हिन्दोस्तान का शासक वर्ग, अमरीका के साथ अपने सैन्य गठबंधन को क़दम-दर-क़दम, मजबूत कर रहा है और देश की अर्थव्यवस्था का और अधिक सैन्यीकरण कर रहा है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, 25 अगस्त तक के लिये चार दिवसीय अमरीका दौरे पर गए थे। इस यात्रा के दौरान दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए – आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (एस.ओ.एस.ए.) और संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में समझौता।
एस.ओ.एस.ए. अमरीका और हिन्दोस्तान, दोनों को अपने सशस्त्र बलों के लिए कुछ वस्तुओं की प्राथमिकता के आधार पर आपूर्ति के लिए एक-दूसरे से अनुरोध करने की अनुमति देता है। यह समझौता सुनिश्चित करेगा कि अमरीकी सशस्त्र बलों द्वारा जो भी मांग की जायेगी, हथियारों और अन्य युद्ध संबंधी उपकरणों, इनके उत्पादन में लगी हिन्दोस्तानी कम्पनियों को उनकी आपूर्ति प्राथमिकता के आधार पर करनी होगी। हिन्दोस्तान के रक्षा मंत्रालय द्वारा अमरीका को, ऐसी कंपनियों की सूची उपलब्ध करानी है।
अमरीका और हिन्दोस्तान, पारस्परिक रक्षा ख़रीद (आर.डी.पी.) समझौते के नाम से जाने जाने वाले एक समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। आर.डी.पी. समझौता यह सुनिश्चित करता है कि हस्ताक्षरकर्ता देश, हथियारों की ख़रीद के मामले में, अपने समकक्षों के आपूर्तिकर्ताओं के साथ भेदभाव नहीं करेगा। इसका मतलब यह है कि हिन्दोस्तानी कंपनियां, अमरीकी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में अमरीकी रक्षा विभाग से हथियार अनुबंधों के लिए, बोली लगा सकती हैं। इसका यह भी मतलब है कि अमरीकी कंपनियां, हिन्दोस्तानी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में, रक्षा मंत्रालय से दिए जाने वाले सैन्य अनुबंधों के लिए बोली लगा सकती हैं। यह फै़सला दोनों देशों पर लागू होगा।
ग़ौर करने की बात यह है कि हिन्दोस्तान, दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। इस समय, हिन्दोस्तान को हथियारों की सप्लाई करने वाला सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश, रूस है, उसके बाद फ्रांस और तब अमरीका का नंबर आता है। अमरीका, हिन्दोस्तान को हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर रूस की जगह लेना चाहता है। एस.ओ.एस.ए. पर समझौता और साथ ही आर.डी.पी. समझौते पर चल रही बातचीत, इसी दिशा में अगले क़दम हैं।
2 सितंबर को हिन्दोस्तान की सरकार की रक्षा अधिग्रहण परिषद (डी.ए.सी.) ने लाखों करोड़ रुपये के सैन्य-हार्डवेयर ख़रीदने के अपने फै़सले की घोषणा की। हिन्दोस्तानी सेना 45,000 करोड़ रुपये की लागत से बख़्तरबंद-कॉर्प को आधुनिक बनाने के लिए, भविष्य के लिए तैयार 1,770 लड़ाकू वाहन (एफआरसीवी) – एक भविष्यवादी (फ्यूचरिस्टिक) मुख्य युद्धक टैंक – को अपने वाहनों में शामिल करेगी। भारतीय नौसेना 75,000 करोड़ रुपये की लागत से बने सात और प्रोजेक्ट 17-बी स्टील्थ फ्रिगेट शामिल करेगी। विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत 50,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 26 राफेल विमान ख़रीदेगा।
संपर्क अधिकारियों पर समझौता, हिन्दोस्तान के लिए प्रमुख अमरीकी सैन्य ठिकानों पर तीन कर्नल रैंक के अधिकारियों को तैनात करने का मार्ग प्रशस्त करता है। इनमें हवाई में इंडो-पैसिफिक कमांड, फ्लोरिडा में स्पेशल ऑपरेशन कमांड और बहरीन में संयुक्त समुद्री बल शामिल हैं। इस समझौते के लागू होने पर, हिन्दोस्तानी सशस्त्र बलों में अमरीकी संपर्क अधिकारियों की तैनाती का रास्ता भी साफ हो गया है।
ये घटनाक्रम क्या दर्शाते हैं? वे दर्शाते हैं कि हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग तेज़ी से देश की अर्थव्यवस्था का सैन्यीकरण कर रहा है और अमरीका के साथ अपने सैन्य गठबंधन को और मजबूत कर रहा है। जबकि इसे सुरक्षा सुनिश्चित करने के नाम पर किया जा रहा है, हक़ीक़त में यह अमरीका और हिन्दोस्तान, दोनों के शासक वर्गों के आक्रामक साम्राज्यवादी उद्देश्यों से प्रेरित है।
हथियारों पर इतनी भारी मात्रा में खर्च किया जाने वाला धन, जिसे राष्ट्रीय हित के लिए किये जाने वाले एक क़दम के रूप में प्रचारित किया जाता है, हक़ीक़त में एक अनुत्पादक खर्च है। यह अर्थव्यवस्था पर एक बहुत भारी बोझ है। साथ ही, यह उन सभी हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों के लिए, जो हथियारों और अन्य युद्ध उपकरणों के उत्पादन से जुड़े हैं, उनके लिए एक सुनिश्चित अधिकतम मुनाफ़े का स्रोत है।
अमरीकी साम्राज्यवाद युद्ध को भड़काने वाली एक क्रूर ताक़त है जो मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन है। अपनी हुक्म्शाही के अधीन, एक-ध्रुवीय दुनिया की स्थापना करने के अपने अभियान में, अमरीका दुनिया के, कई क्षेत्रों को खूनी युद्धों में उलझा रहा है। यह अपने मक़सद को हासिल करने के लिए अन्य देशों के लोगों को बलि के बकरे के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। इस समय, अमरीका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, अपने मंसूबों को आगे बढ़ाने के लिए, हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के साम्राज्यवादी महत्वकांक्षाओं को बढ़ावा दे रहा है। हमारे देश के मज़दूर वर्ग और लोगों को, हिन्दोस्तान और अमरीका के बीच दिन पर दिन बढ़ते सैन्य गठबंधन का दृढ़ता से विरोध करना चाहिए। क्योंकि ये हमारे निकटतम पड़ोसी देशों और पूरी दुनिया में शांति और सुरक्षा के लिए बेहद ख़तरनाक है।