हज़ारों मज़दूर अपना रोज़गार खो रहे हैं

31 अगस्त 2024 को, डंजो कंपनी ने व्यवसाय के ख़र्च में कटौती करने के लिए अपने 200 मज़दूरों में से 150, यानी अपने कार्यबल के 75 प्रतिशत को नौकरी से निकाल दिया। इन मज़दूरों को ईमेल के जरिए इस फ़ैसले के बारे में बताया गया। ईमेल में लंबित वेतन, नौकरी से निकालने का मुआवज़ा, छुट्टियों के बदले नक़द भुगतान और अन्य बकाया राशियों का भविष्य में भुगतान करने का वादा किया जब कंपनी को पर्याप्त धन मिल जायेगा। रातों-रात अपनी आजीविका से वंचित हुए डंजो के मज़दूरों को इस वादे पर भरोसा नहीं है। कंपनी ने अभी तक पहले के कई मज़दूरों को पूरा और आखिरी निपटान सहित वेतन का भुगतान नहीं किया है।

डंजो बेंगलुरु में स्थित एक हिन्दोस्तानी कंपनी है जिसकी स्थापना 2014 में हुई थी। शुरुआत में यह शहर के भीतर पैकेज लेने और वितरित करने की सेवा प्रदान करती थी। बाद में, अपने व्यवसाय का विस्तार करते हुए इसने प्रमुख शहरों में फल और सब्ज़ियों, मांस, पालतू जानवरों का सामान, भोजन और दवाइयों के वितरण का काम शुरू किया। इस कंपनी में रिलायंस रिटेल जैसे बड़े शेयरधारक हैं, जिसके पास 25.8 प्रतिशत शेयर हैं, जो इसका सबसे बड़ा शेयरधारक है। इसके बाद गूगल और अन्य निवेशक हैं। लेकिन डंज़ो अपने व्यवसाय के लिए जरूरी धन जुटाने में असमर्थ रहा है। इस नाकामयाबी की क़ीमत मज़दूर अपनी आजीविका से चुका रहे हैं।

टैक इंडस्ट्री में काम करने वाले तबके के बड़े हिस्से के सामने यही स्थिति है। जनवरी 2024 से अब तक डेल, इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी कंपनियों ने 90,000 से ज्यादा आईटी मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया है।

ई-कॉमर्स, ई-पेमेंट प्लेटफॉर्म और एजुकेशनल-टेक्नोलॉजी (एडटेक) भी मज़दूरों को नौकरी से निकाला जा रहा हैं। इस सेक्टर में काम करने वाले मज़दूर बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर काम करते हैं और उनके मालिक जब मर्ज़ी उन्हें काम पर रखते हैं और निकालते हैं। पेटीएम ने जून 2024 में 3,500 मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया, जबकि एक अन्य पेमेंट प्लेटफॉर्म सिंपल ने मई 2024 में करीब 200 मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया। बायजूस और अनएकेडमी जैसी कई एडटेक फर्मों ने इसी दौरान सैकड़ों मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया।

ये घटनाक्रम इन सेक्टरों में काम करने वाले मज़दूरों की बेहद असुरक्षित स्थिति को सामने लाते हैं। पूंजीपति वर्ग के प्रचारक इस बात का व्यापक प्रचार कर रहे हैं कि किस तरह ये क्षेत्र मज़दूरों को रोजगार प्रदान करके हमारे देश में गंभीर बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने में योगदान दे रहे हैं। सच्चाई कुछ और ही है। अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से देखें तो स्पष्ट है कि रोज़गार सृजन से कहीं अधिक नौकरियां नष्ट हो रही हैं। जिन क्षेत्रों में रोज़गार में बढ़ोतरी हो भी रही है, वह भी एक अस्थायी प्रक्रिया है।

अर्थव्यवस्था की दिशा मज़दूरों के शोषण के माध्यम से पूंजीपति वर्ग के लिए अधिकतम मुनाफ़ा सुनिश्चित करना है। वित्तीय पूंजी अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों या कंपनियों को छोड़ देती है जो कम मुनाफ़ा देती हैं और उन क्षेत्रों में जाती है जो सबसे अधिक मुनाफ़ा देते हैं।

बेरोज़गारी पूंजीवादी व्यवस्था की हमसफ़र है। इस व्यवस्था के भीतर बेरोज़गारी की समस्या का कोई समाधान नहीं है। मज़दूरों को संगठित होकर पूंजीपति वर्ग के शासन को मज़दूरों और किसानों के शासन में बदलने के लिए संघर्ष करना होगा। तब ही हम यह सुनिश्चित कर सकेंग कि अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति पूंजीपति वर्ग के अधिकतम मुनाफ़े के बजाय पूरे समाज की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के दिशा में हो। तब ही समाज यह गारंटी दे सकेगा कि जो लोग काम करने में सक्षम और इच्छुक हैं, उन्हें सुरक्षित आजीविका की गारंटी होगी।

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