हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की मुंबई इलाका समिति का बयान, 12 नवंबर, 2024
महाराष्ट्र की 15वीं विधानसभा की 288 सीटों के लिए 20 नवंबर 2024 को चुनाव होंगे। महाराष्ट्र के लोगों से दो ‘महागठबंधनों’ में से किसी एक को चुनने के लिए कहा जा रहा है। एक तरफ़ भाजपा और शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक-एक गुट से मिलकर बनी ‘महायुति’ है। दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी, शिवसेना और एनसीपी के दूसरे गुटों से मिलकर बनी ‘महा विकास अघाड़ी’ है। इन पार्टियों के नेता चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने या एक गठबंधन से दूसरे गठबंधन में जाने में व्यस्त हैं। इससे पता चलता है कि इन पार्टियों के बीच कोई बुनियादी अंतर नहीं है।
पिछले तीन दशकों से इस राज्य में गठबंधन सरकारें ही चल रही हैं। भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने 1995 से 1999 और 2014 से 2019 तक शासन किया है। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन ने 1999 से 2014 के बीच 15 साल सरकार को चलाया। सभी जानते हैं कि 2019 के चुनावों के तुरंत बाद क्या हुआ और भाजपा, कांग्रेस पार्टी, शिवसेना और एनसीपी के बीच झगड़े किस हद तक बढ़ गये, जिसके परिणामस्वरूप पहले तो 24 घंटों के भीतर सरकार बदल गई और शिवसेना और एनसीपी भी टूट गई। 2019 से 2024 तक पहले महा विकास अघाड़ी और फिर महायुति गठबंधन ने सरकार चलाई।
महाराष्ट्र के लोगों के जीवन के अनुभव ने उन्हें दिखा दिया है कि चाहे कोई भी गठबंधन सत्ता में आए, वह राज्य के मज़दूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों की परिस्थिति को बदलने वाला नहीं है। चाहे किसी भी पार्टी या गठबंधन ने सरकार बनाई हो, कई दशकों से हमने देखा है कि इस राज्य में किसानों की आत्महत्या की संख्या सबसे अधिक रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में भारी कमी है। श्रमबल का ठेकाकरण बढ़ता जा रहा है और युवा बढ़ती बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर हमले जारी हैं। हर सरकार ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बिजली जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के निजीकरण को बढ़ावा दिया है। फासीवादी क़ानून जारी हैं। सरकार बनाने वाले दोनों गठबंधनों ने जन-विरोधी, मज़दूर-विरोधी केंद्रीय क़ानूनों जैसे यूएपीए (गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) और महाराष्ट्र के विशिष्ट क़ानूनों जैसे मेस्मा (महाराष्ट्र आवश्यक सेवा रख-रखाव अधिनियम), मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) आदि का उपयोग जारी रखा है।
ये पार्टियां किसके लिए काम करती हैं?
ये पार्टियां लोगों के लिए काम करने का दावा करती हैं लेकिन वास्तव में वे सबसे बड़े पूंजीपतियों और खुद की अमीरी को बढ़ाने के लिए काम करती हैं।
देश को कैसे चलाया जाना चाहिए, उसकी नीतियां, क़ानून और अर्थव्यवस्था की दिशा क्या होनी चाहिए, यह तय करने में मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों की कोई भूमिका नहीं है। अर्थव्यवस्था पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़े को अधिकतम करने की दिशा में निर्देशित है।
महाराष्ट्र में जनता के कड़े विरोध के बावजूद, पूंजीपतियों के फ़ायदे के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र, जैतापुर परमाणु संयंत्र, बारसू रिफाइनरी, नानार परियोजना, वाढवन बंदरगाह, धारावी पुनर्विकास, साथ ही वन भूमि को पूंजीवादी कंपनियों को सौंपना, ठेकेदारी प्रथा को बढ़ाना आदि परियोजनाओं को जबरदस्ती पारित किया जा रहा है।
हमारे देश पर शासन कौन करता है?
