1984 के जनसंहार की 40वीं बरसी :
सांप्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद को ख़त्म करने के संघर्ष को आगे बढ़ाएं !
एक पर हमला, सब पर हमला!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 25 अक्तूबर 2024

40 साल पहले, 1 नवंबर 1984 से शुरू होकर पूरे तीन दिनों तक दिल्ली, कानपुर, बोकारो और अन्य जगहों की सड़कों पर दस हज़ार से अधिक सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

40 साल पहले जो हुआ था उसे आधिकारिक रिकॉर्ड में “सिख विरोधी दंगा” कहा गया है। तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यह कहकर उसे जायज़ ठहराने की कोशिश की थी कि, “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो पृथ्वी हिल जाएगी”। उनके कहने का मतलब यह था कि वह सामूहिक क़त्लेआम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर लोगों की स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया थी। लेकिन, सभी उपलब्ध तथ्यों ने इस आधिकारिक व्याख्या को पूरी तरह से झूठा साबित कर दिया है।

सिखों के घरों और दुकानों की पहचान करने के लिए हाथों में मतदाता सूची लेकर कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने क़ातिलाना गिरोहों का नेतृत्व किया था। पुलिस को सिखों को निहत्था करने और क़ातिलाना गिरोहों की मदद करने का निर्देश दिया गया था।

किसी प्रधानमंत्री की गोली मारकर हत्या, इसके पीछे किसी शक्तिशाली हित का हाथ होने का संकेत देती है। इस हत्या के पीछे का सरगना कौन था, इसकी जांच किए बिना, सत्ता में बैठे लोगों ने यह झूठ फैलाना शुरू कर दिया कि “सिखों ने हमारे प्रिय प्रधानमंत्री की हत्या कर दी है”। चूंकि जिन दो अंगरक्षकों पर गोली चलाने का आरोप लगाया था, वे सिख थे, इसका इस्तेमाल करके सभी सिखों को निशाना बनाया गया था। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सिखों पर बदला लेने के नारे बुलंद किये थे।

उस समय जो कुछ हुआ था वह कोई स्वतः स्फूर्त गुस्से का फूटना नहीं था। केंद्र सरकार पर हावी पार्टी ने बड़े सुनियोजित तरीके़ से उसे आयोजित किया था।

जब बेक़सूर लोगों का जनसंहार किया जा रहा था, तब सेवानिवृत्त जनरलों और एयर मार्शलों, न्यायाधीशों, पत्रकारों, आईएएस और आईएफएस अधिकारियों व तमाम चिंतित नागरिकों ने हिन्दोस्तान के राष्ट्रपति और गृहमंत्री से अपील की थी कि वे सामूहिक हत्याओं को रोकें। उनकी अपीलें अनसुनी कर दी गई थीं।

उन दिनों सिखों के पास असली सुरक्षा का एकमात्र साधन उनकी अपनी सामूहिक आत्मरक्षा तथा पड़ोसियों की मदद थी। कई ऐसी घटनाएं सामने आई थीं जिनमें अलग-अलग धर्मों के लोगों ने अपने सिख पड़ोसियों की हिफ़ाज़त की थी।

सिख धर्म के लोगों को न केवल उन तीन दिनों के दौरान बल्कि बीते 40 वर्षों में अनकही पीड़ा झेलनी पड़ी है। हज़ारों परिवार अपने कमाने वाले मुख्य सदस्यों से वंचित हो गए। जनसंहार के पीड़ितों को न्याय से वंचित किया गया है।

