हिन्दोस्तान के लोग इस दर्दनाक और अपमानजनक दृश्य को देखकर हैरान थे कि हमारे 104 लोगों को अमरीका से क्रूरतापूर्वक निर्वासित किया गया। उनको गुनहगार्रों की तरह हथकड़ियों और जंजीरों में जकड़कर, 40 घंटे की एक कष्टदायक उड़ान के बाद, अमरीकी सैन्य विमान के द्वारा हिन्दोस्तान लाया गया।
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा जारी कार्यकारी आदेशों के बाद, अमरीका से निकाले गए हिन्दोस्तानी आप्रवासियों का यह पहला जत्था था। यह विमान 5 फरवरी, 2025 की सुबह अमृतसर में उतरा। यह निर्वासन की अब तक की सबसे लंबी उड़ान थी। महिलाओं और नाबालिग बच्चों सहित हिन्दोस्तानी नागरिकों को जंजीरों में बांधकर सैन्य विमान की ओर ले जाये जाने वाले दृश्य के वीडियो ने पूरे हिन्दोस्तान में एक व्यापक जन आक्रोश और गुस्सा भर दिया। इसने आम लोगों की रूह को झकझोर कर रख दिया है।
हिन्दोस्तानी राज्य ने जानबूझकर बेड़ियों में जकड़े हिन्दोस्तानी – निर्वासितों को ला रहे अमरीकी सैन्य विमान को इस तरह से उतरा कि मीडिया और जनता का इस ओर बहुत कम ध्यान जाए। हालांकि दूसरे देश से हमारे लोगों को जबरन निर्वासित करना, एक गंभीर कूटनीतिक चिंता का विषय है, लेकिन हिन्दोस्तानी सरकार ने ऐसी कोई चिंता नहीं दिखाई है। सरकार ने इस बारे में पहले से कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की थी कि कितने हिन्दोस्तानियों को कब और किस तरह से निर्वासित किया जाएगा। रिपोर्टों के अनुसार, अमरीकी विमान ने तड़के सुबह उतरा और मीडिया के लोगों तथा पत्रकारों को विमान के उतरने या यात्रियों के उतरने की तस्वीरें या वीडियो लेने से रोक दिया गया। सरकार ने इतने बड़े सदमे से पीड़ित होकर आए लोगों के लिए उचित स्वागत या उनकी देखभाल और स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित करने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया था।
जबकि हिन्दोस्तानी लोग अमरीकी अधिकारियों द्वारा हमारे नागरिकों के साथ किए गए इस अमानवीय व्यवहार से बहुत नाराज़ हैं। हिन्दोस्तानी राज्य के प्रतिनिधियों ने हमारे लोगों को एक सैन्य विमान में जंजीरों में जकड़कर निर्वासित किये जाने की अमरीकी कार्रवाई का सबसे शर्मनाक तरीके से बचाव किया है। अमरीकी कार्रवाई को सही ठहराते हुए, हिन्दोस्तान के विदेश मंत्री, जयशंकर ने संसद में कहा कि “अमरीकी सरकार के अप्रवासन और सीमा शुल्क एजेंसी – आई.सी.ई. – द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विमान द्वारा निर्वासन के लिए मानक-संचालन-प्रक्रिया (स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर), जो 2012 से लागू है, जिसमें इस तरह के प्रतिबंधों के इस्तेमाल का प्रावधान है।” उन्होंने दावा किया कि “भोजन, अन्य आवश्यकताओं और संभावित चिकित्सा आपात स्थितियों सहित निर्वासित लोगों की ज़रूरतों को उनकी यात्रा के दौरान पूरा किया जाता है। यदि आवश्यक हो तो शौचालय ब्रेक के दौरान निर्वासित लोगों को अस्थायी रूप से बंधनमुक्त किया जाता है और यह आई.सी.ई. नीति, महिलाओं और बच्चों पर लागू नहीं होती है।” उन्होंने दोहराया कि 5 फरवरी, 2025 को अमरीका द्वारा आयोजित उड़ान के लिए, पिछली चली आ रही प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है। उन्होंने सरकार के इस फै़सले को भी दोहराया कि “हम केवल क़ानूनी आप्रवासन का समर्थन और बचाव करते हैं”, जिससे यह साफ़ पता चलता है कि निर्वासित आप्रवासियों के साथ एक सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने की सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है।