पूंजीपति वर्ग ही देश का असली शासक है। राजनीतिक सत्ता – कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका, चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं – सभी जनता के विशाल जनसमूह पर पूंजीपति वर्ग के शासन के साधन हैं। बहुपार्टी प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र, मज़दूर वर्ग और जनता पर पूंजीपति वर्ग के शासन का एक साधन है।
पूंजीपति वर्ग उन लोगों से बना है जो सामाजिक उत्पादन के साधनों के निजी मालिक हैं और पूरी तरह से दूसरों के श्रम पर निर्भर रहते हैं। इस वर्ग के सदस्य अपनी पूंजी से मुनाफ़़ा, ब्याज या किराए के रूप में अपनी आय अर्जित करते हैं। इनमें उद्योगों, खदानों और सेवा प्रदाता कंपनियों के मालिक, थोक व्यापारी, महाजन, भूमि और भवनों के मालिक और पूंजीवादी किसान शामिल हैं। इनकी संख्या लाखों में है। अपने परिवार के सदस्यों को मिलाकर, वे कुल आबादी के एक प्रतिशत से भी कम हैं।
पूंजीपति वर्ग के अंदर सबसे धनी लोग ही हावी हैं। लगभग 150 बड़े कॉर्पोरेट घराने हैं, जिनमें से कुछ दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल हैं। उनकी संपत्ति कई देशों के सकल घरेलू उत्पाद से भी अधिक है।
इन बड़े पूंजीपतियों का देश की लगभग हर चीज पर इजारेदारी पकड़ है – जैसे खाद्यान्न, डीजल, पेट्रोल और केरोसिन, मूल्यवान खनिज, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, अन्य उपकरण, कपड़े, जूते, परिवहन, स्वास्थ्य, खुदरा व्यापार और अन्य सेवाएं। वे कॉर्पोरेट खेती को बढ़ावा देने के लिए भी कड़े प्रयास कर रहे हैं, थोक और खुदरा दोनों प्रकार के कृषि व्यापार पर अपना नियंत्रण चाहते हैं।
जब इन सभी आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ती हैं, तो ये इजारेदार आम जनता को नुक़सान पहुंचाते हुए अत्यधिक मुनाफ़ा कमाते हैं। वे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और सेवाओं का निजीकरण करके, मज़दूरों के काम के घंटे बढ़ाकर, उनकी काम की परिस्थितियों को ख़राब करके और इसी तरह के अन्य तरीक़ों से अधिकतम मुनाफ़़ा कमाते हैं।
पूंजीपति वर्ग अपने एजेंडे को बढ़ावा देने और लागू करने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को पालता है और धन देता है। किसी भी समय वह पार्टी जो पूंजीपतियों के एजेंडे को लागू करने में सबसे सक्षम मानी जाती है, जबकि यह दावा करती है कि यह लोगों के हित में काम करती है, ताकि उन्हें धोखा दिया जा सके, उसे भारी फंडिंग और मीडिया के ज़रिए उसका भारी प्रचार किया जाता है।
चुनावों में बहुमत सीटें जीतकर सरकार बनाने वाली पार्टियां पूंजीपतियों के प्रबंधक के अलावा और कुछ नहीं हैं। एक बार जब कोई पार्टी इतनी बदनाम हो जाती है कि वह लोगों की नज़रों में गिर जाती है, तो उसी वर्ग की एक और पार्टी भी होती है, जिसे अगले दौर के चुनावों में उसकी जगह लेने के लिए बढ़ावा दिया जाता है और धन दिया जाता है।
यही कारण है कि हम देखते हैं कि एक पार्टी जो विपक्ष में रहते हुए सरकार का मुखर विरोध करती थी, वह सरकार का हिस्सा बनते ही अचानक पलट जाती है। यह केंद्र और राज्यों दोनों में होता है। चूंकि ये पार्टियां एक ही वर्ग की हैं, इसलिए वे मूल रूप से एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। यही कारण है कि एक पार्टी के राजनेता इतनी आसानी से पूंजीपति वर्ग की दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं, या एक ही परिवार के दो सदस्य अलग-अलग पार्टियों के सदस्य के रूप में एक ही घर में रहते हैं।
पूंजीपति वर्ग ही समाज के लिए कार्यक्रम और एजेंडा तय करता है। यही कारण है कि सरकार चलाने वाली पार्टियां बदलती हैं, लेकिन एजेंडा और नीतियां नहीं बदलतीं। यही कारण है कि बार-बार चुनाव होने से मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकशों के हालात में कोई फ़र्क नहीं पड़ा है।
वर्तमान चुनावी प्रक्रिया
यह अब किसी से छिपा नहीं है कि हिन्दोस्तानी चुनाव दुनिया के सबसे महंगे चुनावों में से हैं। चुनाव जीतने वाली ये बड़ी पार्टियां हज़ारों करोड़ों रुपये ख़र्च करती हैं। इतना पैसा कमाने का उनके पास कोई वैध तरीक़ा नहीं है। बेशक, सरकार में रहने के दौरान नेता सैकड़ों करोड़ कमाते हैं। परंतु, चुनाव के लिए फंड मुख्य रूप से बड़े पूंजीपति घरानों से आता है। चुनावी बॉन्ड उसका सिर्फ़ एक छोटा सा हिस्सा हैं। धन देने के कई तरीक़े हैं। कुछ पार्टियों को बढ़ावा देने के लिए अप्रत्यक्ष तरीक़े भी अपनाए जाते हैं – निजी जेट और अन्य साधन, बुनियादी ढांचे और प्रचार के लिए अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध कराके और साथ ही मीडिया – टीवी, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया आदि के माध्यम से प्रचार करके। मीडिया भी तो बड़े पूंजीपति घरानों के नियंत्रण में ही है।
इस व्यवस्था में मज़दूरों और किसानों के उम्मीदवारों के चुनाव जीतने की संभावना बहुत कम है। पूंजीपति वर्ग की पार्टियां चुनावी प्रक्रिया पर हावी हैं। जो सरकार बनती है, वह केवल पूंजीपति वर्ग के प्रति जवाबदेह होती है, जिसका नेतृत्व इजारेदार पूंजीपति करते हैं।
पूंजीपति वर्ग कैसे शासन करता है?
मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया शोषक अल्पसंख्यकों के शासन को बनाए रखने का काम करती है। लोगों के शोषक और उत्पीड़क अपने शासन को वैध बनाने और अपने बीच के अंतरविरोधों को निपटाने के लिए चुनावों का इस्तेमाल करते हैं। वे चुनावों का इस्तेमाल हमारे बीच विभाजन को गहरा करने और हमें अपने अधिकारों और साझे हितों के लिए लड़ने से रोकने के लिए करते हैं।
हमारे देश पर शासन करने और लूटने के लिए मुट्ठीभर अंग्रेजों ने कई शताब्दियों तक जो किया, शासक वर्ग ने उसमें महारत हासिल कर ली है तथा उसे और विकसित किया है। उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की कुख्यात रणनीति को लागू करना और उसे और विकसित करना जारी रखा है। शासक वर्ग की पार्टियां, मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकशों को धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा, यूनियन या पार्टी से जुड़ाव इत्यादि हर चीज के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं। मीडिया के ज़रिए लोगों को यह समझाने की सुनियोजित कोशिश की जाती है कि वे मेहनतकश तबकों के भीतर ही दुश्मनों की तलाश करें ताकि वे शासक वर्ग को निशाना न बनाएं।
अपना शासन बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने राज्य तंत्र को विकसित किया था। पुलिस और सशस्त्र बल, नौकरशाही, न्यायपालिका, विधायिकाएं और अन्य राज्य संस्थाएं लोगों के खि़लाफ़ अंग्रेजों की सेवा करती थीं। यह राज्य तंत्र 1947 में हिन्दोस्तान के नए शासकों को विरासत में मिला और उन्होंने इसे और भी बेहतर बनाया। आज यह राज्य तंत्र पूंजीपति वर्ग को अपने शोषणकारी शासन को बनाए रखने में मदद करता है।
महाराष्ट्र में लोगों की दयनीय स्थिति
पूंजीपति वर्ग द्वारा अपनी चुनी हुई पार्टियों के ज़रिए शासन करने का नतीजा यह है कि हिन्दोस्तान के सबसे समृद्ध राज्य महाराष्ट्र में, जहां सबसे ज़्यादा अरबपति हैं, करोड़ों लोगों की हालत दयनीय है!
