हिन्दोस्तान में महिला श्रम शक्ति भागीदारी अनुपात (एल.एफ.पी.आर.) आधिकारिक तौर पर वर्तमान में लगभग 25 प्रतिशत होने का अनुमान है। यह ब्राजील (43 प्रतिशत) और चीन (60 प्रतिशत) की तुलना में बहुत कम है। महिला श्रम शक्ति भागीदारी अनुपात, कामकाजी उम्र की महिलाओं का वह हिस्सा है जो मज़दूरी कर रही हैं या करना चाहती हैं। अक्तूबर-दिसंबर 2023 की सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने फरवरी 2024 में श्रम शक्ति सर्वेक्षण रिपोर्ट (पी.एल.एफ.एस.) जारी की। इसके अनुसार 2022 में एल.एफ.पी.आर. 22 प्रतिशत था जो 2024 में थोड़ा ही बढ़ा है।
एल.एफ.पी.आर. किसी भी समाज में महिलाओं की स्थिति के मुख्य संकेतकों में से एक है। वेतन के लिये काम करने से महिलाओं के सामाजिक सम्मान में वृद्धि होती है। यह सार्वजनिक जीवन से उनके अलगाव को तोड़ता है और उन्हें सामाजिक उत्पादन के व्यापक क्षेत्र में लाता है। इसके परिणाम स्वरूप महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है और दूसरे दर्जे़ के नागरिक के रूप में उनसे किए जाने वाले व्यवहार के खि़लाफ़ उनमें प्रतिरोध बढ़ता है।
हाल ही में ऊपर की ओर बढ़ते रुझान के बावजूद, हिन्दोस्तान का महिला एल.एफ.पी.आर. का अनुपात दुनिया में सबसे कम में से एक है। विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लिंग अंतर रिपोर्ट 2023 में हिन्दोस्तान 146 देशों में से 127वें स्थान पर है।
कई कारकों के कारण करोड़ों महिलाएं जो उत्पादक कार्य करने में सक्षम हैं, वे घर पर ही रह रही हैं। एक कारक पुराने रीति-रिवाज़ों और मान्यताओं का प्रभाव है, जैसे कि यह विचार कि महिला का स्थान घर की चार-दीवारी के अंदर है। इसकी वजह से बहुत सारी महिलाएं घर से बाहर निकलकर काम नहीं करती हैं। एक अन्य कारक कार्यस्थल पर और घर तथा कार्यस्थल के बीच यात्रा के दौरान यौन उत्पीड़न और सुरक्षा की कमी है। एक और कारक शिशुपालन की सुविधाओं का अभाव है। मातृत्व कल्याण अधिनियम में 2017 के संशोधन ने 50 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए ऑन-साइट क्रेच सुविधाओं को अनिवार्य कर दिया था। लेकिन इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इस क़ानून का पालन हो रहा है।
जब महिलाएं तमाम बाधाओं के बावजूद नौकरी करती हैं, तो साथ ही उन्हें नई पीढ़ी के पालन-पोषण की बड़ी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है और घर के अधिकांश काम भी निपटाने पड़ते हैं।
समान काम के लिये समान वेतन अधिनियम और न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम जैसे मौजूदा क़ानूनों के बावजूद, महिलाओं को समान काम के लिए पुरुषों की तुलना में बहुत कम वेतन दिया जाता है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में महिलाओं की श्रम शक्ति में सबसे अधिक भागीदारी होने के बावजूद, पुरुषों और महिलाओं के बीच मासिक आय का अंतर बहुत अधिक है। 2020-21 में पक्की नौकरियों में महिलाओं को 12,969 रुपये जबकि पुरुषों को 17,476 रुपये मिलते थे। संभावना तो यही है कि अधिकांश अन्य राज्यों में यह अंतर और भी अधिक होगा।
राष्ट्रीय स्तर पर, ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के लिए प्रत्येक दिन का औसत वेतन 393 रुपये है, जबकि एक महिला कर्मचारी का प्रतिदिन का वेतन 265 रुपये है (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा “हिन्दोस्तान में महिला और पुरुष 2022” शीर्षक वाली सर्वेक्षण रिपोर्ट)। आकस्मिक काम, संविदा रोज़गार और पक्की नौकरियों में आय में असमानताएं देखी जाती हैं। यह पूंजीवाद की एक व्यवसायगत विशेषता है। महिलाओं को पुरुषों से कम भुगतान करने से पूंजीपति मालिकों को सभी के वेतन