दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को उपराज्यपाल द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों और अन्य बिचौलियों को “हटाने के आदेश” जारी करने का अधिकार दिया गया है। उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2020 के तहत “अवैध सामग्री” के रूप में वर्गीकृत की जा सकने वाली सामग्री को हटाने का अधिकार दिया गया है।
हमारे देश में समाचार प्रिंट और टीवी मीडिया ग़लत सूचना और सरकार समर्थक प्रचार के लिए वाहन के रूप में काम कर रही है। यह केवल सरकारी टीवी चैनलों के संबंध में ही नहीं है। निजी समाचार मीडिया का स्वामित्व बड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों के पास है जो सरकारी नीति और क़ानून के लिए एजेंडा निर्धारित करते हैं। ऐसी स्थितियों में, जो लोग इजारेदार पूंजीपतियों और सरकार का विरोध करते हैं, उन्हें सच्चाई को उजागर करने और किसी भी आलोचनात्मक विचार को व्यक्त करने के लिए काफ़ी हद तक इंटरनेट और सोशल मीडिया पर निर्भर रहना पड़ता है।
पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता जो अपने विचारों को फैलाने के लिए ऑनलाइन मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं, हाल के वर्षों में अक्सर उनकी सामग्री हटा दी जाती रही है। मार्च 2024 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आईटी एक्ट 2020 के तहत 18 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंध लगा दिया था। न्यूजक्लिक जैसे ऑनलाइन न्यूज मीडिया चैनलों को उत्पीड़न और धमकी का सामना करना पड़ा है, जिसमें 2023-24 में लगभग 6 महीने के लिए इसके संपादक की गिरफ़्तारी भी शामिल है। कई ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म और यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, या उन्हें निलंबित करने की धमकियों का सामना करना पड़ा है और अधिकारियों द्वारा स्वीकृत नहीं की गई सामग्री को हटाने का आदेश दिया गया है।
दिल्ली पुलिस की शक्तियों को बढ़ाने वाली सबसे हालिया अधिसूचना को सोशल मीडिया को “विनियमित” करने के नाम पर उचित ठहराया जा रहा है। हालांकि, यह केवल वह सामग्री है जो मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था और सरकार की अन्यायपूर्ण कार्रवाइयों को उजागर करती है, जिसे अधिकारियों द्वारा लक्षित किया जा रहा है। सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने और धर्म तथा जाति के आधार पर लोगों के बीच संघर्ष को भड़काने वाली सामग्री को स्वतंत्र रूप से फैलाने की अनुमति है। इसी तरह सोशल मीडिया पोस्ट भी हैं जो महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं।
सोशल मीडिया सामग्री को हटाने के लिए पुलिस की बढ़ती शक्तियां, ज़मीर के अधिकार पर हमला है। यह नागरिकों का मौलिक अधिकार माने जाने वाले, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन है। पुलिस की इन बढ़ती शक्तियों का लोकतांत्रिक और मानवाधिकार को क़ायम रखने वाले सभी लोगों द्वारा दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए।