मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की अगुवाई में सैकड़ों अध्यापकों ने नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर 29 नवंबर, 2024 को प्रदर्शन किया। उनकी मुख्य मांग है कि सभी को गुणवत्तापूर्ण और अनिवार्य मुफ़्त समान शिक्षा मिले।
इस प्रदर्शन में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु सहित कई अन्य राज्यों से अध्यापक पहुंचे थे।
प्रदर्शन में शामिल अध्यापकों ने अपनी मांगों वाले प्लाकार्ड पकड़े हुये थे जिन पर लिखा था – ”नई शिक्षा नीति-2020 को रद्द करो!“, ”सबको मुफ़्त व अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करो!“, ”सभी अस्थाई/तदर्थ/अनुबंध/अवधि के आधार पर रखे शिक्षकों और कर्मचारियों को नियमित करो!“, ”नियमित आधार पर शिक्षण और गैर-शिक्षण के सभी पदों को भरो!“, ”स्कूलों का विलय करने पर रोक लागाएं!“, ”शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 को 12वीं कक्षा तक बढ़ाएं!“, ”एन.पी.एस./जी.पी.एस./यू.पी.एस./पी.एफ.आर.डी.ए. को निरस्त करो!“, ”सबके लिये पुरानी पेंशन बहाल करो!“ इत्यादि।
प्रदर्शन को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने बताया कि शिक्षा हर एक बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है। राज्य का कर्तव्य है कि वेह सभी को समान, गुणवत्तापूर्ण और निःशुल्क शिक्षा प्रदान करे। सरकार की नई शिक्षा नीति-2020 मज़दूरों-किसानों के बच्चों को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित कर रही है। सरकार शिक्षा क्षेत्र को बड़े सरमायदारों के लिए मुनाफ़े का स्रोत बनाना चाहती है। वह शिक्षा के बाज़ारीकरण, व्यापारीकरण को और तेज़ गति से बढ़ाना चाहती है। इसलिए बड़ी संख्या में देशभर में स्कूलों का विलय कर रही है या फिर सरकारी स्कूलों को तेज़ी से बंद कर रही है।
उन्होंने बताया कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में अध्यापकों व गैर-शिक्षण कर्मचारियों को अस्थायी या अनुबंध पर रखा जा रहा है। जब अध्यापकों का रोज़गार सुरक्षित नहीं है तो भला वे बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए शिक्षा कैसे प्रदान कर सकते हैं। यही नहीं, सरकार शिक्षकों को शिक्षण कार्य से हटाकर गैर-शिक्षण कार्यों या अपनी सरकारी योजनाओं में लगा देती है, जिसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है।
वक्ताओं ने कहा कि राज्य सरकारें दावा करती हैं कि अध्यापकों को गैर-शिक्षण कार्य में नहीं लगाया जा सकता। लेकिन असलियत में होता उल्टा है। जब अध्यापक गैर-शिक्षण कार्य से मना करता है तो सरकार और प्रशासन अध्यापकों को उत्पीड़ित करते हैं।
वक्ताओं ने उपस्थित लोगों को बुलावा दिया कि मज़बूत देश बनाने के लिए सभी बच्चों को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना एक अनिर्वाय शर्त है।
सभा का समापन करते हुये कहा गया कि शिक्षा को मुनाफ़े का स्रोत नहीं बनाया जा सकता। शिक्षा को किसी भी क़ीमत पर पूंजीपतियों के हवाले नहीं किया जा सकता। राज्य सभी बच्चों को अनिवार्य और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मुहैया कराने के अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकता। बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिये हम सभी को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा।