कोलकाता में जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन जारी

कोलकाता में जूनियर डॉक्टर, पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग के मुख्यालय स्वास्थ्य भवन के बाहर, अपना विरोध धरना और प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं, जो 11 सितंबर से शुरू हुआ था।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और संघर्षरत जूनियर डॉक्टरों के बीच 12 सितंबर को होने वाली बातचीत नहीं हो सकी क्योंकि सरकार ने बातचीत के लिए डॉक्टरों द्वारा रखी गई शर्तों को पूरा करने से इनकार कर दिया। 9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या की जांच अब सीबीआई को सौंप दी गई है। लेकिन जूनियर डॉक्टरों ने बार-बार अपनी चिंता व्यक्त की है कि राज्य सरकार असली गुनाहगारों को छिपाने की कोशिश कर रही है और जानबूझकर जांच में बाधा डाल रही है।

27 अगस्त को जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन को बदनाम करने और प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों पर किये गये पुलिस दमन को सही ठहराने के प्रयास में जानबूझकर उकसावे और तोड़फोड़ का आयोजन किया गया।

इससे पहले, 9 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में प्रदर्शनकारी जूनियर डॉक्टरों को 10 सितंबर को शाम 5 बजे तक काम पर लौटने का आदेश दिया था, साथ ही आश्वासन भी दिया था कि उनके ख़िलाफ़ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। मुख्यमंत्री ने संघर्षरत डॉक्टरों से अगले महीने होने वाले “दुर्गा-पूजा उत्सव में शामिल होने” और अपनी “शिकायतों को भूल जाने” के लिए कहा है, जिसकी डॉक्टरों और आम जनता ने कड़ी निंदा की है। जूनियर डॉक्टरों ने न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है और अपनी मांगें पूरी होने तक अपना आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है।

सरकार ने आंदोलन को बदनाम करने का एक व्यापक अभियान शुरू किया है, जिसमें अस्पतालों में मरीजों की मौत के लिए, संघर्षरत जूनियर डॉक्टरों को ही दोषी ठहराया जा रहा है। जूनियर डॉक्टरों ने बड़ी बहादुरी से इन सफेद झूठों का पर्दाफाश और खंडन किया है। उन्होंने राज्य सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था में भ्रष्टाचार और अन्य समस्याओं का पर्दाफाश किया है। मरीजों की परेशानियों के लिए, उन्होंने स्वास्थ्य व्यवस्था को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। वे गुनाहगारों को सज़ा दिलाने, सरकारी अस्पतालों में बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने, डॉक्टरों के लिए बेहतर और सुरक्षित काम करने के लिए हालातें, महिला डॉक्टरों की सुरक्षा आदि की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। उन्होंने पुलिस आयुक्त, स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक और चिकित्सा शिक्षा के निदेशक को निलंबित करने की भी मांग की है।

जूनियर डॉक्टरों ने 9 सितंबर को अपने आंदोलन के दौरान एक बयान के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। हम इस वक्तव्य के कुछ अंश यहां पर प्रस्तुत कर रहे हैंः

आज सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद हम बेहद निराश और दुखी हैं।

हम बताना चाहते हैं कि अभया (डॉक्टरों द्वारा पीड़िता को दिया गया नाम) के साथ हुए भयानक बलात्कार और हत्या की जांच में, जिसे सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया था, कोई प्रगति नहीं हुई है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और कोलकाता पुलिस से लेकर सीबीआई तक, जांच को इधर से उधर किया जा रहा है, फिर भी इंसाफ के आसार दूर-दूर तक दिख नहीं रहे हैं।

इसके अलावा, हमने यह भी देखा कि राज्य सरकार और उसके वकील कपिल सिब्बल ने हर तरह से हमारे आंदोलन को रोकने और बदनाम करने की कोशिश में एक शर्मनाक भूमिका निभाई है।

उनका दावा है कि जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के कारण लोग मर रहे हैं और मरीज सेवाएं बाधित हो रही हैं।

