इज्ज़त से जीने लायक वेतन के लिये संघर्ष

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

इज्ज़त से जीने लायक वेतन के लिये संघर्ष – इस विषय पर मज़दूर एकता कमेटी ने 27 अक्तूबर, 2024 को एक सभा आयोजित की। सभा में देश के अलग-अलग प्रान्तों से, मज़दूर संगठनों व ट्रेड यूनियनों के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ, बड़ी संख्या में शिक्षक, अधिवक्ता, मज़दूर, महिला, छात्र और नौजवान शामिल हुए। अमरीका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया व कई अन्य देशों से भी कार्यकर्ताओं ने इसमें हिस्सा लिया।

मज़दूर एकता कमेटी के श्री संतोष कुमार, निर्माण मज़दूर पंचायत संगम के अध्यक्ष श्री सुभाष भटनागर, कामगार एकता कमेटी के सहसचिव श्री गिरीश, आल इंडिया फेडरेशन आफ इलेक्ट्रिीसिटी एम्पलाइज़ के राष्ट्रीय सचिव श्री कृष्ण भोयर और बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल एम्पलाइज़ यूनियन के सचिव डा. संजय कुमार ठाकुर सभा में मुख्य वक्ता थे।

मीटिंग का संचालन श्री बिरजू नायक ने किया।

मज़दूर एकता कमेटी की ओर से श्री संतोष कुमार ने अपनी बातों में कहा कि देश के मज़दूर बार-बार यह मांग करते रहे हैं कि राज्य सभी मज़दूरों के लिए जीवन जीने लायक वेतन सुनिश्चित करे। मज़दूर एक ऐसे वेतन के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिससे वे अपने परिवार सहित इज्ज़तदार जीवन जी सकें। मज़दूर सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा व पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ताकि नौकरी छूट जाने पर, बीमार पड़ने पर, विकलांग होने पर या वृद्धावस्था में उन्हें कुछ सुरक्षा मिल सके। मज़दूरों की इस मांग को सरकार सालों-सालों तक अनसुनी करती रही है।

इसी साल सितम्बर में केंद्र सरकार द्वारा अकुशल मज़दूरों के लिए घोषित न्यूनतम वेतन 20,358 रुपये प्रति माह की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए, उन्होंने चार सदस्यों वाले मज़दूर परिवार के ज़रूरी खर्चों का उदाहरण देते हुए यह समझाया कि किसी भी शहर में इस वेतन पर जीना बहुत ही मुश्किल है। बच्चों की शिक्षा, परिजनों की स्वास्थ्य सेवा आदि के लिए पैसों की हमेशा भारी कमी होती है जिसके कारण अधिकतर मज़दूर कर्ज़े में डूबते रहते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीने लायक वेतन सुनिश्चित करना देश के संविधान के नीति निदेशक तत्वों में एक है, इसलिए यह कभी किसी भी सरकर पर बाध्यकारी नहीं रहा है और बीते 76 वर्षों में इज्ज़त से जीने लायक वेतन सुनिश्चित नहीं किया गया है।

न्यूनतम वेतन तय करने के आधार को स्पष्ट करते हुए, श्री संतोष ने बताया कि सरकार न्यूनतम वेतन की गणना इस आधार पर करती है कि कम से कम कितने वेतन पर मज़दूर अगले दिन नौकरी पर आ सके और पूंजीपतियों के लिये उत्पादन कर सके।

केंद्र सरकार या राज्य सरकारों की संस्थाओं में पक्की नौकरियों पर लगे मजदूरों को छोड़कर, देश के 90 प्रतिशत मज़दूरों के लिए कोई न्यूनतम वेतन नहीं लागू होता है, यह श्री संतोष ने बहुत ही साफ़-साफ़ समझाया। उन्होंने सरकारी संस्थाओं में ही काम कर रहे ठेका मज़दूर, निजी व अनौपचारिक क्षेत्र के फैक्ट्री मज़दूर, निर्माण मज़दूर, आंगनवाड़ी कर्मी, आशा वर्कर, भोजन माता, गिग वर्कर, खेत मज़दूर, मनरेगा के मज़दूर, निजी संस्थाओं में शिक्षक, डॉक्टर व नर्स, आदि के उदाहरण दिए। इन सभी क्षेत्रों में मज़दूरों का भारी शोषण होता है। अप्रेंटिसशिप तथा इंटर्नशिप योजनाओं के ज़रिये नौजवान मज़दूरों का बेहद शोषण किया जा रहा है, जबकि उनके लिए रोज़गार की कोई गारंटी नहीं है। महिला मज़दूरों को पुरुष मज़दूरों से कम वेतन पर काम करने को मजबूर किया जाता है।

