इस्पात मजदूरों की महत्वपूर्ण हड़ताल

30-31अक्तूबर, 2009को इस्पात मजदूर और इस्पात उद्योग के ठेका मजदूर, स्टील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के आह्वान पर, हड़ताल पर गये।

30-31अक्तूबर, 2009को इस्पात मजदूर और इस्पात उद्योग के ठेका मजदूर, स्टील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के आह्वान पर, हड़ताल पर गये।

हड़ताल देशव्यापी थी। इससे पहले इतनी सफल हड़ताल कभी नहीं हुई थी। यह पूर्व में दुर्गापुर से लेकर दक्षिण में सेलम और भद्रावती तक फैली हुई थी। देश के सभी इस्पात बाजारों में काम-काज बंद रहा। इस्पात मजदूरों के साथ-साथ अनेक खदानों, दफ्तरों और औद्योगिक केन्द्रों के मजदूरों ने भी हड़ताल में भाग लिया।

इस हड़ताल में अहम बात यह थी कि इस्पात उद्योग के नियमित मजदूरों और ठेका मजदूरों ने मिलकर संघर्ष किया और इंसाफ, बेहतर वेतन व बेहतर काम के हालातों के लिये एक दूसरे की मांगों का समर्थन किया। सार्वजनिक क्षेत्र की इस्पात फैक्ट्रियों, खदानों और दफ्तरों में ठेके के मजदूर पहले भी संघर्ष कर चुके हैं, खास तौर पर बर्नपुर, दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, भिलाई, विशाखापटनम में। परन्तु यह पहली बार ऐसा हुआ कि सभी फैक्ट्रियों, खदानों, औद्योगिक केन्द्रों और दफ्तरों में एक साथ हड़ताल हुई।

इस्पात मजदूर जल्दी व सन्तोषजनक वेतन समझौता चाहते हैं तथा ठेके मजदूरों के लिये वेतन वृध्दि और दूसरी सुविधाएं चाहते हैं।

एस.ए.आई.एल. में 1991 में 2,30,000 कर्मचारी थे जबकि इस समय सिर्फ 1,25,000 बचे हैं। एक लाख से अधिक नियमित नौकरियां या तो खत्म कर दी गई हैं या फिर ठेकेदारों को दी गई हैं या कहीं और से यह काम करवाया जा रहा है।

इस दौरान वेतनों में भी बहुत तब्दीली हुई है। इस समय हिन्दोस्तान में भी अमरीका की तरह, कंपनियों के उच्च अधिकारियों और उच्च स्तरों के अफ़सरों को मोटे-मोटे वेतन देने की प्रक्रिया अपनायी जा रही है। पिछले 12 वर्षों के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों में उच्च अफ़सरों के वेतन 200 से 400 प्रतिशत बढ़ गये हैं और साथ ही साथ दूसरी सुविधायें भी खूब बढ़ाई गयी हैं। परन्तु छंटनी, ठेके मजदूरी और आउटसोर्सिंग के कारण वेतन पर खर्च कम हो गया है।

इस्पात मजदूरों को 1 जनवरी, 2007 को नया वेतन समझौता मिलने वाला था और अब यह 34 महीने बाद भी नहीं मिला है। प्रबंधक कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। लगभग दो वर्ष बाद जस्टिस राव कमेटी ने कंपनी के उच्च अधिकारियों के वेतन को खूब बढ़ाने की सिफारिश की। मजदूरों ने वेतन वृध्दि और ठेके के मजदूरों के वेतन भी साथ-साथ बढ़ाने की मांग की, यह मानते हुये कि कंपनी के उत्पादन और मुनाफे में ठेके मजदूरों का भी बहुत योगदान है। एस.ए.आई.एल. इस समय दुनिया की सभी इस्पात कंपनियों में सर्वप्रथम है और 2008-09 में उसके मुनाफे सबसे अधिक थे।

अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में हड़ताल करने के फैसले लेने के लिये वोटिंग की गई। 92 प्रतिशत मजदूरों ने हड़ताल के पक्ष में वोट दिया। 15 अक्तूबर को नोटिस दी गयी कि 30-31 अक्तूबर को हड़ताल होगी। भिलाई और राजहरा खदानों तथा सेंट्रल मार्केटिंग ऑर्गनाइजेशन जैसे कुछ कंपनियों में 30 अक्तूबर, को ही हड़ताल की।

राउरकेला में प्रथम दिन 90 प्रतिशत और दूसरे दिन 100 प्रतिशत मजदूर हड़ताल पर रहे। बोकारो में 90 प्रतिशत से ज्यादा और भद्रावती में 98 प्रतिशत मजदूरों ने हड़ताल की। ठेके के मजदूरों ने भी हड़ताल में भाग लिया। राजहरा, किरीबर्न, भिलाई, देशभर में सेंट्रल मांर्केटिंग में तथा कोलकाता और अन्य कार्यालयों पर मजदूरों ने भारी संख्या में हड़ताल की। उड़ीसा के बोलानी खदानों में 100 प्रतिशत मजदूरों ने हड़ताल की, विशाखापटनम और दुर्गापुर में भी लगभग 100 प्रतिशत मजदूरों ने हड़ताल की। इस हड़ताल से स्पष्ट हुआ कि देश भर के इस्पात मजदूर वर्तमान सरकार से कितने खफ़ा हैं। सार्वजनिक क्षेत्र इस्पात उद्योग में इतनी बड़ी देशव्यापी हड़ताल इससे पहले कभी नहीं हुई थी।

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