मजदूर वर्ग को हिन्दोस्तानी संघ का पुनर्गठन करना होगा!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 10 जनवरी, 2010
60वर्ष पहले, 26जनवरी, 1950को हिन्दोस्तानी संघ का गणतंत्र स्थापित किया गया था।
संविधान सभा में बैठे कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने एक संविधान अपनाया था।
मजदूर वर्ग को हिन्दोस्तानी संघ का पुनर्गठन करना होगा!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 10 जनवरी, 2010
60वर्ष पहले, 26जनवरी, 1950को हिन्दोस्तानी संघ का गणतंत्र स्थापित किया गया था।
संविधान सभा में बैठे कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने एक संविधान अपनाया था।
15 अगस्त, 1947 को उपनिवेशवादी शासन खत्म हुआ था। स्वतंत्रता की घोषणा के बाद के 29 महीनों में कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग के नेताओं ने बर्तानवी बस्तीवादियों द्वारा करवाये गये, देश के खूनी विभाजन में पूरा सहयोग दिया। लाखों-लाखों परिवार बेघर हुये तथा हजारों को मौत के घाट पहुंचाया गया। कश्मीर, पंजाब और बंगाल को दो-दो टुकड़ों में बांटा गया, जिनके बीच में दुश्मनी पूर्ण हिन्दोस्तान-पाकिस्तान सीमा बनायी गयी। नगालैंड और मणिपुर को बलपूर्वक हिन्दोस्तान के साथ जोड़ा गया। हिन्दोस्तान और पाकिस्तान में उपनिवेशवादी शैली के साम्राज्य बनाने वाले राज्य स्थापित किये गये।
हिन्दोस्तान का गणतंत्र और पाकिस्तान का गणतंत्र, ये दोनों साम्प्रदायिक बंटवारे की पैदाईश थे। कई सदियों से इस उपमहाद्वीप में रहने वाले अनेक राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के अधिकारों को दोनों राज्यों द्वारा नकारा जाता है। राष्ट्रीय और सामाजिक मुक्ति के जन संघर्षों को खून में बहाकर इन दोनों गणतंत्रों की स्थापना हुई थी। आज भी इन इलाकों में रहने वाले लोगों के राष्ट्रीय जज़बातों को बलपूर्वक कुचला जाता है।
1950 के संविधान के निर्माता, कांग्रेस पार्टी के नेता उन बडे पूंजीपतियों और बडे ज़मीन्दारों के हितों के नुमाइंदे थे, जिन्होंने बर्तानवी उपनिवेशवादी शासन को सहयोग दिया और उससे लाभ उठाया। हमारे लोगों की अनमोल विरासत को दरकिनार करते हुये, उन्होंने यूरोपीय शैली का संविधान अपनाया। इस संविधान की बुनियाद गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 थी, जो 1857 के ग़दर को कुचलकर बनाये गये राज्य का विकसित रूप था। बर्तानवी बस्तीवादियों द्वारा बनाये गये अत्याचार और लूट के संस्थानों को बरकरार रखना हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों के लिये लाभदायक था। पूंजीपति वर्ग की सत्ताा को बनाये रखने के लिये उन्होंने यूरोपीय संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था को अपनाया।
बीते 60 वर्षों में हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने इस गणतंत्र का इस्तेमाल करके, खूब दौलत कमायी है तथा पूरे देश पर अपनी प्रधानता स्थापित की है। अपनी औद्योगिक, वित्ताीय, सैनिक, निर्यात और विदेश में पूंजीनिवेश करने की क्षमता को बढ़ाकर, आज हिन्दोस्तान के पूंजीपति हमलावर साम्राज्यवादी रास्ते पर चल पडे हैं। वे अगले दशक के अन्दर हिन्दोस्तानी गणतंत्र को एक विश्व-व्यापी महाशक्ति बतौर मजबूत व विस्तृत करना चाहते हैं। इसका यह मतलब है कि मजदूरों और किसानों की भूमि व श्रम का और तेज़ शोषण व लूट होगा। इसका यह मतलब है कि मेहनतकशों को साम्राज्यवादी जंग में तोप का चारा बनाया जायेगा।
