मणिपुर में जारी हिंसा के लिए शासक वर्ग ज़िम्मेदार

1 सितंबर, 2024 से मणिपुर में विभिन्न सशस्त्र गुटों और इसके साथ पुलिस और सेना द्वारा की जाने वाली हिंसा के नए दौर में कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई है। समस्या के समाधान के नाम पर राज्य सरकार ने कई जिलों में इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं बंद कर दी हैं, जिसकी वजह से लोगों को बहुत-सी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं।

मई 2023 में पहली हिंसक घटना के बाद से लगभग 18 महीने बीत चुके हैं। हज़ारों लोग अभी भी शरणार्थी-शिविरों में रह रहे हैं। उनके पुनर्वास के लिए अभी तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया है।

मणिपुर के मुख्यमंत्री ने हिंसा के नवीनतम दौर की शुरुआत के लिए कुकी-ज़ो सशस्त्र गुटों को दोषी ठहराया है। हालांकि, सरकार के सुरक्षा सलाहकार ने कहा है कि मणिपुर पुलिस के शस्त्रागार से अब तक 1200 से अधिक हथियार लूटे जा चुके हैं। क्या राज्य सरकार की मिलीभगत के बिना ऐसा हो सकता है?

मणिपुर की वर्तमान स्थिति के लिए भाजपा की कड़ी निंदा की जानी चाहिए, जो केंद्र सरकार और मणिपुर की राज्य सरकार, दोनों जगह सत्ता में है। यह लोगों के बीच धर्म और जाति के आधार पर मौजूदा विभाजन को और अधिक गहरा करने का आयोजन कर रही है। मणिपुर में, यह मैतेई लोगों के समर्थक होने का दिखावा कर रही है और कुकी-ज़ो जनजातियों के लोगों को दुश्मन के रूप में निशाना बना रही है। पूरे देश में, भाजपा हिन्दुओं का चैंपियन होने का दिखावा करते हुए सांप्रदायिक आधार पर लोगों को संगठित कर रही है और यह झूठा प्रचार कर रही है कि मुसलमान और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज की समस्याओं का स्रोत हैं।

शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में कमी की समस्या, युवाओं को देश के दूरदराज़ के इलाकों में प्रवास करने के लिए मजबूर कर रही है। यह मणिपुर के एक विशाल बहुमत को, चाहे वे मैतेई, नगा या कुकी हों, सभी को प्रभावित करने वाली एक ज्वलंत समस्या है। इन समस्याओं का स्रोत पूंजीवादी व्यवस्था और हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग का राज है। इस व्यवस्था में उत्पादन का मक़सद, मज़दूरों के शोषण, किसानों की लूट और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के ज़रिए, पूंजीपति वर्ग को और अधिक अमीर बनाना है। युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना, सुरक्षित और अच्छे वेतन वाली नौकरियां प्रदान करना, वर्तमान व्यवस्था का उद्देश्य नहीं है।

पूंजीपति अपनी पूंजी केवल वहीं निवेश करते हैं जहां उन्हें अधिकतम मुनाफ़ा मिलता है। पिछले 75 वर्षों से हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग को उत्तर पूर्व के राज्यों में बड़े पैमाने के उद्योग लगाना, अधिकतम मुनाफ़ा बनाने लायक नहीं लगा है। पूंजीपत वर्ग ने उत्तर पूर्व के सभी हिस्सों को एक दूसरे से और इस क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए राजमार्ग और रेल लाइन जैसी बुनियादी संरचना तक भी नहीं बनाई हैं। इसने इस क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में विश्वविद्यालय तक स्थापित नहीं किये हैं, जो युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकें।

समस्या के स्रोत से शोषित और उत्पीड़ित लोगों का ध्यान हटाने के लिए शासक वर्ग हमेशा लोगों को धर्म, जाति, नस्ल, निवास आदि के आधार पर बांटता है। शासक वर्ग की सभी राजनीतिक पार्टियां जानबूझकर मेहनतकश लोगों के एक हिस्से को दूसरे हिस्सों की समस्याओं का स्रोत बताती हैं। वे जाति, नस्ल, व्यक्ति का उस राज्य में जन्म हुआ है या नहीं, आदि के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में सीटों के आरक्षण के लिए लोगों को आंदोलित करती हैं।

