भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के 80वें शहादत दिवस पर

नौजवानों के लिए शहीदों का पैगाम – नए हिन्दोस्तान के लिए संघर्ष करो!

23 मार्च शहीद भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव की बर्तानवी बस्तीवादियों के हाथों शहादत की बरसी का दिन है। हमारे शहीदों का पैगाम कि – हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कुछ मुट्ठीभर शोषक, विदेशी या हिन्दोस्तानी, मेहनतकश लोगों का शोषण करते रहेंगे – हमारे देश के नौजवानों के दिलों में आज भी गूंजता है।

नौजवानों के लिए शहीदों का पैगाम – नए हिन्दोस्तान के लिए संघर्ष करो!

23 मार्च शहीद भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव की बर्तानवी बस्तीवादियों के हाथों शहादत की बरसी का दिन है। हमारे शहीदों का पैगाम कि – हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कुछ मुट्ठीभर शोषक, विदेशी या हिन्दोस्तानी, मेहनतकश लोगों का शोषण करते रहेंगे – हमारे देश के नौजवानों के दिलों में आज भी गूंजता है।

पिछले 65 वर्षों से बर्तानवी बस्तीवादियों की जगह हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने ले ली है। हमारे देश के मेहनतकश लोग आज भी शोषित हैं और राजनीतिक सत्ता से वंचित हैं। यह बात हर रोज और ज्यादा साफ़ नजर आ रही है कि सत्ता में चाहे जो राजनीतिक मोर्चा हो, कांग्रेस पार्टी, भा.जा.पा. का या कोई तीसरा मोर्चा हो, असलियत में केवल भ्रष्ट और परजीवी पूंजीपति वर्ग का ही शासन चलता है, जो पूरे देश पर अपना कार्यक्रम थोपता है।

पिछले 20 वर्षों से यह पूंजीपति वर्ग निजीकरण और उदारीकरण का कार्यक्रम चला रहा है, जिसके चलते टाटा, बिरला, अम्बानी और अन्य बड़े पूंजीपति और ज्यादा अमीर हो गए हैं और दुनिया के स्तर के खिलाड़ी बन गए हैं, जबकि मजदूर, किसान और अन्य मेहनतकश लोग और ज्यादा गरीब हुए हैं। ये इजारेदार पूंजीपति ही फैसला करते हैं कि किस पार्टी की सरकार बनेगी, कौन सा मंत्री पद किसको मिलेगा और सरकार की नीतियां क्या होंगी। दरअसल, हक़ीक़त में बहु-पार्टीवादी जनतंत्र, पूंजीपति वर्ग की हुक्मशाही है, जो इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में चलती है।

आज हमारे देश के नौजवानों के सामने एक अनिश्चित भविष्य है। आज तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा (क़ानून होने के बावजूद) हक बतौर हासिल नहीं किया जा सका है, जबकि माध्यमिक शिक्षा हासिल करने वालों से केवल 1/3 से भी कम नौजवान उच्च शिक्षा हासिल कर पाते हैं। प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय और तकनीकी शिक्षा तक, शिक्षा के हर स्तर पर बढ़ते निजीकरण, और ऊँचे खर्च से शिक्षा लाखों-करोड़ों नौजवानों की पहुँच से काफी दूर हो गयी है।

अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से नौजवानों के लिए आकर्षक रोजगार हासिल होगा –  यह वादा खोखला साबित हुआ है। शहरों और देहातों के अधिकांश नौजवानों के हालातों पर इसका कोई भी अच्छा असर नहीं हुआ है। लाखों-करोड़ों नौजवानों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में चंद मुट्ठीभर नौकरियों के लिए होड़ लगानी पड़ती है। नौकरी हासिल करने के लिए उनके परिवारों को मोटी रकम घूस के रूप में देनी पड़ती है। पुलिस, फ़ौज और रेलवे में चंद मुट्ठीभर नौकरियों के लिए लाखों-करोड़ों नौजवान किस तरह से होड़ लगाते हैं इसके किस्से यह साफ़ दिखाते हैं कि एक साधारण सी नौकरी के लिए आयाम कितने कम हैं। जिन नौजवानों को किसी तरह से नौकरी मिल जाती है, उनका बेहद शोषण किया जाता है, काम के घंटों की कोई सीमा नहीं होती, काम के हालात बदतर होते हैं, नौकरी कब तक रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं होती और अधिकार नहीं के बराबर होते हैं।

मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रियाएं और इजारेदार पूंजीपतियों के बर्बर राज के खिलाफ़ मेहनतकश लोगों का गुस्सा आज हज़ारों अलग-अलग तरीकों से प्रकट हो रहा है। लोग खाद्य और अन्य रोजमर्रे की चीजों के तेजी से बढ़ते दामों को काबू में लाने की मांग कर रहे हैं। लोग एक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की मांग कर रहे हैं जो पर्याप्त मात्र में अच्छे दर्जे की और किफायती दामों पर खाद्य तथा ज़रूरत की सभी वस्तुयें उपलब्ध कराने की गारंटी देगी। रोजगार का हक, इंसानों जैसे जीने और काम करने के हालत पाने का हक, राज्य के आतंक और राज्य द्वारा आयोजित गुटवादी हिंसा से मुक्त सुरक्षित और इज्जत की ज़िन्दगी जीने का हक, प्राकृतिक संसाधनों पर हक और देश की अर्थव्यवस्था की दिशा और राजनीतिक ज़िन्दगी पर फैसले लेने का हक, इन सब हकों के लिए आवाज़, देश के सभी हिस्सों से हड़ताल, प्रतिरोध, प्रदर्शन और अन्य तरह के संघर्षों में साफ़ उभरकर आ रही है।

पुराने जमाने की तरह ही आज का क्रांतिकारी नौजवान भी असीम ऊर्जा से भरा हुआ है और सभी तरह के शोषण-दमन और भेदभाव से मुक्त एक नया समाज बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। इन नौजवानों को माक्र्सवाद और लेनिनवाद के विज्ञान का अध्ययन गंभीरता से करना चाहिए। यही वह विज्ञान है जो मजदूर वर्ग और किसानों को इस संकट से ग्रस्त पूंजीवादी समाज से बाहर निकलने का रास्ता दिखा सकता है।

आज हमारे देश में सारी राजनीतिक सत्ता चंद मुट्ठीभर अति-अमीर इजारेदार पूंजीवादी घरानों के हाथों में है, और राजनीतिक पार्टियाँ और सरकारें उनकी सेवा करती हैं और उनके अधिकतम मुनाफे सुनिश्चित करती हैं। इस हालात को तुरंत बदलना होगा ताकि राजनीतिक सत्ता मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों के हाथों में हो, जो अपने निवास और काम के स्थानों पर समितियों में संगठित होकर इसे चलायेंगे। इन जनसंगठनों के पास अपने प्रतिनिधि का चयन करने और चुनने का अधिकार होगा, और साथ ही किसी भी वक्त चयनित प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार होगा। राजनीतिक पार्टियों की भूमिका होगी लोगों को सचेत करना और उन्हें आगे का नज़रिया और कार्यक्रम प्रदान करना। जब राजनीतिक सत्ता मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों के हाथों में होगी तो वे इसका इस्तेमाल करके अर्थव्यवस्था की दिशा को बदलेंगे ताकि लोगों की जरूरतें पूरी की जायें। मजदूर वर्ग और मेहनतकश लोग अपने हित में नीतियाँ और कानून बनायेंगे और सरकारी अधिकारियों को लोगों के प्रति जवाबदेह बनायेंगे। आज के हालात की पुकार है कि नौजवान संगठित हों और देश की राजनीतिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदलने के संघर्ष को आगे ले जायें।

हमारे शहीदों का यह पैगाम है कि तमाम तरह के शोषण और दमन को ख़त्म करने के लिये, सुरक्षित और सुखी जीवन के लिए और हमारी मातृभूमि का नयी बुनियाद पर निर्माण करने के लिए हमें अपना संघर्ष आगे ले जाना होगा।

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