हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका कमेटी का बयान, 28 जनवरी, 2025
साथियों,
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए 5 फरवरी को चुनाव होंगे। देश की राजधानी की लगभग सवा दो करोड़ की आबादी में से 1 करोड़ 56 लाख1 मतदाता हैं। जिसमें महिला मतदाता 46 प्रतिशत और पुरुष मतदाता 54 प्रतिशत हैं।
1993 में दिल्ली राज्य बनने के साथ 5 साल भारतीय जनता पार्टी सत्ता में रही है। 1998-2013 के बीच, 15 साल कांग्रेस पार्टी के हाथ में दिल्ली की बागडोर रही है। 2013 से अब तक, बीते 11 साल से यहां आम आदमी पार्टी की सरकार है। इनमें से हरेक पार्टी ने दूसरी पार्टियों से बेहतर शासन चलाने और लोगों की तमाम समस्याओं को हल करने का दावा किया है। परन्तु इन 32 सालों में दिल्ली की मेहनतकश जनता की कोई भी समस्या हल नहीं हुयी है, बल्कि समस्याएं कई गुणा बढ़ गई हैं।
आम आदमी पार्टी के बीते 11 सालों के “कुशासन” को भारतीय जनता पार्टी लोगों की सारी समस्याओं की जड़ बता रही है, जबकि आम आदमी पार्टी भाजपा के भ्रष्टाचार तथा केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के काम-काज में अड़चनें डाले जाने को दिल्लीवासियों की समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार बता रही है।
दिल्ली के लोगों के जीवन के अनुभव ने उन्हें दिखा दिया है कि चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, दिल्ली के लोगों की परिस्थिति नहीं बदलती है, बल्कि बद से बदतर होती जा रही है।
मज़दूरों की रोज़ी-रोटी व अधिकारों पर हमले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। सार्वजनिक उद्योगों व सेवाओं – रेल, बीमा, बैंकिंग, परिवहन, आदि का तेज़ी से निजीकरण हो रहा है। सभी सरकारों ने पूंजीवादी शोषण को तथा मज़दूर-विरोधी नीतियों को बढ़ावा दिया है। आए दिन काम की असुरक्षित परिस्थितियों में मज़दूरों की जान जाती रहती है।
बेरोज़गारी का आलम ऐसा है कि 15-30 वर्ष के युवाओं के बीच बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। भारी संख्या में मज़दूरों की छंटनी की जा रही है। ठेके पर मज़दूरी अब आम नियम जैसा बन गया है, न सिर्फ़ निजी फैक्ट्रियों व कारोबारों में, बल्कि सरकारी संस्थानों व सेवाओं में भी, शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक सेवा तथा हर क्षेत्र में। न सिर्फ़ बड़ी संख्या में नौजवान बल्कि 50 साल से ऊपर का व्यक्ति गिग मजदूरी – राइड शेयरिंग, भोजन, किराने के सामानों को घर तक पहुंचाने का काम – करने को मजबूर हैं। उन्हें बहुत ही कम पैसों के लिए, अपनी जान को जोखिम में डालकर, 12-14 घंटे प्रतिदिन काम करना पड़ता है। सिक्योरिटी गार्ड बहुत-तरफा शोषण के शिकार हैं। मज़दूरों के वेतन बढ़ती महंगाई की तुलना में तेज़ी से कम पड़ते जा रहे हैं। अधिकतम मज़दूर न्यूनतम वेतन व किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं। निर्माण, विनिर्माण व सेवा क्षेत्र में काम करने वाले कुल मज़दूरों में 63 लाख ऐेसे मज़दूर हैं, जिन्हें क़ानूनी तौर पर घोषित न्यूनतम वेतन नहीं दिया जाता है।
मेहनतकश आबादी में बड़ी संख्या स्वरोज़गार मज़दूरों, छोटे दुकानदारों, छोटे व निजी कारोबारों, फल-सब्जी विक्रेताओं, रिक्शा-चालक, ई-रिक्शा चालकों आदि की है। ये प्रतिदिन पुलिस तथा स्थानीय एजेंसियों – एमसीडी, एनडीएमसी, डीडीए, पीडब्ल्यूडी की प्रताड़ना झेलते हैं। आए दिन, उन्हें रोज़ी-रोटी के स्थान से भगा दिया जाता है। उनके रोज़गार के साधनों को जबरन उठा लिया जाता है। वे अपनी गाढ़ी कमाई का एक हिस्सा, रिश्वत देने के लिए बाध्य हैं। देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों, एमेजान, फ्लिपकार्ट आदि जैसी ई-कामर्स कंपनियों के मुकाबले, छोटे व्यवसायी बर्बाद हो रहे हैं।
