सभी मेहनतकश लोगों के लिए राज्य द्वारा गारंटीकृत पेंशन के संघर्ष को आगे बढ़ाएं

24 अगस्त, 2024 को केंद्र सरकार ने सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) की घोषणा की। यह घोषणा सरकारी कर्मचारियों द्वारा पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली की मांग को लेकर किए गए बड़े पैमाने पर और निरंतर संघर्षों के मद्देनजर की गई है। ओपीएस 1 जनवरी, 2004 से पहले सरकारी नौकरी में शामिल होने वालों के लिए लागू थी।

सरकार के प्रवक्ता यह प्रचार कर रहे हैं कि यूपीएस आंदोलनकारी सरकारी कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने वाली योजना है। हालांकि, संघर्षरत कर्मचारियों ने बताया है कि यूपीएस कई मायनों में ओपीएस से कम है। उन्होंने ओपीएस की बहाली के लिए अपना संघर्ष जारी रखने के दृढ़ संकल्प का ऐलान किया है।

ओपीएस, एनपीएस और यूपीएस की संक्षिप्त समीक्षा

पुरानी पेंशन योजना

2004 से पहले नियुक्त किये गए सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस के अनुसार सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन मिलती है। ऐसे कर्मचारियों को सेवानिवृत्त के बाद मिलने वाली पेंशन, उनके अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत होती है। किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद, उसके आश्रित परिवार के सदस्यों को पारिवारिक पेंशन का भुगतान सरकार करती है। इसके अलावा, अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को महंगाई भत्ते के साथ-साथ एक निश्चित चिकित्सा भत्ता भी दिया जाता है। 80 वर्ष की आयु के बाद कर्मचारी को मूल पेंशन का 20 प्रतिशत हिस्सा अतिरिक्त पेंशन के रूप में मिलता है।

ओपीएस के तहत, एक कर्मचारी 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद पूरी पेंशन पाने का हकदार होता है।

ओपीएस में, पूरी पेंशन राशि सरकार द्वारा वहन की जाती थी। सरकारी कर्मचारियों को अपनी सेवा के दौरान पेंशन फंड में योगदान करने की आवश्यकता नहीं होती है।

राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस)

1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद से कार्यरत सभी कर्मचारियों के लिए, एक नयी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की गई थी। ओपीएस को रद्द करने और एनपीएस को लागू करने के सरकार के फैसले को इस तर्क के साथ उचित ठहराया गया था कि ओपीएस सरकार के लिए “बढ़ता वित्तीय बोझ” बन रहा है, जो “लंबे समय तक नहीं चल पायेगा”।

एनपीएस के तहत, कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद की आय (पेंशन) पूरी तरह से शेयर बाज़ार में किए गए निवेश के रिटर्न पर निर्भर करती है।

एनपीएस के तहत, कर्मचारियों का पेंशन के लिए दिया जाने वाला योगदान, उनके वेतन का 10 प्रतिशत है। शुरुआत में सरकार ने 10 प्रतिशत का योगदान दिया, जिसे बाद में बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया। सेवानिवृत्ति के बाद, कर्मचारियों को उनकी कुल जमा राशि का 60 प्रतिशत प्राप्त होता है और शेष 40 प्रतिशत शेयर बाज़ार में निवेश किया जाता है। इस निवेश से मासिक पेंशन दी जाती है।

ओपीएस के विपरीत, एनपीएस सेवानिवृत्ति के बाद, किसी भी निश्चित आय की गारंटी नहीं देता है। इस योजना के तहत कई कर्मचारियों को 5,000 रुपये से भी कम पेंशन मिल रही है।

एकीकृत पेंशन योजना

मोदी सरकार ने एनपीएस में सुधार लाने के लिए, वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। इस समिति ने एनपीएस के खि़लाफ़ और ओपीएस की बहाली के लिए आंदोलन कर रहे सरकारी कर्मचारियों के संगठनों के साथ एक भी बैठक नहीं की। सोमनाथन समिति की रिपोर्ट को जनता के सामने भी नहीं रखा गया है। इस समिति ने एनपीएस के लिए एक विकल्प प्रस्तावित किया है जिसे वह एकीकृत पेंशन योजना कहती है। यूपीएस की कुछ प्रमुख विशेषताओं को सरकार द्वारा प्रचारित किया गया है।

