सभी कृषि उत्पादों के लिए क़ानूनी तौर पर गारंटीकृत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) उन प्रमुख मांगों में से एक है जिसके लिए किसान यूनियनें पिछले कई सालों से आंदोलन कर रही हैं। वे कई तरह से आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें उनके एक नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का पंजाब और हरियाणा के बीच खनौरी बॉर्डर पर अनिश्चितकालीन अनशन भी शामिल है। वे लगभग 50 दिनों से अनशन पर हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है। वह किसान यूनियन के नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित करने से भी इनकार कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट पंजाब सरकार को अनशन कर रहे किसान नेता को अस्पताल में भर्ती कराने के आदेश जारी कर रहा है। आंदोलनकारी किसानों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब तक केंद्र सरकार क़ानूनी तौर पर गारंटीकृत एम.एस.पी. की उनकी मांग को स्वीकार नहीं करती, तब तक वे अपना आंदोलन नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा है कि वे अपने नेता, जो अनशन पर हैं, के लिए चिकित्सा सहायता स्वीकार करने के लिए तैयार हैं बशर्ते केंद्र सरकार किसानों को उनकी मांगों पर बातचीत के लिए आमंत्रित करे।
सैकड़ों किसान यूनियनों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कथित तौर पर कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि उनकी मांग नीति परिवर्तन की है (हिन्दोस्तान टाइम्स, 2 जनवरी, 2025)। नीतिगत मुद्दे पर बात करने के लिए कोई अदालत नहीं, बल्कि केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय न केवल किसान यूनियनों के नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित करने से इनकार कर रहा है बल्कि जले पर नमक छिड़कते हुए इसने “कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा” का मसौदा प्रकाशित किया है, जो 35 पृष्ठ का दस्तावेज़ है जिसमें एम.एस.पी. का कोई उल्लेख नहीं है। मसौदा नीति रूपरेखा में कृषि विपणन में निजी कंपनियों की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए सभी प्रस्तावित उपाय शामिल हैं, जो दिसंबर 2021 में निरस्त किए गए तीन किसान-विरोधी कृषि क़ानूनों का हिस्सा थे।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सितंबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ग़ौर करने के लिए एक समिति नियुक्त की थी। उस समिति ने सिफ़ारिश की थी: “वे (किसान) एम.एस.पी. और क़र्ज़ माफ़ी के लाभ के हक़दार हैं क्योंकि पंजाब में किसानों पर 73,000 करोड़ रुपये से अधिक का संस्थागत क़र्ज़ है और हरियाणा में यह 76,000 करोड़ रुपये से अधिक है। पंजाब में क़र्ज़ के कारण हज़ारों लोगों ने आत्महत्यायें की हैं।”
यह भी ध्यान देने योग्य है कि कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसद की स्थायी समिति ने दिसंबर 2024 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें किसानों के लिए वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्यकारी एम.एस.पी. के कार्यान्वयन की सिफ़ारिश की गई थी। इसने इस बात पर ज़ोर दिया था कि “एम.एस.पी. देना खाद्यान्न उत्पादन को स्थिर करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का समर्थन करने के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों को पूरा करता है।”
क़ानूनी रूप से गारंटीकृत एम.एस.पी. के लिए किसानों की मांग पूरी तरह से जायज़ है। सरकार केवल इसलिए इस मांग को पूरा करने से इनकार कर रही है क्योंकि यह मांग इजारेदार पूंजीपतियों की कृषि व्यापार पर हावी होने और कृषि उपज के उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों की क़ीमत पर अधिकतम लाभ कमाने की योजनाओं के ख़िलाफ़ है।