दिल्ली में दो दुनिया की झलक
दिल्ली में दो दुनिया की झलक आसानी से देखी जा सकती है। नयी दिल्ली में संसद सहित आसपास का इलाका, जहां सांसदों, मंत्रियों, जजों, फौज, पुलिस व प्रशासन के उच्च अधिकारियों के आवास व सरकारी कार्यालय स्थित हैं, वहां साफ-सुथरी सड़कें और सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
दूसरी दुनिया बुनियादी सुविधाओं से अभावग्रस्त है। मज़दूर व मेहनतकशों की बड़ी आबादी, झुग्गी-झोपड़ी, कच्ची कालोनियों, पुनर्वास कालोनियों में रहती है। दिल्ली के 60 प्रतिशत परिवार2 1 या 2 कमरे के घर में जीवन गुजारा करते हैं। अधिकतम आबादी सरकारी पानी व सीवर के कनेक्शन से वंचित है। सरकार की रिपोर्ट बताती है कि अधिकतम आबादी, जिन आवासों में रहती है, अंतर्राष्ट्रीय मापदंड के मुताबिक उनकी स्थिति दयनीय है। दिल्ली में 54 लाख आवासों2 की कमी है। 50,000 के करीब लोग फुटपाथ तथा रैन-बसेरों में जीवन व्यतीत करते हैं। मेहनतकशों के रिहायशी क्षेत्रों में सड़कों व गलियों की हालत खराब है। मल-मूत्र खुली नालियों में बहता है। कूड़ा-उठान की समस्या के साथ-साथ सफाई का बेहद अभाव है। बरसात के दिनों में जनता को चारों ओर जलभराव का सामना करना पड़ता है। सड़कों व कूड़ेदानों पर आवारा पशुओं की भरमार है। दिल्ली के गांव भी इन दुर्दशाओं से बचे नहीं हैं। दिल्ली में एक अच्छे स्वास्थ्य के नज़रिए से कचरा-निस्तारण व सफाई का पूरी तरह अभाव है।
सभी परिवारों को स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। पीने योग्य पानी के घरेलू कनेक्शन लगभग 26 लाख2 मात्र हैं। यह आंकड़ा दिखाता है कि अधिकांश परिवारों को पीने योग्य पानी के कनेक्शन नहीं है। दिल्ली के राज्य बनने से पहले से लेकर आज तक यह समस्या बनी हुई है। राजनीतिक पार्टियां, ‘टैंकर’ या अनाधिकृत कनेक्शन के ज़रिए, पीने का पानी उपलब्ध कराने के अहसान को वोट देकर चुकाने के लिए बाध्य करती हैं। कुछ इलाकों में जल माफिया राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलीभगत में, भूमिगत पानी का अबाध दोहन करके, पानी सप्लाई की पूर्ति करके लोगों से वसूली करता है।
सरकारी रिपोर्ट मानती है कि यमुना नदी के पानी के प्रदूषण में 80 प्रतिशत सीवरों3 से निकलने वाला मल है। इसमें उद्योगों से निकलने वाला जहरीला गंदा पानी भी शामिल है।
समय पर पहुंचने और लागत के हिसाब से दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था असक्षम है। डीटीसी के तहत, सरकारी व निजी कलस्टर की कुल 6934 बसें2 हैं। बसों की यह संख्या आबादी की जरूरत की तुलना में आधी से भी कम है, जबकि मेट्रो एक महंगी परिवहन सेवा है। सुरक्षित सुचारू, सस्ती, जनता के अनुकूल और कुशल सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के अभाव के चलते लोग निजी वाहन को प्राथमिकता देने के लिए बाध्य हुए हैं। एक अच्छी परिवहन व्यवस्था के अभाव ने दो और समस्याओं को जन्म दिया है। एक, प्रदूषण जिसका अधिकांश हिस्सा लाखों निजी वाहनों से निकलने वाला धुंआ है, जिससे दिल्लीवासी सांस संबंधी बीमारी का शिकार हो रहे हैं। दूसरी बड़ी समस्या पार्किंग की उभर रही है। पार्क, बस स्टैंड व सार्वजनिक स्थल पार्किंग स्थल में तब्दील हो रहे हैं। पैदल व साईकिल यात्री के लिए सुरक्षित यात्रा मुश्किल होती जा रही है।
