मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में 7 दिसंबर, 2024 को बिजली के निजीकरण के विरोध में राज्यभर में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया गया। यह प्रदर्शन विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की अगुवाई में हुआ। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के सभी निगम मुख्यालयों, उपकेंद्रों, उत्पादन इकाइयों पर विरोध सभाएं, प्रदर्शन व जुलूस आयोजित किये गये।
विरोध प्रदर्शन के ज़रिए प्रदेशभर के बिजली मज़दूरों ने सरकार से मांग की कि बिजली के निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लिया जाये। बिजली मज़दूरों का कहना है कि बिजली के निजीकरण के संबंध में न तो मज़दूरों से और न ही उपभोक्ताओं से कोई राय ली गई है। विरोध प्रदर्शन में संकल्प लिया गया कि निजीकरण पूरी तरह अस्वीकार्य है। बिजली का निजीकरण न तो प्रदेश की आम जनता के हित में है और न ही मज़दूरों के हित में, इसलिये इसका डटकर विरोध किया जाएगा।
विदित है कि उत्तर प्रदेश की सरकार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 3 भाग में और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को 2 भाग में बांटकर निजी कंपनियों को देने जा रही है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के अनुसार, घाटे के लिए सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी प्रबन्धन, याने कि सरकार की होती है। लेकिन सरकार घाटे की ज़िम्मेदारी मज़दूरों पर थोप कर अरबों-खरबों रुपये की जन-संपत्ति निजी पूंजीपति घरानों को सौंपने जा रही है।
समिति के अनुसार उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन द्वारा जारी किये गये घाटे के आंकड़े भ्रामक व झूठ का पुलिन्दा हैं। पावर कारपोरेशन प्रबन्धन के अनुसार बिजली राजस्व बकाये की धनराशि 1,15,825 करोड़ रुपये है। जिसमें दक्षिणांचल का 24,947 करोड़ रुपये और पूर्वांचल का 40,962 करोड़ रुपये सम्मिलित है। इस बकाया राशि का बड़ा हिस्सा सरकार व बड़े कारोबारियों का है। यदि यह राजस्व वसूल लिया जाये तो पॉवर कारपोरेशन को 5,825 करोड़ का मुनाफ़ा होगा। साल 2010 में जब टोरेंट पॉवर को आगरा का फ्रेंचाईज़ दिया गया था, तब आगरा में राजस्व वसूली का 2,200 करोड़ रुपये बकाया था। आज 14 साल गुजर जाने के बाद भी टोरेंट कम्पनी ने इस बकाये की धनराशि का एक रुपये भी पॉवर कारपोरेशन को नहीं दिया है। अब दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम, जिन्हें बेचा जा रहा है, उनका बकाया लगभग 66,000 करोड़ रुपये है। निजीकरण के बाद यह 66,000 करोड़ रुपये डूब जायेगा और निजी कंपनियों की जेब में चला जायेगा।
मज़दूरों ने बताया कि सरकार यह झूठा बयान दे रही है कि निजीकरण के बाद बिना किसी की पदावनति किये और न ही किसी की छंटनी किये, पॉवर कारपोरेशन में नये पदों का सृजन किया जायेगा।
मज़दूरों ने बताया कि बिजली के निजीकरण के ज़रिए सरकार पूंजीपति घरानों की लालच को पूरा कर रही है। बिजली वितरित करने के लिए पहले से स्थापित सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का उपयोग करके और बहुत कम निवेश करके सरकार निजी कंपनियों को भारी मुनाफ़ा कमाने का मौका दे रही है। इससे प्रदेश के मज़दूरों, किसानों व ग़रीब परिवारों को भारी नुक़सान होगा।
उत्तर प्रदेश के बिजली मज़दूरों के निजीकरण के विरुद्ध चल रहे संघर्ष को पंजाब, उत्तराखंड तथा जम्मू और कश्मीर के विद्युत अभियंता यूनियनों ने समर्थन दिया है।