केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और क्षेत्रीय संघों के संयुक्त मंच ने 7 जनवरी, 2025 को मज़दूरों और किसानों पर, हो रहे हमले से उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अभियान चलाने की घोषणा की।
संयुक्त मंच की प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। वह पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने से इनकार कर रही है।
ट्रेड यूनियनों और फेडरेशनों ने केंद्र सरकार द्वारा चार मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने के क़दम के ख़िलाफ़ सर्व हिन्द अभियान चलाने का संकल्प व्यक्त किया है।
औद्योगिक विवाद, व्यावसायिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर श्रम संहिताएं, सभी सितंबर 2020 के मानसून सत्र के अंतिम दिन को संसद द्वारा पारित की गईं। इन्हें बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया। जबकि देशभर में इन प्रस्तावित कानूनों के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे करोड़ों मज़दूरों की आवाज पर ध्यान ने दिया गया। मज़दूरी पर श्रम संहिता 2019 में लागू की गई थी। इन कानूनों के क्रियान्वयन के लिए नियम राज्य सरकारों द्वारा बनाए जाने की आवश्यकता है। लेकिन, मज़दूरों के विरोध का सामना करते हुए, सभी राज्य सरकारें इन कानूनों को लागू नहीं कर पाई हैं। जून 2024 में सत्ता में आने के बाद से केंद्र सरकार द्वारा सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मार्च 2025 तक मसौदा नियमों को अधिसूचित करने के लिए एक नया प्रयास किया जा रहा है।
श्रम संहिताएं पूंजीपतियों के लिए मज़दूरों के अधिकारों का उल्लंघन करना वैध बनाती हैं, जैसे रोज़गार की सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, यूनियन बनाने के अधिकार और हड़ताल करने के अधिकार आदि सभी का उल्लंघन। उन्होंने ठेका मज़दूरी के दायरे को बहुत बढ़ा दिया है। कारखाने की परिभाषा ही बदल दी गई है। वे सरकार को किसी भी नए औद्योगिक प्रतिष्ठान या प्रतिष्ठानों के वर्ग को “सार्वजनिक हित” में “अधिक आर्थिक गतिविधि और रोज़गार पैदा करने” के लिए कार्यस्थलों पर सुरक्षा के अपने प्रावधानों से छूट देने की अनुमति देते हैं। इन कानूनों के तहत काम के घंटे, सुरक्षा मानकों, छंटनी प्रक्रिया, ट्रेड यूनियन अधिकारों, कॉन्ट्रेक्ट मज़दूरी के उपयोग आदि के संबंध में छूट दी जा सकती है। महिलाओं को अब सभी प्रकार के कामों के लिए सभी प्रतिष्ठानों में नियोजित किया जा सकता है। रात की पाली में काम करने या महिलाओं के लिए ख़तरनाक माने जाने वाले काम पर कोई प्रतिबंध नहीं है। सामाजिक सुरक्षा पर संहिता इस सिद्धांत का उल्लंघन करती है कि सामाजिक सुरक्षा एक सर्वव्यापी अधिकार है और ऐसा लाभ नहीं है जिसे एक बार दिया जा सकता है और बाद में वापस ले लिया जा सकता है।
श्रम संहिताओं का उद्देश्य मज़दूरों के और भी अधिक क्रूर शोषण के माध्यम से हिन्दोस्तानी और विदेशी एकाधिकार पूंजीपतियों के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना है। उनके अधिनियमित होने के तुरंत बाद और नियमों के निर्माण से पहले, कई राज्य सरकारों ने संहिताओं में निर्दिष्ट कार्य स्थितियों को लागू करना शुरू कर दिया है।
देशभर में, कामकाजी लोग बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के बेरोज़गारी, आजीविका की बढ़ती असुरक्षा, तीव्र शोषण और असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों के अधीन हैं। यह ज़रूरी है कि श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ किया जाए।
पूरे देश में मज़दूर यूनियनों के एकजुट विरोध के कारण केंद्रीय श्रम संहिताओं का क्रियान्वयन अवरुद्ध हो गया है। किसानों के बहादुर एकजुट विरोध के कारण कृषि क़ानूनों को वापस लिया गया। मज़दूरों और किसानों के लिए आगे का रास्ता पूंजीपति वर्ग और हमारे अधिकारों पर सभी हमलों के ख़िलाफ़ हमारी लड़ाकू एकता को और मजबूत करना है।
सभी कृषि उपज के लिए एम.एस.पी. के लिए किसानों और कृषि मज़दूरों के संघर्ष को ट्रेड यूनियनों और महासंघों ने अपना समर्थन व्यक्त किया है। यूनियनों ने मज़दूरों और किसानों के संयुक्त कार्रवाई कार्यक्रमों के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार द्वारा अपनाए जा रहे मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी रास्ते की निंदा करने के लिए 5 फरवरी को पूरे हिन्दोस्तान में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इसके बाद चारों श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ सर्व हिन्द अभियान चलाया जाएगा। यूनियनों ने घोषणा की है कि अगर केंद्र सरकार श्रम संहिताओं के नियमों को अधिसूचित करने के लिए आगे बढ़ती है तो वे आम हड़ताल का आयोजन करेंगे।
मज़दूरों और किसानों के सभी संगठनों को मज़दूरों और किसानों के अधिकारों की रक्षा के अभियान को सफल बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।