भारतीय रेल के सिग्नलिंग और टेलिकॉम मज़दूरों की दयनीय स्थिति

भारतीय रेल को देश की जीवन रेखा कहा जाता है। यह देश के एक कोने से दूसरे कोने तक लोगों और वस्तुओं को ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दुर्भाग्य से, इस आवश्यक सेवा को लगातार धन की कमी का सामना करना पड़ा है और विभिन्न सरकारों द्वारा इसकी उपेक्षा की गई है। नतीजतन, भारतीय रेल अपने बहुत से मज़दूरों और यात्रियों के लिए मौत का जाल बन गया है।

रेलगाड़ियों के सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करने में सिग्नलिंग और टेलिकॉम (एस एंड टी) मज़दूर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी ज़िम्मेदारी सिग्नलिंग सिस्टम को लगाने, रखरखाव करने और उसमें आई ख़मियों को ठीक करने की हैं। एस एंड टी विभाग द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, इस विभाग के मज़दूरों को जोखिम भरे और अत्यधिक शोषणकारी परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है।

एस एंड टी मज़दूरों के कार्य की भयावह परिस्थितियां

SER-ST-maintenanceकाम के असीमित घंटे। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में, रेल के डिब्बों और रेलगाड़ियों की संख्या के साथ-साथ, उनकी गति में वृद्धि हुई है और एक ही पटरी पर एक के बाद दूसरी रेलगाड़ी के आने और जाने के बीच की अवधि कम हुई है, लेकिन रेलवे अधिकारी पदों को समाप्त करने के साथ-साथ खाली पदों को भरने के लिए मज़दूरों की भर्ती नहीं करने पर अड़े हुए हैं। इसके परिणामस्वरूप भारतीय रेल में बहुत सारे पद खाली पड़े हैं। इससे काम का अत्यधिक बोझ और तनाव पैदा हुआ है, जिससे सभी रेलवे मज़दूरों और उनके परिवारों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है। ऐसी परिस्थितियों में काम करने से अक्सर यात्रियों की जान भी जोखिम में पड़ जाती है।

एस एंड टी मज़दूर अपनी ड्यूटी के घंटों के दौरान महत्वपूर्ण काम करते हैं जो काफी थका देने वाला काम होता है। हालांकि भारतीय रेल के कार्य के घंटे और आराम की अवधि (एचओईआर) नियम 2005 के अनुसार एस एंड टी मज़दूरों को एक पाली में 8 घंटे करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।

हालांकि रेलवे सातों दिन चौबिसों घंटे संचालित होती है, लेकिन एस एंड टी मज़दूरों के लिए कोई भी शिफ्ट की ड्यूटी नहीं है। इस लिये एस एंड टी मज़दूरों से अपेक्षा की जाती है कि वे दिन या रात के सभी घंटों में समस्याओं और विफलताओं को दूर करने का काम करेंगे। जब भी उनके अवकाश के दौरान सिग्नलिंग विफलता होती है, तो इन मज़दूरों को तुरंत ड्यूटी पर वापस बुलाया जाता है – यहां तक कि आधी रात को भी। रेलवे मज़दूरों ने बताया है कि अगर वे ऐसी विफलताओं को दूर करने के लिए कॉल का जवाब नहीं देते हैं, तो उन्हें चार्जशीट, चेतावनी पत्र और निलंबन की धमकी दी जाती है या उन्हें अगले दिन ड्यूटी से अनुपस्थित माना जाता है।

कार्य-घंटे व विश्राम अवधि (एचओईआर) 2005 के नियमों के उल्लंघन में, रात के दौरान होने वाली सिग्नल विफलताओं को दूर करने के लिए रात की ड्यूटी के लिये विफलता समूहों का गठन नहीं किया गया है।

रेलवे बोर्ड ने 2019 में एक पत्र जारी किया था (ओ.एम. नंबर PC&VII/2019/R-&O/1 दिनांक 27.12.2019), जिसमें कहा गया था कि रात की ड्यूटी के लिये विफलता समूहों के गठन के लिए नए पदों का सृजन आवश्यक है, और महाप्रबंधक और डी.आर.एम. के पास इन पदों को सृजित करने का अधिकार होता है। परंतु, अनेक खंडों में ऐसा नहीं किया गया है।

इसके अलावा, कुछ डिवीज़नों में एस एंड टी मज़दूरों को अपने अवकाश के दिनों में भी मुख्यालय छोड़ने से पहले अनुमति लेने के लिए मजबूर किया जाता है! वे अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए भी छुट्टी नहीं ले पाते हैं।

