ट्रेड यूनियनों का केन्द्रीय बजट 2024 के खिलाफ़ प्रदर्शन

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट  

दिल्ली में 9 अगस्त, 2024 को उपराज्यपाल के कार्यालय पर दिल्ली के ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने एक विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन केन्द्र सरकार की पूंजीपतियों के हितों को बढ़ावा देने वाले, तथा मज़दूरों, किसानों, महिलाओं, नौजवानों व पूरी मेहनतकश जनता के हितों पर हमला करने वाले बजट के खि़लाफ़ था।

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एटक, सीटू, मज़दूर एकता कमेटी, हिन्द मज़दूर सभा, यू.टी.यू.सी., सेवा, ए.आई.यू.टी.यू.सी., ए.आई.सी.सी.टी.यू., टी.यू.सी.सी., और इंटक ने संयुक्त रूप से इस कार्यक्रम को आयोजित किया था।

प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे मज़दूरों ने प्लाकार्ड लिए हुए थे, जिन पर ये नारे लिखे थे – ‘पूंजीपति-परस्त केन्द्रीय बजट मुर्दाबाद!’, ‘मज़दूरों और किसानों की दौलत लूटकर, पूंजीवादी घरानों की तिजोरियां भरना बंद करो!’, ‘पूंजीपति वर्ग का भ्रष्ट परजीवी शासन मुर्दाबाद!’, ‘संसद इजारेदार पूंजीपतियों का हथकंडा है!’, ‘देश की दौलत पैदा करने वालों, देश का मालिक बनो!’, ‘चार श्रम कानून रद्द करो!’, ‘न्यूनतम वेतन 26,000 रु. लागू करो!’, ‘कार्यस्थल पर मज़दूरों  की सुरक्षा सुनिश्चत करो!’ आदि।

सहभागी संगठनों के प्रतिनिधियों ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया। मेहनतकशों पर बढ़ते हमलों का जिक्र करते हुए उन्होंने इसके कई उदाहरण दिए। रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों पर सब्सीडी को बहुत घटा दिया गया है। इसकी वजह से दाल, चावल, आटा, तेल, दूध, रसोई गैस, नमक, सब्ज़ियां, फल इत्यादि और ज्यादा महंगे हो जायेंगे।

वक्ताओं ने समझाया कि यह बजट देशी-विदेशी बड़े-बड़े सरमायदारों की जेबों को भरने के लिये, उनको हज़ारों-करोड़ों रुपयों की टैक्स छूट देने जा रहा है। बजट में खाद्य सब्सीडी, उर्वरक सब्सीडी, एलपीजी सब्सीडी की राशि में कटौती की गयी है। सरकार ने लोक-कल्याण पर होने वाले खर्च, श्रमिक कल्याण, कृषि बीमा, स्वच्छ पेय जल योजना, राष्ट्रीय जल जीवन मिशन, मनरेगा आदि की राशि में कटौती की है। किसानों की लंबित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) की मांग पर सरकार ख़ामोश है।

दिल्ली में मज़दूरों के बढ़ते शोषण की सभी वक्ताओं ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी और भाजपा दोनों ने निजीकरण और उदारीकरण की नीति को लागू किया है और ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा दिया है।

मज़दूरों की शोषणकारी हालतों के बहुत से उदहारण दिए गए। 95 प्रतिशत मज़दूरों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है। मज़दूरों प्रतिदिन 12-14 घंटे काम करने के लिए बाध्य हैं। अधिकतम मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा – ईएसआई, पीएफ, ग्रैज्यूटी आदि – से वंचित किया गया है। केन्द्र और दिल्ली सरकार के सरकारी संस्थानों में ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों की हालत बेहद दयनीय है। उन्हें ठेका की नौकरी पाने के बदले हजारों रुपयों की रिश्वत देनी पड़ती है। न्यूनतम वेतन पर साईन करवाकर, मात्र 10-11 हज़ार रुपए दिए जाते हैं। सरकार और प्रशासन की फैक्ट्री मालिकों के साथ मिलीभगत के चलते, आये दिन मज़दूर अग्निकांड और औद्योगिक दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं। बेरोजगारी, खास तौर पर नौजवानों में, तेजी से बढ़ रही है। बढ़ती संख्या में युवा गिग मज़दूरों की गुलामकारी हालतों को झेलने को मजबूर हो रहे हैं।

वक्ताओं ने इस पर ज़ोर दिया कि इस शोषण-दमन को ख़त्म करने के लिए हमें अपनी एकता मजबूत करनी होगी और अपने संघर्षों को आगे बढ़ाना होगा। हमें अर्थव्यवस्था की दिशा को बदलना होगा – मज़दूरों और किसानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने की दिशा में इसे चलाना होगा, न कि इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अमीरी को बढ़ने की दिशा में।

कार्यक्रम के अंत में यह घोषणा की गयी कि 10 से 13 अगस्त तक औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की मांगों को लेकर अभियान चलाए जायेंगे तथा 14 अगस्त को उप-श्रम आयुक्त कार्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन किया जाएगा।

प्रदर्शन के अंत में ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के प्रतिनिधिमंडल ने उपराज्यपाल को ज्ञापन सौंपा।

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