आर्थिक सर्वेक्षण में मज़दूरों के शोषण को और तीव्र करने का आह्वान :
पूंजीवादी हितों को राष्ट्रीय हित के रूप में पेश किया जा रहा है

केंद्रीय बजट 2024-25 की प्रस्तुति से एक दिन पहले, 22 जुलाई 2024 को वित्त मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज में, हमारे देश के मज़दूरों के शोषण को और तेज़ करने का आह्वान किया गया है। इसे हिन्दोस्तान में निवेश करने के लिए विदेशी पूंजीपतियों को आकर्षित करने के लिए एक आवश्यक शर्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है, और जिसे आर्थिक विकास में तेज़ी लाने और विकसित हिन्दोस्तान के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ज़रूरी बताया गया है।

पूंजीपति वर्ग के आर्थिक विशेषज्ञों ने तर्क पेश किया है कि हिन्दोस्तानी श्रम-कानूनों में सुधार किया जाना चाहिए ताकि काम के घंटे लंबे किए जा सकें और ओवरटाइम भुगतान कम किया जा सके ताकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां, हिन्दोस्तानी मज़दूरों का कम से कम उतना तो शोषण कर सकें जितना वे चीन, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और अन्य देशों में करती हैं। इसके अलावा, उनका दावा है कि महिलाओं और पुरुषों के लिए अधिक रोज़गार पैदा करने के लिए, अधिक तीव्र शोषण को वैध बनाना जरूरी है। इस प्रकार, आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है, कि ”वर्तमान श्रम-नियमों ने, सामान्य कार्यबल और विशेष रूप से महिलाओं, दोनों के लिए, अनपेक्षित उल्टे नतीजे पैदा किये हैं। यद्यपि ये नियम जो महिलाओं की सुरक्षा और सभी मज़दूरों के लिए कठोर-मानकों को लागू करने के लिए बनाये गए हैं, अनजाने में वे लोगों के लिए, रोज़गार के अवसरों को सीमित करते हैं और देश में अधिक रोज़गार पैदा करने में बाधा डालते हैं।“

आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज में, हिन्दोस्तान के चार श्रम-मानकों की तुलना अन्य देशों में लागू क़ानूनों से की गई है।

काम के घंटों को बढ़ाना

आर्थिक सर्वेक्षण का दावा है कि कई देश, मज़दूरों के काम के घंटों के बारे में अधिक लचीला रवैया अपनाते हैं और हिन्दोस्तान की तुलना में, अधिक ओवरटाइम काम करने की इजाज़त देते हैं। हिन्दोस्तान में काम के घंटे प्रतिदिन 10.5 घंटे तक सीमित हैं, जबकि कुछ अन्य देशों में यह सीमा और अधिक है और कुछ देशों में तो काम के घंटो पर कोई सीमा ही नहीं लगाई गयी है, ऐसा आर्थिक सर्वेक्षण का दावा है।

पूंजीपतियों द्वारा काम के घंटों के बारे में एक लचीले रवैये की इस दावे के साथ सफ़ाई दी जाती है कि यह मज़दूरों के हित में है क्योंकि इससे उन्हें अधिक घंटे काम करके और अधिक अतिरिक्त आमदनी कमाने का अवसर देती है। लेकिन हक़ीक़त तो यह है कि मज़दूरों को आराम और मनोरंजन, अपने परिवार के साथ कुछ समय बिताने आदि के लिए, पर्याप्त समय की ज़रूरत होती है।

काम के घंटों पर एक कानूनी सीमा जो सख़्ती से लागू किया जाये, यह एक ऐसा अधिकार है, जो बिना किसी अपवाद के सभी वेतनभोगी मज़दूरों पर लागू हो, क्योंकि मज़दूर गुलाम नहीं हैं। काम के घंटों को बढ़ाना पूंजीपतियों के इस हित की पूर्ति करता है कि वो मज़दूर के शोषण को बढ़ाकर और अधिक मुनाफ़ा कमा सकें। यही कारण है कि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा काम के घंटों को 8 से 12 घंटे तक बढ़ाने के लिए, श्रम-कानून में संशोधन करने के प्रयासों का सभी मज़दूर यूनियनों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध किया गया है। तमिलनाडु सरकार को, मज़दूर-यूनियनों के जबरदस्त विरोध के कारण इस संशोधन को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

