सीरिया में अमरीका द्वारा समर्थित शासन-परिवर्तन

सीरिया में असद सरकार का पतन किसी जन-विद्रोह का नतीजा नहीं है, जैसा कि पश्चिमी साम्राज्यवादी मीडिया में दिखाया जा रहा है। यह शासन-परिवर्तन, अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा समर्थित सशस्त्र-गिरोहों द्वारा लाया गया है। यह सबको मालूम है कि अमरीका और इज़रायल की ख़ुफिया एजेंसियां, सीआईए और मोसाद, सीरिया में कई तथाकथित विद्रोही-गिरोहों को हथियार, प्रशिक्षण और भारी मात्रा में धन मुहैया कराती रही हैं, जिनमें हयात-तहरीर-अल-शाम नामक गिरोह भी शामिल है।

अमरीका ने सीरिया पर हवाई हमले किए हैं और लगभग 2,000 सैनिकों के साथ सीरिया के तेल-उत्पादक क्षेत्रों पर अपना क़ब्ज़ा जारी रखा है। अमरीकी सैनिक, सीरिया के अन्न भंडार कहे जाने वाले गेहूं उत्पादक क्षेत्रों पर भी क़ब्ज़ा कर रहे हैं। उन्होंने कोबानी शहर में, अपना एक सैन्य अड्डा बनाना शुरू कर दिया है।

इज़रायल, सीरिया पर बेरहमी से बमबारी कर रहा है। इसने न केवल गोलन हाइट्स पर क़ब्ज़ा किया है, बल्कि दक्षिणी सीरिया में ज़मीन के एक बड़े हिस्से पर भी क़ब्ज़ा कर लिया है। अमरीका के समर्थन के तहत, इज़रायल फ़िलिस्तीन, लेबनान और सीरिया को बर्बाद करके और वहां के समीपवर्ती अरब देशों को, अपनी योजनाओं का पालन करने के लिए मजबूर करके, इस क्षेत्र को “ग्रेटर इज़रायल” में बदलने का प्रयास कर रहा है।

तुर्की ने अपने सैनिकों को उस इलाके में भेज दिया है जिसे पहले उत्तर में बफर ज़ोन माना जाता था।

सीरिया-राष्ट्र को तबाह किया जा रहा है और इस देश को अमरीका, इज़रायल और अन्य बाहरी हमलावरों द्वारा आपस में बांटा जा रहा है।

अमरीकी साम्राज्यवादियों ने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के तेल-समृद्ध क्षेत्रों में, सात देशों को बर्बाद करने की योजना, 2001 से ही बनाई हुई है – अर्थात इराक, लीबिया, लेबनान, सीरिया, सोमालिया, सूडान और अंत में ईरान को बर्बाद करना। यह बात, 2007 में पूर्व-अमरीकी जनरल वेस्ले क्लार्क के एक साक्षात्कार के दौरान सामने आई थी। इराक पर हमला, 2003 में हुआ था और सोमालिया पर बमबारी 2007 में शुरू हुई थी। 2008 में, अमरीका और उसके सहयोगियों ने तथाकथित “अरब स्प्रिंग” की घटनाओं की योजना बनाई, जिसके तहत, ट्यूनीशिया और मिस्र में सरकारों को गिराने के लिए सार्वजनिक प्रदर्शन आयोजित किए गए। 2015 से 2019 के दौरान, लीबिया को तबाह किया गया।

सीरिया में, असद सरकार को गिराने के अमरीकी प्रयास 2011 से चल रहे हैं, जिसमें सीआईए, हजारों सशस्त्र लड़ाकुओं को प्रशिक्षण और हथियार देता आ रहा है। 2015 में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब रूस ने असद सरकार को हवाई-समर्थन दिया, जिससे असद-सरकार को देश के एक बड़े हिस्से पर वापस क़ब्ज़ा करने में मदद मिली। अमरीका और उसके सहयोगियों ने सीरिया पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर, उसे गंभीर क्षति पहुंचाना जारी रखा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई और वहां की जनता के लिए बहुत ही मुश्किल हालतें पैदा हो गईं, जैसा कि 2022 में संयुक्त राष्ट्र के विशेष-प्रतिवेदक की रिपोर्ट से प्रमाणित होता है।

सीरिया, इतने लंबे समय से अमरीकी आर्थिक प्रतिबंधों और बाहरी आक्रमण का निशाना रहा है जिसका ही नतीजा है कि उसका बुनियादी ढांचा काफी हद तक बर्बाद हो चुका है। सीरिया के लोग बहुत ग़रीब हो चुके हैं। लीबिया की तरह, सीरिया में भी अमरीका द्वारा शासन-परिवर्तन करने की आपराधिक योजनाओं से पहले, सीरिया के लोगों का जीवन स्तर इस इलाके के देशों में सबसे ऊंचे जीवन स्तरों में गिना जाता था।

अमरीकी साम्राज्यवाद के प्रवक्ता दावा करते हैं कि वे “सीरियाई नेतृत्व और सीरियाई लोगों द्वारा स्वयं लाये जाने वाले राजनीतिक परिवर्तन” का समर्थन करते हैं। यह एक सरासर सफेद झूठ है। अमरीकी साम्राज्यवादी सीरियाई लोगों या किसी अन्य राष्ट्र या लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का सम्मान कतई नहीं करते हैं।

सीरिया में अमरीका द्वारा समर्थित शासन-परिवर्तन के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य, ईरान और उन सभी लोगों की स्थिति को कमज़ोर करना है जो फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ जनसंहारक-युद्ध का विरोध कर रहे हैं। अरब देशों को कई छोटे कमज़ोर राज्यों में विभाजित करने की अमरीकी साम्राज्यवादियों की योजना का ही यह एक हिस्सा है – उनकी योजना के अनुसार, ऐसे कमज़ोर राज्य, इज़रायल के क्षेत्रीय-आधिपत्य के आगे झुक जाएंगे।

अमरीका, तथाकथित आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध के नाम पर, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में अपनी सभी विनाशकारी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। परन्तु, अब तक उपलब्ध सभी तथ्यों ने इस हक़ीक़त को उजागर कर दिया है कि अमरीकी-साम्राज्यवादी आतंकवादी गिरोहों के सबसे बड़े प्रायोजक हैं। उन्होंने अन्य देशों में क्रूरतापूर्वक हस्तक्षेप करने, गृहयुद्ध को भड़काने और शासन-परिवर्तन करने के लिए, ऐसे कई गिरोहों को हथियार और धन मुहैया कराया है। वे अपने संकीर्ण-हितों के अनुरूप, मनमाने ढंग से कुछ गिरोहों को आतंकवादी और अन्य को “विद्रोही समूहों” के रूप में पेश करते हैं। यहां तक कि वे यह भी दावा करते हैं कि जिस गिरोह को उन्होंने पहले आतंकवादी करार दिया था, उसने अब अपना चरित्र बदल लिया है और वह स्वतंत्रता-सेनानी बन गया है।

संयुक्त राष्ट्र के अमरीकी प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद से मांग की है कि सीरिया में सभी पक्षों को “अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का पालन करना चाहिए”। इस हक़ीक़त को देखते हुए कि अमरीकी सैनिक, अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन करते हुए, सीरिया पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा कर रहे हैं और अमरीका, गाज़ा में जारी जनसंहार का समर्थन कर रहा है, जो कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी देशों द्वारा बनाए गए हर क़ानून के सरासर ख़िलाफ़ है, यह वक्तव्य बिल्कुल भी विश्वसनीय नहीं है।

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