कनाडा में हिन्दोस्तानी छात्रों का भविष्य अंधकार में

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कनाडा हिन्दोस्तान के छात्रों के लिए चार सबसे पसंदीदा ठिकानों में से एक रहा है। अन्य तीन देश, अमरीका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया हैं। कनाडा जाने वाले 72 प्रतिशत से अधिक हिन्दोस्तानी छात्र, स्नातकोत्तर वर्क (कार्य) परमिट प्राप्त करने की तमन्ना रखते हैं, जबकि लगभग 60 प्रतिशत कनाडा में स्थायी निवास प्राप्त करने की तमन्ना रखते हैं। 2022 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, कनाडा में लगभग 2.26 लाख हिन्दोस्तानी छात्र थे, जो कनाडा में सभी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का लगभग 40 प्रतिशत था। 2023 में, हिन्दोस्तान से गए हुए, लगभग 330,000 नए अप्रवासी (छात्रों सहित) कनाडा में रह रहे थे। कनाडा अप्रवासन को प्रोत्साहित कर रहा है क्योंकि इससे कुशल मज़दूरों की लगातार उपलब्धता बनी रहती है जिनका अत्यधिक शोषण किया जा सकता है। हाल के दिनों में, हिन्दोस्तान से आये छात्रों को कनाडा में शिक्षा और रोज़गार के अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

आवास की कमी

हिन्दोस्तान से जाने वाले नए छात्रों को कनाडा में सामना करने वाली समस्याओं में से एक है किफायती रहने की जगह न मिलना। ओंटारियो और ब्रिटिश कोलंबिया जैसे प्रांतों में जहां एक तरफ सबसे अधिक संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज हैं तो दूसरी तरफ रहने के लिए किफायती आवास की भारी कमी है। आवासों के किरायों में तेजी से वृद्धि हुई है। पिछले सात सालों में आवास और किराए दोगुने से भी ज्यादा हो गये हैं। इस समय, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कनाडा में 3.45 लाख आवास-इकाइयों की कमी है। कनाडा मॉर्गेज एंड हाउसिंग कॉरपोरेशन ने निकट भविष्य में 35 लाख से ज्यादा आवास इकाइयों की कमी का अनुमान लगाया है, यानि मौजूदा कमी से 10 गुना ज्यादा कमी होने की सम्भावना है। ज्यादातर निजी कॉलेजों के छात्रों के लिए पर्याप्त छात्रावास नहीं हैं, जिसकी वजह से छात्रों को किराए के आवास की तलाश करनी पड़ती है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि पिछले साल तक विदेशी छात्रों को गारंटीड इन्वेस्टमेंट सर्टिफिकेट (जीआईसी) के तहत, लगभग 10,000 कनाडाई डॉलर (सीएडी) का निवेश करना पड़ता था जिसके रिटर्न से एक साल के हर महीने के रहने के ख़र्च की पूर्ती की जा सकती थी। जीआईसी एक ऐसी गारंटी है जो कनाडा की सरकार को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को देनी होती हैं कि उनके पास एक साल के लिए अपने रहने के ख़र्चों को वहन करने के लिए पर्याप्त पैसे हैं। तेज़ी से बढ़ते किराए की वजह से छात्रों को लग रहा है कि जीआईसी से मिलने वाला रिटर्न उनके आवास के किराए का भुगतान तक करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है और इसलिए उनके पास अपने भोजन और अन्य ख़र्चों को पूरा करने के लिए बहुत कम पैसे बचते हैं। हिन्दोस्तान से जाने वाले ज्यादातर छात्रों को अपनी शिक्षा के लिए ऋण लेना पड़ता है और उनके पास अपने आवास और भोजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कम पैसा होता है। इसलिए उनमें से कई छात्र, बहुत ही अस्वस्थ और ख़तरनाक परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।

हालतें इतनी खराब है कि हाल ही में कनाडा पहुंचे हिन्दोस्तानी छात्र, ओंटारियो के किचनर आवासीय इलाकों में अपना बैग लेकर घूम रहे थे, यह जानने के लिए हर दरवाजे की घंटी बजा रहे थे कि किराए पर उनको रहने के लिए कोई जगह मिल सकती है या नहीं। इंडिया टुडे पत्रिका के वेब संस्करण ने 6 छात्रों का उदाहरण दिया है जो एक घर के बेसमेंट में रहते हैं और प्रत्येक को 600 से 650 कनाडाई डॉलर प्रति माह किराया देना पड़ता है (61 रुपये प्रति कनाडाई डॉलर के हिसाब से यह 35,000-40,000 रुपये के बराबर है)। कुछ छात्रों द्वारा एक मोटर कार में रहने की मजबूरी की भी खबर है क्योंकि वे रहने के लिए उचित किराए वाली जगह नहीं ढूंढ पा रहे हैं।