काम की जोखिम भरी परिस्थितियां टालने योग्य मौतों और चोटों को जन्म देती हैं। रेलवे बोर्ड अपने ही नियमों का उल्लंघन करते हुए समय पर सेफ्टी शूज, रेनकोट, विंटर जैकेट, ल्यूमिनस वेस्ट आदि उपलब्ध नहीं करा रहा है। यह सेफ्टी उपकरण एस एंड टी मज़दूरों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं और इससे जानें बच सकती हैं। इसके अलावा, नए उपकरणों के रखरखाव और मरम्मत के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है।

एस एंड टी मज़दूरों को अक्सर कर्मचारियों की कमी के कारण रख-रखाव, मरम्मत या गश्त के लिए अकेले भेजा जाता है। इससे इन मज़दूरों को बहुत जोखिम उठाना पड़ता है। भारी उपकरणों का उपयोग करते हुए तनावपूर्ण परिस्थितियों में अकेले काम करने के परिणामस्वरूप मज़दूर आने वाली ट्रेन के संकेत नहीं देख पाते हैं। इसकी वजह से पिछले कुछ वर्षों में कई बार दुर्घटनाएं हुई हैं। विभिन्न ज़ोनों में विभिन्न रेलवे यूनियनों ने देशभर में एस एंड टी विभागों में रिक्त पदों को भरने की मांग उठाई है ताकि मज़दूरों को समूहों में काम करने के लिए भेजा जा सके या कम से कम दो मज़दूरों को साथ में भेजा जा सके। ये मांगें अधिकांशतः पूरी नहीं की गई हैं।

सही चिन्हों और प्रतीकों को स्पष्ट तरह से चित्रित करने का कार्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, फिर भी चित्रकारों जैसे पदों को आउटसोर्स किया जाता है। यह इस बात का एक और उदाहरण है कि रेलवे में विभिन्न विभागों की आउटसोर्सिंग, ठेकाकरण और पूर्ण निजीकरण किस तरह से मज़दूरों और यात्रियों की सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।

हरेक कुछ दिन के बाद में एस एंड टी मज़दूरों के ड्यूटी पर रहते हुए कुचले जाने की ख़बरें आती रहती हैं। इस साल की शुरुआत में, देशभर में छह एस एंड टी मज़दूर सिर्फ़ 16 दिनों में रन ओवर (चलती गाड़ी से मौत) के शिकार हो गए थे।

कौन दोषी है और किसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है?

भारतीय रेल के एस एंड टी मज़दूरों की स्थिति हमारे देश के अन्य श्रेणी के रेलवे मज़दूरों जैसी ही है। हर जगह कहानी एक जैसी है – पदों को समाप्त करना, बड़ी संख्या में खाली पद, रेलवे की नौकरी करने वालों पर अत्यधिक काम का बोझ, मज़दूरों और उनके परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव। वर्षों से कोई भर्ती नहीं हुई है, जबकि हर साल लाखों युवा परीक्षा देते हैं। रेलवे को सुचारू और सुरक्षित रूप से चलाने के लिए आवश्यक हजारों पद रिक्त हैं।

दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या इसका अपरिहार्य परिणाम है, जिसके साथ जान-माल का नुकसान भी होता है। जब भी ऐसा होता है, तो अधिकारी एस एंड टी कर्मचारियों, रेल चालकों, स्टेशन मास्टरों आदि के बीच बलि का बकरा ढूंढ़ लेते हैं। इन्हें कड़ी सज़ा दी जाती है, जबकि अधिकारी, जिन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, बेख़ौफ घूमते रहते हैं।

हालांकि विभिन्न यूनियनें और एसोसिएशनें उनके काम करने की स्थिति में सुधार के लिए मांग उठाती रही हैं, लेकिन सरकारें इस पर ध्यान नहीं देती हैं। जब मज़दूरों का संघर्ष तीव्र हो जाता है, तो रेलवे अधिकारी ”उनकी शिकायतों पर विचार करने के लिए“ कुछ समितियां नियुक्त करते हैं। अक्सर ये समितियां संघर्ष को शांत करने के लिए बनाई जाती हैं। उन्हें अपनी रिपोर्ट देने में सालों लग जाते हैं। उसके बाद भी, की गई सिफ़ारिशों को शायद ही कभी लागू किया जाता है।

क्या किया जाना चाहिए?

रेल मज़दूरों को यह समझने की ज़रूरत है कि देश की जीवन रेखा के कर्मचारी होने के नाते, उनके पास बहुत बड़ी ताक़त की क्षमता है।

अभी एकता में कमी के कारण उनकी ताक़त बहुत कम हो गई है। इस एकता को बनाने की ज़रूरत है। इस दिशा में क़दम उठाने के लिए, जब भी रेल मज़दूरों का कोई तबका अपने अधिकारों और न्यायोचित मांगों के लिए संघर्ष कर रहा हो, तो सभी भारतीय रेल के मज़दूरों को यूनियन और पार्टी संबद्धता तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों से आने वाली बाधाओं को पार करते हुए एकजुट होकर उनका समर्थन करने की आवश्यकता है।

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