जयशंकर का बयान तब आया जब निर्वासित पुरुषों और महिलाओं ने मीडिया को स्पष्ट रूप से बताया कि उनके हाथ और पैर जंजीरों से बंधे हुये थे, जिनमें नाबालिग बच्चे भी शामिल थे। उनकी बेड़ियां तब भी नहीं खोली गईं जब उन्हें खाना-पीना दिया गया या शौचालय का उपयोग करने की आवश्यकता हुई। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी बेड़ियां अमृतसर पहुंचने के बाद ही खोली गईं। मीडिया के दृश्यों और रिपोर्टों से भी जयशंकर के दावे झूठे निकले। न तो विदेश मंत्री या हिन्दोस्तान के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और न ही अमरीकी अधिकारियों ने महिलाओं और बच्चों को बेड़ियों में जकड़े जाने की ख़बरों का खंडन किया है।
जिन लोगों को ऐसी ख़ौफनाक हालतों में निर्वासित किया गया है, वे पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के रहने वाले बताए गए हैं। मीडिया को अपना दुख-दर्द बताते हुए, उनमें से कइयों ने बताया कि कैसे वे कुछ साल पहले या कुछ मामलों में, कुछ महीने या हफ्ते पहले ही अमरीका पहुंचे थे। उनमें से ज़्यादातर लोगों ने, जंगलों से होकर, नदियों और समुद्रों को पार करके, तथाकथित ‘डंकी’ मार्गों का इस्तेमाल करके, अपने और अपने परिवारों के लिए बेहतर जीवन की उम्मीद में अमरीका पहुंचने के लिए हताश कर देने वाली यात्राएं की थीं। उनमें से कई लोगों ने अपने खेत बेच दिए और करोड़ों रुपये का भारी क़र्ज़ लिया, ताकि वे विभिन्न एजेंटों को उनकी फीस का भुगतान कर सकें जिन्होंने उन्हें बेहतर भविष्य के सपने दिखाए थे।
हमारे मेहनतकश लोगों, ख़ास तौर पर युवाओं के विशाल समूह के सामने, मौजूदा भीषण ग़रीबी, बढ़ती बेरोज़गारी, भयानक सामाजिक असुरक्षा और बेहद अनिश्चित भविष्य, लोगों के बेहतर भविष्य की उम्मीद में, विदेश जाने के लिए ऐसे हताशा-भरे क़दम उठाने का मुख्य कारण है। हमारे देश पर राज करने वाले इजारेदार पूंजीवादी घरानों के नेतृत्व में हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के पास हमारे लोगों की इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं है, क्योंकि मज़दूर वर्ग, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों का शोषण और उनकी दुर्दशा ही, पूंजीपति वर्ग की समृद्धि का स्रोत है। इजारेदार पूंजीवादी घरानों के मुनाफे़ को बढ़ाने के लिए, आम मेहनतकश लोगों की बेरोज़गारी और असुरक्षा, पूंजीपति वर्ग को मज़दूरों के वेतन कम करने और काम करने की हालतों को और अधिक शोषणकारी बनाने में मदद करते हैं। हिन्दोस्तानी राज्य और उसकी सभी एजेंसियां, मेहनतकश लोगों के इस बर्बर शोषण को सही ठहराने की कोशिश करती हैं।
यह सबको पता है कि अमरीका जैसे देशों में, क़ानूनी आप्रवास के लिए बहुत सख़्त नियम हैं और इनमें बहुत लंबी और जटिल प्रक्रियाएं शामिल हैं। हिन्दोस्तान में ज़्यादातर मज़दूर और किसान ऐसे क़ानूनी आप्रवास के मानदंडों को कभी पूरा नहीं कर सकते। देश के कई हिस्सों में कई बेईमान एजेंट इन हालतों का फ़ायदा उठाते हैं और लोगों को ठगते हैं। उन्हें अवैध तरीक़ों से अमरीका और दूसरे गंतव्य स्थानों तक पहुंचाने का वादा करते हैं। वे बड़ी रकम वसूलते हैं, जिसके लिए लोगों को अपनी ज़मीन-जायदाद बेचने और भारी-भरकम क़र्ज़ लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ये