महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव और हिंसा को ख़त्म करने के लिए पूंजीवाद को ख़त्म करना होगा

निर्भया बलात्कार और हत्याकांड की दर्दनाक वारदात, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था को इस साल 16 दिसंबर को 12 साल पूरे हो गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी तंत्र बनाने और आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार तथा राज्य और उसकी पुलिस की जवाबदेही तय करने की मांग को लेकर हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर आए थे। सरकार ने जनता के गुस्से को देखते हुए एक समिति गठित की जिसने महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों से निपटने के लिए विभिन्न पुलिस और न्यायिक सुधारों के साथ-साथ, एक संस्थागत तंत्र बनाने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, 12 साल बाद भी महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं।

हाल ही में 9 अगस्त, 2024 को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक युवा महिला डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या ने पूरे देश के लोगों को फिर से, सड़कों पर ला खड़ा किया है। एक प्रमुख मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ऐसा अपराध भी हो सकता है, इस हक़ीक़त ने हमारे देश के लोगों की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।

महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की वास्तविक दर प्रकाशित आंकड़ों से कहीं अधिक है, क्योंकि हम सब जानते हैं कि महिलाओं को एफ.आई.आर. दर्ज़ कराने में भी, बड़ी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जांच से लेकर सज़ा मिलने तक (अगर ऐसा संभव हो पाता है), पीड़िता को हर क़दम पर अपमान और बेईज़्ज़ती सहनी पड़ती है। पुलिस, अदालत और राज्य की सभी एजेंसियों द्वारा पीड़िता को ही, उसके साथ हुए अपराध के लिए ज़िम्मेदार बताने की पूरी कोशिश की जाती है।

2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार; 2018 में जम्मू और कश्मीर के कठुआ में एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या; 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक युवा दलित महिला के साथ क्रूर सामूहिक बलात्कार और हत्या और उसके बाद अदालत द्वारा अधिकांश आरोपियों को बरी कर दिया जाना; नवंबर 2024 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक नाबालिग के साथ बलात्कार; ये सब हाल ही में सामने आई घटनायें हैं। इस तरह के लगातार किये जा रहे जुर्मों के कुछ उदाहरण मात्र हैं। जबकि यह सूची अंतहीन है।

ओलंपिक पदक विजेताओं और राष्ट्रमंडल चैंपियन सहित प्रसिद्ध महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यू.एफ.आई.) के प्रमुख और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह और उसके सहयोगियों द्वारा यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कई महीनों तक नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। विरोध स्थल से जबरन हटाये जाने से पहले उन्हें पुलिस और अधिकारियों द्वारा धमकियों, डराने-धमकाने और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। अपराधियों को अभी तक सज़ा नहीं मिली है।

मई 2023 से मणिपुर में राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा की सबसे बुरी शिकार महिलाएं रही हैं। जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों लोगों की जानें चली गईं। कई महिलाओं के साथ बलात्कार हुये और बहुत से लोगों को चोटें आईं। हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए और लोगों के घरों और संपत्तियों को भारी नुक़सान हुआ है। राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के हर मामले में महिलाएं इन अपराधों की शिकार बनती हैं।

सरकारी अस्पतालों और प्रतिष्ठानों में, ठेके पर काम करने वाली महिलाओं को अपनी नौकरी बचाने के लिए नियमित रूप से यौन उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। हक़ीक़त तो यह है कि महिलाएं सभी क्षेत्रों और नौकरियों में इन हमलों की शिकार बनने के ख़तरे में रहती हैं। 19 अगस्त, 2024 को जारी हेमा समिति की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के यौन शोषण, भेदभाव, नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग, वेतन-असमानता और अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों की भयावह कहानियों का खुलासा किया।

