अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल मनाने के लिये इस वर्ष 8 मार्च के दिन तकरीबन 30 संगठनों से जुड़े एक हजार से भी अधिक महिलायें व पुरुष दिल्ली के केन्द्र में, मंडी हाऊस से जंतर-मंतर तक, एक जोशीली रैली में शामिल हुये। इस प्रदर्शन का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिये गठित शताब्दी समिति ने किया था।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल मनाने के लिये इस वर्ष 8 मार्च के दिन तकरीबन 30 संगठनों से जुड़े एक हजार से भी अधिक महिलायें व पुरुष दिल्ली के केन्द्र में, मंडी हाऊस से जंतर-मंतर तक, एक जोशीली रैली में शामिल हुये। इस प्रदर्शन का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिये गठित शताब्दी समिति ने किया था।
शताब्दी समिति पिछले एक वर्ष से भी अधिक से दिल्ली के विभिन्न इलाकों में गोष्ठियां, सम्मेलन, विचार विमर्श, प्रदर्शन व रैलियां करती आयी है। उसने महिला अत्याचार पर रोशनी डालने व इसको खत्म करने के लिये महिलाओं व पुरुषों को एक साथ संगठित करने पर जोर दिया है। 8 मार्च का प्रदर्शन ऐसे ही संयुक्त प्रयास का नतीजा था।
रंगीन झंडों के साथ, जिनमें सहभागी संगठनों के नाम लिखे थे, जुलूस नयी दिल्ली के राजनीतिक व वित्तीय केन्द्र की तरफ बढ़ा, जहां सरकारी दफ्तर, मंत्रालय, प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर, बैंक, विभिन्न संस्थान तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां स्थित हैं। ”अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जिन्दाबाद!“, ”शासन सत्ता अपने हाथ जुल्म अन्याय करें समाप्त!“, ”महिलाओं व पुरुषों, शोषण व अन्याय के खिलाफ एकजुट हो!“, ”आसमान चूमने वाली कीमतों का बोझ मुर्दाबाद!“, ”धिक्कार है ऐसी सरकार का जो हमें खाद्य सुरक्षा नहीं देती है!“, ”एक काम का एक दाम, औरत आदमी एक समान!“, ”ए.एफ.एस.पी.ए. के तहत महिलाओं व बेकसूरों का बलात्कार व हत्या मुर्दाबाद!“, ”गुनहगारों को सजा दो!“, ”हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे!“, ”महिला मुक्ति के संघर्ष के 100 सालों को लाल सलाम!“, ”इंकलाब जिन्दाबाद!“ नारों से आसमान गूंज गया। जुलूस में हिस्सा लेने वालों ने ये और दूसरे नारे अपने तख्तियों पर भी लिखे हुये थे। जुलूस के सामने चल रही गाड़ी के ऊपर युवतियां व मेहनतकश महिलायें नारों के बीच-बीच गीत गा रहीं थीं, महिला मुक्ति के लिये लड़ने और विजय पाने की उम्मीद के गीत।
जुलूस में स्कूल व कालेज जाने वाली युवतियों का एक दस्ता जुड़ गया, जिन्हें रोज़ाना पुलिस समर्थित गूंडो द्वारा सताये जाने का सामना करना पड़ता है। इसी तरह, शहर व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की दूर-दराज की झुग्गी झोपडि़यों व गरीब बस्तियों में रहने वाली मेहनतकश महिलायें भी जुलूस में शामिल हुईं। दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलकूद की तैयारी के चलते, ऐसी बहुत सी बस्तियों के हटाये जाने और उनके निवासियों के बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर विभिन्न व्यवसायों की महिलायें व पुरुष – शिक्षक, वकील, डॉक्टर आदि तथा विभिन्न विचारधाराओं के राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे।
शताब्दी समिति द्वारा एक पर्चा निकाला गया जिसमें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास उजागर किया गया तथा महंगाई, स्वास्थ्य सेवा, व्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली व खाद्य सुरक्षा, रोजी-रोटी की सुरक्षा व नौकरी की अच्छी हालतें, महिलाओं व पुरुषों के लिये समान काम के लिये समान वेतन, घर व असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के लिये सामाजिक सुरक्षा, सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून व सभी दमनकारी कानूनों के खिलाफ, साम्प्रदायिक हिंसा व राजकीय आतंकवाद सहित महिलाओं पर हर तरह की हिंसा के खिलाफ मांगें रखी गयीं। पर्चे में खुले तौर पर कहा गया कि ”हिन्दोस्तान का महिला आंदोलन यह मानता है कि सही मायने में महिला मुक्ति तभी संभव है जब समाज में सभी असमानतायें व अन्याय खत्म हो जायेंगे, तथा इसीलिये अपने आंदोलन को पितृसत्ता, वर्ग, जात व धर्म से पीडि़त सभी तबकों के संघर्षों से जोड़ने की कोशिश हमेशा करता आया है।“ जुलूस के रास्ते में हजारों की संख्या में इन पर्चों का वितरण किया गया।
