ब्रिक्स समूह के देशों ने मिलकर, 22-24 अक्तूबर के बीच, रूस के कज़ान शहर में, अपना वार्षिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया। इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्दोस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। ब्रिक्स के नौ सदस्य देशों (ब्राजील, रूस, हिन्दोस्तान, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात) के नेताओं के अलावा 30 अन्य देशों के नेताओं ने शिखर सम्मेलन में भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा इस सम्मलेन में शामिल होने से ब्रिक्स समूह का बढ़ता अंतरराष्ट्रीय महत्व सामने आया।
ब्रिक्स समूह की शुरुआत 2006 में, ब्राजील, रूस, हिन्दोस्तान और चीन के नेताओं की एक बैठक में हुई थी। 2010 में दक्षिण अफ्रीका भी इसमें शामिल हुआ, जिसके बाद इस समूह का नाम ब्रिक से बदलकर ब्रिक्स कर दिया गया। ब्रिक्स समूह के देशों ने आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं पर अमरीका के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश की है। उन्होंने 2015 में न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) जैसी वैकल्पिक वित्तीय संस्थाएं स्थापित की हैं।
एनडीबी ने न केवल ब्रिक्स के सदस्य देशों में, बल्कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के कई अन्य देशों में विकास-परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है। आईएमएफ और विश्व बैंक द्वारा लगाई गई कठिन शर्तों से बचने के लिए अधिक से अधिक देश एनडीबी से ऋण लेना चाह रहे हैं।
पिछले साल, ब्रिक्स समूह का विस्तार कर इसमें ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल किया गया था। इस विस्तार के बाद, इस समूह के देशों में दुनिया की आबादी का 45 प्रतिशत हिस्सा है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा है। इस समय, लगभग 34 अन्य देशों ने भी इस समूह में शामिल होने में रुचि व्यक्त की है। उनमें से तेरह, इस समूह के सहभागी देश बन गए हैं, जिनमें अल्जीरिया, बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, इंडोनेशिया, थाईलैंड, नाइजीरिया, श्रीलंका, तुर्किये, युगांडा, उज़्बेकिस्तान और वियतनाम शामिल हैं।
इस सम्मेलन में चर्चा किए गए मुद्दों में से एक महत्वपूर्ण मुद्दा था – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेनदेन पर अमरीकी डॉलर के आधिपत्य का मुक़ाबला करने की ज़रूरत। शिखर सम्मेलन ने आपसी व्यापार के लिये अमरीकी डालर की जगह राष्ट्रीय मुद्राओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का फ़ैसला किया। इसमें अलग-अलग सदस्य देशों पर अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से बचने के उपायों पर चर्चा की गई।
दुनिया के कई देशों के सत्तारूढ़ पूंजीपति वर्ग अमरीका के एकध्रुवीय विश्व के निर्माण के अभियान से चिंतित हैं। ऐसे देशों की संख्या बढ़ती जा रही है। ब्रिक्स समूह का विस्तार इस हक़ीक़त को दर्शाता है। ब्रिक्स समूह के अन्य देशों के साथ मिलकर काम करके, वे खुद को अमरीकी वर्चस्व से बचाने की उम्मीद करते हैं। वे बहुध्रुवीय दुनिया में, अपने हितों को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
अमरीका पूरी दुनिया पर हावी होने के अपने इरादे पूरे करने के सामने हर चुनौती को दबा रहा है। इस सिलसिले में वह ब्रिक्स समूह को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है। उदाहरण के लिये, अर्जेंटीना ने 2023 में पिछले शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स समूह की सदस्यता के लिए आवेदन किया था और सदस्यता प्राप्त भी की थी। परन्तु वहां पर एक अमरीकी-समर्थक सरकार के सत्ता में आने के बाद, अर्जेंटीना ने अपना आवेदन वापस ले लिया।
यूक्रेन युद्ध के दौरान अमरीका रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाकर उन सभी देशों को धमका रहा है जो ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं। हालांकि, ये प्रयास सफल नहीं हुए हैं। रूस में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ने दिखाया है कि बढ़ती संख्या में देश, अमरीकी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए तैयार हैं।
अमरीका, हिन्दोस्तान को, चीन के ख़िलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के एकतरफ़ा इस्तेमाल के द्वारा दूसरे देशों को नुक़सान पहुंचाने की प्रक्रिया के ख़िलाफ़ दुनिया भर में बढ़ते विरोध को इस तरीक़े से अमरीका कमज़ोर करना चाहता है। सीमा पर अपनी सेनाओं के बीच गतिरोध ख़त्म करने की दोनों देशों की घोषणा के बाद, प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कज़ान में द्विपक्षीय बैठक से पता चलता है कि हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग अमरीका द्वारा बिछाए जा रहे जाल में नहीं फंसना चाहता।
कज़ान में आयोजित एक सफल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का मतलब यह नहीं है कि इसमें भाग लेने वाले देश अमरीकी दबाव से अलग हो गए हैं या अमरीकी साम्राज्यवाद के हुक्म का खुलकर विरोध कर रहे हैं। हालांकि, यह सम्मेलन यह ज़रूर दर्शाता है कि दुनिया को अपने खुदगर्ज हितों के मुताबिक चलाने के अमरीकी साम्राज्यवादी प्रयासों के ख़िलाफ़ दुनिया में व्यापक असंतोष है। यह असंतोष उन देशों और सरकारों को भी एक साथ ला रहा है जिनके बीच इस समय कई मतभेद और तनाव हैं।
कज़ान शिखर सम्मेलन में, हिंसा और युद्ध का सहारा लिए बिना अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को हल करने की ज़रूरत पर चर्चा की। अंतरराष्ट्रीय व्यापार आपसी भले के लिए हो – यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत पर भी चर्चा हुई। यह तो समय ही बताएगा कि ब्रिक्स के सदस्य देश इन ज़रूरतों को पूरा कर पाते हैं या नहीं।