हम सभी को स्पष्ट रूप से याद दिलाना चाहते हैं कि राज्य के हर मेडिकल कॉलेज में बाह्य-रोगी सेवाएं (ओ.पी.डी.) चालू हैं, जहां वरिष्ठ डॉक्टर अथक परिश्रम करके जरूरी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

हम जनता को यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि राज्य में 245 सरकारी अस्पताल हैं, जिनमें से केवल 26 मेडिकल कॉलेज हैं।

जूनियर डॉक्टरों की संख्या 7500 से भी कम है। पश्चिम बंगाल में करीब 93,000 डॉक्टर हैं। इस हक़ीक़त को जानते हुए कि केवल कुछ मेडिकल कॉलेजों में ही जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं, पूरी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था को कैसे ध्वस्त कहा जा सकता है?

इससे स्पष्ट पता चलता है कि सरकार सरासर झूठ फैला रही है और सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही है। हमारा मानना है कि यह हमारे आंदोलन को कलंकित करने और इसके लिए, आम जनता, जिनका समर्थन डॉक्टरों के संघर्ष के साथ है, उनको गुमराह करने का यह एक नापाक सरकारी प्रयास है।

सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के इस घृणित प्रयास के लिए हम कपिल सिब्बल और स्वास्थ्य विभाग, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री भी शामिल हैं, उनकी कड़ी निंदा करते हैं।

हम सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों को याद दिलाना चाहते हैं कि जूनियर डॉक्टर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के मुख्य स्तंभ नहीं हैं।

वे केवल प्रशिक्षु (ट्रेनी) हैं। अगर हम सरकारी आंकड़ों को सच मान लें और यह मान लें कि केवल जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के कारण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ध्वस्त हो गयी है, तो यह हक़ीक़त में सरकारी अस्पतालों में वरिष्ठ डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की गंभीर कमियों का पर्दाफाश करता है।

स्वास्थ्य विभाग और स्वास्थ्य मंत्री इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। हमने यह भी देखा कि कपिल सिब्बल और राज्य सरकार ने 27 अगस्त को एक राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसक गतिविधियों का दोष हम पर मढ़ दिया है।

हम सभी को याद दिलाना चाहते हैं कि हमने साफ तौर पर एलान किया है कि हमारा राजनीतिक कार्यक्रम से कोई संबंध नहीं था, हमने किसी भी हिंसक या राजनीतिक रूप से प्रेरित गतिविधि का समर्थन नहीं किया और भविष्य में भी ऐसा नहीं करेंगे।

हालांकि, जिस तरह से सरकार और उनके वकील ने, सुप्रीम कोर्ट से झूठ बोला है, हम उसका कड़ा विरोध और कड़ी निंदा करते हैं। घटना के 30 दिन बाद भी, राज्य सरकार ने आंदोलन की मुख्य मांगों को लेकर कोई गंभीर कदम नहीं उठाया है। वे सारा दोष सीबीआई जांच पर मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।

पुलिस की लापरवाही या स्वास्थ्य सेवा में भ्रष्टाचार के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। … का निलंबन महज लीपापोती जैसा कदम लगता है।

इस तरह के बड़े निलंबन आदेशों को अदालत में चुनौती दी जाएगी और वापस ले लिया जाएगा। यह जनता के गुस्से को शांत करने के लिए दिखावा मात्र प्रतीत होता है। हम मांग करते हैं कि कॉलेज के प्रिंसिपल और स्वास्थ्य विभाग के ख़िलाफ़ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।…

हमारे आंदोलन के पहले दिन से ही हमने सुरक्षा से जुड़ी मांगें उठाई हैं। हमने ड्यूटी डॉक्टरों के लिए अलग से शौचालय और बाथरूम, पर्याप्त सुरक्षा कर्मी, महिला डॉक्टरों के लिए सीसीटीवी और महिला सुरक्षा कर्मी, शौचालय और वार्ड और आॅपरेशन थियेटर के बाहर उचित सुरक्षा उपाय करने का अनुरोध किया है।