हुक्मरान पूंजीपति वर्ग ने सोच-समझकर यह सुनिश्चित किया है कि हरेक राज्य सरकार को, अपने राज्य में न्यूनतम वेतन निर्धारित करने की पूरी छूट हो। न्यूनतम वेतन को कम से कम बनाए रखने के पक्ष में प्रत्येक राज्य सरकार का यह बहाना होता है कि अगर न्यूनतम वेतन बढ़ा दिया जाता है तो राज्य का विकास नहीं होगा क्योंकि पूंजी किसी दूसरे राज्य में पलायन कर जायेगी। इसी तर्क का इस्तेमाल करते हुए, केंद्र सरकार कहती है कि देश के आर्थिक विकास के लिए विदेशी पूंजी को हिन्दोस्तान में आकर्षित करना ज़रूरी है, इसलिए हमारे मज़दूरों को अतिशोषण की हालतों को मान लेना चाहिये और कम से कम वेतन पर काम करने को तैयार रहना चाहिये।

श्री संतोष ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी क्षेत्रों के मज़दूरों के लिए, इज्ज़त से जीने लायक वेतन की मांग एक पूरी तरह जायज़ मांग है। निर्धारित न्यूनतम वेतन में वृद्धि होने से पूरे मज़दूर वर्ग के औसत वेतन में भी वृद्धि होती है। दूसरी ओर, निर्धारित न्यूनतम वेतन कम करने से पूरे मज़दूर वर्ग का औसत वेतन कम हो जाता है।

अंत में उन्होंने कहा कि मज़दूर वर्ग को जीने लायक वेतन के लिए संघर्ष को, इस उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाना होगा कि इस पूंजीवादी व्यवस्था को ख़त्म करना है। हमें पूंजीपति वर्ग के शासन की जगह पर मज़दूर-किसान की हुकूमत स्थापित करनी होगी। उत्पादन और विनिमय के प्रमुख साधनों को पूंजीपति वर्ग के हाथों से लेकर समाज के नियंत्रण में लाना होगा। मज़दूरों और किसानों का राज्य ही समाज के सभी सदस्यों की बढ़ती भौतिक और सांस्कृतिक ज़रूरतों की पूर्ती को सुनिश्चित कर सकेगा।

श्री कृष्ण भोयर ने फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट और तरह-तरह की ठेका मज़दूरी के उदाहरण देते हुए बताया कि पूंजीपतियों द्वारा मज़दूरों का अतिशोषण किया जा रहा है। सरकारी संस्थाओं व सेवाओं के तेज़ी से किये जा रहे निजीकरण के साथ, अधिक से अधिक मज़दूरों को न्यूनतम वेतन से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने इज्ज़त से जीने लायक वेतन के लिए, सभी क्षेत्रों के मज़दूरों को संगठित होकर संघर्ष करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

डा. संजय कुमार ठाकुर ने सरकारी कार्यालयों, सरकारी अस्पतालों व शिक्षा संस्थानों में बढ़ती ठेकेदारी के उदाहरण दिए, जिसके चलते, ज्यादा से ज्यादा मज़दूरों को कागज़ पर तो न्यूनतम वेतन बताया जाता है लेकिन हकीकत में उसका मात्र 50 या 60 प्रतिशत ही मिलता है। एक डॉक्टर बतौर अपने अनुभव से उन्होंने कहा कि मज़दूरों को जीने लायक वेतन न मिलने से वे और उनके परिवार कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। सभी यूनियनों और संगठनों को मिलकर सरकार पर जीने लायक वेतन देने के लिये दबाव बनाने के लिये संघर्ष करना होगा, उन्होंने ज़ोर दिया।

