काम की दमनकारी परिस्थितियों के खि़लाफ़ लोको रनिंग स्टाफ का संघर्ष सभी मेहनतकश लोगों के समर्थन का हक़दार है!

कामगार एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

3 अक्तूबर, 2024 को गांधीधाम पश्चिम रेलवे के 410 लोको पायलट (एलपी) और सहायक लोको पायलट (एएलपी) ने 82 घंटे के बाद अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल समाप्त कर दी। उन्होंने ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.) के नेतृत्व में अपना आंदोलन शुरू किया था। उनके संघर्ष ने कांडला और मुंदरा बंदरगाहों के महत्वपूर्ण क्षेत्र में माल यातायात को ठप्प कर दिया था। संघर्ष को तोड़ने के सभी प्रयास विफल होने के बाद, रेलवे अधिकारियों को मज़दूरों की मुख्य मांगों को स्वीकार करना पड़ा। इन मांगों में शामिल हैं: शंटिंग ड्यूटी को घटाकर 9 घंटे करना, मुंदरा की ओर जाने वाली ट्रेनों के लिए गांधीधाम के मुख्यालय स्टेशन पर ड्यूटी समाप्त करना, पांच लोको-पायलटों को दिए गए आरोप-पत्र वापस लेना, जिन्होंने मुख्यालय स्टेशन से आगे अपनी ड्यूटी जारी रखने से इंकार कर दिया था, आदि। 28 एलपी और एएलपी को भूख हड़ताल के दौरान अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था।

लोको रनिंग स्टाफ (जो आमतौर पर इंजन ड्राइवरों के नाम से जाने जाते हैं) में लोको पायलट (एलपी) और सहायक लोको पायलट (एएलपी) शामिल हैं। ये वे लोग हैं जो सुपर-फास्ट, एक्सप्रेस, मेल, पैसेंजर, उपनगरीय और शंटिंग और मालगाड़ियों को चलाते हैं।

भारतीय रेल रोज़ाना लगभग 3 करोड़ लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है, जो ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की आबादी से भी ज्यादा है! यह स्पष्ट है कि रेल कर्मचारियों की काम करने की परिस्थितियों का रेल यात्रा की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हालांकि, तथ्य यह है कि एलपी और एएलपी की काम करने की परिस्थितियां बेहद दमनकारी हैं।

ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेतृत्व में, देश भर के लोको-पायलटों ने काम की दमनकारी परिस्थितियों के खि़लाफ़, पिछले 8-9 महीनों में अपने आंदोलन को और तेज़ कर दिया है। वे मांग कर रहे हैं कि रेलवे प्रशासन को:

  • मालगाड़ियों के लिए 8 घंटे और सुपर-फास्ट ट्रेनों के लिए 6 घंटे तक की ड्यूटी सीमित करना चाहिए,
  • 30 घंटे के आवधिक विश्राम (पीआर) के साथ-साथ 16 घंटे के मुख्यालय विश्राम की अनुमति देनी चाहिए,
  • लगातार रात की ड्यूटी को 2 रातों तक सीमित करना चाहिए,
  • बाहरी स्टेशन पर डिटेंशन को 48 घंटे तक सीमित करना चाहिए,
  • लोको पायलटों के हज़ारों रिक्त पदों को भरने के लिए तत्काल स्थायी कर्मचारियों की भर्ती की जानी चाहिए,
  • लोको रनिंग स्टाफ को औज़ारों के साथ ट्रॉली बैग सौंपने के फ़ैसले को रद्द करना चाहिए,

रिसर्च डिजाईन एंड स्टैंडर्ड्स ओर्गनाइजेशन (अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन – आर.डी.एस.ओ.) के अनुसार, फॉग सेफ डिवाइस (एफ.एस.डी.) सहित लोको केबिन में सभी उपकरण उपलब्ध कराने चाहिए। एफ.एस.डी. एक जीपीएस-आधारित उपकरण है जिसका उपयोग, ट्रेन ऑपरेटरों को कोहरे की स्थिति में, गाड़ी चलाने में मदद करने के लिए किया जाता है।

1 जनवरी, 2024 से रनिंग भत्ता दर में 25 प्रतिशत की वृद्धि, जब से डीए 50 प्रतिशत हो गया था।