हालांकि, हम याद दिलाना चाहते हैं कि केवल पुलिस की मौजूदगी बढ़ाने और डॉक्टरों के लिए अलग से कमरे बनाने से सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होगी। डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा की गारंटी के लिए सरकारी अस्पतालों में उचित और सभी जरूरी रोगी-सेवाएं सुनिश्चित करना आवश्यक है।

स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर व्यापक भ्रष्टाचार सभी स्तरों पर मौजूद है। स्वास्थ्य प्रणाली और परिधीय (पेरीफरल)-मेडिकल कॉलेजों में कई खाली पद हैं, जो उन्नत बुनियादी ढांचे या मज़दूरों की नियुक्तियों के बिना बड़ी भयानक स्थिति में हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली केवल डॉक्टरों पर ही नहीं चलती है।

इसमें जीडीए (जनरल ड्यूटी असिस्टेंट), तकनीशियन, नर्स और डॉक्टर भी शामिल हैं, जो सभी इस प्रणाली का अभिन्न अंग हैं। जीडीए या तकनीशियनों की स्थायी नियुक्ति नहीं की जा रही है। इसकी बजाय अस्थायी मज़दूरों को काम पर रखा जा रहा है, जिससे और कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं।

अपने दैनिक अनुभव से हम जानते हैं कि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में कोई उचित रेफरल सिस्टम नहीं है। कोई केंद्रीय रेफरल सिस्टम नहीं है। चिकित्सा सेवाओं और कॉलेजों को डिजिटल बनाने की कोई पहल नहीं की गयी है। मरीजों की समस्याओं को सुनने वाला कोई सुविधा-प्रबंधक नहीं है।

उचित रेफरल सिस्टम की कमी के कारण मरीजों को रोजाना उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और सरकार इस बारे में कोई जानकारी नहीं देती है कि दिन-प्रतिदिन कितने मरीज इलाज के बिना मर जाते हैं। सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और कई मेडिकल कॉलेज खुलने के बावजूद कार्यस्थलों की हालातें बदस्तूर वैसी ही बनी हुई है – उनमें कोई बदलाव नहीं आया है।

डॉक्टरों, स्थायी नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है। जिलों के अधिकांश नए मेडिकल कॉलेजों में न्यूनतम वरिष्ठ संकाय और अपर्याप्त आधुनिक नैदानिक (डायग्नोस्टिक) सुविधाएं हैं। हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि केवल भव्य इमारतें बनाने से स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित नहीं होती हैं। एक ठोस स्वास्थ्य नीति, उचित स्टाफ की नियुक्ति और वास्तविक सरकारी मंशा की सख्त जरूरत है।

दुर्भाग्य से, हमें ऐसी कोई तस्वीर नहीं दिखती। हम सवाल करते हैं कि गंभीर रूप से घायल एक व्यक्ति को सीटी स्कैन के लिए गंगा घाट से कोलकाता तक 30 किलोमीटर की यात्रा क्यों करनी पड़ी और पास के सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल में न्यूनतम सीटी स्कैन की सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध थी? अगर सरकार वाकई जिलों में गरीब लोगों को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के बारे में चिंतित है, तो जिला अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली क्यों नहीं विकसित की जा रही है?”

संघर्षरत डॉक्टरों ने घोषणा की है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। उन्होंने सरकारी अधिकारियों के साथ बातचीत करने की इच्छा जताई है, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि बातचीत पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए, ताकि प्रदर्शनकारी जूनियर डॉक्टरों के ख़िलाफ़ सरकार के झूठे प्रचार को ध्वस्त किया जा सके।

समाज के सभी वर्गों के लोग आंदोलन से जुड़े डॉक्टरों के समर्थन में आगे आ रहे हैं। आंदोलन-स्थल पर लोगों की एकजुटता देखने को मिल रही है। लोग भोजन और अन्य आवश्यक सामान लेकर आ रहे हैं। लोग आंदोलन में मदद करने के लिए अपने दुर्गा-पूजा उत्सव के बजट में कटौती कर रहे हैं। या प्रदर्शनकारी डॉक्टरों के साथ अपना जन्मदिन मना रहे हैं।

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