लोक राज संगठन ने, कई अन्य संगठनों के साथ मिलकर, 2 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक विशाल रैली का आयोजन किया। यह रैली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद नवंबर 1984 में दिल्ली और अन्य स्थानों पर सिखों के भयानक जनसंहार की 40वीं बरसी पर आयोजित की गई थी।
“सांप्रदायिक आधार पर बंटवारे की राजनीति मुर्दाबादा!”, “एकता और शांति के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएं!”, “एक पर हमला सब पर हमला!” – इस रैली के मंच पर लगाये गए मुख्य बैनर पर ये सब नारे थे। ऐसे बैनर जो रैली के संदेश का बड़ी स्पष्टता से ऐलान करते थे: “1984 के जनसंहार के गुनहगारों को सज़ा हो!”, “फूट डालो और राज करो की राजनीति मुर्दाबाद!”, “आइए, हम राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक को ख़त्म करने के लिए एकजुट हों!”, “राजकीय-आतंकवाद, मुर्दाबाद!”, “हिन्दोस्तानी राज्य सांप्रदायिक है!”, “राजकीय-आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए एकजुट हों!”, इत्यादि, रैली-स्थल के चारों ओर लगाए गए थे।
लोक राज संगठन, जमात-ए-इस्लामी हिंद, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, द सिख फोरम, लोक पक्ष, मज़दूर एकता कमेटी, पुरोगामी महिला संगठन, हिंद नौजवान एकता सभा, सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी, स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन, सीपीआईएमएल (न्यू प्रोलतेरियन), एपीसीआर और अन्य संगठनों ने मिलकर इस रैली का आयोजन किया था।
आयोजित करने वाले संगठनों के जिन प्रतिनिधियों ने इस रैली को संबोधित किया उनमें लोक राज संगठन से एस राघवन, जमात-ए-इस्लामी हिंद से मोहम्मद सलीम इंजीनियर, लोक पक्ष से रविंदर, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी से बिरजू नायक, कलाकार अर्पणा कौर, एसडीपीआई से हाशिम मलिक और आईएफटीयू सर्वहारा से सिद्धांत शामिल थे।
रैली के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वक्ताओं ने बताया कि नवंबर 1984 में जो कुछ हुआ, वह कोई स्वतः स्फूर्त अचानक भावुक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि केंद्र में सत्ता में बैठी पार्टी द्वारा एक योजनाबद्ध तरीक़़े से आयोजित किया गया क़त्लेआम था। इस जनसंहार के आयोजन के गुनहगार – कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता और उच्चतम स्तर के राज्य अधिकारी – उनको अभी तक कोई सज़ा नहीं मिली है। जनसंहार के पीड़ितों ने पिछले 40 वर्षों में अनगिनत कष्ट झेले हैं और उन्हें एक सुनियोजित तरीक़़े से, इन्साफ़ से वंचित किया गया है। वक्ताओं ने बताया कि पिछले चार दशकों में, गुनहगारों को सज़ा दिलाने की मांग सभी न्यायप्रिय लोगों और उनके संगठनों द्वारा बार-बार उठाई गई है। हालांकि, जब केंद्र सरकार में एक राजनीतिक पार्टी की जगह दूसरी पार्टी ने ली, फिर भी हर एक पार्टी ने इस सच्चाई को छुपाया है कि यह सत्ताधारी पार्टी द्वारा, शासक वर्ग की ओर से और पूरे राज्य-तंत्र की भागीदारी के साथ किया गया एक जघन्य अपराध था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह हक़ीक़त इस ग़लत धारणा का पर्दाफ़ाश करती है कि केवल भाजपा ही सांप्रदायिक है जबकि कांग्रेस पार्टी नहीं है। राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक की बार-बार होने वाली घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए, वक्ताओं ने अनेक उदाहरण पेश किये – 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद केंद्र में कांग्रेस पार्टी और यूपी में भाजपा सरकार की देखरेख में बड़े पैमाने पर आयोजित सांप्रदायिक हिंसा, 2002 में गुजरात में भाजपा सरकार की देखरेख में मुसलमानों का क़त्लेआम, राज्य-समर्थित गिरोहों द्वारा मुसलमानों की लगातार लिंचिंग, सांप्रदायिक और विभाजनकारी सीएए का विरोध करने वाले युवाओं को यूएपीए के तहत लगातार जेल में डालना, 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा और दो हफ़्ते पहले ही यूपी के बहराइच में आयोजित सांप्रदायिक हिंसा की सबसे हाल की घटना। उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि 1984 के जनसंहार के आयोजकों को सज़ा नहीं दिए जाने के कारण ही इस तरह के अपराधों को बार-बार अंजाम दिया गया है।
राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा की बार-बार होने वाली घटनाएं यह साबित करती हैं कि हिन्दोस्तानी राज्य सभी नागरिकों की ज़िन्दगी और उनके अधिकारों, जिसमें उनके अपने ज़मीर का हक़ भी शामिल है, की रक्षा नहीं करता है। यह राज्य पूंजीपति वर्ग के शासन का एक तंत्र है, जो आम-शोषकों और उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ हमारे लोगों की एकता को तोड़ने के लिए सांप्रदायिक हिंसा को अपने एक पसंदीदा हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है।
अपनी एकता को मजबूत करने और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के ख़िलाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ रैली संपन्न हुई। हमें मांग करनी चाहिए कि हमारे लोगों के ख़िलाफ़ ऐसे जघन्य अपराधों के ज़िम्मेदार सभी गुनहगारों पर मुक़दमा चलाया जाए और उन्हें सज़ा दी जाए, चाहे वे राज्य तंत्र में किसी भी पद पर हों। हमें एक नए तरह के लोकतंत्र की शुरुआत करने के उद्देश्य से अपने संघर्ष को आगे बढ़ाना चाहिए, एक ऐसे लोकतंत्र के लिए जिसमें आम जनता, सत्ता में बैठे लोगों को उनके अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराने में सक्षम होगी और उन लोगों के लिए सख़्त से सख़्त सज़ा सुनिश्चित करेगी जो हमारे लोगों के जीवन के अधिकार, ज़मीर के अधिकार और अन्य सभी बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।