बीते चार दशकों के दौरान लोगों ने गुनहगारों को सज़ा देने की मांग बार-बार उठाई है। लेकिन, जबकि नई दिल्ली में एक राजनीतिक पार्टी ने दूसरी की जगह ले ली है, नवंबर 1984 के जनसंहार को आयोजित करने वालों को सज़ा नहीं दी गयी है। आधिकारिक जांच आयोगों और अदालती फ़ैसलों ने जनसंहार को ऐसे माना है जैसे कि वह हत्या के बहुत सारे अलग-अलग कांडों का संग्रह था। 1 से 3 नवंबर के उन अंधकारमय दिनों के दौरान, राज्य के ऊंचे स्तर पर, जैसे कि कैबिनेट और गृह मंत्रालय में, क्या चल रहा था, उसकी कोई जांच नहीं की गई है। इस सच्चाई पर पर्दा डाल दिया गया है कि वह कार्यकारी शक्ति पर हावी राजनीतिक पार्टी द्वारा, हुक्मरान वर्ग के हितों के लिए, और पूरे राज्य तंत्र की भागीदारी के साथ किया गया, एक भयानक अपराध था।

1984 की घटनाओं और उसके बाद की सभी राजनीतिक गतिविधियों ने इस झूठे प्रचार का पर्दाफ़ाश कर दिया है कि हिन्दोस्तानी राज्य की बुनियादें धर्मनिरपेक्ष हैं, कि वह बिना किसी अपवाद के सभी नागरिकों के जीवन और अधिकारों की हिफ़ाज़त करता है। नहीं, यह राज्य समाज के प्रत्येक सदस्य के ज़मीर के अधिकार और जीने के अधिकार को सर्वव्यापक व अलंघनीय नहीं मानता है और इनकी हिफ़ाज़त नहीं करता है। यह राज्य सरमायदार वर्ग की हुकूमत का एक उपकरण है, जो सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करता है तथा उससे फ़ायदा उठाता है।

मौजूदा राज्य हिन्दोस्तानी लोगों की एकता बनाने या समाज के विभिन्न वर्गों या तबकों के हितों में सामंजस्य लाने का उपकरण नहीं है। इसके विपरीत, यह मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों को दबाने और उन्हें अपने सांझे शोषकों व उत्पीड़कों के खि़लाफ़ एकजुट होने से रोकने का एक उपकरण है।

राजकीय आतंकवाद को पूंजीपति वर्ग की हुकूमत के तौर-तरीक़ों के एक अभिन्न हिस्से के रूप में विकसित किया गया है। किसी ख़ास धर्म को मानने वाले लोगों का हव्वा खड़ा करना, उन्हें हिन्दोस्तान की एकता और अखंडता के लिए ख़तरा बताना और उन्हें शारीरिक हमलों का निशाना बनाना, इन सबके ज़रिये हुक्मरान सरमायदार वर्ग ने लोगों के बीच आतंक फैलाने और उन्हें बांटने तथा उन पर शासन करने का काम किया है।

1980 के पूरे दशक के दौरान, सिख धर्म के लोगों को राष्ट्र-विरोधी और हिन्दोस्तान की राष्ट्रीय एकता व क्षेत्रीय अखंडता के लिए ख़तरा पैदा करने वाले के रूप में दर्शाया गया था। केंद्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा कई आतंकवादी हरकतों को अंजाम दिया गया और उन्हें “सिख आतंकवादियों” द्वारा किए गए अपराध बताया गया। हजारों बेक़सूर सिख युवाओं को आतंकवादी बताकर जेल में डाल दिया गया, या फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में मार डाला गया।

चूंकि 1984 के जनसंहार के आयोजकों को सज़ा नहीं दी गयी थी, इसलिए उसी प्रकार के अपराधों को बार-बार करने का रास्ता खुल गया। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था और केंद्र में कांग्रेस पार्टी सरकार तथा उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार की देखरेख में, बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाई गई थी। गुजरात में भाजपा सरकार ने फरवरी 2002 में मुसलमानों के जनसंहार की निगरानी की थी। हाल के वर्षों में, मुसलमानों को नियमित रूप से, राज्य की मशीनरी के समर्थन प्राप्त गिरोहों द्वारा, लिंचिंग करके मार डाला जाता रहा है। सांप्रदायिक और विभाजनकारी नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करने वाले युवाओं को यूएपीए के तहत जेलों में बंद रखा जा रहा है। इसी महीने में कुछ दिन पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने लोगों की एकता को तोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा और आतंक फै़लाया है।