वेतन, आयकर, किलोमीटर के बदले (एकेएल) 30 प्रतिशत भत्ता – लोको रनिंग स्टाफ को लोको रनिंग के अलावा अन्य ड्यूटी करने पर दिया जाने वाला भत्ता, नाइट ड्यूटी भत्ता आदि पर लोको रनिंग स्टाफ के खि़लाफ़ वित्तीय भेदभाव को दूर करें।

50 साल से भी अधिक समय पहले, हिन्दोस्तान की सरकार के तत्कालीन श्रम मंत्री ने 14 अगस्त, 1973 को संसद में घोषणा की थी कि लोको पायलटों के ड्यूटी घंटे साइन ऑन से साइन ऑफ तक 10 घंटे तक सीमित रहेंगे। परंतु 50 साल बाद भी लोको पायलटों को लगातार 14 और कभी-कभी 20 घंटे तक काम करना पड़ता है। रेलवे बोर्ड और रेल मंत्रालय ने लोको पायलटों के ड्यूटी घंटों को 10 घंटे तक सीमित करने और उन्हें महीने में चार बार 46 घंटों का पर्याप्त आराम देने के श्रम मंत्रालय और देश की अदालतों के आदेशों को लागू करने से लगातार इंकार कर दिया है।

इसी तरह, लोको पायलटों को मिलने वाले आवधिक आराम के संबंध में, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 10 साल से भी पहले अपना फ़ैसला दिया था कि पीआर और मुख्यालय (एचक्यू) आराम को अलग-अलग गिना जाना चाहिए, न कि एक साथ, जैसा कि वर्तमान में रेलवे द्वारा किया जा रहा है। यह लोको पायलटों के पर्याप्त आराम के अधिकार और सरकार के श्रम मंत्रालय और देश की सर्वोच्च अदालतों के आदेश का घोर उल्लंघन है।

ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेतृत्व में लोको-पायलटों द्वारा आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले दक्षिणी रेलवे में हुई। रेल मंत्रालय और प्रशासन ने झूठे आरोपों के आधार पर आरोप-पत्र जारी करने, लोको-पायलटों को दूर-दराज के स्थानों पर स्थानांतरित करने, आंदोलन में नेतृत्व की भूमिका निभाने वालों को निलंबित करने आदि जैसे कई दबावपूर्ण हथकंडे अपनाए। हालांकि, इसका असर बिल्कुल विपरीत हुआ और आंदोलन जल्द ही भारतीय रेल के सभी जोनों में फैल गया। डी.आर.ई.यू., डी.आर.के.एस., ए.आई.एस.एम.ए., ऑल इंडिया ट्रैफिक कंट्रोलर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया रेलवे ट्रैक मेंटेनर्स यूनियन जैसे रेल मज़दूरों की अन्य यूनियनों ने आंदोलन को अपना समर्थन देने का खुला वादा किया। लोको पायलटों की झुझारू भावना के रवैये ने लोकसभा में विपक्ष के नेता सहित कई सांसदों को उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों के समर्थन पर रुख़ अपनाने के लिए मजबूर किया। 11 जुलाई, 2024 और 26 जुलाई, 2024 को रेलवे बोर्ड ने लोको-पायलटों द्वारा उठाई गई सभी शिकायतों पर ग़ौर करने के लिए समितियों का गठन किया। समितियों को एक महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन 3 महीने बाद भी इन समितियों ने अपनी रिपोर्ट नहीं दी है।

पिछले अनुभव से लोको-पायलटों को पता है कि ऐसी समितियों की नियुक्ति, अक्सर समय की बर्बादी करने वाली रणनीति होती है। इसलिए 22 जुलाई, 2024 को ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेतृत्व ने सर्व हिंद स्तर पर आंदोलन कार्यक्रम की घोषणा की। नेतृत्व द्वारा दिए गए आह्वान के अनुसार, 20 से 27 अगस्त तक सभी शाखाओं में सम्मेलन आयोजित किए गए। 3 सितंबर को लॉबियों में प्रदर्शन आयोजित किए गए, जिसमें हज़ारों लोको रनिंग स्टाफ ने भाग लिया।

