आज दुनिया में मौजूद सबसे खतरनाक हथियारों से लैस, हजारों अमरीकी सैनिकों ने फरवरी 2010 के दूसरे सप्ताह में अफगानिस्तान में फिर से हमला शुरू किया है। इस हमले का उद्देश्य है कब्जाकारी सेनाओं का विरोध करने वाले अफ़गान योद्धाओं के केन्द्रों को मिटा देना। अमरीका और नाटो की कब्जाकारी ताकतों के मुताबिक, उनका मकसद है अफगानिस्तान के तमाम क्षेत्रों को “तालिबानी नियंत्रण” से “मुक्त&rdqu
आज दुनिया में मौजूद सबसे खतरनाक हथियारों से लैस, हजारों अमरीकी सैनिकों ने फरवरी 2010 के दूसरे सप्ताह में अफगानिस्तान में फिर से हमला शुरू किया है। इस हमले का उद्देश्य है कब्जाकारी सेनाओं का विरोध करने वाले अफ़गान योद्धाओं के केन्द्रों को मिटा देना। अमरीका और नाटो की कब्जाकारी ताकतों के मुताबिक, उनका मकसद है अफगानिस्तान के तमाम क्षेत्रों को “तालिबानी नियंत्रण” से “मुक्त” करना। इस हमले के चलते हजारों बेगुनाह नागरिक मारे जा चुके है, जिसमें कई बच्चे और औरतें शामिल है। मजदूर एकता लहर अमरीकी साम्राज्यवादियों और उसके समर्थक देशों की इस कार्यवाही की कड़ी निंदा करती है।
अफगानिस्तान में चल रही यह जंग अमरीका पर 11 सितंबर 2001 में हुए आतंकवादी हमले के बाद शुरू हुई, जब अमरीकी साम्राज्यवादियों और उसके समर्थक देशों ने यह दावा किया कि अफगानिस्तान में राज कर रहे शासक इस हमले के लिए जिम्मेदार हैं और इन लोगों से सारी सभ्य दुनिया को खतरा है। अफगानिस्तान में वे एक पश्चिमी शैली का संसदीय लोकतंत्र, बहुपार्टी लोकतंत्र और सुशासन इत्यादि बसाने का अपना “हक” जताना चाहते थे। उनका असली मकसद था पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के संगम पर स्थित इस रणनैतिक नजरिये से महत्वपूर्ण इलाके पर अपना कब्जा और नियंत्रण जमाना। लेकिन अपने सबसे खतरनाक और विशाल फौजी हाथियारों के साथ हजारों लोगों का कत्ल करके, अफगानिस्तान में तबाही फैलाने के कई साल बाद भी अमरीकी गठबंधन केवल अफगानिस्तान की राजधानी और उसके निकट के कुछ इलाकों पर ही अपनी हुकूमत चला पाये हैं। जंग के आठ साल बाद भी अफगानिस्तान के अधिकांश इलाके विदेशी कब्जाकारियों के नियंत्रण से बाहर रहे हैं।
अफगानिस्तान के लोगों ने कभी भी विदेशी हमलावरों के आगे घुटने नहीं टेके हैं, वह चाहे बर्तानवी बस्तीवादी हो, या सोवियत सामाजिक साम्राज्यावादी, या फिर अमरीकी साम्राज्यवादी। अमरीका और नाटो ताकतों द्वारा स्थापित कठपुतली हुकूमत को उन्होंने हमेशा नफरत से देखा है और अपने देश को कब्जाकारी ताकतों से आजाद कराने के लिए अपना प्रतिरोध संघर्ष जारी रखा है। दुश्मन की विशाल और खतरनाक फौजी ताकत के बावजूद अफगानी लोगों ने पिछले 30 वर्षों से कब्जाकारी ताकतों के खिलाफ़ अपना संघर्ष जारी रखा है। इस प्रतिरोध के चलते केवल 2009 में अमरीकी और सहायक देशों के 520 फौजी मारे गये। अमरीका, ब्रिटेन और अन्य देशों, जिन्होंने अफगानिस्तान पर हमले के लिए फौज भेजी हैं, इन देशों के आम लोगों सहित दुनियाभर के हजारों लोगों ने इस जंग के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई है।
इस जंग को किसी भी हालात में ”जीतने“ की कोशिश में, अमरीका की अगुवाई में कब्जाकारी फौजों ने अपनी पूरी ताकत और प्रचार के साथ मारजाह जैसे शहरों पर हमला शुरू किया है जो कि प्रतिरोध के मजबूत केन्द्र हैं। इस हमले के साथ तालमेल करते, प्रचार माध्यमों से यह प्रचार किया जा रहा है कि कब्जाकारी फौज न केवल इस प्रतिरोध को खत्म करेगी, बल्कि इसके बाद इन शहरों में “अफगानी पुलिस और प्रशासन” “सुशासन” बरकरार करेंगे ताकि प्रतिरोधी ताकतें वापस न आ सकें। अमरीका यहां दावा कर रहा है कि वह न केवल प्रतिरोध को खत्म करेगा बल्कि “प्रतिरोध की सफाई करके, अपनी पकड़ जमायेगा और निर्माण कार्य करेगा”। इस प्रचार से वह यह जताना चाहता है कि अमरीका और उसके समर्थक राष्ट्रों की फौज पिछले 8 वर्षों से काबुल को छोड़कर बाकी देश पर अपनी हुकूमत इसलिए नहीं जमा पाये क्योंकि वे “सुशासन” नहीं लागू कर पाये। वे इस बात पर पर्दा डालना चाहते हैं कि पूरे अफगानिस्तान और अन्य देशों में लोग इन कब्जाकारी ताकतों से नफरत करते हैं। केवल अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के पड़ोसी इलाकों में भी, अमरीका की अगुवाई में इस कब्जाकारी फौज ने हजारों बेगुनाह पुरुषों, औरतों और बच्चों के ऊपर कहर बरसाया है।
अफगानिस्तान पर किये जा रहे इस हाल के हमलों को रोकना होगा। कब्जाकारी ताकतों को अफगानिस्तान से निकलने पर मजबूर करना होगा ताकि अफगानिस्तान के लोग अपने भविष्य का फैसला खुद कर सकें। तमाम साम्राज्यवादी नेताओं, उनके सेनापतियों और समर्थकों, जिन्होंने यह जंग शुरू किया और इसे चलाये रखा, उनके खिलाफ नरसंहार और जंग अपराधों के लिए खुला मुकदमा चलाना होगा।