2 सितंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यों वाली उच्चाधिकार समिति के गठन की घोषणा की। सुप्रीम कोर्ट ने समिति को पंजाब-हरियाणा सीमा पर शंभू और खनौरी में विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों से उनकी मांगों के बारे में चर्चा करने का काम सौंपा। इस समिति को विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा कि किसान तुरंत अपने ट्रैक्टर और ट्रॉलियां राजमार्ग से हटा लें। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शनकारी किसानों को आगाह किया कि वे ऐसी मांगों पर जोर न दें जो “असंभव है”।
प्रदर्शनकारी किसानों ने करारा जवाब दिया है। किसान मज़दूर मोर्चा के संयोजक सरवन सिंह पंधेर ने कहा, ”सर्वोच्च न्यायालय की प्राथमिकता राष्ट्रीय राजमार्ग को खुलवाना है, जिसे हरियाणा सरकार ने बंद किया है, हमने नहीं। समिति के पास किसानों के मुद्दों को लेकर कोई एजेंडा नहीं है। इसका गठन चल रहे आंदोलन को विफल करने के लिए किया गया है।“
किसान नेताओं ने समिति की उपयोगिता और नियत पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने केंद्र और हरियाणा सरकार पर वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की सबसे बड़ी समस्या को हल करने की बजाय, समिति का गठन राष्ट्रीय राजमार्ग को फिर से खोलने और किसानों के आंदोलन को कमजोर करने के उद्देश्य से किया गया है।
किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा, ”हमें इस नई उच्चस्तरीय समिति पर विश्वास नहीं है। पहले की ऐसी समितियों से हमें कोई नतीजा नहीं मिला था।“
इससे पहले 31 अगस्त 2024 को किसानों ने पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमाओं पर रैलियां आयोजित करके दिल्ली चलो मार्च के 200 दिन पूरे होने का जश्न मनाया था। याद होगा कि दिसंबर 2021 में, दिल्ली की सीमाओं पर 13 महीने से अधिक समय से डेरा डाले हुए किसान संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन के आधार पर अपने आंदोलन को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया था। उन्हें आश्वासन दिया गया कि सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित किसानों की मांगें पूरी की जाएंगी। लेकिन, जब किसानों ने देखा कि केंद्र सरकार अपने वादों को पूरा करने से इनकार कर रही है, तो उन्होंने 13 फरवरी 2024 को अपनी ट्रॉलियों और ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली चलो मार्च शुरू किया।
हरियाणा सरकार और केंद्र सरकार ने किसानों के शांतिपूर्ण मार्च पर भयंकर हमला किया। शंभू और खनौरी सीमाओं पर इतनी भारी बैरिकेडिंग की गई थी कि कोई भी व्यक्ति इन सीमाओं पर सड़क मार्ग से पंजाब से हरियाणा नहीं आ सकता था। अधिकारियों ने सड़कें खोद दीं, कंक्रीट के बड़े-बड़े पत्थर रख दिए, साथ ही ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के टायरों को नष्ट करने वाली कीलें भी लगा दी थीं। पुलिस बलों ने प्रदर्शनकारी किसानों पर गोलियां चलाईं, जिसके परिणामस्वरूप एक किसान की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। उन्होंने आसमान से प्रदर्शनकारी किसानों पर हमला करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया।
पिछले 200 दिनों से किसान अपने ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के साथ इन दोनों सीमाओं पर शांतिपूर्वक धरने पर बैठे हैं, ताकि सीमाएं खोली जाएं और वे दिल्ली तक मार्च कर सकें और सरकार के सामने अपनी मांगें रख सकें।
किसानों ने बार-बार घोषणा की है कि वे अपना आंदोलन तभी वापस लेंगे जब उनकी मांगें पूरी होंगी। उन्होंने दस मांगें रखी हैं, जिनमें सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी, एमएसपी के लिए स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले को लागू करना, किसानों के लिए पूर्ण कर्ज माफी, किसानों और कृषि मज़दूरों के लिए पेंशन और 2020-2021 के विरोध के दौरान किसानों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों को वापस लेना शामिल है।
किसानों के दृढ़ रुख और जिस तरह से उन्होंने सरकार के उकसावे में न आकर शांतिपूर्वक अपना आंदोलन चलाया है, उससे उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला है।
केंद्र और हरियाणा सरकारें यह दुष्प्रचार कर रही हैं कि किसानों ने सीमा जाम कर रखी है, जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार के निर्देश पर हरियाणा सरकार ने ही पंजाब-हरियाणा सीमा पर बैरिकेडिंग की है।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का आदेश कि हरियाणा सरकार यातायात की बिना रूकावट आने-जाने के लिए सीमा पर लगे बैरिकेड्स तुरंत हटाए, को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। हरियाणा सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करते हुए कहा कि अगर सीमा खोली गई तो किसान दिल्ली कूच करेंगे!
22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकारों की किसानों से बातचीत करने और उन्हें राजमार्ग से अपने ट्रैक्टर और ट्रॉलियां हटाने के लिए कहा है। दोनों राज्यों के अधिकारियों ने आंदोलनकारी किसानों को यह समझाने के लिए दो दौर की बातचीत की कि उन्हें ट्रॉलियों और ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली जाने के फै़सले को वापिस लेना चाहिये। लेकिन किसान नेताओं ने झुकने से इनकार कर दिया।
किसान नेताओं ने लगातार पंजाब-हरियाणा सीमा पर शंभू बैरियर को तुरंत खोलने की मांग की है। वे शंभू में बैरिकेड हटाए जाने पर अपने ट्रैक्टर और ट्रॉलियों के साथ दिल्ली जाने और सरकार के सामने अपनी मांगें रखने के लिए दृढ़ हैं। ऐसा करना किसानों का लोकतांत्रिक अधिकार है। मज़दूर वर्ग और मेहनतकश लोग और सभी लोकतांत्रिक सोच वाले लोग किसानों के न्यायपूर्ण संघर्ष में उनके साथ हैं।