कामगार एकता कमेटी के सहसचिव श्री गिरीश ने बताया कि आज 21वीं सदी में हर मज़दूर के लिए केवल रोटी, कपड़ा, मकान ही नहीं बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, यातायात, ये सब जीवन की मूलभूत ज़रूरतें बन गयी हैं। इज्ज़त से जीने लायक वेतन से ये सब उपलब्ध होने चाहिये। उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों के मज़दूरों – रेल चालक, विमान चालक, फैक्ट्री मज़दूर, आदि – के अतिशोषण तथा लम्बे काम के घंटों का विवरण किया और बताया कि इनके कारण, मज़दूर तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं और कम उम्र में ही उनकी मौत हो जाती है। उन्होंने हुक्मरान पूंजीपति वर्ग के प्रवक्ताओं के तर्क – कि अगर सभी मज़दूरों को न्यूनतम वेतन दिया जाये तो सरकार के पास जन कल्याण पर खर्च करने के लिए धन नहीं होगा – का खंडन करते हुए समझाया कि देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में हुक्मरान पूंजीपति वर्ग पूरी तरह परजीवी है और मज़दूरों का यह अतिशोषण ही उनके बेशुमार धन का स्रोत है। दूसरी ओर, मज़दूर-किसान ही देश की सारी दौलत को पैदा करते हैं, इसलिए इज्ज़त से जीने लायक वेतन हमारा अधिकार है। इस अधिकार को हासिल करने के लिए हमें हुक्मरान पूंजीपति वर्ग को राज्य सत्ता से हटाकर, उसकी जगह पर, मज़दूर-किसान की हुकूमत स्थापित करनी होगी।

श्री सुभाष भटनागर ने अनेक उदाहरणों के साथ समझाया कि पूंजीपति मज़दूर को बस उतना की वेतन देता है ताकि वह किसी तरह जिंदा रहकर अगले दिन काम पर आ सके। अधिकतम फैक्ट्रियों में घोषित वेतन तो न्यूनतम वेतन दिखाया जाता है लेकिन असलियत में, मजदूरों से ठेकेदार इसका काफी बड़ा हिस्सा छीन लेते हैं। इज्ज़त से जीने लायक वेतन हमारा हक़ है और इसके लिए सभी मेहनतकशों को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा, उन्होंने कहा।

इसके बाद, सभा के कई भागीदारों ने इस अहम विषय पर अपने विचार रखे। इंडियन वर्कर्स एसोसियशन (ग्रेट-ब्रिटेन) से श्री दलविन्दर व श्री सलविन्दर ने दुनिया के अनेक देशों में जीने लायक वेतन के लिए चल रहे संघर्ष के बारे में बताया और इसे पूंजीवादी शोषण के खिलाफ़ मज़दूरों के संघर्ष का एक अहम पहलू बताया। जुझारू शिक्षक प्रो. मनभंजन ने पूंजीवादी पार्टियों के झूठे वादों का पर्दाफ़ाश करने और पूंजीवादी सत्ता का परिवर्तन करने का आह्वान किया। मारुती के मज़दूरों को झूठे आरोपों के आधार पर जेल में बंद किये जाने व प्रताड़ित किये जाने के खिलाफ़, 2004 से चल रहे संघर्ष के बहादुर नेता खुशीराम ने इस संघर्ष के बारे में सभी को अवगत कराया। लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष श्री हनुमान प्रसाद शर्मा ने मज़दूरों और किसानों की एकता को मज़बूत करते हुए जीने लायक वेतन के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। एक युवा महिला कर्मी ने अपने काम की हालतों का वर्णन करते हुए, कार्यस्थल पर मज़दूरों और खास कर महिला कर्मियों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

अंत में, श्री बिरजू नायक ने मजदूरों, किसानों व सभी मेहनतकशों की एकता को मज़बूत करने का आह्वान किया। इज्ज़त से जीने लायक वेतन के लिए संघर्ष को पूंजीवादी शोषण की व्यवस्था को ख़त्म करने तथा उसकी जगह पर मज़दूर-किसान की हुकूमत स्थापित करने के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाना होगा, इन बातों के साथ उन्होंने सभा का समापन किया।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *