केंद्रीय बजट 2024-25 :
पूंजीपतियों के हितों की हिफाज़त करते हुए लोगों की समस्याओं को दूर करने का दिखावा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को वर्ष 2024-25 के लिए केंद्रीय बजट पेश किया। अपने बजट भाषण में उन्होंने दावा किया कि इस साल के बजट का उद्देश्य युवाओं, महिलाओं और गरीबों को लाभ पहुंचाना है। ख़ास तौर पर, उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार, युवाओं में बढ़ती बेरोज़गारीे, जो हमारे देश के लोगों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है।

केंद्र सरकार का कुल व्यय 2024-25 में 48.21 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाने का लक्ष्य है, जबकि 2023-24 में 44.90 लाख करोड़ रुपये ख़र्च होने का अनुमान है। ख़र्च का पैटर्न पिछले साल जैसा ही रहेगा, जिसमें ब्याज-भुगतान और सुरक्षा बलों पर ख़र्च का सबसे बड़ा हिस्सा होगा (चार्ट ए)।

क़र्ज़ों पर ब्याज का भुगतान और नियमित सशस्त्र बलों तथा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को बनाए रखने पर ख़र्च, केंद्रीय सरकार के ख़र्चों का सबसे बड़ा हिस्सा रहेगा। केंद्र सरकार के कुल राजस्व का आधे से अधिक हिस्सा इन ख़र्चों के लिए ही रखा जाएगा-ये ख़र्च वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में कोई योगदान नहीं देते हैं।

सरकारी क़र्जे पर ब्याज भुगतान का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बड़े बैंकों और बीमा कंपनियों को दिया जाता है, जो पूंजीपति वर्ग को, उनकी पूंजी पर सुनिश्चित आमदनी प्रदान करते हैं। सुरक्षा बलों पर ख़र्च पूंजीपति वर्ग के शासन को बनाए रखने का काम करता है। बजट में ये दो सबसे बड़े ख़र्च उसके अनुत्पादक और परजीवी चरित्र को दर्शातें हैं।

सड़कों और राजमार्गों के निर्माण पर ख़र्च उतना ही होगा, जितना 2023-24 था। 2022-23 की तुलना में 2023-24 में यह ख़र्च, 27 प्रतिशत अधिक था। पूंजीपति वर्ग के हितों में इसे उच्च स्तर पर रखा जा रहा है, ताकि निजी निवेश में वृद्धि की कमी की भरपाई करते हुए स्टील, सीमेंट और अन्य बुनियादी औद्योगिक उत्पादों की मांग को बनाए रखा जा सके। कृषि और ग्रामीण विकास के लिए आवंटन में मामूली वृद्धि की गई है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर ख़र्च के बेहद कम केंद्रीय आवंटन में कोई बदलाव नहीं किया गया है। पेयजल और स्वच्छता जैसे अन्य आवश्यक सेवाओं के लिए किये जाने वाले ख़र्च में कोई वृद्धि नहीं की गई है। खाद्य सब्सिडी के लिए आवंटित राशि में कमी की गई है।

हालांकि टैक्स में विभिन्न छोटे-मोटे बदलावों की घोषणा की गई है, लेकिन कर-संग्रह के लिए अनुमानित बजट लक्ष्य दर्शाते हैं कि सरकारी ख़र्च का बोझ, मुख्य रूप से मज़दूर वर्ग और अन्य कामकाजी लोगों पर ही पड़ेगा (चार्ट बी)।

पिछले वर्षों की तरह, केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किए गए कर-राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा अप्रत्यक्ष करों (जीएसटी, सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क) और आयकर के माध्यम से मेहनतकश जनता से ही वसूला जाएगा। कॉर्पोरेट मुनाफ़े पर टैक्स का अनुमानित हिस्सा, कुल केंद्रीय कर संग्रह का 27 प्रतिशत है, जो आयकर की राशि से भी कम है। आयकर राशि बड़े पैमाने पर वेतनभोगियों से ही वसूली जाता है। विदेशी पूंजीवादी कंपनियों के मुनाफ़े पर कर की दर 40 से घटाकर 35 प्रतिशत कर दी गई है।

केंद्र सरकार के ख़र्च और कर संग्रह का पूरा स्वरूप, साल-दर-साल बहुत ज्यादा नहीं बदलता है। साथ ही, हर बजट-प्रस्तुति के साथ लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से बहुत सारे गलत विचार फैलाए जाते हैं। सरकारी प्रवक्ता दावा करते हैं कि मेहनतकश लोगों की विभिन्न समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। संसद में विपक्षी दलों के प्रवक्ता बजट की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि यह लोगों की चिंताओं को पर्याप्त मात्रा में संबोधित नहीं कर रहा है।

संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बहस से यह गलत धारणा बनती है कि इस राज्य का इस्तेमाल किसी भी वर्ग की सेवा के लिए किया जा सकता है। यह प्रचार, इस सच्चाई को छुपाने का काम करता है कि मौजूदा राज्य और व्यवस्था पूंजीपति वर्ग को समृद्ध करने और उसके शासन को कायम रखने के लिए ही बनाई गयी है।

पूंजीपतियों की प्रतिस्पर्धी पार्टियां बेरोज़गारी की समस्या के बारे में बहुत भ्रम फैला रही हैं। बेरोज़गारी की समस्या विशेष रूप से युवाओं के बीच अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई है। सभी राजनीतिक पार्टियां इस समस्या को संबोधित करने या कम से कम ऐसा करने का दिखावा करने को मजबूर हैं।

कांग्रेस पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में, पूंजीवादी कंपनियों को एक साल के लिए युवा पुरुषों और महिलाओं को प्रषिक्षु (अपरेंटिस) के रूप में लेने के लिए एक सरकारी योजना का प्रस्ताव दिया था, जिसके तहत उन्हें प्रति वर्ष 1 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अपने 2024-25 के बजट में, शीर्ष 500 पूंजीवादी कंपनियों को अगले पांच वर्षों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्न के रूप में स्वीकार करने के लिए एक योजना की घोषणा की है, जिसके लिये युवाओं को 5000 रुपये प्रतिमाह दिया जायेगा। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता भाजपा पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उसने  कांग्रेस के प्रषिक्षु कार्यक्रम के सुझाव को इंटर्नशिप कार्यक्रम में बदल दिया है और इसमें शामिल वार्षिक भुगतान को कम कर दिया है।

चाहे कोई प्रषिक्षु हो या इंटर्न, वह एक मज़दूर की पक्की नौकरी के समान नहीं है। चाहे कोई प्रषिक्षु हो या इंटर्न, दोनों ही अस्थायी नौकरियां हैं। इस प्रोग्राम के तहत पूंजीवादी कंपनियों को सस्ते श्रम की आपूर्ति की जायेगी, जिस पर किये जाने वाले ख़र्च का एक हिस्सा, सरकारी बजट से आएगा। एक साल की प्रशिक्षण अवधि के अंत में पूंजीवादी कंपनी की प्रषिक्षु या इंटर्न को स्थाई नौकरी देने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। यह भी अभी तक निश्चित नहीं है कि क्या 500 शीर्ष कंपनियां एक करोड़ युवाओं को इंटर्न के रूप में लेने के लिए सहमत भी होंगी, क्योंकि इस योजना के तहत, प्रति कंपनी को 20,000 इंटर्न लेने होंगें।

न तो भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा घोषित इंटर्नशिप कार्यक्रम और न ही कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने घोषणापत्र में प्रस्तावित प्रषिक्षु कार्यक्रम, बेरोज़गारी की समस्या का कोई वास्तविक समाधान है। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कितने लोगों को हक़ीक़त में रोज़गार मिलेगा, यह पूंजीपतियों के फ़ैसलों पर निर्भर करता है, जो अतिरिक्त मज़दूरों को तभी नियुक्त करते हैं, जब उन्हें अपने उत्पादों के लिए बढ़ते बाजार और वेतन पर ख़र्च किए गए अतिरिक्त धन से सुनिश्चित आमदनी का भरोसा होता है।

पूंजीपति हर साल भारी मुनाफ़ा कमा रहे हैं, लेकिन वे देश के भीतर, उत्पादक क्षमता के विस्तार पर इस मुनाफ़े का बहुत कम हिस्सा निवेश कर रहे हैं। वे देश के अन्दर इसलिए निवेश नहीं कर रहे हैं क्योंकि हिन्दोस्तान में उपभोग की वस्तुओं के लिए बाज़ार का विस्तार नहीं हो रहा है और इसका कारण है कि मेहनतकश लोगों के रोज़गार और आय में वृद्धि नहीं हो रही है। बेरोज़गारी की समस्या के समाधान के लिए अर्थव्यवस्था की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव की सख़्त ज़रूरत है।

पूंजीवादी मुनाफ़े को अधिकतम करने के लिए चलाये जाने वाली उत्पादन की पूरी व्यवस्था को लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में चलाया जाना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने का दावा करने वाली सभी योजनाएं गुमराहकारी वादों के अलावा और कुछ नहीं होंगी। मुद्रास्फीति को कम करने या कृषि-आय में सुधार लाने जैसे अन्य उपायों के बारे में भी यही कहा जा सकता है।

2024-25 का बजट एक बार फिर इस बात की पुष्टि करता है कि केंद्रीय हिन्दोस्तानी राज्य, इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग के शासन का ही एक साधन है। इसका वार्षिक बजट मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के बजाय, पूजीपति शासक वर्ग के हितों को आगे बढ़ाने का ही एक साधन है।

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