न्यायपालिका में भी, महिलाएं यौन उत्पीड़न और भेदभाव की शिकार हैं। दिसंबर 2023 में, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की एक महिला न्यायाधीश ने न्यायपालिका के अन्य सदस्यों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप, देश के मुख्य न्यायाधीश से अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी। दिसंबर 2024 की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले की आलोचना करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसमें एक महिला सिविल जज को, कोर्ट में दाखिल मामलों के कम निपटान के कथित आधार पर बर्ख़ास्त कर दिया गया था, जबकि गर्भपात के कारण वह महिला न्यायाधीश शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ा में थी, और इस तथ्य की क्रूरता से अनदेखी की गई थी।

देशभर में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराधों से लोगों में आक्रोश है। महिला, मज़दूर, किसान, युवा और छात्र, सभी व्यवसायों और सेवाओं में कार्यरत महिलाएं पुरुषों के साथ मिलकर, देश के सभी जुझारू विरोध प्रदर्शनों में अपना गुस्सा जाहिर कर रही हैं। वे मांग कर रही हैं कि राज्य और उसके अधिकारी कार्यस्थल, सार्वजनिक परिवहन, सार्वजनिक स्थानों और अपने घरों और पड़ोस में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें। प्रदर्शनकारी महिलाएं और पुरुष मांग कर रहे हैं कि ऐसे अपराधियों को, ख़ासकर सत्ता और अधिकार वाले पदों पर बैठे लोगों को, जो इस भेदभाव और हिंसा को अंजाम देने और उसे जारी रखने के लिए ज़िम्मेदार हैं, राज्य, सख़्त से सख़्त सज़ा दे।

केंद्र सरकार ने 1 जुलाई, 2024 को पहले के आपराधिक क़ानूनों की जगह तीन नए आपराधिक कोड पेश किए हैं। भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराधों पर एक नया अध्याय जोड़ा गया है, जिसमें अन्य मुद्दों के अलावा, एक नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मौत की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान शामिल है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने नए क़ानून में महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए “जीरो टॉलरेंस” का दावा किया है।

हालांकि, हक़ीक़त में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा और अपराध की बार-बार होने वाली ये सब घटनाएं दर्शाती हैं कि महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन व्यवस्थागत है। महिलाओं के साथ लगातार जारी भेदभाव और उत्पीड़न का मूल कारण, मौजूदा आर्थिक व्यवस्था और मौजूदा राज्य की प्रकृति में निहित है।

पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था, मेहनतकश बहुसंख्यकों के अधिकतम शोषण के माध्यम से, कुछ अमीर अल्पसंख्यकों के लिये अधिकतम निजी मुनाफे़ सुनिश्चित करने के लिए होती है। हिन्दोस्तान में पूंजीवाद, सामंती, जातिगत और लिंग-आधारित भेदभाव और उत्पीड़न को क़ायम रखते हुए विकसित हुआ है। समाज में महिलाओं की निचली स्थिति उनके अति-शोषण के माध्यम से पूंजीवादी मुनाफे़ को अधिकतम करने में मदद करती है।

मौजूदा राज्य, पूंजीवादी व्यवस्था और पूंजीपति वर्ग के शासन की रक्षा करता है और उसे क़ायम रखता है। पूंजीपति वर्ग की राजनीतिक पार्टियां और राज्य की सभी संस्थाएं, जिनमें कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका शामिल हैं, महिलाओं के उत्पीड़न और भेदभाव को क़ायम रखती हैं।

हमें इंसाफ़ की हिफ़ाज़त के लिए और गुनहगारों को सज़ा दिलाने, कार्यस्थल पर सुरक्षा और महिलाओं पर बढ़ते अपराधों के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को तेज़ करना होगा। हमें, उत्पीड़ित महिलाओं और पुरुषों के जनसमूह को, अपनी एकता और आत्मरक्षा के लिए बनाये गए अपने संगठनों को और मजबूत करना होगा। हमें एक नए समाज की बुनियाद रखने के उद्देश्य से अपने संघर्षों को आगे बढ़ाना होगा, एक ऐसे समाज के लिए, जिसमें सभी कामकाजी-महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों और उनके सम्मान की गारंटी होगी। इनका उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी पद पर क्यों न हो, कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी।

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