- नौकरियों की कमी है। ऊपर से नोटबंदी, जीएसटी और कोविड लॉकडाउन के दौरान बड़े और छोटे तथा मध्यम उद्योगों में दसों लाख लोगों की नौकरियां ख़त्म हो गई हैं।
- मज़दूर-विरोधी क़ानूनों को आगे बढ़ाया जा रहा है। स्थायी नौकरियों के स्थान पर ठेकेदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- कृषि उपज के लिए अलाभकारी मूल्य और इनपुट की बढ़ती लागत के कारण किसान गहरे संकट में हैं। किसानों की आत्महत्या और कुपोषण से होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक है।
- केवल लाभ से प्रेरित पूंजीवादी कृषि जल के प्राकृतिक स्रोतों को नष्ट कर रही है। राज्य के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में गन्ने की खेती को बढ़ावा दिया गया है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सफाई सेवा, सार्वजनिक परिवहन, सड़कों के निर्माण आदि जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं के निवेश में भारी कटौती की गई है। इन सभी सार्वजनिक सेवाओं की उपेक्षा की जा रही है और वे बद से बदतर होती जा रही हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सब सरकारों द्वारा सुनिश्चित रूप से लगातार बर्बाद किया गया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में लगभग 37 प्रतिशत पद रिक्त हैं। राज्य के बजट का केवल 2 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा पर ख़र्च किया जाता है, जिससे महाराष्ट्र सभी हिन्दोस्तानी राज्यों में नीचे से दूसरे स्थान पर है।
- सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों में हज़ारों पद खाली पड़े हैं जबकि शिक्षकों को अनुबंध और यहां तक कि घंटों के आधार पर वेतन प्रणाली के तहत काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पिछले दो दशकों में राज्य भर में हजारों स्कूल बंद हो गए हैं, जिससे ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के युवा शिक्षा से वंचित हो गए हैं।
- उपरोक्त सभी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं में निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। बड़े पूंजीपतियों को अधिकतम लाभ कमाने की संभावनाएं दिखाई देने वाले हर क्षेत्र को खोला जा रहा है तथा निजी निवेशकों को लुभाने के लिए प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
- शहरी तथा ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों में राज्य द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि हड़पी जा रही है तथा बुलेट ट्रेन, और ‘क्लस्टर विकास’ के नाम, आदि के लिए पूंजीपतियों को भूमि सौंपी जा रही है।
- राज्य के खजाने की बेलगाम लूट के कारण मेहनतकश जनता के सिर पर सार्वजनिक क़र्ज़ का बोझ लगातार बढ़ रहा है। राज्य देश के सबसे अधिक क़र्ज़दार राज्यों में से एक है, और उस पर 85 लाख करोड़ रुपए का क़र्ज़ा है।
- अल्पसंख्यकों पर हमले जारी हैं। महिलाओं का यौन उत्पीड़न बड़े पैमाने पर हो रहा है। जाति आधारित भेदभाव तथा उत्पीड़न भी बढ़ रहा है।
- ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी, कृषि, उद्योग, निर्माण, व्यापार तथा सेवाओं में बड़े इजारेदार पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ाने के लिए मज़दूरों, किसानों, अन्य स्वरोज़गार करने वाले व्यक्तियों तथा छोटे व्यवसायों की बलि दी जा रही है।
इस व्यवस्था में लोगों के पास वास्तव में कोई शक्ति नहीं है!
हर बार जब चुनाव की घोषणा होती है तो लोगों से कहा जाता है कि अपने मताधिकार का प्रयोग करना आपका मुख्य कर्तव्य है और आपको अपने प्रतिनिधि के रूप में अच्छे उम्मीदवारों को चुनना चाहिए। सच तो यह है कि एक बार जब वोट देने का अधिकार उपयोग कर लिया जाता है तो लोग शक्तिहीन हो जाते हैं। निर्वाचित उम्मीदवार लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं होता है, बल्कि अपनी पार्टी के हाईकमान के प्रति जवाबदेह होता है, जो खुद पूंजीवादी शासक वर्ग के प्रति जवाबदेह होता है।
संसद की तरह विधान सभा भी केवल बातचीत और बहस का मंच है। वहां कोई भी मूल्यवान चर्चा नहीं होती। वह केवल चिल्लाना, अपमान करना, कुश्ती, माइक और जूते फेंकना, नाटक, मैराथन वॉकआउट जैसे विभिन्न खेलों का अखाड़ा है। विपक्ष में होने पर पार्टी सरकार का विरोध करती है लेकिन सत्ता में आने पर उसी को लागू करती है। वास्तविक निर्णय पहले ही लिए जा चुके होते हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों के पास अपने नेता द्वारा पेश किए गए निर्णयों पर मुहर लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। सत्ता मुट्ठी भर मंत्रियों (पूरा मंत्रिमंडल भी नहीं) के हाथों में केंद्रित होती है और इस मंडली पर सबसे बड़ी पूंजीवादी कंपनियों का नियंत्रण होता है!
विधान मंडलों में होने वाला नाटक, शोषण और उत्पीड़न के खि़लाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ाने के अपने एजेंडे से मज़दूर वर्ग और मेहनतकश बहुसंख्यक लोगों का ध्यान हटाने में शासक पूंजीपति वर्ग को मदद करता है। मज़दूर वर्ग और उसकी पार्टियों और यूनियनों को सतर्क रहना चाहिए और संसद या राज्य विधान सभाओं में बड़े नाटक के माध्यम से पूंजीपति वर्ग द्वारा बिछाए जा रहे जाल में नहीं फंसना चाहिए। दो गठबंधनों के बीच संघर्ष पूंजीपति वर्ग के भीतर एक लड़ाई के अलावा और कुछ नहीं है। इस लड़ाई में किसी का भी पक्ष लेने से मज़दूर वर्ग को कोई लाभ नहीं होता है।
हमें क्या करना चाहिए?
