हिन्दोस्तानी गणराज्य सरमायदारी हुकूमत का हथकंडा है

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 21 जनवरी 2025

इस वर्ष 26 जनवरी को हिन्दोस्तान को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किये जाने की 75वीं सालगिरह है। हमारे देश के हुक्मरानों का दावा है कि इस गणराज्य ने सभी हिन्दोस्तानी लोगों की बहुत अच्छी सेवा की है। लेकिन, पूरे देश में मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और युवाओं के बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शनों से पता चलता है कि हिन्दोस्तानी  गणराज्य अपने सभी नागरिकों को सुख और सुरक्षा नहीं प्रदान कर रहा है। यह केवल एक धनी अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की सेवा कर रहा है – यानि पूंजीपति वर्ग, जिसकी अगुवाई इजारेदार पूंजीवादी घरानों द्वारा किया जाता है।

एक ध्रुव पर, अधिक से अधिक हिन्दोस्तानी पूंजीपति दुनिया के सबसे अमीर लोगों की श्रेणी में शामिल होते जा रहे हैं। दूसरे ध्रुव पर, मज़दूर, किसान और अन्य मेहनतकश लोग भारी आर्थिक कठिनाइयों से पीड़ित हैं। मुद्रास्फीति की लगातार ऊंची दरों के मुक़ाबले मज़दूरों का वेतन लगातार पीछे रह जाता रहा है। अधिकांश किसानों की आमदनी घट रही है और क़र्ज़ का बोझ बढ़ रहा है। युवाओं को व्यापक तौर पर बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है।

असुरक्षा और सामाजिक उत्पीड़न बढ़ रहा है। महिलाओं को प्रतिदिन भेदभाव, उत्पीड़न और शारीरिक हमलों के ख़तरे का सामना करना पड़ता है। विभिन्न राष्ट्रीयताओं और जनजातीय समुदायों को बर्बर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। लोग जातिगत उत्पीड़न और सांप्रदायिक हिंसा का शिकार होते रहते हैं।

गणराज्य लोगों की हुकूमत का एक रूप माना जाता है। परन्तु, हमारे देश के मेहनतकश बहुसंख्यक लोगों के पास अपनी दयनीय स्थिति को बदलने की कोई शक्ति नहीं है। करोड़ों मज़दूर संसद द्वारा लागू चार श्रम संहिताओं का विरोध कर रहे हैं। वे निजीकरण कार्यक्रम को रोकने की मांग कर रहे हैं। किसान कृषि व्यापार के उदारीकरण का विरोध कर रहे हैं। वे सभी कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी और कृषि क़र्ज़ों की माफ़ी की मांग कर रहे हैं। हिन्दोस्तानी गणराज्य मज़दूरों और किसानों की मांगों की उपेक्षा करता है। उनके संघर्षों को “कानून और व्यवस्था की समस्या” मानता है। जो लोग अपने अधिकारों की मांग करते हैं उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता है और यूएपीए जैसे कठोर क़ानूनों का उपयोग करके उन्हें वर्षों तक जेल में बंद रखा जाता है।

मेहनतकश लोगों की शक्तिहीन स्थिति और उनके लगातार बढ़ते शोषण और उत्पीड़न की मूल वजह यह है कि मौजूदा गणराज्य पूंजीपति वर्ग के शासन का साधन है। यह गणराज्य 1947 में अंग्रेज हुक्मरानों और हिन्दोस्तानी सरमायादार वर्ग के बीच हुए एक समझौते की पैदाइश है। उन दोनों ने मिलकर यह समझौता किया था ताकि हिन्दोस्तान के मेहनतकश लोगों को क्रांति के रास्ते पर आगे बढ़ने से रोका जा सके।

उपनिवेशवादियों ने हिन्दोस्तानी बड़े पूंजीपतियों और बड़े जमींदारों को राज्य सत्ता हस्तांतरित कर दी। इन वर्गों के हित में दमनकारी राज्य को बरकरार रखना और अंग्रेजों द्वारा बनाई गई शोषणकारी आर्थिक व्यवस्था से लाभ उठाना था। संप्रभुता को औपचारिक रूप से अंग्रेज ताज से संविधान सभा को सौंप दिया गया था। संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को एक संविधान अपनाया, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

सर्वव्यापी प्रौढ़ मताधिकार की लोकप्रिय मांग को स्वीकार करते हुए, 1950 के संविधान ने उस राजनीतिक व्यवस्था को क़ायम रखा जिसे ब्रिटिश हुक्मरानों ने हिन्दोस्तानी लोगों को गुलाम बनाने तथा हमारी भूमि और श्रम का शोषण करने के लिए स्थापित किया था। वोट देने के अधिकार ने केवल यह भ्रम पैदा करने का काम किया है कि लोग अपने भविष्य खुद तय कर रहे हैं, जबकि वास्तव में सरमायदार वर्ग ही राज कर रहा है।

जबकि कोई न कोई राजनीतिक पार्टी सरकार बनाती है और नियंत्रण करती हुयी दिखती है, उस पार्टी के पीछे इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में सरमायदार वर्ग खड़ा होता है। पूंजीपति एजेंडा तय करते हैं, जिसे मंत्रिमंडल और अफ़सरशाही मशीनरी लागू करती है।

संविधान की प्रस्तावना में सर्वोच्च फै़सले लेने वाले बतौर, “हम, लोगों” का जिक्र किया गया है। परन्तु संविधान का कार्यकारी भाग संप्रभुता, यानि सर्वोच्च फै़सले लेने की शक्ति संसद में राष्ट्रपति को प्रदान करता है, जो मंत्रिमंडल की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिमंडल को नीतिगत फै़सले लेने का विशेष अधिकार है। नये क़ानून बनाने का विशेष अधिकार संसद को है। क़ानून और नीतियां क्या होनी चाहिएं, यह तय करने में लोगों की कोई भूमिका नहीं है।

संविधान का उद्देश्य मौलिक अधिकारों की हिफ़ाज़त करना है। लेकिन, मौलिक अधिकारों पर प्रत्येक अनुच्छेद में एक खंड शामिल होता है जो राज्य को लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति देता है। मिसाल के तौर पर, अनुच्छेद 19 के खंड 1 में कहा गया है कि सभी नागरिकों को “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का अधिकार है। उसी अनुच्छेद के खंड 2 में कहा गया है कि राज्य हिन्दोस्तान की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था आदि के हित में इस अधिकार के प्रयोग पर “उचित प्रतिबंध” लगा सकता है। यह खंड राज्य को सत्ता में बैठे लोगों के खि़लाफ़ आवाज़ उठाने की जु़र्रत करने वालों को गिरफ़्तार करने की इजाज़त देता है।

हिन्दोस्तानी राज्य की सभी संस्थाएं – कार्यपालिका, विधिपालिका और न्यायपालिका – सरमायदार वर्ग की हुकूमत को बरकरार रखने और इस हुक्मरान वर्ग के कार्यक्रम को लागू करने के लिए काम करती हैं। आज़ादी के बाद से, हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने इस राज्य का उपयोग खुद को समृद्ध करने और साम्राज्यवादी सरमायदारों के रूप में विकसित होने के लिए किया है, जबकि मेहनतकश जनता ज़्यादा से ज़्यादा ग़रीब व शोषित होती गयी है।

आगे बढ़ने का रास्ता

मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों के लिए पहला क़दम यह पहचानना है कि मौजूदा गणराज्य ने सिर्फ़ सरमायदार वर्ग के हितों की सेवा की है और करता रहेगा। यह कभी भी शोषित जनता के हितों की सेवा नहीं करेगा। हमारे समाज जैसे परस्पर-विरोधी वर्गों में बंटे हुए समाज में, राज्य या तो शोषक सरमायदार वर्ग की सेवा में हो सकता है या शोषित मज़दूरों-किसानों की सेवा में। यह दोनों पक्षों की सेवा नहीं कर सकता।

कई सरमायदार विद्वान व राजनेता एक ग़लत धारणा का प्रचार करते हैं कि हिन्दोस्तानी गणराज्य और इसका संविधान मेहनतकश और उत्पीड़ित लोगों की सेवा के लिए बनाया गया है, लेकिन कुछ दुष्ट लोगों और भ्रष्ट पार्टियों ने इसका दुरुपयोग किया है। मज़दूरों और किसानों को इस विचार को ख़ारिज करना होगा। यह सोचना कि कुछ अच्छे लोगों या किसी साफ़-सुथरी पार्टी को वोट देकर मौजूदा राज्य के वर्ग चरित्र को बदला जा सकता है, यह एक हानिकारक भ्रम है। मौजूदा सरमायदारी राज्य की जगह पर मज़दूरों और किसानों के राज्य की स्थापना करनी होगी।

20वीं सदी में सोवियत संघ और कई अन्य देशों में मज़दूरों और किसानों के राज्यों का निर्माण हुआ। ऐसे राज्य सभी वर्गों, शोषकों और शोषितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं करते थे, जैसा कि संयुक्त राज्य अमरीका, फ्रांस और अन्य पूंजीवादी देशों में सरमायदारी गणराज्यों ने किया था। रूस के गणराज्यों और सोवियत संघ के अन्य सदस्य देशों ने खुले तौर पर घोषणा की कि वे अन्य सभी मेहनतकश लोगों के साथ गठबंधन में मज़दूर वर्ग की हुकूमत के साधन थे। वे शोषक वर्गों से मुक्ति पाने और संपूर्ण लोगों की बढ़ती भौतिक व सांस्कृतिक ज़रूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करने के साधन थे।