दिल्ली में सरकारी स्वास्थ्य सेवा की हालत चिंताजनक है। केन्द्र, राज्य व स्वायत्त व सरकारी सहायता प्राप्त अस्पतालों में घोषित कुल 31,030 बेड2 हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दिल्ली में 1,06,795 बेड की जरूरत है। निजी अस्पतालों के 26,656 बेड2 जोड़ने के बावजूद कुल बेड के लक्ष्य का सिर्फ आधा ही पूरा होता है। एक तरफ शानदार निजी अस्पतालों का विस्तार हो रहा है, जो मज़दूर-मेहनतकशों की पहुँच के बाहर हैं, तो दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में मरीजों की लाइनें लम्बी होती जा रही हैं। आपरेशन के लिए लंबा-लंबा डेट मिलता है। अस्पतालों में बेड नहीं मिलता है। डाक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों, चिकित्सा उपकरणों और दवाओं की भारी कमी है। आए दिन डाक्टर सहित स्वास्थ्यकर्मियों को अपने रूके वेतन के लिए हड़ताल करनी पड़ती है। देश और दुनिया को दिखाने के लिए सभी सुविधा से संपन्न सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल जरूर हैं, लेकिन वे ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। उनमें छोटी से छोटी स्वास्थ्य सेवा का खर्चा किसी मजदूर-मेहनतकश परिवार की पहुंच से बहुत दूर है। दिल्लीवासियों के लिए एक आधुनिक स्वास्थ्य सेवा सर्वसुलभ कराने के अपने दायित्व से केन्द्र व राज्य सरकार इनकार करती आ रही हैं।
लोगों को स्वास्थ्य सेवा दिलवाने के नाम पर, सरकारें आए दिन नयी-नयी स्कीमों की घोषणा करते रहते हैं, ताकि निजी क्षेत्र के अस्पतालों व निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों के जरिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाया जा सके। इसलिए स्कीमों को लेकर, केन्द्र और राज्य सरकार, दोनों के बीच लड़ाई होती रहती है, न कि लोगों के स्वास्थ्य सेवा के प्रति उनके दायित्व को लेकर।
मज़दूर-मेहनतकश अपने बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा तथा सुरक्षित भविष्य की तमन्ना करते हैं। अधिकांश मेहनतकशों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में घटिया और गिरती गुणवत्ता की शिक्षा मिलती है। दिल्ली में चल रहे कुल स्कूलों के मुकाबले सरकारी व सरकारी मदद से चलने वाले स्कूलों का प्रतिशत मात्र 22.59 है2। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं पर खर्च बढ़ाया गया है लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव बना हुआ है। एक अध्यापक का 35 छात्रों को पढ़ाने का नियम है लेकिन यह लागू नहीं होता है। शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को जानबूझकर नीचे रखा जाता है ताकि निजी शिक्षा क्षेत्र के खिलाड़ी फलफूल सकें।
महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से दिल्ली बदनाम है। महिलाओं के खिलाफ़ बीते कई घटनाओं ने इसे साबित किया है। महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन हिंसा के हादसे बढ़ रहे हैं। काम की जगहों पर महिलाओं को यौन-शोषण का सामना करना पड़ता है। महिला, बच्चे व बुजुर्ग सड़कों पर घोर असुरक्षा का सामना करने को मजबूर हैं।
राजकीय एजेंसियों के संरक्षण में नशा का कारोबार फलफूल रहा है। नौजवानों में, अपने अंधकारमय भविष्य के चलते, नशाखोरी व गुंडागर्दी की समस्या बढ़ रही है। आए दिन चोरी, लूटपाट, स्नैचिंग और हत्या की वारदातें बढ़ रही हैं। साईबर अपराधों के शिकार होकर लोग अपनी गाढ़ी कमाई खो रहे हैं।
साथियों,
दिल्ली एक अमीर राज्य है। सरकार की तिजौरी में सबसे बड़ा हिस्सा, मजदूरों व मेहनतकशों की जेब से – उनके द्वारा उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं पर लगे जीएसटी के रूप में – जाता है। 2024-25 के बजट4 के अनुसार जीएसटी से प्राप्ति 3 खरब 40 अरब रुपए है। इसके अलावा, दिल्ली के हर चौथे नागरिक की जेब से पेट्रोल में आधी रकम टैक्स के रूप में वसूली जाती है। कार और मोटर बाईक की खरीदी में एक चौथाई टैक्स के रूप में वसूली जाती है। सरकार शराब बेचकर अरबों की वसूली करती है। इसके अलावा, कमाई पर टैक्स यानि आयकर के रूप में, मज़दूरों-मेहनतकशों की गाढ़ी कमाई का बहुत सारा धन दिल्ली राज्य की तिजौरी में जाता है।
हर राजनीतिक पार्टी एक से बढ़कर एक, मुफ्त सेवाएं मुहैया कराने के वादे करती है। लेकिन इसकी आड़ में असलियत में मेहनतकश जनता को ही लूटकर राज्य की तिजौरी भरी जा रही है। पूंजीवादी कंपनियों की जेबें भरी जा रही हैं। इस व्यवस्था के बारे में भ्रम फैलाकर नींद की गोली खिलाकर रखा जाता है, ताकि हम अपने अधिकार बतौर रोजगार, आधुनिक जीवन की जरूरी सेवाओं – पीने का पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, शौच व्यवस्था, अच्छी परिवहन सेवा – आदि के लिए संघर्ष न करें।
दिल्ली की समस्याओं को हल करके शहर को आधुनिक और बुनियादी सुविधाओं से संपन्न किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए सरकार के पास धन की कोई कमी नहीं है। अगर सरकार का उद्देश्य बहुसंख्यक आबादी की सुख-सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित करना हो। लेकिन सरकार का उद्देश्य बड़े इजारेदार पूंजीपति वर्ग के हित को पूरा करने का है।
इन सभी समस्याओं की जड़ वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था है। यह व्यवस्था पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़ों को बढ़ाने के उद्देश्य से, मज़दूरों के शोषण को और तेज़ करने पर आधारित है। हिन्दोस्तानी राज्य और इसकी सभी राजनीतिक पार्टियां व सभी संस्थान इस पूंजीवादी व्यवस्था की हिफ़ाज़त करते हैं।
क्या चुनाव जनता के मत को प्रकट करते हैं?
समय-समय पर किये गए चुनावों से लोगों में यह धारणा पैदा की जाती है कि यह लोकतंत्र है, कि लोग खुद अपनी सरकार और अपने प्रतिनिधि चुनते हैं। लेकिन यह बहुत बड़ा धोखा है। चुनाव के मैदान में घोर असमानता नज़र आती है। पूंजीपतियों की सेवा करने वाली पार्टियों के करोड़ों-करोड़ों रुपयों के कैंपेन बजट होते हैं। उन्हें राज्य प्रशासन द्वारा सड़कों पर और मीडिया पर भरपूर प्रचार करने की पूरी छूट दी जाती है। परन्तु मज़दूरों-मेहनतकशों के हितों के लिए लड़ने वाली पार्टियों व उम्मीदवारों को बहुत ही कम पैसों पर अपना प्रचार अभियान चलाना पड़ता है, और उन्हें हजारों क़ानूनों के भूल-भुलैये में फंसा दिया जाता है। ऐसे में, मेहनतकशों की समस्याओं को उठाने वाले उम्मीदवारों के लिए जीतने की बहुत ही कम सम्भावना होती है।
मतदाताओं के पास उम्मीदवारों का चयन करने का कोई अधिकार नहीं होता है। हुक्मरान पूंजीपति वर्ग अपने धन बल, बाहुबल, मीडिया पर नियंत्रण तथा वोटों की गिनती में खुलेआम हेराफेरी के ज़रिये, अपनी भरोसेमंद पार्टियों में से उस पार्टी की चुनावी जीत सुनिश्चित करता है, जो सबसे अच्छे तरीके से पूंजीपतियों का अजेंडा लागू करेगा, और साथ ही साथ जनता को सबसे बेहतर तरीक़े से बेवकूफ बनाएगा, कि यह अजेंडा आपके हित के लिए है। लोगों की भूमिका वोट डालने तक ही सीमित है। चुने गए प्रतिनिधि पर मतदाताओं का कोई नियंत्रण नहीं होता। हम न तो उनसे जवाबदेही मांग सकते हैं, और न ही उन्हें वापस बुला सकते हैं, अगर वे हमारे हितों के खि़लाफ़ काम करते हैं। सरकार बनाने वाली पार्टी या गठबंधन पूंजीपतियों के अजेंडे को लागू करने में लग जाती है, चाहे चुनाव से पहले मतदाताओं से कुछ भी वादा किया हो। विपक्ष में बैठी पार्टियां जनता के हित की रक्षा करने का नाटक करती हैं। पर जब सरकार बनाने की उनकी बारी आती है, तो वे भी हुक्मरान पूंजीपति वर्ग के अजेंडे को ही लागू करती हैं। सरकार चलाने वाली पार्टियां बदलती हैं, लेकिन एजेंडा और नीतियां नहीं बदलतीं। यही कारण है कि बार-बार चुनाव होने के बावजूद मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकशों के हालात में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
हमारे देश पर कौन राज करता है?