मेहनतकश और उत्पीड़ित, यानि बहुसंख्यक लोगों में इस व्यवस्था में अपनी शक्तिहीन स्थिति के कारण व्यापक असंतोष है, क्योंकि उन्हें वोट बैंक तक सीमित रखा जाता है। मज़दूर वर्ग और व्यापक जनसमूह को अपनी शक्तिहीन स्थिति को समाप्त करने और निर्णयकर्ता बनने के लिए, लोगों को संप्रभुता प्रदान करने के सिद्धांत पर आधारित लोकतंत्र की एक नई प्रणाली और प्रक्रिया स्थापित करना आवश्यक है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी इस दिशा में तत्काल राजनीतिक सुधारों के लिए लगातार आंदोलन कर रही है और सभी अन्य प्रगतिशील ताक़तों के साथ घनिष्ठ सहयोग में इस मंच का विकास कर रही है।
हर मतदाता को चुनने और चुने जाने का अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उम्मीदवारों के चयन का अधिकार राजनीतिक पार्टियों के हाथों से निकाल कर मतदाताओं के हाथों में दिया जाना चाहिए। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक निर्वाचित निर्वाचन क्षेत्र समिति स्थापित की जानी चाहिए, जिसे लोगों को अपने राजनीतिक अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए अधिकार दिए जाने चाहिए, जिसमें किसी भी चुनाव से पहले उम्मीदवारों के चयन का अधिकार भी शामिल हो। राजनीतिक पार्टियों सहित किसी भी निजी हित को किसी भी उम्मीदवार के चुनाव अभियान पर खर्च करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। चुनाव प्रक्रिया का खर्च राज्य को करना चाहिए तथा सभी चयनित उम्मीदवारों को मतदाताओं के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करने का समान अवसर देना चाहिए।
एक बार जब लोग अपना वोट डाल देते हैं, तो उन्हें निर्वाचित होने वाले लोगों को अपनी सारी शक्तियां नहीं सौंपनी चाहिए। लोगों को क़ानून बनाने, जनमत संग्रह के माध्यम से प्रमुख सार्वजनिक निर्णयों को मंजूरी देने और किसी भी समय अपने द्वारा चुने गए व्यक्ति को वापस बुलाने का अधिकार बरकरार रखना चाहिए। कार्यपालिका तथा मंत्रिपरिषद, विधायिका के प्रति जवाबदेह होनी चाहिए, और विधायिका को मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
वर्तमान शासक वर्ग वर्तमान व्यवस्था में ऐसे मौलिक राजनीतिक सुधारों की अनुमति कभी नहीं देगा, क्योंकि इससे उनके हितों को नुक़सान होगा।
पूंजीवादी शासन की जगह मज़दूरों-किसानों के शासन की आवश्यकता है
महाराष्ट्र के लोगों को अब तक हुए विधान सभा और लोक सभा चुनावों के माध्यम से सत्ता में लाई गई विभिन्न पार्टियों द्वारा शासित होने के अपने अनुभव से महत्वपूर्ण सबक सीखने होंगे। जबकि हम अपनी आय और कामकाजी परिस्थितियों को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, पूंजीपति वर्ग के शासन में हमारी सभी सफलताएं अस्थायी होती हैं। सरकारें अपने वादों से पीछे हटने के लिए कुख्यात हैं, क्योंकि ऐसा कोई तंत्र नहीं है, जिसके द्वारा लोग उन्हें जवाबदेह ठहरा सकें। हमें अपने रक्षात्मक संघर्षों को मजबूत करते रहना होगा, साथ ही हमें शोषकों के शासन की जगह पर मज़दूरों और अन्य मेहनतकशों के शासन की स्थापना के लिए भी लड़ना होगा!
मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और युवाओं को राजनीतिक व्यवस्था में गुणात्मक परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में जागरुक करने के लिए आने वाले चुनावों के अवसर का हमें उपयोग करना चाहिए ताकि पूंजीपति वर्ग के शासन को समाप्त किया जा सके, मज़दूरों और किसानों का शासन स्थापित किया जा सके और सभी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी जा सके।
आइए, हम अपनी आजीविका और सुरक्षा पर हमलों के खि़लाफ़ अपने संघर्ष के दौरान अपनी एकता को मजबूत करें! आइए, हम पूंजीपति वर्ग के शासन को समाप्त करने और सभी के लिए समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नया राज्य और आर्थिक दिशा स्थापित करने के नज़रिये और कार्यक्रम के इर्द-गिर्द सभी उत्पीड़ितों की राजनीतिक एकता बनायें!