संसद के पास, जंतर-मंतर में जुलूस एक बड़ी रैली में परिवर्तित हो गया, जिसको सभी सहभागी संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। वक्ताओं ने ध्यान दिलाया कि 8 मार्च को मनाने का बुलावा 100 साल पहले कम्युनिस्ट महिलाओं ने दिया था, जिनको साफ था कि महिला मुक्ति के संघर्ष का रास्ता, पूंजीवाद की शोषण व्यवस्था को उखाड़ फैंक कर समाजवाद को लाने के संघर्ष से अलग नहीं है। कमरतोड़ महंगाई व सार्वजनिक वितरण प्रणाली के विनाश से, मेहनतकश महिलाओं व पुरुषों के अधिकारों को, जिन्हें उन्होंने बहुत संघर्ष व बलिदान से जीता था, उन्हें नकारने वाले प्रस्तावित श्रम कानून संशोधनों से, महिलाओं पर बढ़ती हिंसा से, राज्य के आतंकवाद व कश्मीर व पूर्वोत्तर में लागू ए.एफ.एस.पी.ए. जैसे काले कानूनों से हो रहे मज़दूरों व गरीबों पर खुल्लमखुल्ला हमलों के खिलाफ विभिन्न संगठनों के वक्ताओं ने आवाज उठाई।
कई संगठनों के सदस्यों ने महिलाओं व दबे कुचले लोगों पर हो रहे दमन व अन्यायों के खिलाफ संघर्ष को सलामी देते हुये गीत गाये। श्रोताओं को बस्ती की स्कूली छात्राओं द्वारा किये गये एक नाटक से प्रेरणा मिली, जिसमें तेजी से बढ़ती महंगाई से मज़दूरों व उनके परिवारों को हो रही जबरदस्त तकलीफ दर्शायी गयी।
रैली को संबोधन पुरोगामी महिला संगठन, सी.एस.डब्ल्यू., सी.ए.वी.ओ.डब्ल्यू., एक्शन इंडिया, अंकुर, कदम, दिल्ली छात्र संगठन, जागोरी, निरंतर, ए.आई.पी.डब्ल्यू.ए., ए.आई.एस.ए. तथा दूसरे संगठनों के प्रतिनिधियों ने किया। पुरोगामी महिला संगठन के वक्ता ने ध्यान दिलाया कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में सिर्फ बड़े पूंजीपतियों के लिये लोकतंत्र है जबकि यह राजनीतिक प्रक्रिया पक्का करती है कि आम मेहनतकश महिलायें व पुरुष सत्ता से बाहर रखे जायें; उन्हें अपने जीवन पर प्रभाव डालने वाले निर्णयों को लेने से तथा नये कानून बनाने में पहलकदमी करने से वंचित रखा जाये। महिलाओं पर जघन्य अत्याचार करने वाले गुनहगारों को कभी सजा नहीं मिलती है क्योंकि ज्यादातर मामलों में गुनहगारों को राज्य का पूरा संरक्षण प्राप्त होता है। वक्ता ने यह सवाल उठाया कि न्याय की क्या आशा रखी जा सकती है जब अपराधी और न्यायाधीश एक ही हों, यानि कि राज्य। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि महिला मुक्ति के लिये अनिवार्य है – पूंजीवाद का तख्ता पलटाने के लिये महिलाओं व पुरुषों का एकजुट संघर्ष और मज़दूरों व पीडि़तों का राज स्थापित करना।
यह महत्व की बात थी कि यह जुलूस व रैली उस वक्त की गयी जब संप्रग सरकार ने राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया है। यह बिल प्रस्थापित राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया को बदले बगैर, हरेक वैधानिक निकाय में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण करता है। सरकार इसे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शताब्दी के अवसर पर महिलाओं के लिये एक “तोहफा” बता रही है। सी.पी.आई.एम. व उसके सहयोगियों की कार्यवाईयां, जो संप्रग सरकार के आरक्षण बिल के लिये समर्थन जुटाने में व्यस्त थे और यह भ्रम फैला रहे थे कि किसी तरह इससे महिलाओं को सत्ता में भागीदारी मिल सकती है – उपरोक्त जोशीली रैली उससे एकदम अलग दिशा में थी।