शिक्षा की बढ़ती लागत

कॉलेजों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से ली जाने वाली ट्यूशन फीस, कनाडा के निवासी-छात्रों द्वारा दी जाने वाली फीस से तीन से पांच गुना अधिक है। निजी कॉलेजों में फ़ीस 10,000 कनाडा-डॉलर प्रति माह (यानी 6 लाख रुपये प्रति माह) से अधिक है। पहले पार्ट टाइम काम (मिनी-जॉब) करके छात्र अपने ख़र्चों को आंशिक रूप से पूरा कर लेते थे। अब काम मिलना भी बहुत मुश्किल हो गया है। सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक पोस्ट में 600-700 छात्रों को दुकानों और रेस्तराओं के बाहर घंटों लंबी कतारों में खड़े होकर इंतजार करते हुए देखा गया, केवल इसलिए कि वे संभावित पार्ट टाइम नौकरी के लिए आवेदन-पत्र जमा कर सकें। नौकरी के अवसरों की कमी और जीवन-यापन के लिए अधिक धन की ज़रूरत के कारण, उनके सामने कठिन चुनौतियों से दिन प्रतिदिन जूझने की हालातों ने छात्रों की मानसिक स्थिति पर बुरा असर हुआ है।

नियमों में प्रतिकूल बदलाव

कनाडा में हिन्दोस्तानी छात्रों के लिए मानो ये समस्याएं ही काफी नहीं थीं, कनाडा सरकार ने दिसंबर 2023 से जीआईसी को अब दोगुना करके 20,635 कनाडाई डॉलर कर दिया है। कनाडा में आर्थिक मंदी और इसके परिणामस्वरूप बेरोज़गारी की दर में वृद्धि ने हिन्दोस्तानी छात्रों के लिए पार्ट-टाइम काम पाने की संभावनाओं पर भी पानी फेर दिया है। इसके अलावा, कई प्रांतीय-सरकारें, छात्रों की शिक्षा पूरी होने के बाद, वर्क-परमिट के नियमों में भी बदलाव कर रही हैं। उदाहरण के लिए, प्रिंस एडवर्ड आइलैंड (पीईआई) के पूर्वी प्रांत में, अब नए अप्रवासियों को केवल स्वास्थ्य सेवा और प्राथमिक शिक्षा जैसे कुछ चुनिंदा कार्य क्षेत्रों में ही स्थायी-निवास (परमानेंट रेजिडेंस) दिया जाएगा। हक़ीक़त में, इसका मतलब है कि प्रिंस एडवर्ड आइलैंड के कॉलेजों से डिग्री पाने वाले अधिकांश हिन्दोस्तानी छात्रों को स्थायी-निवास से वंचित कर दिया जाएगा। अध्ययन परमिट और वर्क (कार्य) परमिट के विस्तार के बारे में भी नियम कड़े किए जा रहे हैं और कई हिन्दोस्तानी छात्रों को अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद कनाडा छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। अधिकांश छात्रों ने कनाडा में काम करके अपने शिक्षा-ऋण को चुकाने के लिए कुछ पैसे कमाने की योजना बनाई थी, लेकिन अब ऐसा करने की उनकी संभावनाएं बहुत कम होती जा रही हैं।

पीईआई में हिन्दोस्तानी छात्रों ने प्रांतीय-सरकार द्वारा नियमों में किए गए इन बदलावों के खि़लाफ़ लड़ने का फ़ैसला किया है। वे मांग कर रहे हैं कि उनके शैक्षणिक कार्यक्रम के बीच में, वीजा एक्सटेंशन और वर्क परमिट के नियमों में बदलाव न किया जाए। वे मांग कर रहे हैं कि उनके लिए वही नियम लागू होने चाहिए जो उनके स्टडी परमिट मिलने के समय लागू थे। वे अपने वर्क-परमिट का एक्सटेंशन भी चाहते हैं और मांग कर रहे हैं कि पिछले दिसंबर में सरकार द्वारा स्थायी निवास के संबंध में लगाए गए प्रतिबंध उन पर लागू न हों। इस साल मई में, छात्रों ने प्रांतीय विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया और हड़ताल की। एक हफ़्ते से अधिक समय तक हड़ताल करने के बाद, उन्होंने, सरकारी अधिकारियों से यह आश्वासन मिलने के बाद आंदोलन वापस लिया कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा। हालांकि, महीनों तक सरकार की ओर से कोई कार्रवाई न होते देख, वे अपना आंदोलन फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

हिन्दोस्तान में बेरोज़गारी की गंभीर स्थिति के कारण कई छात्र बेहतर रोज़गार के अवसरों की तलाश में दूसरे देशों में जाते हैं। हालांकि, दुनिया भर में गहराते पूंजीवादी आर्थिक संकट और पूंजीपतियों द्वारा हर कीमत पर अपने मुनाफ़े को अधिकतम करने के लालच की इच्छा के कारण, हमारे युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो रहा है।

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