इस देश के असली हुक्मरान, पूंजीपति वर्ग है, जिसकी अगुवाई लगभग 150 बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीवादी घराने करते हैं। सभी मुख्य उत्पादन के साधनों पर इस हुक्मरान पूंजीपति वर्ग का ही वर्चस्व है। सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस हुक्मरान पूंजीपति वर्ग के हितों की सेवा करती हैं। यही वजह है कि इस या उस पार्टी की सरकार बदलने से भी मेहनतकशों की हालत में कोई उन्नति नहीं होती। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी – ये सभी पार्टियां इसी हुक्मरान वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
फै़सले लेने की ताक़त किसके हाथ में?
चुने गए प्रतिनिधि पूंजीपतियों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, मेहनतकश लोगों के हितों का नहीं। नीतिगत फ़ैसले प्रधान मंत्री की अगुवाई में मंत्रीमंडल तथा दिल्ली विधानसभा के मामले में मुख्यमंत्री की अगुवाई में दिल्ली सरकार की केबीनेट द्वारा लिए जाते हैं। संसद या विधानसभा ही नए क़ानून बना सकते हैं। इस तरह, नीतिगत फ़ैसले व क़ानून पूंजीपति वर्ग के हित में ही होते हैं, क्योंकि इसमें लोगों की कोई भूमिका नहीं होती। दिल्ली को कैसे चलाया जाना चाहिए, उसकी नीतियां, क़ानून और अर्थव्यवस्था की दिशा क्या होनी चाहिए, यह तय करने में मज़दूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों की कोई भूमिका नहीं है। अर्थव्यवस्था पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़े को अधिकतम करने की दिशा में निर्देशित है। चार लेबर कोड लागू होने जा रहे हैं, जिनके तहत मज़दूरों के शोषण को कई गुना बढ़ाया जा रहा है तथा लम्बे संघर्षों से जीते गए मज़दूरों के अधिकारों को छीना जा रहा है। मज़दूर रेलवे, बैंकिंग, बीमा, पेट्रोलियम कंपनियों, इस्पात प्लांटों आदि के निजीकरण का विरोध करते आ रहे हैं, लेकिन इन सभी सार्वजनिक संस्थाओं व सेवाओं का निजीकरण अनवरत जारी है। किसान अपनी फ़सलों के लिए एम.एस.पी. की गारंटी के कानून के लिए महीनों-महीनों से संघर्ष कर रहे हैं। सरकार उनकी मांगों को अनसुनी कर रही है, क्योंकि वह कृषि व्यापार पर हावी होने के इच्छुक देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों के हितों की किसी भी कीमत पर रक्षा करने पर तुली हुयी है।
मज़दूर-मेहनतकशों के अपने अधिकारों की हिफ़ाज़त में एकजुट संघर्ष को ख़त्म करने के लिए, हुक्मरान वर्ग अपने राजनीतिक पार्टियों के जरिए लोगों को धर्म, जाति, क्षेत्रियता आदि के आधार पर एक दूसरे के खिलाफ़ नफरत फैलाती है। दिल्ली में हर प्रकार के विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं। अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को अपराधी करार दिया जाता है और यूएपीए जैसे कठोर क़ानूनों के तहत सालों-सालों तक बिना मुकदमा चलाये, जेलों में बंद रखा जाता है। फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा का विरोध करने वाले नौजवानों को आज तक जेल में बंद रखा गया है और जमानत से भी लगातार इंकार किया जा रहा है।
हमें क्या करना चाहिए?
