दिल्ली के सरकारी स्कूलों के ठेका मज़दूरों की हड़ताल!

मज़दूर एकता लहर के संवाददाता की रिपोर्ट

दिल्ली सरकार के अधीन चलने वाले सैकड़ों सरकारी स्कूलों में कार्यरत ठेका मज़दूरों ने तीन महीने के बकाया वेतन के भुगतान की मांग को लेकर, 4 सितम्बर, 2024 को अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कीं। अपने-अपने स्कूलों के गेट के बाहर, जोशीली नारेबाजी करते हुए वे धरने पर बैठे हैं।

इन प्रदर्शनकारियों में सफाईकर्मी, सिक्योरिटी गार्ड और आया का काम करने वाले मज़दूर शामिल हैं। ये सभी मज़दूर निजी ठेका कंपनी ओरियन सिक्योरिटी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के तहत चार-पांच सालों से काम कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों ने मज़दूर एकता लहर के संवाददाता को बताया कि आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में वादा किया था कि वह दिल्ली सरकार के अधीन चलने वाले संस्थानों में कार्यरत ठेका मज़दूरों को पक्का करेेगी। परंतु सत्ता में आने के बाद भी सरकार निजी कंपनियों के ज़रिये हमें ठेके पर रख कर, हम मज़दूरों का शोषण करवा रही है।

उन्होंने बताया कि निजी ठेका कंपनियां मज़दूरों को कई-कई महीनों तक वेतन नहीं देती हैं। इसकी वजह से हम मज़दूरों को अपने घर चलाने में बहुत परेशानियों का समाना करना पड़ता है। हमें रोजमर्रा की चीजें लेने के लिये दुकानदारों से उधार लेना पड़ता है। हम घर का किराया नहीं दे पाते और हमें खरी-खोटी सुननी पड़ती है। इतना ही नहीं, बीमार पड़ने पर हम अपना और अपने बच्चों का ठीक से इलाज तक नहीं करवा पाते हैं। देश में बढ़ती हुई बेरोज़गारी का फ़ायदा उठाकर ठेका कंपनियां नौकरी देने के लिये ही हमसे दसियों हजार रुपये ले लेती हैं। इस शोषण के खि़लाफ हमने दिल्ली सरकार को कई बार शिकायतें की हैं, परन्तु सरकार ने आश्वासनों के सिवाय कुछ नहीं दिया है।

यह विदित है कि दिल्ली में लगभग 1050 सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं और 37 डा. बी.आर. अम्बेडकर एक्सिलेंस स्कूल हैं। इन स्कूलों में लगभग 17 लाख से ज्यादा छात्र-छात्राएं शिक्षा प्राप्त करते हैं। इन सरकारी स्कूलों में सफ़ाई, गार्ड और आया का काम के लिए दिल्ली सरकार ने कई निजी ठेका कंपनियों को ठेका दिया हुआ है।

ध्यान देने वाली बात है कि इन निजी ठेका कंपनियों को न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948, ठेका श्रमिक अधिनियम, 1970, ई.पी.एफ., ई.एस.आई. कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, बोनस एक्ट आदि क़ानूनों का पालन करने की शर्तों पर ठेके दिये जाते हैं। सरकार भी दावा करती है कि इन श्रम क़ानूनों से मज़दूरों के शोषण पर रोक लगेगी और निजी ठेका कंपनियां अपनी मनमानी नहीं चला पायेंगी। परंतु ज़मीनी हक़ीक़त बिल्कुल अलग है।

मज़दूरों के जीवन का अनुभव है कि ठेका कंपनियां इन क़ानूनों का खुलेआम उल्लंघन करके, मज़दूरों का अति-शोषण करती हैं। वे ठेका श्रमिकों को कम से कम वेतन देकर, अधिक से अधिक घंटे काम लेती हैं। कई बार ठेका कंपनियां श्रमिकों को कई-कई महीने वेतन नहीं देती हैं और वे ई.एस.आई.सी. और पी.एफ. के पैसों की भी धांधली करती हैं। क़ानूनों के इन उल्लंघनों के बारे में मज़दूरों द्वारा स्कूल प्रबंधन को बताने के बावजूद, ठेका कंपनी की मनमानी जारी रहती है। हिन्दोस्तानी राज्य के विभिन्न संस्थान – संसद, कार्यपालिका, न्यायालय, पुलिस, आदि मूख दर्शक बनकर देखते रहते हैं।

इससे साफ़ है कि पूंजीपति वर्ग के अति-मुनाफ़े को सुनिश्चित करने के लिये मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था मज़दूरों का अति शोषण करने को बढ़ावा दे रही है। मज़दूरों को अपने शोषण का अंत करने के लिए मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को पलटकर एक ऐसा समाज बनाने की दिशा में संघर्ष करना होगा, जहां सभी मेहनतकशों के लिये सुनियोजित और सुरक्षित नौकरियां होंगी।

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