आधुनिक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लिये खाद्य सबसिडी बढ़ाया जाए!
हथियारों पर खर्च घटाया जाए और ब्याज भुगतान रोका जाए!
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी 26 फरवरी को केन्द्रीय बजट पेश करने जा रहे हैं, ऐसे समय पर जब मजदूर वर्ग अप्रत्याशित खाद्य पदार्थों की महंगाई के बोझ के तले कराह रहा है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने, बजट सत्र के आरंभिक दिन पर संसद को संबोधित करते
आधुनिक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लिये खाद्य सबसिडी बढ़ाया जाए!
हथियारों पर खर्च घटाया जाए और ब्याज भुगतान रोका जाए!
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी 26 फरवरी को केन्द्रीय बजट पेश करने जा रहे हैं, ऐसे समय पर जब मजदूर वर्ग अप्रत्याशित खाद्य पदार्थों की महंगाई के बोझ के तले कराह रहा है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने, बजट सत्र के आरंभिक दिन पर संसद को संबोधित करते हुये, 20 प्रतिशत से अधिक खाद्य पदार्थों की महंगाई के लिये विभिन्न बाहरी ताकतों और मौसम को जिम्मेदार ठहराया था। इससे हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि हिन्दोस्तान के वर्तमान शासक खाद्य समस्या को हल नहीं करने वाले हैं।
बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों द्वारा नियंत्रित मीडिया में खूब अटकलें लगाई जा रही हैं कि वित्त मंत्री समाज के किस वर्ग या तबके को दी गई कौन-कौन सी रियायतें वापस ले लेंगे – जब कि इससे पहले, पूंजीवादी मुनाफों को प्रोत्साहन देने के इरादे से ये रियायतें सरकार द्वारा दी गई व विस्तृत की गई थीं। परन्तु पूंजीपतियों के मुनाफों को बढ़ाना या घटाना, यह हिन्दोस्तान के मेहनतकश जनसमुदाय की चिंता का विषय नहीं है। हमारे लिये सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि वर्तमान अर्थव्यवस्था में हमारी मूलभूत जरूरतें – पेट में पर्याप्त भोजन – भी पूरी नहीं हो रही हैं।
संसद का बजट सत्र एक सही मौका है जब मजदूर वर्ग सभी को उचित दाम पर पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने की समस्या के फौरी और भरोसेमंद समाधान की मांग लेकर अपना आन्दोलन तेज कर सकता है। अगर केन्द्रीय सरकार जनता की इस ज्वलंत समस्या को हल करने के लिये जरूरी कदम नहीं उठा सकती है, तो यह सरकार शासन करने के लायक नहीं है। इस लड़ाकू भावना के साथ मजदूर वर्ग को इस समय अपना आन्दोलन तेज़ करना होगा।
इस समस्या का समाधान तब होगा जब खाद्य पदार्थों की खरीदी और बिक्री को समाज के नियंत्रण में लाया जायेगा, जब अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र से निजी मुनाफाखोरों की भूमिका को खत्म कर दी जायेगी। इसका यह मतलब होगा कि सिर्फ सामाजिक संगठनों – केन्द्रीय, राज्य व स्थानीय सरकारों, ट्रेड यूनियनों, किसान, महिला व नौजवान संगठनों की ही खाद्य भंडारन व वितरण में भूमिका होगी। आज खाद्य व्यापार से जो निजी पूंजीवादी कंपनियां अधिक से अधिक मुनाफे कमा रही हैं, उन्हें सरकार को बिना कोई मुआवज़ा दिये, टेक-ओवर कर लेना चाहिये। यही राष्ट्र हित में होगा। खाद्य पदार्थों के देश के अंदर थोक व्यापार में तथा विदेश व्यापार मेें निजी मुनाफाखोरों की कोई जगह नहीं होगी। जब खाद्य व्यापार समाज के नियंत्रण में होगा, तब किसान उत्पादकों को अपने उत्पादों के लिये स्थायी व लाभदायक कीमत तथा सभी मजदूर वर्ग परिवारों को स्थायी व मुनासिब दाम पर खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी।
क्या ऐसा करने के लिये केन्द्रीय बजट में खाद्य सबसिड़ी को बढ़ाना पड़ेगा? हां, अवश्य ही बढ़ाना पड़ेगा। लंबे तौर पर, अगर किसानों को सहकारी संस्थानों में एकजुट करके खाद्य के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने पर उचित ध्यान दिया जाता है तो बजट में खाद्य व्यापार की सबसिडी की जरूरत खत्म की जा सकती है। फौरी तौर पर, मजदूरों को यह मांग करनी होगी कि खाद्य सबसिडी को बढ़ाया जाए। खाद्य सबसिडी को इतना ज्यादा बढ़ाना चाहिये ताकि एक आधुनिक और सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था चलाई जा सके, सिर्फ गेहूं और चावल के लिये ही नहीं बल्कि दाल, खाद्य तेल, चीनी और सभी जरूरी खाद्य सामग्रियों के लिये भी।
पूंजीपतियों के वक्ता यह कहेंगे कि खाद्य सबसिडी को बढ़ाने और सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को विस्तृत करने के लिये सरकार के पास पैसा नहीं है। मजदूर वर्ग को सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के विस्तार के लिये धन जुटाने के ठोस प्रस्ताव रखने होंगे।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट गद़र पार्टी ने 1998 में अपनाये गये अपने कार्यक्रम में, मेहनतकश जनसमुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिये धन जुटाने के तीन मूल प्रस्ताव पेश किये थे। ये तीन प्रस्ताव आज भी पूरी तरह मान्य और तर्क संगत हैं:
- अगली सूचना तक, सभी साहूकार संस्थानों का ब्याज भुगतान रोका जाए
- हथियार और सैनिक विस्तार पर विशाल अनुत्पादक खर्च में कटौती की जाए
- अर्थव्यवस्था में सभी कालेधन और बेहिसाब धन को फौरन जब्त किया जाए
एक साल पहले जब 2009-10 का बजट पेश किया गया था, तब खाद्य सबसिडी पर 52,500 करोड़ रुपये निर्धारित किये गये थे, जब कि हथियार और सैन्य विस्तार पर 54,800 करोड़ रुपये, ब्याज भुगतान पर 225,000 करोड़ रुपये निर्धारित किये गये थे। अगर आधा ब्याज भुगतान भी रोका जाए, तो इसी पैसे से खाद्य सबसिडी को तीन गुना से ज्यादा बढ़ाया जा सकता है।
मजदूर एकता लहर, मजदूर वर्ग की सभी पार्टियों और संगठनों को आह्वान देती है कि खाद्य समस्या के फौरी व भरोसेमंद समाधान की मांग के साथ संघर्ष में एकजुट हों। खाद्य प्रापण और वितरण का पूर्ण समाजीकरण ही एकमात्र स्थायी समाधान है और इस मांग पर हम कोई समझौता नहीं कर सकते। पूंजीवाद की जगह पर हमें समाजवाद लाना होगा, वह व्यवस्था लानी होगी जो मेहनतकशों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने की दिशा में काम करेगी। इसे अपने संघर्ष का लक्ष्य बनाकर, आगे बढ़े़ं।