पूंजीपति वर्ग की सेवा करने वाली इस या उस पार्टी के बीच में चुनने के इस जाल से हमें निकलना होगा। वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था और उसकी हिफ़ाज़त करने वाला हिन्दोस्तानी राज्य ही हमारी सारी समस्याओं की जड़ है। इसे बरकरार रखने वाली, हुक्मरान पूंजीपति वर्ग की सभी भरोसेमंद पार्टियां हमारी समस्याओं का समाधान कभी नहीं कर सकती हैं।
हम मज़दूर-मेहनतकशों को अपनी सांझी मांगों के इर्द-गिर्द अपनी एकता व अपने संगठन मजबूत करने होंगे। हमें इस पूंजीवादी व्यवस्था और पूंजीपति वर्ग की हुकूमत को ख़त्म करने, तथा खुद इस देश के मालिक बनने के उद्देश्य से, अपने संघर्षों को तेज़ करना होगा।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी दिल्ली की जनता से आह्वान करती है कि हम वर्तमान पूंजीवादी हुकूमत को ख़त्म करने और इसकी जगह पर मज़दूरों, किसानों तथा सभी मेहनतकश व उत्पीड़ित लोगों की हुकूमत स्थापित करने के लक्ष्य के साथ अपने संघर्षों को तेज़ करें। जब राज्य सत्ता मज़दूरों और किसानों के हाथों में होगी, जब उत्पादन के सभी मुख्य साधन समाज की मालिकी में होंगे, तब हम अर्थव्यवस्था को नयी दिशा दिला सकेंगे ताकि मेहनतकशों की सभी ज़रूरतें पूरी हो सकें। हम पूंजीवादी शोषण व साम्राज्यवादी लूट-खसोट को खत्म कर सकेंगे, सभी को सुरक्षित रोजगार दिला सकेंगे, आधुनिक जीवन की सारी सुविधाएं मुहैया करा सकेंगे, धर्म-जाति के आधार पर भेदभाव व हिंसा को ख़त्म कर सकेंगे, महिलाओं के सम्मान की हिफ़ाज़त कर सकेंगे। सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा व खुशहाली सुनिश्चित कर सकेंगे। जब नीतिगत फ़ैसले लेने व कानून बनाने की शक्ति मज़दूर-मेहनतकशों के हाथों में होगी, तब हम समाज की बहुसंख्या, मेहनतकश जनता, के हितों की हिफ़ाज़त के लिए नीति व क़ानून बना सकेंगे तथा हमारे अधिकारों का हनन करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिला सकेंगे।
आइये, इन उद्देश्यों के साथ अपने संघर्षों को आगे बढ़ाएं। इस दिशा में निम्नलिखित राजनीतिक सुधारों के लिए चल रहे आंदोलन को आगे बढाएं :
- हर मतदाता को चुनने और चुने जाने का अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- उम्मीदवारों के चयन का अधिकार राजनीतिक पार्टियों के हाथों से निकाल कर मतदाताओं के हाथों में दिया जाना चाहिए।
- प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक निर्वाचित समिति स्थापित की जानी चाहिए। यह समिति मतदाताओं को चुनाव से पहले उम्मीदवारों का चयन करने के साथ-साथ उनके सभी राजनीतिक अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम बनाएगी।
- राजनीतिक पार्टियों, उम्मीदवारों सहित किसी भी व्यक्ति या कंपनी को चुनाव अभियान पर खर्च करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- चुनाव प्रक्रिया का सम्पूर्ण खर्च राज्य को करना चाहिए। सभी चयनित उम्मीदवारों को मतदाताओं के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करने का, मीडिया – टेलिविजन चैनल्स, सोशल मीडिया, समाचार-पत्र आदि – पर समान अवसर देना चाहिए।
- चुनाव प्रचार शुरू होने के एक दिन पहले ही चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह जारी करना चाहिए। किसी भी राजनीति पार्टी के लिए चुनाव चिन्ह सुरक्षित नहीं होना चाहिए।
- एक बार जब लोग अपना वोट डाल देते हैं, तो उन्हें निर्वाचित होने वाले लोगों को अपनी सारी शक्तियां नहीं सौंपनी चाहिए।