ओवरटाइम वेतन-प्रीमियम में कमी

आर्थिक सर्वेक्षण, हिन्दोस्तान में ओवरटाइम काम के लिए दी जाने वाली भुगतान की दर को कुछ अन्य देशों में दी जाने वाली इसी दर से तुलना करता है। हिन्दोस्तान में मालिकों को क़ानूनी तौर पर फैट्रियों में काम करने वाले मज़दूर को डबल ओवरटाइम देने का प्रावधान है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, चीन, वियतनाम, थाईलैंड और मलेशिया में ओवरटाइम के लिये केवल डेढ़ गुना देना होता है। आर्थिक सर्वेक्षण का दावा है कि हिन्दोस्तान को इसीलिए नुक़सान हो रहा है क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां कम ओवरटाइम वाले देशों में निवेश करना पसंद करती हैं।

ज़मीनी हक़ीक़त तो यह है कि हमारे देश में नौकरियां न केवल निजी कंपनियों में बल्कि केंद्र और राज्य सरकार में भी, तेज़ी से ठेके पर नौकरियां होती जा रही हैं। बैंकों, सरकारी एजेंसियों, अस्पतालों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों में अस्थायी और निश्चित अवधि के अनुबंधों पर नौकरियां – जिनमें शिक्षक, नर्स, डॉक्टर और पैरामेडिक्स जैसे प्रमुख कार्य शामिल हैं – एक आम प्रथा बन गयी है। इन ठेका मज़दूरों के लिये न तो कोई निश्चित काम के घंटे होते हैं, न कोई ओवरटाइम का भुगतान होता है और न ही किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा मिलती है। आर्थिक सर्वेक्षण, श्रम क़ानूनों में प्रस्तावित किये गए संशोधनों को, जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहा है जो इन प्रावधानों को पूरी तरह से वैध बना देगा।

प्रति-मज़दूर स्थान-मानकों (स्पेस स्टैण्डर्ड) में कमी

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, हिन्दोस्तान अन्य देशों की तुलना में एक कारखाने के फर्श पर प्रति मज़दूर के लिए, 3.38 वर्ग मीटर तल-स्थान (फ्लोर स्पेस) निर्धारित करता है, जो और देशों की तुलना में अधिक है। यदि हिन्दोस्तान, मलेशिया के 2.65 वर्ग मीटर प्रति मज़दूर के मानक को अपनाता है, तो 1,000 वर्ग मीटर उपयोग-योग्य फर्श स्थान वाला एक हिन्दोस्तानी कारखाना, 82 और मज़दूरों को काम पर रख सकता है। तर्क यह पेश किया जा रहा है कि कम कार्यस्थल मानक होने पर हिन्दोस्तान अधिक मज़दूरों को रोज़गार देगा।

हक़ीक़त तो यह है कि हिन्दोस्तानी कारखानों और स्टोरों में काम करने की हालातें बिलकुल अमानवीय हैं। गर्मी की लहर के दौरान अमेज़न के मज़दूरों को जिन अत्यंत दमनकारी परिस्थितियों में काम करना पड़ता है, यह हाल की रिपोर्टों ने दिखाया है – जैसे बिना किसी वेंटिलेशन या कूलिंग के हर दिन लगातार 10 घंटे खड़े रहना। फॉक्सकॉन असेंबली प्लांट में, महिला मज़दूर बिना किसी ब्रेक के काम करती हैं, उन्हें कोई छुट्टी नहीं दी जाती है और उन्हें स्वच्छ और स्वस्थ भोजन के बिना, जेल जैसी हालतों में रखा जाता है। अनौपचारिक क्षेत्र के कारखानों और कार्यशालाओं में काम करने की हालतें कितनी दमनकारी और मज़दूरों के जीवन और कल्याण के लिए कितनी ख़तरनाक हैं, यह हाल की, आग, विस्फोट और अन्य प्रकार की आपदाओं से मज़दूरों की मौत और गंभीर चोटों से हताहत होने की कई घटनाओं से बिलकुल स्पष्ट हो जाता है।

महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर

आर्थिक सर्वेक्षण का दावा है कि इलेक्ट्रोप्लेटिंग, कीटनाशकों, कांच, रिचार्जेबल बैटरी आदि के निर्माण के कारखानों में महिलाओं को रोज़गार देने पर मौजूदा कानूनी-प्रतिबंधों को कम करके, महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण मुद्दा जिसे नज़रअंदाज किया जाता है वह है कि मानव प्रजनन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक सभ्य समाज की निशानी है कि महिलाओं को ऐसा कोई काम न करना पड़े जिससे उनके स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचे। इसके अलावा, हमारे देश में महिलाओं के बीच, कम श्रम-शक्ति भागीदारी (लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन) और ज्यादा बेरोजगारी के वास्तविक कारणों में, उनके द्वारा रोज सामना किए जाने वाले व्यापक भेदभाव और उत्पीड़न और काम की जगह पर सुरक्षा की कमी, शामिल हैं।

निष्कर्ष

यह निर्विवाद हक़ीक़त है कि हमारे देश में अधिकांश पूंजीवादी मालिकों द्वारा ओवरटाइम भुगतान, कार्य दिवस की लंबाई, प्रति-मज़दूर स्थान और महिला मज़दूरों की सुरक्षा के लिए बनाये गए सभी क़ानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता है। इनका पालन, केवल मज़दूर वर्ग के एक छोटे से हिस्से में ही किया जाता है, जो सबसे बड़ी सार्वजनिक और निजी कंपनियों में नौकरी करते हैं। साथ ही, ये प्रावधान महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे एक सभी के लिए मानक निर्धारित करते हैं जिनको हासिल करने के लिए सभी मज़दूर लड़ सकते हैं। पूंजीपति वर्ग इस मानक को कम करना चाहता है। जो मज़दूर इस समय कुछ बेहतर परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, उन मज़दूरों के मानक को नीचे धकेलकर, वे पूरे मज़दूर-वर्ग की काम करने की हालातों को और खराब करना चाहते हैं।

यह दावा कि क़ानूनी रूप से आवश्यक मानकों को कम करना, मज़दूरों के हित में होगा, पूंजीपति वर्ग के पाखंड को दर्शाता है।

यह दावा कि विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए हिन्दोस्तानी मज़दूरों के शोषण को बढ़ाना जरूरी है, एक मज़दूर-विरोधी दृष्टिकोण है जिसे पूंजीपति वर्ग ”राष्ट्रीय हित“ के नाम पर जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहा है। मज़दूर देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। उनकी हालातों को खराब करना, उन्हें पर्याप्त आराम और अवकाश से वंचित करना और उन्हें जल्दी कब्र में धकेलना, सिर्फ पूंजीवादी मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए हैं, ये राष्ट्रीय हित में नहीं है। यह इस हक़ीक़त का भी पर्दाफाश करता है कि सरकार, पूंजीपतियों के हितों को ही, राष्ट्रीय हित मानती है।

यह हक़ीक़त कि आर्थिक सर्वेक्षण जैसे एक आधिकारिक केंद्रीय सरकार के दस्तावेज में मज़दूरों के अधिक तीव्र शोषण का आह्वान किया गया है, यह बिल्कुल स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मौजूदा हिन्दोस्तानी राज्य, देश के सभी लोगों का प्रतिनिधि नहीं है, जैसा कि वह दावा करता है। यह पूंजीपति वर्ग का राज्य है। यह मज़दूरों को केवल एक ऐसी उत्पादक-शक्ति के रूप में देखता है जिसका यथासंभव ज्यादा से ज्यादा शोषण किया जाना चाहिए – उन्हें एक ऐसे इंसान के रूप में नहीं देखता जिनका भी एक सभ्य जीवन जीने का अधिकार है। सरकार की नीतियों की दिशा, लोगों की जरूरतों को पूरा करना नहीं है। ये सरकारी नीतियां, हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों की सेवा और अन्य देशों के पूंजीपतियों के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा में उनको जिताने के लिए बनाई गयी है।

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