शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) ने 15-16 अक्तूबर को इस्लामाबाद में अपने प्रधानमंत्रियों की वार्षिक बैठक आयोजित की। बैठक में 10 सदस्य देशों रूस, चीन, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, हिन्दोस्तान, पाकिस्तान, ईरान और बेलारूस के नेताओं ने भाग लिया। विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बैठक में हिन्दोस्तान का प्रतिनिधित्व किया।
एससीओ का गठन 1996 में रूस, चीन और तीन मध्य एशियाई राज्य, जो एक समय सोवियत संघ का हिस्सा थे- तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और कज़ाख़स्तान – द्वारा ”शंघाई फाइव“ के रूप में किया गया था। एक अन्य पूर्व सोवियत गणराज्य उज़्बेकिस्तान पांच साल बाद समूह में शामिल हुआ। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद, अमरीकी साम्राज्यवाद “मखमली” या “रंगीन” क्रांतियों के नाम पर विभिन्न पूर्व सोवियत राज्यों में कठपुतली शासन स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। ऐसी परिस्थितियों में एससीओ का गठन अमरीकी साम्राज्यवाद और क्षेत्र के बाहर अन्य शक्तियों द्वारा हस्तक्षेप को रोकने के लिए किया गया था। इस क्षेत्र में अपने हितों को बढ़ाने की इच्छा से हिन्दोस्तान और पाकिस्तान दोनों 2017 में इसके सदस्य बन गये, जबकि ईरान पिछले वर्ष इस समूह में शामिल हुआ।
एससीओ में भाग लेने वाले देश मिलकर दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी, यूरेशिया का 80 प्रतिशत भूभाग और दुनिया के तेल और गैस भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में परिवहन और संपर्क बढ़ाने के मुद्दे अधिक प्रमुखता से उभरे हैं।
इस क्षेत्र में चीन ”बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव“ (बीआरआई) के नाम से जाने वाली परियोजना के द्वारा देशों को जोड़ रही है। हिन्दोस्तानी सरकार इस परियोजना पर आपत्ति जताती रही है। हिन्दोस्तान की आपत्तियों को अमरीका ने हवा दी है, ताकि इस परियोजना के माध्यम से एशिया, अफ्रीका और यूरोप के विभिन्न देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके।
हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग एशिया में अपने बाज़ारों और कच्चे माल के स्रोतों और प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करना चाहता है। यह चाबहार बंदरगाह के विकास में ईरान के साथ काम कर रहा है। हिन्दोस्तान अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से होते हुए चाबहार को रूस से जोड़ने वाली रेल लाइन बनाने की कोशिश कर रहा है। जब अमरीका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए, तो हिन्दोस्तानी सरकार ने चाबहार बंदरगाह का निर्माण रोक दिया। लेकिन, पिछले एक साल में हिन्दोस्तानी सरकार ने दिखाया है कि वह अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद चाबहार में बंदरगाह बनाने के लिए क़दम उठाएगी। अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए, हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग एससीओ में दरकिनार नहीं होना चाहता है। इस्लामाबाद में एससीओ बैठक में भाग लेने का निर्णय एशिया में अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है।
ख़ास बात यह है कि एससीओ की बैठक में समूह ने व्यापार में एकतरफ़ा प्रतिबंधों का विरोध किया। यह स्पष्ट रूप से अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके सहयोगियों द्वारा रूस, चीन और ईरान जैसे देशों के ख़िलाफ़ ऐसे उपायों के इस्तेमाल के संदर्भ में था।