बीते 60 वर्षों का अनुभव यह दिखाता है कि पूंजीपति हिन्दोस्तानी लोगों के राष्ट्रीय व सामाजिक मुक्ति के सपनों को कभी पूरे नहीं करेंगे। जब तक पूंजीपतियों का शासन बरकरार रहेगा, तब तक मेहनतकशों के भाग्य में अतिशोषण, बेरोजगारी और रोजगार की असुरक्षा ही होगा। इस उपमहाद्वीप में राष्ट्रों व लोगों के बीच झगड़े और बंटवारे होते रहेंगे। जैसे-जैसे हिन्दोस्तान के पूंजीपति अपने हमलावर साम्राज्यवादी रास्ते पर अग्रसर होते रहेंगे, वैसे-वैसे जंग का खतरा बढ़ता जायेगा।
वह कौन सी सामाजिक ताकत है जो उपनिवेशवादी विरासत को खत्म कर सकती है और समाज को इस स्थिति से बचा सकती है? एक स्थायी और एकताबध्द हिन्दोस्तान, जो लोगों के बीच शान्ति और सहयोग का कारक हो, इसे बनाने में हमारी जनता को अगुवाई देने वाला कौन सा वर्ग है? क्या समाज में कोई ऐसी ताकत है? हां, ऐसी सामाजिक ताकत है। यह हिन्दोस्तानी मजदूर वर्ग है, जो पिछले 60 वर्षों में संख्या में बहुत बढ़ गया है और आज हमारे समाज का सबसे बड़ा वर्ग है।
मजदूर वर्ग की न तो कोई अपनी जमीन है, न कोई इलाका, अत: उसका कोई खास राष्ट्र नहीं है। मजदूर वर्ग के पास अपनी श्रम शक्ति के अलावा कुछ और बेचने को नहीं है, इसीलिये अपने वर्ग की इस खासियत की वजह से वह राष्ट्रीय, धार्मिक और जातिवादी भेद-भावों को दरकिनार करके एकजुट खड़ा होता है। दक्षिण से मजदूर उत्तार को जाता है, पूर्व से मजदूर पश्चिम को जाता है, जिसके कारण हिन्दोस्तानी मजदूर वर्ग बहुराष्ट्रीय, बहुजातीय और बहुभाषी है। देश के हर कोने के किसानों के साथ उसका संबन्ध है। विभिन्ना दूसरे देशों के आप्रवासी समुदायों के साथ उसका निकट संबन्ध है। यह ऐसा वर्ग है जिसमें नये हिन्दोस्तान की रचना करने में मेहनतकश जनसमुदाय को अगुवाई देने की क्षमता छिपी हुई है।
उपनिवेशवादी विरासत को बरकरार रखने से मजदूर वर्ग का कोई भला नहीं होगा। बल्कि उपनिवेशवादी विरासत, पूंजीवादी व्यवस्था और यूरोपीय शैली के संसदीय लोकतंत्र से पूरी तरह नाता तोड़कर ही मजदूर वर्ग का भला हो सकता है। मजदूर वर्ग के पास अपनी जंजीरों के अलावा कुछ और खोने को नहीं है।
अपनी कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई में मजदूर वर्ग सभी राष्ट्रीयताओं के किसानों व दूसरे शोषित-पीड़ित तबकों को अपने सांझे शोषकों, पूंजीपतियों व उनके राज्य के खिलाफ़ एकजुट कर सकता है और उसे ऐसा करना होगा। रज़ामंद राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के स्वेच्छापूर्ण संघ बतौर हिन्दोस्तान के पुनर्गठन के काम को उसे उठाना होगा। स्वेच्छापूर्ण का यह मतलब है कि सबसे पहले प्रत्येक राष्ट्र के अपना भविष्य खुद तय करने के अधिकार को मान्यता देनी होगी। संघ के प्रत्येक घटक को पारस्परिक हित के आधार पर, संघ में शामिल होने का फैसला लेने का अधिकार होना चाहिये।
