्रित दाम पर किसानों को कृषि की जरूरी सामग्रियां बेचने से इंकार कर रही है और लाभदायक दाम पर कृषि उत्पादों को खरीदने से इंकार कर रही है। कृषि व्यापार की इजारेदार कंपनियों का बोलबाला चल रहा है और किसान साहूकार वित्त संस्थानों से लिये कर्जों को चुकाने में असमर्थ हैं।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा पेश किये गये बजट प्रस्तावों से यह स्पष्ट होता है कि संप्रग सरकार खाद्य पदार्थों और सभी जरूरी सामग्रियों की कीमतें बढ़ाकर निजीकरण के जरिये व व्यापार और अन्य क्षेत्रों में बड़े पूंजीपतियों के मुनाफों की गुंजाइश को बढ़ाकर, मजदूरों, किसानों व सभी मेहनतकशों पर और भारी बोझ लादने जा रही है। मजदूर संगठनों व किसान संगठनों की समस्याओं को हल करने के कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। इसके बजाय, मेहनतकशों पर लागू किये गये प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों द्वारा प्राप्त धन सैनिक तंत्र को बढ़ाने, वित्त पूंजीपतियों से लिये गये कर्जों को चुकाने, व्यापक अफसरशाही तंत्र को बरकरार रखने और विभिन्न क्षेत्रों के पूंजीपतियों को दी गई रियायतों पर खर्च किया जा रहा है। मजदूरों और किसानों का न सिर्फ पूंजीपतियों द्वारा भयानक शोषण हो रहा है, बल्कि साथ ही साथ, उन पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों का बोझ भी डाला जा रहा है, जिससे उनके जीवन की हालतें और बिगड़ती जा रही हैं।
हमारी पार्टी मजदूरों को संघर्ष करने के लिये संगठित कर रही है। हमारी मांग है कि एक आधुनिक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था स्थापित की जाए जिसमें मजदूर परिवार के उपभोग की सारी जरूरी वस्तुएं – अन्न, दालें, चीनी, तेल, ईंधन, इत्यादि पर्याप्त मात्रा में, उचित दामों पर व अच्छी गुणवत्ता के साथ उपलब्ध हों। हम मजदूरों और किसानों को संघर्ष के लिए संगठित कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करने के लिये कि कृषि की सभी आवश्यक वस्तुयें (बीज, ईंधन, उर्वरक, कीटनाशक, बिजली, पानी व पूंजी) उचित दाम पर किसानों को मुहैया करायी जाएं और लाभदायक दाम पर किसानों से कृषि उत्पादों की खरीदी हो। हम यह मांग कर रहे हैं कि थोक व्यापार को सामाजिक नियंत्रण में लाया जाए ताकि शहर और गांव के बीच कृषि उत्पादों के व्यापार से कोई निजी मुनाफाखोर अपनी जेब न भर सके। हम यह मांग कर रहे हैं कि अनुत्पादक सैन्य खर्च में कटौती करके तथा कर्जा चुकाने पर रोक लगाकर जो पैसा बचेगा, उसे इस्तेमाल करके सामाजिक नियंत्रण में एक आधुनिक, सर्वव्यापक वितरण व्यवस्था स्थापित की जाए और इसके लिए कृषि उत्पादों के थोक व्यापार का राष्ट्रीकरण व समाजीकरण किया जाए।
देश भर में मजदूरों के जन प्रदर्शन ये दर्शाते हैं कि मजदूर वर्ग अपने अधिकारों की हिफाज़त में जुझारू संघर्ष के लिये तैयार है। इस मौके पर कम्युनिस्टों को सभी कारखानों व कार्यस्थलों पर, सभी रिहायशी व औद्योगिक क्षेत्रों पर, मजदूर वर्ग के तत्कालिन कार्यक्रम के इस मुख्य विषय को लेकर, यानि कि सामाजिक नियंत्रण में एक आधुनिक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की मांग को लेकर, मजदूरों को संगठित करना होगा।