गारंटीकृत पेंशन आय के बारे में कर्मचारियों द्वारा पेश की गयी चिंताओं को दूर करने के लिए, सरकार के प्रयास के रूप में, इस नयी योजना को पेश किया जा रहा है। हालांकि यह पेंशन योजना भी कर्मचारियों के द्वारा दिये गये योगदान पर ही आधारित है।

यूपीएस के तहत, कर्मचारी अपने वेतन का 10 प्रतिशत का योगदान करते हैं, जबकि सरकार 18.5 प्रतिशत का योगदान करती है। इसके तहत, कर्मचारियों को सेवा के अंतिम 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगा। हालांकि, यह तभी लागू होगा जब कर्मचारी 25 साल की नौकरी पूरी कर ले – ओपीएस के तहत नौकरी की अवधि से पांच साल अधिक। इस सेवा-अवधि को पूरा करने के उपरांत पेंशनभोगी कर्मचारी की मृत्यु के बाद, उसके परिवार को पारिवारिक पेंशन के रूप में पेंशन का 60 प्रतिशत मिलेगा। इसके अतिरिक्त, यूपीएस ने 10 साल की सेवा पूरी करने वालों के लिए न्यूनतम पेंशन 10,000 रुपये निर्धारित की है। इसमें समय-समय पर महंगाई राहत देने की सुविधा भी शामिल है, जिसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत नहीं की गयी है।

सभी मेहनतकश लोगों के लिए पेंशन की गारंटी उनका एक मानवाधिकार है। 76 साल पहले 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए मानवाधिकारों की सर्वव्यापी घोषणा के अनुच्छेद 25.1 में लिखा है:

“हर किसी को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त जीवन स्तर पाने का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़े, आवास और चिकित्सा देखभाल और आवश्यक सामाजिक सेवाएं शामिल हैं, और बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, विधवापन, बुढ़ापे या उसके नियंत्रण से परे परिस्थितियों में आजीविका की कमी की स्थिति में, उसको जीवन-सुरक्षा का अधिकार है।” उपरोक्त मानव अधिकार सुनिश्चित करना, हिन्दोस्तानी राज्य का कर्तव्य है। हिन्दोस्तानी राज्य ने इस कर्तव्य को पूरा करने से इनकार कर दिया है।

मेहनतकश लोगों के विशाल बहुमत के पास किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है, ताकि वे “बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, विधवापन, बुढ़ापे या उसके नियंत्रण से परे परिस्थितियों में आजीविका की कमी की स्थिति में” अपनी ज़रूरतों का ख्याल रख सकें।

हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग 2047 तक विकसित-भारत के बारे में शेखी बघार रहा है। विकसित भारत का वादा किस तरह से किया जा सकता है, जब यहां इतने बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी से लोग त्रस्त है और अधिकांश मेहनतकश लोगों के पास किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है?

सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन के अलावा, हिन्दोस्तानी राज्य ने मेहनतकश लोगों के विभिन्न वर्गों के लिए, कई अलग-अलग पेंशन योजनाएं शुरू की हैं। इनमें से कुछ हैं – कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) जिसमें ईपीएस-95 भी शामिल है, अटल पेंशन योजना (एपीवाई), छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना (पीएल-केएमवाई) और विधवा पेंशन और दिव्यांगों के लिए पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि शामिल हैं। इनमें से अधिकांश योजनाओं में सेवानिवृत्ति के बाद की आय बहुत ही कम (1000-2000 रुपये प्रति माह के बीच) है, जो बुजुर्ग मज़दूरों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, पोषण और आश्रय की सबसे बुनियादी ज़रूरतों को भी पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

राज्य द्वारा सुनिश्चित की गई पेंशन आय की गारंटी एक ‘वित्तीय बोझ’ है, ‘टिकाऊ नहीं’ है, इत्यादि पर बहस और मानव अधिकार के रूप में सर्वव्यापी, गारंटीकृत पेंशन के लिए मज़दूर वर्ग की मांग, समाज में मौजूदा, दो विरोधी दृष्टिकोणों के बीच टकराव को दर्शाती है।

