इस वर्ष 6 दिसंबर को अयोध्या में 16वीं शताब्दी के राष्ट्रीय स्मारक बाबरी मस्जिद को कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार की देखरेख में क्रूरतापूर्वक ढहाए जाने के 32 वर्ष पूरे हो गए। इस अवसर पर लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई वर्षों से एक साथ काम कर रहे कई संगठन जंतर-मंतर पर एक जनसभा में एकत्रित हुए और संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए विध्वंस की निंदा की।
“लोगों को बांटने की राजनीति मुर्दाबाद!”, “आइए हम अपनी एकता को मजबूत करने के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएं!”, “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक मुर्दाबाद!”, “गुनहगारों को सज़ा दो!”, “शांति और एकजुटता के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएं!” – ये और कई अन्य नारे सभा स्थल के चारों ओर लगे बैनरों पर लिखे हुए थे।
विरोध प्रदर्शन का आयोजन लोक राज संगठन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, जमात-ए-इस्लामी-हिंद, लोक पक्ष, सिटिज़न्स फॉर डेमोक्रेसी, स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन, मज़दूर एकता कमेटी, पुरोगामी महिला संगठन, सिख फोरम, सीपीआई (एम-एल) – न्यू प्रोलेतेरियन, यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट ने संयुक्त रूप से किया। भाग लेने वाले संगठनों के प्रतिनिधियों ने राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और लोगों के सांप्रदायिक बंटवारे की राजनीति को ख़त्म करने और संघर्ष को आगे बढ़ाने पर अपने विचार रखे।
प्रदर्शन को संबोधित करने वालों में लोक राज संगठन से अध्यक्ष एस. राघवन, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया से डा. रईस उद्दीन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया से मोहम्मद शफी, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी से प्रकाश राव, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से डा. एसक्यूआर इलियास, जमात-ए-इस्लामी-हिंद से मोहम्मद सलीम इंजीनियर, लोक पक्ष से रविंद्र सिंह यादव, सिटिज़न्स फॉर डेमोक्रेसी से एनडी पंचोली और सीपीआई (एम-एल) – न्यू प्रोलेतेरियन से शियोमंगल सिद्धांतकर शामिल थे। इस अवसर पर यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट के एडवोकेट शाहिद अली, सिख फोरम के लाली साहनी, अल-हिंद पार्टी के डॉ ओंकार नाथ कटियार के साथ-साथ पुरोगामी महिला संगठन, मज़दूर एकता कमेटी, वूमन इंडिया मूवमेंट, हिंद नौजवान एकता सभा के कार्यकर्ता भी मौजूद थे।
वक्ताओं ने याद दिलाया कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को कार सेवकों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि मस्जिद को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया जाएगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि उनके अधीन पुलिस बल मस्जिद के विध्वंस को रोकने के लिए हस्तक्षेप न करें। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य नेताओं ने खुले तौर पर इसके विध्वंस को प्रोत्साहित किया।
सभी तथ्य बताते हैं कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक अचानक से होने वाला कार्य नहीं था, बल्कि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध था, जिसे वक्ताओं ने कई उदाहरणों के साथ बताया।
लिब्रहान आयोग, जिसे केंद्र सरकार ने विध्वंस के 10 दिन बाद गठित किया था, जिसने 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की! रिपोर्ट में 68 लोगों को विध्वंस की योजना बनाने और आयोजन करने का दोषी ठहराया गया, जिसमें भाजपा के कई नेता भी शामिल थे। हालांकि, सितंबर 2020 में, एक विशेष सीबीआई अदालत ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए उन सभी को बरी कर दिया। यह घटना नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के कुछ समय बाद हुई जिसमें कहा गया था कि जिस ज़मीन पर मस्जिद खड़ी थी, वहां राम मंदिर बनाया जाना चाहिए, हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि 16वीं शताब्दी में उस जगह पर मंदिर को नष्ट किया गया था। इस फ़ैसले के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद को नष्ट करने के आपराधिक कृत्य को उचित ठहराया।
मुंबई, सूरत और अन्य जगहों पर विध्वंस के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे। हालांकि श्रीकृष्ण जांच आयोग ने पुष्टि की थी कि भाजपा, कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के नेता सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में शामिल थे, लेकिन उनमें से किसी को भी सज़ा नहीं दी गई।
यह सच्चाई कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा में केंद्र और संबंधित राज्यों में सरकारों का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दल सक्रिय रूप से शामिल थे, और इन दोषी दलों के किसी भी नेता को दंडित करने में न्यायपालिका की विफलता इस बात की पुष्टि करती है कि ये सभी आपराधिक कृत्य शासक वर्ग की एक सोची-समझी योजना का हिस्सा थे।
जिस स्थान पर मस्जिद खड़ी थी, वहां राम मंदिर बनाने के अभियान का राजनीतिक उद्देश्य लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटना था, जबकि मेहनतकश लोगों का जनसमूह अपनी आजीविका और अधिकारों पर हमलों के विरोध में एकजुट हो रहा था।
वक्ताओं ने बताया कि पिछले कई वर्षों में, मुसलमानों और सिखों को लगातार सरकारों ने देश के लिए ख़तरे के रूप में पेश किया है। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद, और अन्य ऐतिहासिक स्मारकों के बारे में बिना किसी आधार के दावे किए जा रहे हैं और सांप्रदायिक तनाव को भड़काया जा रहा है। सभी स्तरों की अदालतें इस घृणित गतिविधि में पूरी तरह से सहयोग कर रही हैं। हाल ही में, उत्तर प्रदेश के संभल शहर में 16वीं सदी की एक मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक टीम यह पता लगाने के लिए गई कि सदियों पहले उस स्थान पर कोई मंदिर था या नहीं! अदालत द्वारा प्रायोजित इस जांच के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस द्वारा गोलीबारी की गई। इसमें कम से कम चार लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। इसके साथ ही, केंद्र की भाजपा सरकार के पूर्ण समर्थन से सांप्रदायिक ताक़तों ने राजस्थान की एक अदालत में एक मामला दायर कर ऐतिहासिक अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे मंदिर होने की जांच की मांग की है।
वक्ताओं ने एकजुट होकर कहा कि राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा न केवल मुसलमानों पर हमला है, बल्कि हमारे देश के सभी लोगों पर हमला है। उन्होंने मांग की कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस और 1992-93 में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा दी जाए। उन्होंने मांग की कि समाज के प्रत्येक सदस्य के ज़मीर के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए और उसे सार्वभौमिक और अलंघनीय अधिकार के रूप में सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। उन्होंने बंटवारे की राजनीति को ख़त्म करने और एक ऐसे समाज के लिए संघर्ष जारी रखने की शपथ ली जिसमें सभी के अधिकारों की रक्षा की जाएगी।