मछली कर्मियों ने अपनी समस्याओं को लेकर देशव्यापी प्रदर्शन किया

राष्ट्रीय मछली कर्मी फोरम ने अपने सभी राज्य ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर 11 जनवरी, 2010 को नयी दिल्ली में संसद के सामने दिन-भर धरना दिया।

राष्ट्रीय मछली कर्मी फोरम ने अपने सभी राज्य ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर 11 जनवरी, 2010 को नयी दिल्ली में संसद के सामने दिन-भर धरना दिया।

उसी दिन देश के अलग-अलग भागों में, कच्छ, मुम्बई, मंगलुरू, तिरुवनंतपुरम, चेन्नई, विजयवाड़ा और भुबनेश्वर जैसे तटवर्ती शहरों में धरने और रैलियां की गईं। राष्ट्रीय मछली कर्मी फोरम के अनुसार, उसकी पश्चिम बंगाल यूनिट 17 जनवरी, 2010 को हरीपुर और कोलकाता में ऐसे प्रदर्शन आयोजित करने वाली है।

संसद के आगामी सत्र में मछली कर्मियों से सम्बंधित सवालों पर कुछ विधेयकों के मसौदे पेश किये जाने वाले हैं और मछली कर्मी उन विधेयकों का विरोध करने तथा अपने प्रस्ताव पेश करने के इरादे से यह आंदोलन चला रहे हैं। वर्तमान संप्रग सरकार संसद के अगले सत्र में समुद्री मछली पकड़ नियंत्रण और प्रबंधन विधेयक तथा पारंपरिक समुद्री और तटवर्ती मछुवारों (अधिकारों की रक्षा) विधेयक के मसौदे पेश करने जा रही है।

संसद के सामने हुये धरने का उद्धाटन करते हुये, फोरम के अध्यक्ष और गोवा के मछली कर्मी नेता श्री सलदाना ने कहा कि संप्रग सरकार विधेयकों के मसौदों को तैयार करने में उद्योगों, बड़ी कंपनियों और बड़ी जहाज कंपनियों के हितों पर ध्यान दे रही है परन्तु समुद्र से रोजी-रोटी कमाने वाले मछली कर्मियों से कोई सलाह नहीं कर रही है। उन्होंने ऐलान किया कि अगर ये विधेयक वर्तमान रूप में पास हो जाते हैं तो तटवर्ती इलाकों और वहां रहने वाले लोगों की भयानक दुर्दशा होगी और पर्यावरण का भी बहुत विनाश होगा। इसीलिये उन्होंने संप्रग सरकार से अपील की कि विधेयक को स्थगित रखा जाये, मछली कर्मियों से सलाह-मशवरा की जाये और उसके बाद ही विधेयक को संसद में लाया जाये।

एक अन्य नेता ने ऐलान किया कि हिन्दोस्तान के समुद्री मछली संसाधन अतिशोषण के खतरे में हैं और मछुवारे समुदायों का भविष्य अंधकार में है। वर्तमान मसौदा हिन्दोस्तान के दस लाख समुद्री मछुवारों और 35 लाख समुद्री मछुवारे समुदायों की आकांक्षाओं को नहीं पूरा करता है।

फोरम के सचिव टी. पीटर ने कहा कि विधेयक में मछुवारे का नाम या परिभाषा तक नहीं है, जिससे स्पष्ट होता है कि अफ़सरों को हमारी ज़मीनी हालत की समझ ही नहीं है।

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