बहुत ही उत्साह और जोश से सैकड़ों स्त्री और पुरुषों ने मुंबई के मज़दूर वर्ग इलाके में एक जन रैली में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया।
7 मार्च 2010 के दिन यह जन रैली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौवें वर्षगांठ की शुरुआत को मनाने के लिये वरली की बी.डी.डी. चाल के मैदान में की गयी।
बहुत ही उत्साह और जोश से सैकड़ों स्त्री और पुरुषों ने मुंबई के मज़दूर वर्ग इलाके में एक जन रैली में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया।
7 मार्च 2010 के दिन यह जन रैली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौवें वर्षगांठ की शुरुआत को मनाने के लिये वरली की बी.डी.डी. चाल के मैदान में की गयी।
इस रैली के आयोजन के लिये बहुत से जन संगठन साथ आये, जिनमें शामिल थे, पुरोगामी महिला संगठन, लोक राज संगठन, कामगार एकता चलवल, स्थानीय लोक राज संगठन समिति, जागृत घर कामगार संगठन जो घरों में काम करने वाली महिलाओं को संगठित करते हैं, तथा अन्य मजदूर संगठन।
मैदान को सभी आयोजकों के झंडों से शुशोभित किया गया था। मंच पर झंडे में लिखा था ”अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शताब्दी जिंदाबाद!“ तथा ”चलो, लोक राज समितियां बनायें और मजबूत करें!“ मुंबई में काम करने वाले लोगों की विभिन्न भाषाओं में पताके हर तरफ नजर आ रहे थे, जिन पर लिखा था, ”एक पर हमला, सब पर हमला!“, ”लोक राज संगठन की है मांग – हिन्दोस्तान का नवनिर्माण!“, आदि। स्त्री, पुरुष, नौजवान, बच्चे, असंगठित क्षेत्र के मज़दूर – उल्हासनगर, अंधेरी, ठाणे और परेल जैसे मुंबई के दूर-दराज़ व निकट के इलाकों से आये। मैदान में क्रांतिकारी गीतों से एक जोशीला वातावरण तैयार था।
वक्ताओं ने मुंबई और पूरे देश की महिलाओं व लड़कियों की गंभीर समस्याओं पर बातें रखी। पूरे समाज की समस्यायें महिलाओं को और भी बुरी तरह सताती हैं। महिलाओं की काम करने की परिस्थिति पुरुषों से भी बदतर है। मुंबई में 5 लाख महिलायें घरों में काम करती हैं और उनके लिये काम की सुनिश्चिति नहीं है। बहुत सी महिलायें अपने घरों में बीड़ी बनाने का काम करती हैं और उन्हें उनके काम का बहुत ही कम पैसा मिलता है। आम तौर पर उन्हें मुश्किल काम करना पड़ता है परन्तु कुछ भी सुरक्षा नहीं होती और वेतन भी बहुत कम होता है। कार्यस्थलों में,रिहायशी इलाकों में और वे जहां भी जाती हैं, उन्हें निरंतर शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
वक्ताओं ने महिला मुक्ति संघर्ष की ऐतिहासिक महत्ता पर और आंदोलन की आज की परिस्थिति पर ध्यान दिलाया। दुनिया भर में, शुरुआत से महिला मुक्ति संघर्ष, पूंजीवादी शोषण के खिलाफ संघर्ष और शोषण व दमन मुक्त एक नये समाज, यानि कि समाजवाद के संघर्ष से स्वाभाविक तौर से जुड़ा रहा है। यही संघर्ष लोक राज का, यानि कि लोगों को सत्ता में लाने का संघर्ष है। यह सच्चाई है कि बीसवीं सदी में महिला मुक्ति के लिये यथार्थ में और सफलता से कदम उन देशों में लिये गये थे जहां समाजवाद स्थापित किया गया था।
वक्ताओं ने ध्यान दिलाया कि 60 साल पहले, हिन्दोस्तानी गणतंत्र के संविधान ने महिलाओं को मताधिकार तो दिया, परन्तु अनुभव दिखाता है कि सिर्फ मताधिकार से मेहनतकश महिलाओं या पुरुषों को समाज के निर्णय लेने के अधिकार नहीं मिलते। मत देने से उन्हें असली सत्ता नहीं मिली, सिर्फ सत्ता पाने का एक भ्रम ही मिला। अपने देश की राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया ऐसी है कि राजनीतिक पार्टियां और गठबंधन लोगों के नाम पर राज करते हैं और चुनावों के जरिये वैधता पाते हैं। चूंकि मेहनतकश महिलायें व पुरुष सत्ताहीन हैं इसीलिये वे आज ऐसी विकट परिस्थिति से जूझ रहे हैं।
महिलाओं व पुरुषों का फर्ज है कि अपने देश में लोक राज स्थापित करने के दृष्टीकोण से संगठित हों। हमें राजनीतिक सत्ता की जरूरत है ताकि हम ऐसे कानून व नीतियां सुनिश्चित व कार्यान्वित कर सकें जिनसे मेहनतकश लोगों की वाकई में उन्नति व विकास हो। हमें राजनीतिक सत्ता की इसलिये भी जरूरत है ताकि सब तरह के गुनहगारों को उनके अपराधों के अनुसार सजा दिला सकें।
अतः हमें संगठित होना है ताकि हम परिस्थिति को बदल सकें और सचमुच लोगों की सरकार या लोक राज ला सकें। हमें अपने काम करने की जगहों पर और रिहायशी इलाकों में संगठित होना है। हमें फैक्टरियों व दफ्तरों में, मोहल्लों व चालों में और गांवों में संगठित होना है। हमें लोक राज समितियां बनानी हैं, जो सभी लोगों को एकताबद्ध करेंगी और अपनी समस्याओं के समाधान के लिये लड़ने में बनायेंगी।
सभा के अंत में एक जोशीला सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ जिसमें, लोगों की भाषाओं में – मराठी, हिन्दी, गुजराती, तेलुगू, आदि में, क्रांतिकारी गीत व लोक नृत्य पेश किये गये। इन में मेहनतकश महिलाओं और देश के कोने-कोने से काम की तलाश में आये मुंबई के मज़दूर वर्ग के बीच की एकता प्रतिबिंबित थी।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सौवीं सालगिरह की सभा में आयीं महिलायें व पुरुषों ने अपनी एकता की पुष्टि की और सभा से उत्साहित व आशापूर्ण हो कर गये – अपने व पूरे देश के लिये उज्जवल भविष्य बनाने के दृढ़ निश्चय के साथ, और अपने करोड़ों देशवासियों के साथ मिल कर यह काम सफलता से करने के अपने आत्मविश्वास के साथ।