सोवियत संघ का 1936 का संविधान, जिसे लोगों के बीच व्यापक चर्चा के बाद अपनाया गया था, उसने गारंटी दी थी कि सभी प्रौढ़ महिलाओं और पुरुषों को न सिर्फ़ चुनने व चुने जाने का अधिकार प्राप्त है, बल्कि चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करने और चुने गए व्यक्ति को वापस बुलाने का भी अधिकार है।

भले ही साम्राज्यवादी और उनके एजेंट मेहनतकश लोगों की हुकूमत को नष्ट करने और पूंजीवादी शोषकों की हुकूमत को बहाल करने में सफल रहे, लेकिन सोवियत संघ और अन्य समाजवादी देशों के अनुभव से पता चलता है कि मेहनतकश बहुसंख्यक लोगों के लिए अपनी हुकूमत स्थापित करना, आवश्यक और संभव भी है।

जब तक सरमायदार वर्ग हिन्दोस्तान पर राज करता रहेगा, तब तक देश को बेहद ख़तरनाक रास्ते पर घसीटा जाता रहेगा। मेहनतकश लोगों का शोषण और उत्पीड़न बद से बदतर होता जाएगा, साथ ही सांप्रदायिक झगड़ों और हिन्दोस्तान के साम्राज्यवादी युद्धों में फंसने का ख़तरा भी बढ़ेगा। इस तरह के विनाशकारी रास्ते को रोकने के लिए, सरमायदार वर्ग की हुकूमत को ख़त्म करना और मज़दूरों व किसानों का राज्य स्थापित करना आवश्यक है।

हमारे देश में मज़दूरों और किसानों का राज्य एक ऐसे संविधान पर आधारित होगा जो लोगों को संप्रभुता प्रदान करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि मेहनतकश लोगों को चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करने, अपने द्वारा चुने गए व्यक्ति को किसी भी समय वापस बुलाने और क़ानूनों व नीतियों को बनाने का अधिकार होगा। यह मज़दूरों और किसानों के अधिकारों की गारंटी देगा, और पूंजीपतियों को दूसरों के श्रम का शोषण करके धन संचय करने के “अधिकार” से वंचित कर देगा। यह हिन्दोस्तान के सभी राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के अधिकारों की रक्षा करेगा। यह धार्मिक, जातीय, राष्ट्रीय या आदिवासी पहचान के आधार पर सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद और उत्पीड़न को समाप्त कर देगा। यह पूंजीवादी शोषण, साम्राज्यवादी लूट, सामंतवाद के सभी अवशेषों, जाति व्यवस्था और उपनिवेशवाद की पूरी विरासत से मुक्ति पाने का एक साधन होगा। यह पूंजीवादी शोषकों के हाथों से बड़े पैमाने पर उत्पादन के साधनों को छीन लेगा और उन्हें सामाजिक संपत्ति में बदल देगा। यह अर्थव्यवस्था की दिशा बदल देगा। पूंजीवादी मुनाफे़ को अधिकतम करने की दिशा को बदलकर सभी लोगों की बढ़ती भौतिक तथा सांस्कृतिक ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा को अपनाएगा।

हिन्दोस्तानी गणराज्य की 75वीं सालगिरह के अवसर पर, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी हमारे देश के भविष्य की चिंता करने वाले सभी लोगों से आह्वान करती है कि मौजूदा सरमायदारी गणराज्य की जगह पर मज़दूरों और किसानों का राज्य स्थापित करने के कार्यक्रम के इर्द-गिर्द एकजुट हो जायें।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मज़दूरों और किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने के अभियान की घोषणा की

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और क्षेत्रीय संघों के संयुक्त मंच ने 7 जनवरी, 2025 को मज़दूरों और किसानों पर हो रहे हमले से उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अभियान चलाने की घोषणा की।

संयुक्त मंच की प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। वह पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने से इनकार कर रही है।

ट्रेड यूनियनों और फेडरेशनों ने केंद्र सरकार द्वारा चार मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने के क़दम के ख़िलाफ़ सर्व हिन्द अभियान चलाने का संकल्प व्यक्त किया है।