आज देश में पूंजीपति वर्ग, अपने नियंत्रण वाले राज्य-तंत्र के ज़रिए मज़दूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों के जनसमूह पर राज कर रहा है। इस राज्य तंत्र में, सरकारों, सशस्त्र बल और पुलिस सहित कार्यपालिका, संसद और राज्य विधानसभाओं सहित विधायिका और न्यायपालिका के साथ-साथ, भाजपा और कांग्रेस पार्टी जैसी शासक वर्ग की पार्टियां शामिल हैं।

पूंजीपति वर्ग हिन्दोस्तान के लोगों और हमारे देश के प्राकृतिक संसाधनों को अपनी निजी जागीर समझता है जिनका बेरहमी से शोषण और लूट की जानी चाहिए। जब भी किसी क्षेत्र या राज्य के लोगों ने वर्तमान व्यवस्था के ख़िलाफ़ विद्रोह किया है और अपने अधिकारों की मांग की है, शासक वर्ग ने उनके ऊपर निर्मम राजकीय दमन चलाया है। मणिपुर, असम, नगालैंड और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के लोगों के साथ-साथ कश्मीर के लोगों को सेना के शासन का प्रत्यक्ष अनुभव है। सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ्सपा) के तहत, हजारों लोगों के बलात्कार और हत्या को वैधता दी गई है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों का हिन्दोस्तानी-केंद्रीय राज्य के ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है। उन्होंने बार-बार राजकीय-आतंकवाद और सैन्य शासन के ख़िलाफ़, आफ्सपा के ख़िलाफ़ और अपने मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। जनजातीय और नस्ली पहचान के आधार पर लोगों के विभिन्न तबकों को एक-दूसरे के खि़लाफ़ भड़काना, हिन्दोस्तानी शासक वर्ग द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला पसंदीदा तरीक़ा रहा है। इसके ज़रिये राजकीय आतंकवाद को जारी रखा जाता है और लोगों के अधिकारों के उल्लंघन को जायज़ ठहराया जाता है। इसका इस्तेमाल अतीत में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों ने भी किया है। इस समय भाजपा सरकारों द्वारा इसी तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है।

जनता की नज़र में अपने शासन को वैध बनाने के लिए शासक वर्ग समय-समय पर संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव करवाता है और सरकार का कार्यभार अपने ही किसी विश्वस्त पार्टी को सौंपता है।

पिछले 75 वर्षों में केंद्र और राज्यों में चुनावों का हम सबका अपना अनुभव स्पष्ट बताता है कि शासक वर्ग की एक पार्टी की जगह दूसरी पार्टी के सत्ता में आने से, हालातें लोगों के पक्ष में नहीं बदलेगी।

हिन्दोस्तान के लोगों को एक नई व्यवस्था की ज़रूरत है। हमें एक ऐसी व्यवस्था की ज़रूरत है जिसकी अर्थव्यवस्था का उद्देश्य पूरे समाज की लगातार बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करना हो। ऐसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए पूंजीपति वर्ग के शासन की जगह, मेहनतकश किसानों के साथ गठबंधन करके मज़दूर वर्ग का शासन स्थापित करना होगा। मौजूदा राज्य जो मज़दूरों, किसानों और अन्य शोषित और उत्पीड़ित लोगों पर पूंजीपति वर्ग की तानाशाही का राज्य है, उसकी जगह हमें मज़दूरों और किसानों के शासन वाला एक नया राज्य स्थापित करने की सख़्त ज़रूरत है।

मणिपुर में हो रही घटनाएं हमें इस बात को, एक बार फिर याद दिलाती हैं कि हमारे देश के मज़दूर वर्ग और सभी शोषित और उत्पीड़ित लोगों को अपने साझा दुश्मन, यानी शासक पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ तुरंत एकजुट होना चाहिए। हमें सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट संघर्ष करना होगा। अपने संघर्ष का उद्देश्य और दृष्टिकोण पूंजीपति वर्ग के शासन की जगह मज़दूरों और किसानों के शासन को स्थापित करना है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *