20 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गाज़ा में तत्काल, बिना-शर्त और स्थायी युद्ध विराम की मांग करने वाले एक मसौदे के प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इस मसौदे पर लाये गए प्रस्ताव को परिषद के सभी दस निर्वाचित सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से प्रायोजित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के 15 सदस्यों में से 14 ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इसमें ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अमरीका के सहयोगी भी शामिल थे। हालांकि, अमरीका ने यूएनएससी का स्थायी सदस्य होने के नाते, अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग करते हुए, प्रस्ताव को पारित होने से रोक दिया। यह बिना किसी संदेह के, इस हक़ीक़त को दर्शाता है कि इज़रायल, पूरी तरह से अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा प्रदान किए गए बिना शर्त समर्थन के बलबूते पर ही, फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ अपने क़त्लेआमकारी हमले को जारी रखने में सक्षम है।
अमरीका द्वारा, यूएनएससी के प्रस्ताव को फिर से रोकना ऐसे समय में किया गया है जब पूरी दुनिया, फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ किये जा रह बर्बर अत्याचारों से भयभीत और हैरान है और उन्हें तुरंत समाप्त करने की मांग कर रही है। गाज़ा में इज़रायली राज्य-सत्ता द्वारा लगातार किये जा रहे क्रूर गुनाहों की सीमा बयां करने के लिए कोई शब्द नहीं बचे हैं। एक साल में 44,000 से ज्यादा पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं और हजारों लोग अपने घरों, स्कूलों और अस्पतालों के मलबे में नीचे दफ़न हो गये हैं। 20 लाख से ज्यादा फ़िलिस्तीनी लोग अपने घरों से भागने के लिए मजबूर हुए हैं, जगह-जगह भटक रहे हैं क्योंकि इज़राइल ने किसी भी सुरक्षित ठिकाने का सम्मान नहीं किया। उसने भोजन, दवा और अन्य सहायता प्रदान करने के सभी रास्तों को अलग-अलग बहानों पर रोक दिया और इसके लिए बनाये गए बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जिससे इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अकाल और महामारी फैल गई है। फिर भी, अमरीकी साम्राज्यवाद, इज़राइल को पूर्ण और बिना-शर्त राजनीतिक, कूटनीतिक, सैन्य और वित्तीय सहायता प्रदान करना जारी रखे हुए है।
यह मसौदा-प्रस्ताव यूएनएससी द्वारा पिछले साल शुरू हुए जनसंहार को तत्काल, बिना शर्त और स्थायी रूप से समाप्त करने की मांग करने वाला पहला प्रस्ताव था। इसमें बंधकों की रिहाई और फ़िलिस्तीनी कैदियों की अदला-बदली की मांग की गई थी। इसमें गाज़ा के सभी हिस्सों में फ़िलिस्तीनी नागरिकों के अपने घरों और पड़ोस में लौटने के अधिकार पर ज़ोर दिया गया था। इसमें गाज़ा में रहने वाले नागरिकों के लिए बुनियादी सेवाओं की तत्काल पहुंच सुनिश्चित कराने की मांग की गई थी। इसमें गाज़ा से इज़रायली सेना की पूरी तरह वापसी की मांग की गई थी। इससे संकट के समाधान की दिशा में आगे बढ़ने का एक आधार मिल जाता। जैसा कि सुरक्षा परिषद में फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधि ने कहा: ”युद्धविराम से सब कुछ हल नहीं होता, लेकिन यह किसी भी चीज को हल करने की दिशा में पहला क़दम है।“
मतदान के बाद अपनी टिप्पणी में, फ़िलिस्तीनी प्रतिनधि ने आगे यह जानने की मांग की कि: ”क्या इज़रायल के लिए संयुक्त राष्ट्र का कोई अलग चार्टर है जो हम सभी के चार्टर से अलग है? हमें बताएं; क्या उनके लिए कोई अलग अंतरराष्ट्रीय क़ानून है और हमारे लिए कोई और अंतरराष्ट्रीय क़ानून है? क्या उन्हें मारने का अधिकार दिया गया है और हमारे पास केवल मरने का अधिकार है?“ अमरीका को दिए गए एक शक्तिशाली संदेश में उन्होंने कहा: यह मसौदा-प्रस्ताव जीवन को बहाल करने, ज़िन्दगियों को बचाने का प्रयास कर रहा है। यह कोई ख़तरनाक संदेश नहीं है। लेकिन इस प्रस्ताव का वीटो, दुनिया के लिए एक ख़तरनाक संदेश है – इज़रायल के लिए कि वह अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करना जारी रख सकता है… अत्याचारों को रोकने का प्रयास करने वाले मसौदे-प्रस्ताव को वीटो करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है। इसका कोई औचित्य है ही नहीं।”
अमरीकी साम्राज्यवाद और इस क्षेत्र में उसका एजेंट, इज़रायली राज्य, बिना-शर्त युद्ध विराम नहीं चाहते हैं, इसका कारण यह है कि वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए यह युद्ध जारी रखना चाहते हैं – यानी, फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर क़ब्ज़ा करना, फ़िलिस्तीनी लोगों के निडर-साहस को पूरी तरह से कुचलना, जिन्होंने लगभग सात दशकों से इज़रायली क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ अपना बहादुर विरोध कभी नहीं छोड़ा है, और इस क्षेत्र में किसी भी देश को धमकाना, जो उनके उद्देश्यों के ख़िलाफ़ खड़ा होने की जुर्रत करता है। इस हक़ीक़त को, लेबनान, ईरान और सीरिया को भी इस युद्ध में शामिल करने के लिए अमरीका-इज़रायल द्वारा किए जा रहे सैन्य हमले को जानबूझकर व्यापक बनाने के प्रक्रिया से देखा जा सकता है। अपनी दादागिरी को क़ायम रखने के लिए जारी यह अभियान न केवल पश्चिम एशिया के क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है।
फ़िलिस्तीन और इस क्षेत्र के अन्य देशों के ख़िलाफ़ अमरीकी-इज़रायली लुटेरों द्वारा जारी इस जालिम तबाही को तत्काल, बिना शर्त और स्थायी रूप से समाप्त करने की मांग बिल्कुल जायज़ है! मानवता के ख़िलाफ़ इस अपराध के ख़िलाफ़ दुनियाभर के लोगों की आवाज़ और भी मजबूत और अधिक बुलंद होनी चाहिए।