औद्योगिक विवाद, व्यावसायिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर श्रम संहिताएं, सभी सितंबर 2020 के मानसून सत्र के अंतिम दिन को संसद द्वारा पारित की गईं। इन्हें बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया। जबकि देशभर में इन प्रस्तावित कानूनों के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे करोड़ों मज़दूरों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया गया। मज़दूरी पर श्रम संहिता 2019 में लागू की गई थी। इन कानूनों के क्रियान्वयन के लिए नियम राज्य सरकारों द्वारा बनाए जाने की आवश्यकता है। लेकिन, मज़दूरों के विरोध का सामना करते हुए, सभी राज्य सरकारें इन कानूनों को लागू नहीं कर पाई हैं। जून 2024 में सत्ता में आने के बाद से केंद्र सरकार द्वारा सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मार्च 2025 तक मसौदा नियमों को अधिसूचित करने के लिए एक नया प्रयास किया जा रहा है।

श्रम संहिताएं पूंजीपतियों के लिए मज़दूरों के अधिकारों का उल्लंघन करना वैध बनाती हैं, जैसे रोज़गार की सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, यूनियन बनाने के अधिकार और हड़ताल करने के अधिकार आदि सभी का उल्लंघन है। उन्होंने ठेका मज़दूरी के दायरे को बहुत बढ़ा दिया है। कारखाने की परिभाषा ही बदल दी गई है। ये सरकार को किसी भी नए औद्योगिक प्रतिष्ठान या प्रतिष्ठानों के श्रेणी को “सार्वजनिक हित” में “अधिक आर्थिक गतिविधि और रोज़गार पैदा करने” के लिए कार्यस्थलों पर सुरक्षा के अपने प्रावधानों से छूट देने की अनुमति देते हैं। इन कानूनों के तहत काम के घंटे, सुरक्षा मानकों, छंटनी प्रक्रिया, ट्रेड यूनियन अधिकारों, कॉन्ट्रेक्ट मज़दूरी के उपयोग आदि के संबंध में छूट दी जा सकती है। महिलाओं को अब सभी प्रकार के कामों के लिए सभी प्रतिष्ठानों में लगाया  जा सकता है। रात की पाली में काम करने या महिलाओं के लिए ख़तरनाक माने जाने वाले काम पर कोई प्रतिबंध नहीं है। सामाजिक सुरक्षा पर संहिता इस सिद्धांत का उल्लंघन करती है कि सामाजिक सुरक्षा एक सर्वव्यापी अधिकार है और ऐसा लाभ नहीं है जिसे एक बार दिया जा सकता है और बाद में वापस ले लिया जा सकता है।

श्रम संहिताओं का उद्देश्य मज़दूरों के और भी अधिक क्रूर शोषण के माध्यम से हिन्दोस्तानी और विदेशी एकाधिकार पूंजीपतियों के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना है। उनके अधिनियमित होने के तुरंत बाद और नियमों के निर्माण से पहले, कई राज्य सरकारों ने संहिताओं में निर्दिष्ट कार्य स्थितियों को लागू करना शुरू कर दिया है।

देशभर में, कामकाजी लोग बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के बेरोज़गारी, आजीविका की बढ़ती असुरक्षा, तीव्र शोषण और असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों के अधीन हैं। यह ज़रूरी है कि श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ किया जाए।

पूरे देश में मज़दूर यूनियनों के एकजुट विरोध के कारण केंद्रीय श्रम संहिताओं का क्रियान्वयन रुक गया है। किसानों के बहादुर एकजुट विरोध के कारण कृषि क़ानूनों को वापस लिया गया। मज़दूरों और किसानों के लिए आगे का रास्ता, हमारे अधिकारों पर पूंजीपति वर्ग के हमलों के ख़िलाफ़ लड़ाकू एकता को और मजबूत करना है।

सभी कृषि उपज के लिए एम.एस.पी. के लिए किसानों और कृषि मज़दूरों के संघर्ष को ट्रेड यूनियनों और महासंघों ने अपना समर्थन व्यक्त किया है। यूनियनों ने मज़दूरों और किसानों के संयुक्त कार्यक्रमों के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार द्वारा अपनाए जा रहे मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी रास्ते की निंदा करने के लिए 5 फरवरी को पूरे हिन्दोस्तान में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इसके बाद चारों श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ सर्व हिन्द अभियान चलाया जाएगा। यूनियनों ने घोषणा की है कि अगर केंद्र सरकार श्रम संहिताओं के नियमों को अधिसूचित करने के लिए आगे बढ़ती है तो वे आम हड़ताल का आयोजन करेंगे।

मज़दूरों और किसानों के सभी संगठनों को मज़दूरों और किसानों के अधिकारों की रक्षा के अभियान को सफल बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।

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