एक दृष्टिकोण पूंजीपति वर्ग का है जो हमारे देश में शासन कर रहा है। पूंजीपति शासक वर्ग, मज़दूरों को दी जाने वाली पेंशन को सार्वजनिक खर्चे पर एक बोझ मानता है। यह सेवानिवृत्त हो चुके, मेहनतकश लोगों को परजीवी मानता है और इस हक़ीक़त को नकारता है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान समाज की संपत्ति बनाने में अपना योगदान दिया है। साथ ही, पूंजीपति वर्ग की मांग है कि सरकार सार्वजनिक खजाने से, पूंजीपतियों को हर तरह की कर-रियायत और प्रोत्साहन के रूप में सार्वजनिक धन देना जारी रखे। पूंजीपतियों द्वारा “डूबाये ऋणों” के रूप में लूटे गए लाखों करोड़ रुपये को माफ़ करने के लिए सरकार हमेशा तैयार रहती है।

दूसरा है मज़दूर वर्ग का दृष्टिकोण। इस दृष्टिकोण के अनुसार, सभी मेहनतकश लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है।

पेंशन सामाजिक सुरक्षा का ही एक रूप है जो एक कर्मचारी को एक निश्चित उम्र में या विकलांगता या अन्य परिस्थितियों के कारण काम से सेवानिवृत्त होने के बाद मिलती है। यह एक सर्वव्यापी अधिकार होना चाहिए और सभी मेहनतकश लोगों पर लागू होना चाहिए। हर कर्मचारी के लिए, उन हालातों में, जब वह काम करने में सक्षम न हो, पेंशन से एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित होना चाहिए और यह राशि, बढ़ती हुई जीवन-यापन लागत के लिए लगातार बढ़ाई जानी चाहिए।

हमारे देश के अधिकांश मेहनतकश लोग सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी पेंशन या सामाजिक सुरक्षा के हकदार नहीं हैं। नौकरी के दौरान उन्होंने अपनी मेहनत से समाज के लिए योगदान दिया है। वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से राज्य के खजाने में योगदान करते हैं। यह सुनिश्चित करना समाज का कर्तव्य है कि बुढ़ापे में या जब वे घायल हो जाते हैं और काम करने में असमर्थ होते हैं, तो उनकी देखभाल की जाए। सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए सर्वव्यापी पेंशन की मांग मज़दूर वर्ग की एक जायज़ मांग है।

राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि पूंजीपतियों द्वारा, मज़दूरों से निकाले गए अधिशेष-मूल्य (सरप्लस वैल्यू) का एक हिस्सा, मज़दूरों के लिए पेंशन कोष में डाला जाए। जिन मज़दूरों के पास निश्चित मालिक नहीं हैं, जैसे निर्माण क्षेत्र से जुड़े मज़दूर आदि, उनके लिए राज्य को, सेवानिवृत्ति के बाद उनके जीवन के लिए पेंशन निधि बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। किसी भी हालत में मज़दूरों के पेंशन फंड को सट्टेबाजी या अन्य गतिविधियों में निवेश नहीं किया जाना चाहिए।

किसानों और कृषि-मज़दूरों सहित सभी मेहनतकश लोगों के लिए एक न्यूनतम पेंशन की मांग, जो उनके बुढ़ापे में लोगों के लिए एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करेगी, पूरे देश में गूंज रही है। मज़दूर वर्ग के एक जुझारू और संगठित दल के रूप में, सरकारी कर्मचारियों को इस मांग को हासिल करने के लिए लड़ना चाहिए कि पर्याप्त और परिभाषित पेंशन सभी का एक सर्वव्यापी अधिकार है। राज्य द्वारा किसानों, कृषि-मज़दूरों और निजी व अनौपचारिक क्षेत्र के सभी मज़दूरों सहित, काम करने वाले सभी मेहनतकश लोगों के लिए सुनिश्चित करने की गारंटी, दी जानी चाहिए।

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