- लोगों को कानून बनाने, जनमत संग्रह के माध्यम से प्रमुख सार्वजनिक निर्णयों को मंजूरी देने या खारिज करने, और किसी भी समय अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए।
- कार्यपालिका को विधायिका के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, और विधायिका को मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
आइए, हम अपनी रोज़ी-रोटी और सुरक्षा पर हमलों के खि़लाफ़ अपने संघर्ष के दौरान अपनी एकता को मजबूत करें! आइए, हम निम्नलिखित मांगों के इर्द-गिर्द सभी उत्पीड़ितों की राजनीतिक एकता बनायें:
- उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की नीति को खत्म किया जाए।
- एक आधुनिक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था स्थापित की जाए। इसमें अनाज, चीनी, खाद्य तेल, दाल और आम लोगों के इस्तेमाल की सारी चीजें उपलब्ध हों और अच्छी गुणवत्ता की हों। पर्याप्त मात्रा में हों और ऐसे दाम पर हों जो सभी मेहनतकशों की पहुंच के भीतर हों।
- बिजली, गैस, सीवर, पानी व आधुनिक जीवन की सभी सुविधाएं सहित आवास की सुनिश्चिति हो। सभी रिहायशी कालोनियों को नियमित करके सभी ज़रूरी सुविधाओं को मुहैया कराया जाये।
- सभी नागरिकों के लिए उत्तम गुणवत्ता वाली कुशल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा निःशुल्क या किफायती दामों पर सुनिश्चित की जाये।
- सभी बच्चों व नौजवानों के लिए अच्छी गुणवत्ता की एक-समान सरकारी शिक्षा व्यवस्था सुनिश्चित हो।
- न्यूनतम वेतन 26,000 रुपए सुनिश्चित किया जाये तथा ठेका मज़दूरी को ख़त्म किया जाये।
- बिना किसी अपवाद के सभी श्रमिकों के अधिकारों की क़ानूनी गारंटी दी जाये। जीवन जीने योग्य, 10,000 रुपए मासिक पेंशन का अधिकार सुनिश्चित हो। समान काम का समान वेतन सुनिश्चित हो।
- सभी को रोज़गार की गारंटी हो। काम के घंटे 8 सुनिश्चित किए जाएं।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सारी फ़सलों की सरकारी ख़रीद की कानूनी गारंटी हो।
- एक आधुनिक व किफ़ायती परिवहन व्यवस्था हो।
- महिलाओं, बुजुर्गों और लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये।
- रेहड़ी-पटरी वालों व छोटे दुकानदारों की रोज़ी-रोटी सुनिश्चित करने के लिए स्थान उपलब्ध कराया जाए।
- रिक्शा, ई-रिक्शा, आटो चालकों के लिए बुनियादी सुविधा से लैस स्थायी स्टैंड उपलब्ध कराया जाए।
- सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिया जाये।
- मज़दूर-मेहनतकश को शोषण के खि़लाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करने तथा विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार हो।
- मज़दूर-मेहनतकशों की रोज़ी-रोटी व अधिकारों पर हमलों के विरोध में आवाज़ उठाने वालों को राजकीय आतंक का शिकार न बनाया जाये। राजकीय आतंकवाद के सभी पीड़ितों को जल्दी इंसाफ दिया जाये।
साथियों,
दिल्ली के मेहनतकशों के अधिकारों के समर्थन में लगातार संघर्ष करते आये कई कम्युनिस्ट व अन्य संघर्षशील उम्मीदवार इस विधान सभा चुनाव में खड़े हैं। इन संघर्षशील उम्मीदवारों का पूरा-पूरा समर्थन करें!
स्रोत:
- चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़े जनवरी, 2025
- दिल्ली आर्थिक सर्वे रिपोर्ट 2023-24
- दिल्ली तक ऊपरी यमुना नदी सफाई परियोजनाओं और दिल्ली में नदी तल, प्रबंधन की समीक्षा पर जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट, 6 फरवरी, 2024
- दिल्ली बजट 2024-2025