हमें इस झूठे प्रचार को ख़ारिज करना होगा कि सिर्फ़ भाजपा ही सांप्रदायिक है जबकि कांग्रेस पार्टी नहीं है। ऐतिहासिक अनुभव से साफ़ हो जाता है कि ये दोनों पार्टियां सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए राज्य मशीनरी का इस्तेमाल करने की दोषी हैं। पिछले कुछ महीनों में, कांग्रेस पार्टी द्वारा शासित राज्य हिमाचल प्रदेश में, हथियारबंद गिरोह मुसलमानों पर हमला कर रहे हैं, जिससे पीड़ितों को अपनी दुकानें बंद करने और उस राज्य से भागने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

पिछले वर्ष में, कई सबूत सामने आए हैं कि हिन्दोस्तानी राज्य की खुफ़िया एजेंसियां पंजाब, कनाडा, ब्रिटेन, अमरीका और अन्य देशों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याओं को अंजाम देने के लिए, आपराधिक गिरोहों का इस्तेमाल कर रही हैं। इन खुलेआम आतंकवादी हरक़तों को हिन्दोस्तान की राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के नाम पर, जायज़ ठहराया जा रहा है। हमारे देश में एक बार फिर मुसलमानों पर हमलों के अलावा, सिखों के खि़लाफ़ सांप्रदायिक हिंसा को जायज़ ठहराने के लिए माहौल बनाया जा रहा है।

हुक्मरान पूंजीपति वर्ग के खि़लाफ़ मज़दूरों, किसानों और सभी उत्पीड़ित लोगों की एकता पर भरोसा करके, सांप्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद के खि़लाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। हमें किसी भी ख़ास धर्म के लोगों पर होने वाले हर हमले को सभी लोगों और हमारी एकता पर हमला मानकर, उसका विरोध करना चाहिए। हम यह नहीं मान सकते हैं कि लोगों के किसी भी तबके पर इस प्रकार के हमलों को “हमें माफ़ कर देना चाहिए और भूल जाना चाहिए”। हमें अपनी मांग पर डटे रहना होगा कि जिन अधिकारियों पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का दायित्व है, उन्हें जनता के किसी भी तबके पर सामूहिक हिंसा के हर मामले के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और सज़ा दी जानी चाहिए।

राजकीय आतंकवाद और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा लोगों को आतंकित करने, उन्हें बांटने और इस शोषणकारी हुकूमत को बरक़रार रखने के लिए, सरमायदारों के हथकंडे हैं। सांप्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद का स्रोत पूंजीपति वर्ग की हुकूमत है। एक ऐसा समाज बनाने के लिए, जिसमें अलग-अलग विचारों के लोग सामंजस्य के साथ जी सकेंगे और हर इंसान के अधिकारों की रक्षा की जाएगी, पूंजीपति वर्ग को सत्ता से हटाना पड़ेगा और सभी मेहनतकश व उत्पीड़ित लोगों के साथ मिलकर मज़दूर वर्ग की हुकूमत स्थापित करनी होगी।

हिन्दोस्तानी लोगों को एक ऐसे राज्य की ज़रूरत है जो समाज के हरेक सदस्य के जीवन का अधिकार, ज़मीर का अधिकार और अन्य सभी मानवाधिकारों को सुनिश्चित करेगा। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी राजकीय आतंकवाद, सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के खि़लाफ़ लड़ने वाले सभी लोगों से आह्वान करती है कि वे मज़दूरों और किसानों के राज्य – एक ऐसा राज्य जो सबको सुख-सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्यबद्ध होगा – की स्थापना करने के क्रांतिकारी नज़रिए के साथ इस संघर्ष को आगे बढ़ायें।

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