वर्तमान 60 वर्ष पुराने गणतंत्र में, कश्मीर, पूर्वोत्तार राज्यों तथा अन्य इलाकों में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलनों को क्रूर दमन झेलना पड़ता है। उन्हें ''देश की एकता-अखंडता'' के लिये खतरा माना जाता है। उपनिवेशवादी और फासीवादी सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम के तहत सैनिक शासन और केन्द्रीय सुरक्षा बलों द्वारा मनमानी से कत्ल को वैधता का जामा पहनाया जाता है। दूसरी ओर, चंद बडे पूंजीपतियों के हित के लिये लोगों को एक दूसरे के खिलाफ़ भिड़ाना यह जायज़ राजनीतिक गतिविधि मानी जाती है।
1950 के संविधान के अनुसार, केन्द्रीय संसद की मर्जी से संघ के अन्दर नये राज्य बनाये जा सकते हैं और मौजूदे राज्य बांटे जा सकते हैं। पूंजीपति और उनकी पार्टियां अपने हितानुसार नये राज्यों के निर्माण की मांग लेकर चलाये जा रहे तरह-तरह के आन्दोलनों को समर्थन देते हैं। मिसाल के तौर पर, विशाल खनन व इस्पात कंपनियों ने झारखंड और छत्ताीसगढ़ के निर्माण का फायदा उठाकर, कच्चे माल के स्रोतों पर ज्यादा आसानी से अपना इजारेदारी नियंत्रण जमाया है।
आज पूंजीपति वर्ग के विभिन्ना गुट व पार्टियां हिन्दोस्तानी संघ में एक और राज्य तेलंगाना के निर्माण के पक्ष में व इसके खिलाफ़ लड़ रही हैं। हैदराबाद और उस आई.टी. शहर में जमीन की ऊंची कीमत पर वे आपस में लड़ रहे हैं। वे अपने तंग हितों के लिये तेलंगाना, रायलसीमा और तटवर्ती आंध्र प्रदेश के किसानों व मेहनतकशों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
पूंजीपति हिन्दोस्तानी संघ में कोई भी तब्दीली नहीं चाहते हैं क्योंकि वे अपने वर्तमान रुतबे को कमज़ोर नहीं करना चाहते और अपने नियंत्रण के इलाके को खोना नहीं चाहते। सिर्फ मजदूर वर्ग में हिन्दोस्तान को पुनर्गठित करने की चाहत व क्षमता है, ताकि सभी लोगों की प्रगति का द्वार खुल सके।
60 वर्ष पहले मजदूर वर्ग हिन्दोस्तानी समाज का नेता नहीं बन पाया था। मजदूर वर्ग में छिपी हुई क्षमता को उन पार्टियों ने दबा रखा था, जो खुद को कम्युनिस्ट कहलाते हैं परन्तु हिन्दोस्तानी गणतंत्र का गुणगान करते हैं। मजदूरों को एक नये संविधान के साथ अपना राज्य कायम करने के लिये तैयार करने के बजाय, ये ढोंगी कम्युनिस्ट मजदूरों को 1950 के संविधान की पूजा करना सिखाते हैं। वे हिन्दोस्तानी साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के 'देश की एकता-अखंडता' के नारे का भी समर्थन करते हैं। अगर मजदूर वर्ग को अपनी क्षमता पहचाननी है और अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभानी है तो कम्युनिस्टों को कम्युनिस्ट आन्दोलन के अन्दर इन फरेबी कम्युनिस्ट अभ्यासों का पर्दाफाश करना होगा और इन्हें हराना होगा।
हिन्दोस्तानी संघ के गणराज्य की 60वीं सालगिरह के अवसर पर, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी मजदूर वर्ग के सभी संगठनों व नेताओं को आह्वान देती है कि अपने सांझे वर्ग हितों के इर्द-गिर्द एकजुट हों। हम मजदूर वर्ग को अगुवाई दें ताकि वह हिन्दोस्तान के सभी लोगों को एकजुट करके नेतृत्व दे सकें, एक ऐसा स्वेच्छापूर्ण संघ स्थापित कर सकें जिसमें हरेक घटक की खुशहाली ही सभी की खुशहाली की शर्त हो।