13-14 अक्तूबर, 2024 को उत्तर प्रदेश के बहराइच में, ख़ास समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर, राज्य द्वारा बड़े पैमाने पर हिंसा और आंतक आयोजित किया गया।
घटना वाले दिन बहराइच के महाराजगंज में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए एकत्रित लोगों को बहुत ही सुनियोजित ढंग से मुसलमान धर्म के लोगों के खि़लाफ़ हिंसा व अपराध करने के लिए उकसाया गया। स्थानीय प्रशासन ने जुलूस को मुसलमान बहुल इलाके से गुजरने की खुली छूट दी। पुलिस की नज़रों के सामने, घरों और मस्जिद के बाहर मुसलमानों को बेइज़्ज़त करने वाले गीत डीजे पर तेज़ आवाज़ में बजाये गए। धार्मिक निशानों को बेइज़्ज़त किया गया, इत्यादि। इसी बीच, एक नौजवान को किसी के घर पर चढ़कर वहां से धार्मिक झंडे को हटाकर भगवा झंडा लगाने को उकसाया गया, जिसके दौरान गोली लगने से नौजवान की मौत हो गयी।
अगले दिन, मुसलमान समुदाय के लोगों को ख़ास निशाना बनाकर, भयानक हिंसा की कहर छेड़ दी गयी। हिंसा और आतंक फै़लाया गया, तथा घर-बार व संपत्तियों को जला दिया गया व नुक़सान पहुंचाया गया। स्थानीय निवासियों, जिनमें कई हिन्दू धर्म को मानने वाले भी हैं, ने पत्रकारों को बताया कि पुलिस ने क़ातिलाना गिरोहों को कुछ 3-4 घंटों तक हिंसा फ़ैलाने, क़त्लेआम और आगजनी करने की खुली छूट दे दी थी। उसके बाद ही पुलिस आकर, बिना कोई तहकीकात किये और बिना कोई सबूत पेश किये, नौजवानों को फ़र्ज़ी आरोपों या शक मात्र के आधार पर, गिरफ़्तार करने लग गयी व मारने-पीटने लग गयी। सैकड़ों नौजवानों को गिरफ़्तार किये जाने की ख़बर है। इनमें सभी धर्मों के नौजवान शामिल हैं। इस घटना के दो हफ़्ते बाद भी उन्हें व उनके परिजनों को डराने-धमकाने, उनके घर-बार पर बुलडोजर चलाने व उनकी संपत्तियों को बर्बाद करने की धमकी दी जाने की प्रक्रिया जारी है।
बहराइच हिंसा कांड राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक की एक हालिया मिसाल है। हिन्दोस्तानी राज्य सरमायदार वर्ग की शोषणकारी व दमनकारी हुकूमत को बरकरार रखने के लिए, बार-बार किसी ख़ास समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर, सांप्रदायिक हिंसा व आतंक आयोजित करता है। इसमें राज्य की पूरी मशीनरी, संसदीय राजनीतिक पार्टियां, अफ़सरशाही, सुरक्षा बल, अदालतें, आदि सब शामिल होती हैं। राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक हुक्मरानों का एक पसंदीदा तरीक़़ा है, जिसके ज़रिये लोगों की, अपने सांझे शोषकों व उत्पीड़कों के खि़लाफ़ संघर्षरत एकता को, तोड़ा जाता है और इस प्रकार सरमायदारों की इस क्रूर व नाजायज़ हुकूमत को बरकरार रखा जाता है।
1984 में सिखों का क़त्लेआम, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद जगह-जगह पर फैलाई गयी हिंसा व हत्याकांड, 2002 में गुजरात में जनसंहार तथा इस प्रकार के बार-बार होने वाले दर्दनाक कांड इस सच्चाई को साबित करते हैं।
राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक के ख़िलाफ़ अपनी एकता को मजबूत करते हुए, हमें अपने संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। हमें इस मांग को बुलंद करना होगा कि लोगों के जान-माल की हिफाज़त करने के लिए ज़िम्मेदार राज्य के अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना होगा और उन्हीं कड़ी से कड़ी सज़ा दी जानी होगी। एक पर हमला सब पर हमला को मानकर हमें राज्य द्वारा आयोजित हिंसा का मिलकर सामना करना चाहिए।
राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक के इस कभी न रुकने वाले चक्र से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि सरमायदार वर्ग की वर्तमान हुकूमत की जगह पर मज़दूरों-किसानों की हुकूमत स्थापित की जाये। मज़दूरों-किसानों की हुकूमत का नया राज्य सभी शोषण-दमन को ख़त्म करेगा और सभी लोगों, चाहे किसी भी विचार को मानने वाले हों, के जान-माल, इज़्ज़त व ज़मीर के अधिकार की हिफ़ाज़त करेगा।