को कम करने में मदद मिलती है। वर्तमान पूंजीवादी समाज में महिलाओं को बच्चे के जन्म और नवजात शिशु की देखभाल के लिए समय निकालने की आवश्यकता होती है। महिलाओं को समान वेतन और रोज़गार के लिये समान मौके से वंचित करने के लिये पूंजीपति वर्ग इसे इस्तेमाल करता है। ऑक्सफैम की इंडिया डिस्क्रिमिनेशन (भेदभाव) रिपोर्ट, 2022 जैसे कई अध्ययनों ने यह उजागर किया है कि हिन्दोस्तान में स्त्री पुरुष के वेतन में अंतर और नौकरी पाने में अंतर है। महिलाओं को देशभर में इन मुद्दों पर भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
बजट सत्र के दौरान, सरकार ने 2014-15 से 2020-21 की अवधि में उच्च शिक्षा में महिलाओं के दाखिले में 28 प्रतिशत की वृद्धि का दावा किया; लेकिन, शैक्षिक उपलब्धियों और नौकरी के अवसरों में बहुत बड़ा अंतर है। शिक्षित महिलाएं बेरोज़गार युवा महिलाओं का 76.7 प्रतिशत हिस्सा हैं।
महिलाओं के बीच बढ़ी हुई शैक्षिक उपलब्धियों के बावजूद पक्की नौकरियों में उनकी भागीदारी नहीं बढ़ी है। 2018 से 2022 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि पक्की नौकरियों के बजाय प्रमुख वृद्धि स्व-रोज़गार गतिविधियों और गिग व फ्रीलांसिंग नौकरियों में हुई है। यह ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए विशेष रूप से सच है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, पी.एल.एफ.एस. वार्षिक रिपोर्ट जुलाई 2022 – जून 2023 ने महिलाओं की भागीदारी दर में वृद्धि और महिला बेरोज़गारी में इसी तरह की गिरावट का संकेत दिया। यह “स्व-रोज़गार” की श्रेणी के तहत ग्रामीण महिलाओं के अनुपात में वृद्धि के कारण हुआ। स्वरोज़गार के उप-वर्गीकरण से पता चलता है कि अधिकांश महिलाएं अवैतनिक सहायक थीं यानी वे महिलाएं जो बिना वेतन के पारिवारिक उद्यमों में काम करती थीं। ग्रामीण इलाकों में वेतनभोगी महिला मज़दूरों का अनुपात पिछले वर्षों की तुलना में कम हुआ है।
जब पूंजीपति वर्ग को फ़ायदा होता है तब वह महिलाओं को विशिष्ट व्यवसायों में नौकरी में लगाता है। उदाहरण के लिए, वर्तमान में पूंजीवादी कंपनियां मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबलिंग प्लांटों में महिलाओं की अधिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। महिलाओं को ऐसे क्षेत्रों में अधिक काम मिल रहा है, तो उन्हें शोषण और यौन उत्पीड़न के नए रूपों का सामना भी करना पड़ रहा है। जब इन वस्तुओं की मांग में गिरावट आती है, तो उन्हें ही सबसे पहले काम से निकाल दिया जाता है।
श्रम शक्ति में महिलाओं की कम भागीदारी महिलाओं के हितों और सामाजिक प्रगति के हितों के खि़लाफ़ है। जब तक महिलाओं के काम को सामाजिक रूप से आवश्यक नहीं माना जाता है, तब तक उन्हें अपने जीवन और घरों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बोलने से वंचित रखा जाता रहेगा। जब तक सामाजिक जीवन में महिलाओं की भूमिका सीमित है, तब तक समाज न केवल एक महत्वपूर्ण उत्पादक शक्ति से वंचित रहेगा, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति से भी वंचित रहेगा।
यह ज़रूरी है कि महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलें और महिला, मज़दूर और इंसान बतौर अपने अधिकारों के लिए लड़ें। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं समान काम के लिए समान वेतन का अधिकार और भेदभाव न किए जाने का अधिकार। इनमें कार्यस्थल और यात्रा के दौरान यौन उत्पीड़न और शारीरिक हमलों से प्रभावी सुरक्षा का अधिकार, शिशु पालन सुविधाओं और मातृत्व अवकाश का अधिकार शामिल है। समाज को सभी प्रकार के शोषण और उत्पीड़न से मुक्त करने के संघर्ष में महिलाओं को अग्रिम पंक्ति में होना चाहिए।