24 सितंबर को गंगापुर, कोटा, नागपुर, लखनऊ, मुरी, गांधीधाम, बठिंडा, कालका, चंडीगढ़, पनवेल, चेन्नई, बेंगलुरु, गुंटकल, सेलम, विजयवाड़ा, सिकंदराबाद, त्रिवेंद्रम, मुंबई, पुणे, चक्रधरपुर, धनबाद, सोनपुर, समस्तीपुर, कटिहार, संबलपुर, खुर्दा रोड, अंबाला, फिरोज़पुर, ग़ाजियाबाद, लखनऊ, जोधपुर, भुसावल आदि में संबंधित मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय (डीआरएम कार्यालय) के समक्ष 60 से अधिक प्रदर्शन आयोजित किए गए, जो स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि आंदोलन पूरे भारतीय रेलवे में फैल गया है। कई स्थानों पर स्थानीय पुलिस ने प्रदर्शन की अनुमति देने से इंकार कर दिया। यह आरोप लगाया गया है कि रेलवे बोर्ड द्वारा मंडल रेल प्रबंधकों को बैठकें करने से इंकार करने या आंदोलनकारी लोको रनिंग कर्मचारियों से ज्ञापन स्वीकार करने से इंकार करने का निर्देश दिया गया था।

अगला कार्यक्रम 18 अक्तूबर को तय किया गया है, जब सभी 16 ज़ोनों के महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे।

एक तरफ संबंधित मंत्री लोको रनिंग स्टाफ के प्रतिनिधिमंडल से मिलने और आश्वासन देने का दिखावा करते हैं। वही मंत्री प्रेस को बताते हैं कि लोको रनिंग स्टाफ की औसत ड्यूटी के घंटे 8 घंटे से भी कम हैं। इस झूठे दावे का खंडन ए.आई.एल.आर.एस.ए. ने सिर्फ़ दो दिनों, 8 और 9 अगस्त, 2024 में 100 मामलों की सूची प्रकाशित करके किया, जहां लोको पायलटों ने लगातार 15 से 26 घंटे तक काम किया था! मंत्री चुप रहे और जवाब देने से इंकार कर दिया! रेलवे बोर्ड के सदस्यों ने रिक्तियों को भरने का वादा किया था और इस आशय के पत्र भी जारी किए थे। लेकिन ज़मीनी स्तर पर, पिछले 6 महीनों में उस दिशा में शायद ही कोई प्रगति हुई है।

कुछ क्षेत्रों के महाप्रबंधकों द्वारा पत्र जारी किए जाते हैं, जिनमें निर्देश दिया जाता है कि लोको रनिंग स्टाफ की ड्यूटी 10 घंटे तक सीमित रखी जाए। इन पत्रों को बड़े पैमाने पर प्रचारित किया जाता है, लेकिन वास्तव में ज़मीनी स्तर पर, जब लोको रनिंग स्टाफ 10 घंटे से अधिक ड्यूटी करने से इंकार करता है तब उन्हें चार्ज शीट दी जाती है या एकाएक उन्हें दूर-दराज़ के इलाके में स्थांतरित किया जाता है। पिछले एक महीने में ही सोलापुर और गांधीधाम सहित कई जगहों पर ऐसा हुआ है।

कामगार एकता कमेटी के संवाददाताओं को यह भी बताया गया है कि ए.आई.एल.आर.एस.ए. में सक्रिय कुछ सेवानिवृत्त लोको रनिंग कर्मचारियों को धमकी दी गई है कि अगर वे ए.आई.एल.आर.एस.ए. की गतिविधियों में भाग लेना जारी रखेंगे तो उनकी पेंशन रोक दी जाएगी!

कामगार एकता कमेटी हिन्दोस्तान की सरकार की इन समय बर्बाद करने वाली और धूर्त गतिविधियों की निंदा करती है।

तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी जायज़ मांगों के लिए बहादुरी से लड़ रहे हैं, लोको रनिंग मज़दूरों को कामगार एकता कमेटी सलाम करती है। इस आंदोलन के दौरान भारतीय रेल के विभिन्न वर्गों में जो एकता बनाई जा रही है, वह भारतीय रेल के सभी मज़दूरों के लिए बहुत क़ीमती है।

शोषणकारी और दमनकारी काम की परिस्थितियों के खि़लाफ़ लोको पायलटों का संघर्ष एक न्यायोचित संघर्ष है जिसे हमारे देश के पूरे मज़दूर वर्ग और लोगों का समर्थन मिलना चाहिए।

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