गिरोह, अधिकारियों की नज़रों के सामने ही, फलते-फूलते हैं। अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए, अवैध तरीके़ से की जाने वाली ऐसी ख़तरनाक यात्राओं के दौरान कई लोग अपनी जान भी गंवा देते हैं। जब उन्हें निर्वासित किया जाता है, तो वे अपना सब कुछ खो देते हैं, उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह तबाह हो जाती है। हिन्दोस्तानी राज्य उनके पुनर्वास और उनके भविष्य को सुनिश्चित करने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।
हिन्दोस्तानी सरकार की प्रतिक्रिया, उन अन्य देशों की सरकारों की प्रतिक्रिया से बिलकुल अलग है, अमरीका ने जिनके लोगों को भी निर्वासित किया है।
कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने, हथकड़ी लगाकर सैन्य विमान से वापस भेजे जाने और उनके लोगों के साथ अपराधियों की तरह व्यवहार किए जाने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह उनकी गरिमा का अपमान है और अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के ख़िलाफ़ है। उन्होंने अमरीकी विमानों को अपने देश में प्रवेश करने से मना कर दिया और कोलंबिया ने अपने लोगों को सम्मान के साथ वापस लाने के लिए अपनी वायु-सेना की टीम भेजी।
जब ब्राजील से निर्वासित आप्रवासियों को लेकर एक अमरीकी विमान उस देश में उतरा, तो ब्राजील सरकार ने अपने नागरिकों पर हथकड़ी लगाने पर आपत्ति जताई और इसे उनकी गरिमा का अपमान बताया। ब्राजील की पुलिस ने हथकड़ी हटा दी और ब्राजील की सरकार अपने लोगों की सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है।
मैक्सिको की सरकार ने आप्रवासियों को ले जा रहे अमरीकी सैन्य विमान को उतरने से मना कर दिया और इसके बजाय आप्रवासियों को सम्मान के साथ वापस लाने के लिए, सरकारी चार्टर्ड उड़ानों का इंतजाम किया।
इसके विपरीत, हिन्दोस्तानी सरकार ने अपने लोगों के साथ, अमानवीय व्यवहार के लिए अमरीका के समक्ष कोई आपत्ति नहीं जताई। इसके बजाय, उसने इसे छिपाने और जब हक़ीक़त सामने आयी तो इसे सही ठहराने के लिए हर संभव प्रयास किया।
सत्तारूढ़ हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग, अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, अमरीका के साथ, अपने रणनीतिक और सैन्य गठबंधन को लगातार मजबूत करने तथा और अधिक बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसमें अमरीकी इजारेदार पूंजीपतियों को रियायतें देना, हिन्दोस्तान और अमरीका के बीच घनिष्ठ सैन्य सहयोग और समन्वय के साथ-साथ, हिन्द-प्रशांत में अमरीका के नेतृत्व वाली क्वाड पहल में हिन्दोस्तान की सक्रिय भागीदारी, शामिल है। प्रधानमंत्री मोदी 13 फरवरी को राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने के लिए अमरीका का दौरा करने वाले हैं, जहां वे दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा और परमाणु संबंधों को बढ़ाने पर चर्चा करेंगे।
हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के लिए, स्पष्ट रूप से उसकी अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएं, देश के मेहनतकश लोगों की सुरक्षा और सम्मान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।
पूंजीपति वर्ग के इस बर्बर और अमानवीय सत्ता को ख़त्म करके, उसे मज़दूरों, किसानों और सभी मेहनतकश लोगों की सत्ता में बदलना ज़रूरी है, ताकि हमारे लोगों के अधिकार, सुरक्षा, सम्मान और सलामती सुनिश्चित हो सके।